नुसरत - भाग 4 (अंतिम भाग) Pradeep Shrivastava द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नुसरत - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग 4

“वास्तव में यह बात खुली ऐसे कि, एक बार ऐसी ही एक पार्टी में झगड़ा हो गया। सब के सब नशे में तो थे ही। उनकी गाली-गलौज, हुड़दंग से पड़ोसी जाग भी सकते हैं, उन सब ने ऐसा सोचा ही नहीं। 

“मंडली की हरकतों से परेशान पड़ोसियों ने उस दिन पहले इन सबको मारा, फिर पुलिस बुलाने जा रहे थे। लेकिन इन सब के बहुत हाथ-पैर जोड़ने पर पुलिस तो नहीं बुलाई, लेकिन स्वयं जितना टाइट कर सकते थे, उतना कर दिया। उन्हीं पड़ोसियों में से एक का दोस्त विरोधी मंडली में है। वहीं से सारी बातें आगे ट्रेवल करती रहती हैं।” 

“ओह, और यह ट्रेवल करती आप तक भी पहुँचती रहती हैं। विश्वास नहीं हो रहा है कि, इन सबके मन में रिश्तों की मर्यादा, स्वाभिमान जैसा कुछ बचा ही नहीं है। पहले जब अन्य लोगों के बारे में ऐसा सुनता-पढ़ता था तो विश्वास ही नहीं होता था। 

“सोचता था यह सब बकवास ही है। लेकिन अब तो अविश्वास का कोई कारण ही नहीं बचा है। सच में रिश्तों की पवित्रता, मर्यादा, स्वभिमान, यह सब इस युग में समाप्त हो गए हैं। न्यूज़ में पढ़ता-सुनता रहता हूँ कि, अंधा-धुंध कमाई करने वालों का शगल है ड्रिंक, ड्रग्स, रेव पार्टियाँ। लेकिन यहाँ मेरे ऑफ़िस में ही यह सब हो रहा है। वह भी उन लोगों द्वारा जिनकी आय इतनी भी नहीं कि, उन्हें अपर मिडिल क्लास कैटेगरी में भी रखा जा सके। मुझे इस शगल से ही नहीं, शब्द से भी घृणा है।” 

उन्हें बहुत तनाव में देख कर श्रीवास्तव जी ने कहा, “सर कहाँ तक और किससे-किससे घृणा करेंगे। आप रिश्तों की पवित्रता, मर्यादा, स्वाभिमान के समाप्त होने की बात कर रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूँ कि यह समाप्त नहीं हुआ है। यह आज भी है। 

“आप, हम जैसे लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जिनके लिए जीवन में यही सब, सब-कुछ है। यह उनके आचरण में है। लेकिन पश्चिमी सभ्यता, फ़िल्मों, सीरियलों में स्वच्छंदतावाद दिखा-दिखा कर एक ऐसा समानांतर वर्ल्ड खड़ा कर दिया गया है, जिनके लिए वह सब एक स्फूर्तिमयी जीवन-शैली है, जिसे हम आप जैसे लोग अनैतिक आचरण कहते हैं। 

“एक बात और बता दूँ, अब यह और तेज़ी से बढ़ेगा। क्योंकि फ़िल्म, सीरियल्स के साथ-साथ इस समानांतर संस्कृति को और रफ़्तार देने वाला अब एक और माध्यम ओ.टी.टी. के नाम से सबसे ऊपर आ गया है। जिस पर किसी भी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं है। 

“जो जैसा चाहे, जो चाहे, वह दिखाए। ऐसे-ऐसे कन्टेन्ट, दृश्य दिखाए जा रहे हैं, जिन्हें पोर्न कहना ग़लत नहीं होगा। यह प्लेट-फॉर्म कितना स्वच्छन्द है, इसका अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, जिस छद्म नाम 'मस्तराम' के नाम से पोर्न लिटरेचर हम-लोगों की स्टुडेंट लाइफ़ में आता था, हम-लोगों के हाथों में देखते ही हमारे पेरेंट्स, टीचर हमें डंडों से पीटते थे, मैच्योर लोग भी छुप कर पढ़ते थे कि, कोई देख न ले, नहीं तो बड़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। 

“अब उसी लिटरेचर 'मस्तराम' पर वेब-सीरीज़ धड़ल्ले से चल रही है। बल्कि उससे भी आगे ऐसी-ऐसी सीरीज़ हैं जो ‘मस्तराम’ को भी मीलों पीछे छोड़ रही हैं। पूरे भारतीय कल्चर, समाज, इतिहास को तोड़-मरोड़ कर, झूठ, मक्कारी और सिर्फ़ कामुकता ओ.टी.टी. पर परोसी जा रही है। पता नहीं क्यों अब-तक सरकार भी चुप है। इसे रोकने के लिए कोई निर्णायक कार्यवाही करने में सक्षम बोर्ड नहीं बना रही है।” 

श्रीवास्तव जी की वेब-सीरीज़ वाली बात पर बाबा-साहब बड़ी अर्थ-भरी दृष्टि से उन्हें देखने लगे। इस पर श्रीवास्तव जी ने पूछा, “क्या हुआ सर, क्या आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है।” 

बाबा-साहब ने उन्हें पूर्ववत ही देखते हुए कहा, “क्या आप ऐसी सारी वेब-सीरीज़ देखते रहते हैं, जो आपको यह सब मालूम है।” 

बाबा-साहब ऐसा कुछ पूछ सकते हैं, श्रीवास्तव जी को ऐसी आशंका बिलकुल नहीं थी। इसलिए वह कुछ क्षण एकदम शांत रहने के बाद बोले, 
 “दृष्टि तो हर तरफ़ डालनी ही पड़ती है सर। सीधी सी बात यह है कि, जानकारी तो रखनी ही पड़ेगी ना कि, कौन-कौन, कहाँ-कहाँ, किस-किस तरह से, किस तरह का ज़हर, ग़न्दगी समाज में घोल रहा है, फैला रहा है। तभी तो उससे बचाओ का रास्ता हम ढूँढ़ सकेंगे।” 

यह सुनकर बाबा-साहब कुछ सोच कर बोले, “ऑफ़िस में जब सभी लोग इस समानांतर वर्ग के बारे में जानते हैं, तो कोई इन सब को धिक्कारता नहीं। इन्हें टोकता नहीं। इससे बड़ी बात यह कि यह सब अपना जो भी थोड़ा बहुत काम करते हैं, वह कैसे कर डालते हैं।” 

“देखिए सर, एक तो कोई इनके विवाद में पड़ना नहीं चाहता। ऐसी कोई भी बात आने पर परस्पर एक दूसरे को डैमेज करने में लगीं ये मंडलियाँ अटूट एकता के साथ, प्रश्न खड़ा करने वाले पर टूट पड़ती हैं। 

“इसलिए उन्हें देखकर ही लोग अपना रास्ता बदल देते हैं। बाक़ी रही बात काम की, तो इन मंडलियों ने उसका भी रास्ता निकाल रखा है। यह कुछ भी काम नहीं करते। कई लोग जो इनका काम पूरा करते हैं, बदले में इन लोगों से एक निश्चित रक़म हर महीने लेते हैं।” 

“क्या?” 

“जी हाँ सर, यही सच है।” 

यह सुनते ही बाबा-साहब क्रोधित होते हुए बोले, “यह ऑफ़िस है या शराबियों, कबाबियों, अय्याशों, जरायम पेशे वालों का अड्डा।” 

“सर जो भी है। स्थितियाँ बहुत ही बदतर हैं। इसे सुधारना बहुत ही मुश्किल है। मद्य-निषेध विभाग ही पूरी तरह से मद्य के कुँए में इतना गहरे डूबा हुआ है कि, उसे निकालना सम्भव नहीं दिखता। इसलिए इस विषय में कुछ सोचने-विचारने, किसी तरह का प्रयास करने में हमें अपनी ऊर्जा, समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए।” 

इसी के साथ श्रीवास्तव जी ने सोचा कि, कुछ और गंभीर बातों को छोड़कर, वह सब-कुछ बता चुके हैं। और जो कुछ अभी तक नहीं बताया है, उनको बताकर अपनी जान ख़तरे में नहीं डालेंगे। अब चलूँ कुछ काम करूँ, काफ़ी पेंडिंग पड़ा हुआ है। 

यह सोचते हुए वह उठे और कहा, “सर अब मुझे अनुमति दीजिए, जो कुछ, जितना मालूम था वह सब बता चुका हूँ। एक बार फिर कहूँगा कि, जो भी क़दम उठाईयेगा उसके पहले स्वयं की सुरक्षा के बारे में ज़रूर सोच लीजिएगा। 

“ऐसे कई समाचार तो आप ने भी पढ़े होंगे कि, शातिर लोग महिलाओं को आगे कर देते हैं। वो बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियों पर भी यौन-शोषण का आरोप लगाकर उन्हें चुटकियों में जेल भिजवा देती हैं। 

“क़ानून का फ़ायदा उठाती हुई ये महिलाएँ बहुत आसानी से आरोप लगा देती हैं कि, फलां व्यक्ति ने दस वर्ष पूर्व मेरा यौन-शोषण किया था। आरोपित व्यक्ति को गिरफ़्तार करने से पहले, क़ानून ऐसा आरोप लगाने वाली महिला से यह नहीं पूछता कि, जब दस वर्ष पहले आपका शोषण किया जा रहा था, तब आपको पता नहीं चला, और अब इतने वर्षों बाद किन उद्देश्यों के चलते आरोप लगा रही हैं।” 

श्रीवास्तव जी ने मीडिया में आए ऐसे कुछ केसों का उल्लेख किया और चल दिए। यह भी नहीं देखा कि, उन्हें जाने की अनुमति मिली है कि नहीं। बाबा-साहब उन्हें चैंबर से बाहर निकलने तक देखते रहे। 

श्रीवास्तव जी की बातों ने उन्हें बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था। उनके मन में यह उथल-पुथल बहुत तेज़ हो रही थी कि, इन मंडलियों को उनकी सीमा में रखने के लिए क्या करें, क्या न करें। 

उन्होंने मन ही मन कहा, 'हे चित्रगुप्त तुमने इसी तरह से पहले ही यह बातें क्यों नहीं बताईं। मैं समय रहते शुरूआत में ही इन्हें सीमा में रखने के लिए क़दम उठाता तो यह इतना आगे निकलने की हिम्मत ही नहीं कर पाते। 
 ’विभाग शराबियों, ब्लैक-मेलर्स का अड्डा नहीं बनता। इनका इतना साहस नहीं होता कि, मुझ पर यौन शोषण का आरोप लगवा कर जेल भिजवाने की धमकी देते। लेकिन जो भी हो इन षड्यंत्रकारी मंडलियों के डर से हाथ पर हाथ धरे तो बैठा नहीं रहूँगा। 

’ऐसा करना तो इनकी धमकियों के सामने नत-मस्तक होना है। इन्हें अनैतिक कार्यों को निर्द्वन्द्व हो कर करते रहने के लिए भरपूर ऊर्जा का अक्षय स्रोत देने जैसा है। 

’ऐसा करना मेरे लिए सम्भव नहीं है। माना कि, महिलाओं को एक्सट्रा प्रोटेक्शन देने के लिए बने क़ानून में पेचोख़म बहुत हैं। लेकिन अब इतना भी आसान नहीं है कि, चुटकियों में मुझे जेल भिजवा दिया जाए। झूठे आरोपों के डर से मेरे क़दम नहीं रुक सकते। मैं अपने विभाग से यह ग़न्दगी साफ़ करके ही रहूँगा। 

’जिस क़ानून का ये डर दिखा रहे हैं, उसके पेचोख़म में से ही रास्ता निकलवाऊँगा। चित्रांशी महोदय तुम्हीं निकालोगे रास्ता। क्यों कि तुम ऐसे रास्ते निकालने में इतने प्रवीण हो कि, सारा विभाग मिल कर भी तुम्हारे रास्ते की काट नहीं निकाल सकता। 

’तुम्हारी यही विशेषता तो मुझे तुम्हारा प्रशंसक बनाए हुए है। इतना कि, आप सदैव मुझसे कटु वचन ही बोलते हैं, फिर भी मेरे मन में विशिष्ट स्थान बनाए रखते हैं। 

’महोदय आख़िर गीता में कहा गया है न कि, निष्ठा-पूर्वक कर्म करते रहो। मैं यही करूँगा। और तुम्हारे निर्देशन में ही करूँगा। तुम ही मेरे सारथी बनोगे। तुम भी देखना मैं कैसे करता हूँ। इसका शुभारम्भ भी, आज ही, इसी समय होगा।’ 

यह सोचते-सोचते बाबा-साहब ने अर्दली को भेजकर श्रीवास्तव जी को फिर बुलवा लिया। वह जब-तक आए नहीं तब-तक बुदबुदाते रहे, “विभाग को ठीक करके ही रहूँगा . . . अगर कुँए में ही घुली मिली भाँग तो पूरा कुआँ ही छानूँगा श्रीवास्तव जी, पूरा कुआँ।” 

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