अधूरा उपन्यास... Abhishek Chaturvedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरा उपन्यास...

अधूरा उपन्यास 



देर रात का समय था। बारिश की बूँदें खिड़की पर थपथपा रही थीं। विशाल अपने कमरे में बैठा हुआ था, उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। उसे पिछले कुछ दिनों से एक अजीबोग़रीब एहसास से घिरा हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके पीछे पड़ा हो, लेकिन वह इसे मात्र उसका भ्रम या वहम्... समझ कर टाल देता था।

उसने जब से नयी नौकरी शुरू की थी, तब से ही उसके जीवन में कुछ अजीब घटनाएँ होने लगी थीं। हर रात उसे महसूस होता कि कोई उसे देख रहा है। कभी-कभी तो ऐसा लगता कि कोई उसके कमरे में भी है। उसने इसे अपने दिमाग का वहम समझा, लेकिन आज की रात कुछ और ही थी।

विशाल अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था जब अचानक उसे दरवाजे के पास एक हल्की सी आवाज सुनाई दी। उसने चौंक कर दरवाजे की ओर देखा। कमरे की लाइट की हल्की रोशनी में दरवाज़ा बंद ही था। उसने फ़िर से ध्यान दिया, लेकिन अब कुछ नहीं था। वह अपने काम में फ़िर से लग गया, लेकिन अब उसका ध्यान बार-बार दरवाज़े की ओर जा रहा था।

कुछ देर बाद दरवाज़े के नीचे से हल्की-सी परछाई दिखी। विशाल का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने हिम्मत जुटा कर दरवाज़ा खोला, लेकिन बाहर तो कोई नहीं था। और कुछ था भी तो बस गलियारे में दूर तक फैला हुआ अंधेरा...

वह वापस कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर दिया। इस बार उसने दरवाज़े पर ताला लगा दिया। उसने ख़ुद को समझाने की कोशिश की कि यह सब महज़ उसकी कल्पना है, लेकिन अब उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था।

उसे महसूस हुआ कि कुछ न कुछ तो ज़रूर गड़बड़ है। उसने तय किया कि वह इस भ्रमजाल का अन्त कर के रहेगा। अगले दिन उसने अपने ऑफिस के सुरक्षाकर्मी से बात की और अपनी चिंताओं के बारे में बताया। सुरक्षाकर्मी ने उसे समझाया कि सब ठीक है, लेकिन विशाल की बेचैनी कम नहीं हुई।

अगले कुछ दिनों तक कुछ ख़ास नहीं हुआ, लेकिन विशाल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह रात को ठीक से सो नहीं पाता था। एक दिन, जब वह घर लौटा, तो उसने दरवाजे पर कुछ अजीब-सा महसूस किया। जैसे कोई उसके दरवाज़े के पास खड़ा था और दरवाज़ा खुलते ही भाग गया हो।

उसने तुरन्त घर में कैमरे लगाने का फैसला किया। उसने कमरे के कोने-कोने में कैमरे लगाए ताकि कोई भी गतिविधि उससे छिप न सके। उस रात वह पहले से ज़्यादा सतर्क हो गया था। उसने सोने का नाटक किया और कैमरे की स्क्रीन पर निग़ाहें जमाए रखीं।

रात के बीचों-बीच कैमरे में कुछ हलचल दिखी। विशाल की धड़कनें तेज हो गईं। एक परछाई धीरे-धीरे उसके कमरे की ओर बढ़ रही थी। जैसे ही वह परछाई दरवाज़े के पास पहुँची, विशाल ने दरवाज़ा खोल दिया और ज़ोर से चिल्लाया। लेकिन इस बार भी वहॉं कोई नहीं था और था तो एक गुप्त अंधेरा.......

उसने तुरन्त कैमरे की फुटेज चेक की, लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उस परछाई का कोई नामो-निशान तक नहीं था। विशाल पूरी तरह से उलझन में था। उसने ठान लिया कि अब वह इस भ्रमजाल की तह तक जाएगा।

अगले दिन, विशाल ने एक प्राइवेट डिटेक्टिव को बुलाया। डिटेक्टिव ने उसकी कहानी सुनी और जॉंच शुरू की। कुछ दिनों बाद, डिटेक्टिव ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया। 

विशाल जिस घर में रह रहा था, वह पहले एक मशहूर लेखक का था। उस लेखक की रहस्यमयी हालात में मौत हो गई थी। उसके बाद से ही इस घर में अजीब घटनाएँ होने लगीं। लोग कहते थे कि उस लेखक की आत्मा अभी भी यहाँ भटक रही है और अपने अधूरे उपन्यास को पूरा करना चाहती है।

विशाल को यह जानकर गहरा धक्का लगा। उसे समझ में आया कि यह सब उसका वहम् या कोई भ्रमजाल नहीं थी, बल्कि एक सच्चाई थी जिसे वह अब तक नज़रअंदाज़ करता आ रहा था। उसने फ़ौरन वह घर छोड़ने का फ़ैसला किया।

लेकिन जब वह अपना सामान पैक कर रहा था, तो उसकी नज़र एक पुराने दस्तावेज़ पर पड़ी। यह उसी लेखक की अधूरी पांडुलिपि थी। विशाल ने उसे पढ़ना शुरू किया और पाया कि वह कहानी उसके अपने जीवन से मिलती-जुलती थी। जैसे-जैसे वह पढ़ता गया, उसकी समझ में आया कि वह लेखक अपनी ही कहानी में फँस गया था, और अब वह विशाल को भी उसी में फँसाना चाहता था।

विशाल ने उस पांडुलिपि को जला दिया और घर छोड़ कर चला गया। वह जानता था कि वह अब कभी उस भ्रमजाल के चक्रव्यूह में नहीं फँसेगा। लेकिन उस रात, जब वह अपने नए घर में सोने की कोशिश कर रहा था, उसे दरवाज़े पर फ़िर से दस्तक़ हुई और वही हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी। और फ़िर.........