तिलिस्मी कमल - भाग 4 Vikrant Kumar द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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तिलिस्मी कमल - भाग 4

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य पढ़ें .....  🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


लोमड़ मानव राजकुमार को देखकर गुर्राते हुए कहा - " पहले मुझसे तो मिलो मूर्ख मानव । " 

इतना कहने के बाद लोमड़ मानव ने राजकुमार पर छलांग लगा दी । राजकुमार सावधान था । वह वैशाली का हाथ छोड़कर फुर्ती से एक तरफ हट गया ।और अपनी तलवार म्यान से निकाल ली ।

लोमड़ मानव का वार खाली चला गया । उसने दोबारा राजकुमार पर छलांग लगाई । अबकी राजकुमार ने अपनी तलवार आगे कर दी । तलवार लोमड़ मानव के सीने के पार हो गई । 

राजकुमार ने लोमड़ मानव के सीने से तलवार निकाली और एक लात मार दिया । लोमड़ मानव उछलकर  जलते हुए दरवाजे पर जा गिरा । और आग की लपटों में गिर गया ।

लोमड़ मानव जलकर मर गया । राजकुमार धरमवीर वैशाली को लेकर कमरे से निकला । लेकिन वैसे ही जादूगर शक्तिनाथ वहां पर अपनी जादुई छड़ी के साथ प्रकट हो गया । जिसके गले में तिलिस्मी पत्थर चमक रहा था । 

जादूगर ने राजकुमार के ऊपर एक किरण छोड़ दी जिससे राजकुमार उछलकर दूर जा गिरा ।  और बेहोश हो गया । इधर जादूगर शक्तिनाथ ने वैशाली को पकड़कर कर अपने कक्ष की ओर ले जाने लगा ।

तभी वैशाली की नजर राजकुमार की तलवार पर पड़ी । वैशाली ने बिना कोई क्षण गवाए जादूगर शक्तिनाथ का हाथ तलवार से काट दिया । 

हाथ कटते ही जादुई छड़ी दूर जा गिरी । और वह छड़ी गिरते ही राजकुमार को छू गई । छड़ी छूते ही राजकुमार होश में आ गया । और वह तुरन्त वैशाली के पास गया । और तलवार ले ली ।

इसके बाद राजकुमार ने जादूगर शक्तिनाथ के गले से तिलिस्मी पत्थर छीन लिया ।  और जादूगर को जलती हुई आग के ऊपर फेंक दिया । जादूगर आग में जलने लगा ।

महल में आग पूरी तरह से फैल चुकी थी । और चारो तरफ धुंआ ही धुंआ भर गया था । बड़ी मुश्किल से राजकुमार वैशाली को लेकर महल से बाहर निकला ।

आग की लपटें आकाश को छू रही थी । धीरे धीरे जादूगर शक्तिनाथ का महल ढह रहा था ।राजकुमार जलते हुए महल को देखकर बोला - " कुछ ही देर में यह आलीशान महल राख में बदल जायेगा । और साथ मे जादूगर शक्तिनाथ भी । "

" हाँ राजकुमार  , उस शैतान को अपनी करनी का फल मिल गया है । चलो मुझे मेरे पति के पास ले चलो ।" - वैशाली ने राजकुमार से कहा ।

राजकुमार ने ऐड़ लगाकर अपने घोड़े को दौड़ा दिया ।उन लोगो के जाते ही  भयंकर आग की लपटों में घिरे महल से जादूगर शक्तिनाथ उड़ता हुया निकला ।

" हा हा हा ! मूर्ख समझते थे कि मैं मर गया हूँ । अब मैं इन्हें नरक में पहुंचाऊंगा ।" - जादूगर ने एक भद्दी हँसी हँसते हुए अपने आप से कहा ।

राजकुमार का घोड़ा सरपट भागा जा रहा था ।तभी अचानक घोड़ा हिनहिना कर रुक गया । क्योकि उसके सामने एक विशालकाय चमगादड़ आ गया था । उस विशालकाय चमगादड़ को देखकर राजकुमार और वैशाली की आंखे भय और आश्चर्य से फैल गयी ।

वैशाली सहमी हुई आवाज में कहा - " हे भगवान , इतना बड़ा चमगादड़ ।"

" यह अचानक कहाँ से आ गया ? " राजकुमार अभी सोच ही रहा था कि चमगादड़ उन दोनों पर झपट पड़ा । दोनों घोड़े से नीचे आ गिरे । राजकुमार के संभलने के पहले ही चमगादड़ दोबारा  झपटा और वैशाली को पंजो पर दबाकर उड़ गया ।

और थोड़ी ऊँचाई में पहुंच कर चमगादड़ इंसानी आवाज में बोला - " राजकुमार , मुझे पहचाना मैं जादूगर शक्तिनाथ हूँ । तुम समझ रहे थे कि मैं मर गया हूँ ।मैं वैशाली को ले जा रहा हूँ।"

चमगादड़ की बात सुनकर राजकुमार ने फुर्ती से घोड़े के पीठ से भाला निकाला । और पूरी शक्ति से चमगादड़ की ओर फेंक दिया । भाला चमगादड़ के पंख में जाकर लगा और वैशाली उसके पंजो से छूट कर नीचे जमीन में आ गिरी ।

चमगादड़ दोबारा वैशाली की तरफ बढ़ा तो राजकुमार ने लोहे की जंजीर निकाली और उसका फंदा बनाकर चमगादड़ की तरफ फेंका । फंदा चमगादड़ के गले मे फंस गया ।जंजीर को झटका देकर राजकुमार ने फंदा कस दिया ।

और जंजीर का दूसरा सिरा एक पेड़ से बांध दिया । चमगादड़ रूपी शक्तिनाथ ने उस जंजीर से आजाद होने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब न हो सका ।

राजकुमार ने अपने साथ लाये हुए समान में से तीर कमान निकाला और निशाना लेकर एक के बाद एक कई तीर चमगादड़ के शरीर में गाड़ दिए ।

चमगादड धराशायी होकर जमीन पर गिर पड़ा ।और तड़प तड़प कर मर गया । मरते ही शक्तिनाथ अपने असली रूप में आ गया । वैशाली और राजकुमार धरमवीर दोबारा घोड़े पर सवार हुए और शक्तिनाथ की लाश को वही छोड़कर आगे बढ़ गए ।

राजकुमार वैशाली को लेकर जंगल पहुंचा जहाँ उसका पति पत्थर का बना हुया था । राजकुमार ने वैशाली को तिलिस्मी पत्थर दिया और कहा - " इसे पत्थर को लेकर अपने पति को छुओ । "

तिलिस्मी पत्थर लेकर वैशाली ने जैसे ही अपने पति की मूर्ति को छुआ वैसे ही पत्थर की मूर्ति में एक तेज रोशनी हुई । और रोशनी जैसे ही खत्म हुई । वहां पर अब वैशाली का पति खड़ा मुस्कुरा रहा था ।

शंकर और वैशाली दोनों राजकुमार की ओर हाथ जोड़ते हुए कहा - "  राजकुमार , हम दोनों आपके बहुत आभारी है अगर तुम न होते तो वैशाली जादूगर शक्तिनाथ के जाल में फंसी रहती और मैं पत्थर की मूर्ति बना रहता । "

राजकुमार दोनों लोगो के हाथ नीचे करते हुए बोला - " नही , हाथ मत जोड़ो । मैं तो तिलिस्मी पत्थर के लिए तुम्हारे पास आया था जिसे पाने के लिए तुम्हे मुक्त करना जरूरी था । जिसमे मेरा भी स्वार्थ है इसलिए आप दोनों मेरे सामने हाथ मत जोड़िए । " 

इसके बाद शंकर ने राजकुमार को तिलिस्मी पत्थर दे दिया । तिलिस्मी पत्थर तो मिल गया था । लेकिन तिलिस्मी कमल पाने के लिए अभी राजकुमार को चमत्कारी मणि , तिलिस्मी फल , लाल मोतियों की माला और स्वर्णपँख चाहिए था।

जिसके बारे में राजकुमार को भी नही पता था कि ये सभी चीजें कहाँ  मिलेगी । राजकुमार को इस तरह चिंतित देखकर वैशाली बोली - " राजकुमार आप किस चिंता में है ?" 

राजकुमार वैशाली को अपनी पूरी कहानी बता दी । वैशाली बोली - " और किसी चीज के बारे में तो नही जानती लेकिन चमत्कारी मणि के बारे में मैंने एक बार अपने गुरु जी से सुना था । चलो हम आपको उनके पास ले चलते है शायद वह आपको चमत्कारी मणि के बारे में कुछ बता सके ।" 

राजकुमार वैशाली की बाते सुनकर खुश हो गया । और वैशाली राजकुमार को लेकर अपने गुरु के पास चल दिया । लगभग तीन कोस चलने के बाद राजकुमार को एक आश्रम नजर आने लगा ।

आश्रम में पहुंचते ही वैशाली ने अपने गुरु से सभी का परिचय कराया और राजकुमार की पूरी बात बताई । गुरु ने राजकुमार से कहा - " चमत्कारी मणि लाना बहुत जोखिम का काम है और इस कार्य मे तुम्हारी मृत्यु भी ही सकती है । "

राजकुमार धरमवीर आत्म विश्वास से कहा - " अपने पिता और प्रजा के लिए यदि में अपने प्राणों से हाथ भी धोना पड़े तो भी मैं पीछे नही हटूंगा । अब आप चमत्कारी मणि तक पहुंचने के लिए उपाय बताइये । "

राजकुमार की ऐसी बाते सुनकर गुरु खुश होते हुए बोले - "  राजकुमार , तुम बहादुर ही नही , बड़े रहमदिल और नेक इंसान भी हो , तुम चमत्कारी मणि जरूर प्राप्त कर लोगे । "

गुरु जी कुछ देर चुप रहने के बाद बोले - " सुनो , यँहा से सीधे पूर्व की ओर चले जाओ । सात दिन और सात राते बिताने पर आठवें दिन प्रातः काल एक काला घोड़ा मिलेगा । तुम अपना घोड़ा वहीं छोड़ देना और काले घोड़े पर सवार हो जाना । काला घोड़ा उसी दिन की रात तुम्हे एक मायावी भैरवी रत्ना तक पहुंचा देगा । भैरवी रत्ना तुम्हारी तरह तरह की परीक्षा लेगी । यदि तुम परीक्षाओं में सफल रहे तो वह तुम्हे चमत्कारी मणि तक पहुंचने का मार्ग बता देगी । मुझे इससे अधिक और कुछ नही मालूम है । "

इतना कहने के बाद गुरु जी शांत हो गए । इसके बाद राजकुमार धरमवीर ने शंकर , वैशाली और गुरु जी से विदा लिया । और अपने घोड़े पर सवार हुया । और तेजी से पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा ।



                              
                     क्रमशः ......................💐💐💐💐💐💐

सभी पाठकगण को राम राम , अपना कीमती समय निकाल कर इस भाग को पढ़ने के लिए धन्यवाद । अपनी सुंदर सी समीक्षा देकर यह जरूर बताये की यह भाग कैसा लगा ? कहानी का अगला भाग जैसे ही प्रकाशित करू और आप तक पहुंच जाए इसलिए मुझे जरूर फॉलो करे । 


विक्रांत कुमार
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