तिलिस्मी कमल - भाग 1 Vikrant Kumar द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

श्रेणी
शेयर करे

तिलिस्मी कमल - भाग 1

चन्दनगढ़ पहाड़ की हसीन वादियों के बीच बसा एक छोटा सा राज्य था । जिसके राजा जयदेव सिंह थे जो अपने प्रजा को अपने पुत्र की तरह चाहते थे । राजा जयदेव सिंह के राज्य में प्रजा अपने अच्छे से सुखपूर्वक दिन गुजार रही थी । किसी को कोई दुख नही था।

राजा जयदेव सिंह एक पुत्र था । जिसका नाम राजकुमार धरमवीर था । जो प्रजा में सबका चहेता था । पूरी प्रजा राजकुमार को बहुत चाहती थी । 

एक दिन राजा जयदेव सिंह अपने राज्य के जंगल मे शिकार करने के लिए गए हुए थे । उनके साथ चार सैनिक और भी थे जो राजा के रक्षक थे ।

राजा शिकार की तलाश में जंगल के काफी आगे निकल गए । तभी राजा को एक शेर दिखा । शेर को देखकर राजा खुश हो गये । और शेर को मारने के लिए राजा ने अपने धनुष में तीर चढ़ा लिया । और शेर की तरफ छोड़ दिया ।

तीर सीधा जाकर शेर के पेट मे लगा । अपने ऊपर हुए अचानक हमले से शेर दहाड़ उठा । शेर ने राजा जयदेव सिंह को तीर चलाने के लिए दूसरा मौका नही दिया । और राजा के  ऊपर छलांग लगा दी । 

जिसे राजा जयदेव सिंह जमीन में गिर पड़े । और उनके शरीर मे शेर के पंजों के निशान बन गए । पंजे लगते ही राजा जयदेव सिंह बेहोश हो गए । 

राजा के बेहोश होते ही शेर न फिर से उनको मारने के लिए लिए छलांग लगाई लेकिन जैसे ही शेर राजा जयदेव के ऊपर  पंजे मारने के लिए अपना पंजा बढ़ाया वैसे ही हवा में आकर शेर को एक साथ चार तीर आ लगे ।

शेर वही पर जमीन में गिर गया । और तड़प तड़प कर मर गया । वे चारो तीर राजा के रक्षकों ने चलाये थे । चारो रक्षकों ने राजा को उठाया और वापस महल में  ले आये ।

राजा जयदेव सिंह को बेहोशी की हालत में देखकर महल में अफरा तफरी मच गई । चारो रक्षकों ने राजकुमार से सब बता दिया जो जंगल मे हुया था ।

राजकुमार ने तुरन्त अपने शाही बैद्य को बुलाया । बैद्य ने इलाज करना शुरू कर दिया । लेकिन राजा की बेहोशी न टूटी  और राजा का शरीर धीरे धीरे नीला पड़ने लगा ।

राजमहल में सभी लोग हताश और निराश थे । किसी के कुछ समझ मे नही आ रहा था कि क्या करे कि राजा सही हो जाये ।

तभी महल के चारो ओर जोर जोर से हवाएं चलने लगी । बिजली कड़कड़ाने लगी । आसमान में काले काले बादल छाने लगे । पूरे महल में खलबली मच गई । ऐसा पहले कभी नही था आज ऐसा क्यो हो रहा है ? 

राजकुमार पहले ही अपने पिता जी को लेकर चितिंत था अब ये दूसरी मुसीबत भी तैयार हो रही थी ।

तभी राजमहल के हवा में एक भयानक अट्टहास होने लगा । राजकुमार चारो तरफ देख रहा था । लेकिन राजकुमार को अट्टहास सुनाई दे रहा और कुछ भी नही । 

तभी धीरे धीरे हवा में पेड़ की पत्तियां एक जगह इकठ्ठा होने लगी और एक स्त्री को रूप लेने लगी । राजकुमार ने जब यह देखा आश्चर्य चकित हो गया । 

तभी वह स्त्री राजकुमार धर्मवीर से गरजती हुई आवाज में बोली - " राजकुमार धर्मवीर तेरे पिता ने मेरे पति वन देव को मारा है जो शेर के रूप में जंगल मे टहल रहे थे । इसलिए उनका बदला लेने मैं आयी हूँ , वन देवी उनकी धर्मपत्नी । मैं इस पूरे चन्दनगढ़ को तहस नहस कर दूंगी । कुछ भी नही रहेगा यहाँ , कुछ भी नही ।"

वनदेवी की ऐसी बात सुनकर राजकुमार सहम गया । और बिना देर किए राजकुमार धर्मवीर अपने दोनो हाथों को जोड़ते हुए वनदेवी के सामने घुटने के बल बैठ गया । और बोला - "  है , वनदेवी ऐसा न करो सभी निर्दोष लोग मारे जाएंगे । " 

वनदेवी गुस्से में बोली - " निर्दोष तो मेरे पति भी थे उन्हें क्यो मारा तुम्हारे पिता ने । नही मैं यहाँ पर किसी को भी नही छोडूंगी सब को मार दूंगी । "

राजकुमार धर्मवीर बोला - " ऐसा न कहिए देवी , मेरे पिता जी भी अभी तक बेहोश है उन्हें होश नही आ रहा है उन्हें आपके पति को मारने की सजा मिल चुकी है । "

वनदेवी और भी गुस्से बोली - " मैं कुछ नही जानती राजकुमार , मैं तभी रुकूँगी जब मेरे पति मुझे दुबारा जीवित मिले , बोलो उन्हें जीवित कर सकते हो ? "

राजकुमार बोला - " अगर दुनिया में आपके पति को जीवित करने का कोई उपाय होगा तो मैं जरूर आपके पति को जीवित करूँगा ? " 

राजकुमार की बातें सुनकर वन देवी का गुस्सा थोड़ा शांत हुया और बोली - " है एक उपाय , तिलिस्मी कमल जिसका रस लेने से मेरे पति पुनर्जीवित हो जायँगे और और तुम्हारे पिता भी ठीक हो जायेगे । बोलो ला सकते हो तिलिस्मी कमल ? " 

राजकुमार वनदेवी से बोला - " हे देवी , आप तो स्वयं एक देवी हो तो आप स्वयं तिलिस्मी कमल ला सकती हो ? "

वन देवी बोली  - " मैं नही ला सकती क्योंकि जहाँ पर तिलिस्मी कमल  है वहां पर मैं नही जा सकती हूं मुझे वहां पर जाना मना है अगर मैं गयी तो भस्म हो जाऊंगी ।  "

राजकुमार धर्मवीर बोले - " तो ठीक है वन देवी मैं जाऊंगा वहाँ पर तिलिस्मी कमल लाने चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यो न देना पड़े ? आप वहां तक पहुंचने के लिए मुझे रास्ता बताइये ? "

वनदेवी बोली - " राजकुमार , वहां तक पहुंचना आसान नही है । वहाँ जाने के लिए पांच तिलिस्मी द्वारों से गुजरना पड़ता है । और हर द्वार में एक से बढ़कर एक खतरा है । और हर द्वार खोलने के लिए अलग अलग पांच तिलिस्मी वस्तु है जो न जाने कहाँ पर और किसके पास है ? और वह द्वार तभी खुलेंगे जब वह पांचो वस्तुयें तुम्हारे पास होगी । जो ये है - तिलिस्मी पत्थर , चमत्कारी मणि , तिलिस्मी फल , लाल मोतियों की माला और स्वर्णपँख । जिनमे मुझे केवल तिलिस्मी पत्थर के बारे में पता है कि वह कहाँ मिलेगा ? पहले इन पांचों तिलिस्मी वस्तुओं को मेरे पास ले आओ उसके बाद मैं तुम्हे बताऊंगी की तिलिस्मी कमल कहाँ पर है? " 

राजकुमार बोला - " ठीक है अब आप तिलिस्मी पत्थर तक जाने का उपाय बताइये  उसके बाद बाकी बची चारो वस्तुओं को मैं खुद खोज लूंगा । "

वन देवी बोली - " ठीक है सुनो , यहाँ से उत्तर दिशा की ओर दस कोस जाने पर एक जंगल मिलता है जिसमे एक आदमी पत्थर का बना हुया । वही आदमी तुमको तिलिस्मी पत्थर के बारे में बता सकता है ? और अगर तुमने यह पांचो वस्तुएं एक वर्ष के अंदर मेरे पास नही ला पाए तो मैं यहाँ किसी को नही छोडूंगी , सब कुछ तहस नहस कर दूंगी ।"

राजकुमार आत्म विश्वास  बोला - " वन देवी , मैं समय पूरा होने से पहले पांचो वस्तुएं ले आऊंगा । लेकिन तब तक आप मेरे पिता जी को कुछ नही होने देंगे और मेरे राज्य में कोई विपत्ति नही आने देगी । "

वन देवी बोली - " ठीक है अब जाओ, और पांचो तिलिस्मी वस्तुओं को ढूंढ लाओ । अगर पांचो वस्तुएं ले आना तो मुझे पुकारना मैं तुरंत आ जाऊंगी ।  "

इतना कहने के बाद वन देवी अट्टहास लगाते हुए वहाँ से गायब हो गयी । वन देवी के गायब होते ही मौसम साफ सुथरा हो गया । 

अगले दिन राजकुमार अपने साथ एक घोड़ा ले लिया जिसका नाम बादल था । और साथ मे तलवार धनुष बाण आदि चीजे ले ली जो उसके सफर में साथ देती ।

राजकुमार धर्मवीर एक अनजाने सफर में चल पड़ा । जिसका न कोई ठीकाना था , न ही कोई मदद बस अपने राज्य और अपने पिता को बचाने के लिए चल दिया । 

राजकुमार वनदेवी के बताए रास्ते मे उत्तर दिशा की ओर चल दिया । रास्ते मे पहाड़ नदिया मैदान आदि से निकलते हुए दस कोस जाने के बाद राजकुमार को जंगल नजर आने लगा । राजकुमार जंगल की सीमा के पास पहुंच गया । जंगल मे घुसते ही राजकुमार को जानवरों की भयानक आवाजे सुनाई देने लगी । 

पेड़ इतने बड़े और घने थे कि पूरा जंगल दिन के समय में भी अंधेरा और भयानक लग रहा था । राजकुमार बिना डरे हुए जंगल मे बढ़ते चले जा रहे थे ।

जंगल के अंदर थोड़ा दूर जाने पर राजकुमार को एक पत्थर की मूर्ति नजर आने लगी । मूर्ति जो एक घेरे में खड़ी थी । घेरा छोटी छोटी झाड़ियों से बना हुया था ।

राजकुमार धर्मवीर घोंड़े से उतर कर घेरे के पास गये । और मूर्ति के पास जाने के लिए जैसे ही घेरे की झाड़िया हटाना शुरू किया । राजकुमार के ऊपर एक कबूतर ने हमला कर दिया ।

इस तरह से अचानक अपने ऊपर हुए हमले से राजकुमार बौखला गया । इसके बाद राजकुमार ने अपनी तलवार निकाल ली । और जैसे ही कबूतर राजकुमार के ऊपर हमला करने के लिए पास में आया । तो राजकुमार ने उसे पकड़ लिया ।

और फिर राजकुमार कबूतर को मारने के लिए जैसे ही तलवार उठाई  वैसे ही एक आवाज गूंजी इसे मत मारो यह मेरा साथी है ।

आवाज सुनते ही राजकुमार रूक गया । और इधर उधर देखने लगा । फिर से आवाज आई , मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ । राजकुमार गौर से देखा तो आवाज पत्थर की मूर्ति से आ रही थी ।

मूर्ति फिर से बोली - तुम कौन हो और यहाँ क्यो आये हो ? "

राजकुमार बोला - " मैं चन्दनगढ़ का राजकुमार हूँ और मैं यहाँ पर तिलिस्मी पत्थर के लिए आया हूँ । "


                                                क्रमशः .................💐💐💐

आप सभी पाठकगण मेरा धन्यवाद , जो अपने अपना कीमती समय निकाल कर इस भाग को पढ़ा । अगला भाग मैं जैसे ही प्रकाशित करू आप तक पहुंच जाए इसलिए मुझे जरूर फॉलो करें । और यह पहला भाग आप सबको कैसा लगा अपनी सुंदर समीक्षा देकर जरूर बताएं ।✳️✳️✳️✳️🙏🙏🙏🙏🙏




विक्रांत कुमार
फतेहपुर उत्तरप्रदेश 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️