प्रकरण - १९
फातिमाने अब अपनी कहानी सुनानी शुरू की। उसने कहा, "बात करीब तीन साल पहले की है। हमारे घर में चार लोगों का परिवार था। मैं, मेरे मम्मी-पापा और मेरा छोटा भाई। मेरी और मेरे भाई की उम्र में बहुत अंतर था। मेरा भाई मुझसे आठ साल छोटा था।
मेरे पापा के बिजनेस पार्टनर रंजीतसिंह झाला जो की उनके मित्र भी थे। रंजीतअंकल और मेरे पापा दोनोंने एकसाथ मिलकर हमारा ये बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का बिजनेस अपने दम पर ही खड़ा किया था। रंजीतअंकल एक आर्किटेक्ट थे और मेरे पापा एक बिल्डर थे। रंजीत अंकल घर के डिजाइन बनाते थे और मेरे पापा कंस्ट्रक्शन विभाग संभालते थे। और भी बहुत से लोग उनकी कंपनी में काम कर रहे थे। उनका बहुत बड़ा टर्नओवर हुआ करता था।
मेरा जन्म एक बहुत अमीर परिवार में हुआ था। रंजीतअंकल का एक ही इकलौता बेटा था युग, जो मेरे ही साथ मेरे कॉलेज में पढ़ता था। हम दोनों एक ही उम्र के थे। मैं युग की हर हरकत से अच्छी तरह वाकिफ थी। उसमें एक अमीर पिता का बिगड़ा बेटा जिसे हम कहते है वो सारे लक्षण थे। उसमें शराब पीना, गालियां बोलना, लड़कियों से मारपीट या छेड़छाड़ करने जैसे सारे दुर्गुण युग में थे। भले ही वह मेरे पिता के दोस्त का बेटा था, फिर भी मैं कभी भी उससे बात करना बिलकुल भी पसंद नहीं करती थी।
ऐसे में फिर एक दिन रंजीतअंकल हमारे घर आए और उन्होंने मेरे पिता से कहा, "अनिरुद्ध! मैं आज तेरे पास एक प्रस्ताव लेकर आया हूं। मैं चाहता हूं कि युग और तमन्ना शादी कर ले। तेरा क्या खयाल है?"
उनकी ये बात सुनकर तो मैं एकदम हैरान ही रह गई, लेकिन उससे भी ज्यादा दु:ख मुझे तब हुआ जब मेरे पापाने मुझसे बिना पूछे युग के साथ मेरी शादी के लिए हां कर दी। उन्होंने मुझसे इस बारे में पूछना तो ठीक बताना भी ज़रूरी नहीं समझा।
रंजीतअंकल तो इतना कहकर चले गये, लेकिन मेरी मम्मी यह सुनकर बिल्कुल भी खुश नहीं हुई। उन्होंने मेरे पापा से कहा, "अनी! तुमने इस बारे में तमन्ना से बात किए बिना ही रंजीतभाई को हां कैसे कर दी? क्या तुम नहीं जानते कि युग कितना नालायक लड़का है? क्या तुम अपनी बेटी की शादी ऐसे लड़के से करोगे?"
मेरे पापा बोले, "देखो शीला! तुम ये सब नहीं समझोगी। और जहां तक उम्र के लक्षणों की बात है, तो मुझे हमारी बेटी तमन्ना पर पूरा भरोसा है। वह शादी के बाद उसे जरूर ठीक कर देगी। क्या तुम्हे याद नहीं है की, मैं भी शादी से पहले सिगरेट पीता था, लेकिन हमारी शादी के बाद जैसे तुमने मुझसे उस आदत को छुड़वाया उसी तरह तमन्ना भी युग की सभी बुरी आदते छुड़वा देगी।
पापा की ये बात सुनकर मेरी मम्मी बोली, "हां, तुम्हें सिर्फ सिगरेट की लत थी, लेकिन युग में तो गिनती से परे सारे बुरे लक्षण है। अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से करने का सोचते हुए शर्म नहीं आती?"
उस वक्त मेरे पापा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। वो गुस्से में बोले, "बस अब बहुत हो गया शीला! मेरे लिए ये शादी करना बहुत जरूरी है। यह सिर्फ शादी ही नहीं होगी। यह एक बड़ी बिजनेस डील भी होगी। अगर युग और तमन्ना की शादी हो जाती है, तो हम अपना बिजनेस बेहतर तरीके से कर सकते है। हम इसे और भी बड़ा कर पाएंगे।
मम्मी बोली, "लेकिन पहले एक बार तमन्ना से पूछ लो। क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह जानना जरूरी है कि वह क्या चाहती है?"
पापा बोले, "मैं अपनी बेटी को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। वह कभी भी मेरी बात नहीं टालेगी। वह जानती है कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वह उसकी भलाई के लिए ही है।"
अब मेरी मम्मी भी गुस्से में बोली, "उसकी भलाई के लिए या तुम्हारी? क्या तुम्हे अपनी बेटी की जिंदगी से खिलवाड़ करने में भी शर्म नहीं आती?"
मेरी मम्मी अभी भी मेरे पापा को समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मेरे पापा थे जो समझना ही नहीं चाहते थे।
तभी अचानक मेरे पापा की नज़र मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझसे पूछा, "तमन्ना! मुझे पता है कि युग कैसा लड़का है!? लेकिन मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। मुझे यकीन है कि तुम शादी के बाद उसे सुधार ही दोगी। मैं चाहता हूं कि तुम युग से शादी कर लो। हां! अगर तुम्हारे मन में कोई और है तो मुझे बताओ।"
मैंने कहा, "नहीं! मेरे मन में कोई और नहीं है, लेकिन मैं इस शादी के लिए तैयार नहीं हूं। मैं अपना बाकी का जीवन किसी ऐसे व्यक्ति के साथ क्यों बिताऊं, जिसे बुलाने का मेरा कभी मन भी नहीं करता? क्षमा करें पापा! लेकिन आज पहली बार मैं आपके ख़िलाफ़ हूं। मैं ऐसे बुरे इंसान के साथ रहकर अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहती।"
पापा के पूछने पर मैंने बड़ी दृढ़ता से अपने मन की बात बता दी थी। मुझे लगा कि मेरे पापा मुझे समझेंगे और मेरी भावनाओं को देखते हुए युग के साथ शादी के प्रस्ताव को ठुकरा देंगे। लेकिन मेरे पापा के लिए उनकी बिजनेस डील ज्यादा महत्वपूर्ण थी। मुझे उन्होंने सख्त शब्दों में साफ साफ कहा, "शादी की तैयारियां शुरु करो। अब तो ये शादी होकर ही रहेगी।"
मेरी मम्मीने आश्चर्य से मेरे पापा की ओर देखा और कहा, "तुम ये क्या बात कर रहे हो? अपनी बेटी की इच्छा के विरुद्ध उसकी शादी कर रहे हो? तुम होश में तो हो? बता देती हूं तुम्हे ये तुम उसके साथ ठीक नहीं कर रहे हो!"
पापा गुस्से में बोल रहे थे, "देखो शीला! सौ बात की एक बात, तमन्ना की शादी मुस्कुराते चेहरे के साथ हो या रोते चेहरे के साथ, लेकिन अब ये शादी होगी जरुर।"
उस दिन के बाद जबरदस्ती मेरे पापाने मेरी और युग की शादी की तैयारियां शुरू करवा दी। और आख़िरकार शादी का दिन आ ही गया।
मैं दुल्हन की तरह सजकर अपने कमरे में बैठी थी। मैं बिल्कुल भी खुश नहीं थी और मेरी हालत बिल्कुल भी मेरी मां से छुपी नहीं थी।
उस दिन मेरी मम्मी मेरे कमरे में आई और मुझसे एक चिठ्ठी देकर कहने लगीं, "ये लो बेटा! इस चिठ्ठी में ममतादेवी का नंबर है जो मेरी खास दोस्त है। वह एक अंध विद्यालय चलाती हैं। मैंने उनसे तुम्हारे बारे में बात की है। इससे तुम्हें बहुत मदद मिलेगी। जाओ बेटी! भाग जाओ यहां से। मैं नहीं चाहती कि तुम युग से शादी करके अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर लो। जाओ बेटी। जल्दी से यहां से भाग जाओ।"
मैंने पूछा, "लेकिन मम्मी! आप और पापा!"
मम्मीने मुझसे फिर कहा, "तेरे पापा को मैं संभाल लूंगी। तुम उनकी चिंता मत करो। फिलहाल तुम यहाँ से जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी चले जाओ। जाओ! तुम्हें मेरी कसम है। भाग जाओ।"
मम्मी के कसम देने पर मैं उसी दिन वहां से भागकर यहां ममतादेवी से मिलने आ गई। ममतादेवीने मुझे यहां नौकरी दी और मेरा नाम फातिमा रख दिया। उन्होंने मुझसे कहा की, अगर तुम अपना यही नाम रखोगी तो तुम्हें भविष्य में दिक्कत हो सकती है, इसलिए अपना नाम बदल लो। आज से तुम्हारा नया नाम होगा फातिमा। और तब से मेरा नाम फातिमा है।" इतना कहते हुए फातिमा की आवाज दर्द से भर गई। वह बहुत टूट गई थी।
ये सब सुनकर मैं भी बोल उठा, "ओह! आपके साथ तो यह बहुत दु:खद घटना घटी है।"
वो बोली, "हा, रोशन! तुम सही कह रहे हो। लेकिन अब मैं अपने अतीत को याद भी नहीं करना चाहती। तुमने पूछा इसलिए मैंने तुम्हे सारी बातें सच सच बता दीं। लेकिन तुम भी अब ये सब बातें भूल जाना और मुझे समझने की कोशिश करना। मैं अब सिर्फ और सिर्फ फातिमा ही हूं। मैं तमन्ना के रूप को बहुत पीछे छोड़ आई हूं। मैं अपना पुराना अस्तित्व कब की मिटा चुकी हूं।"
मैंने कहा, "हां फातिमा। मैं भी भूल जाऊंगा कि तुम तमन्ना हो। फातिमा! तुम बहुत बहादुर हो। मेरे मन में तुम्हारे लिए बहुत सम्मान है। सच में तुम इतनी अस्त-व्यस्त जिंदगी में भी लोगों की सेवा करने का बहुत अच्छा काम कर रही हो। बस! खुश रहना। चलो! अब मेरी क्लास का समय हो गया है तो क्या मैं जाऊँ?"
वो बोली, हाँ, हाँ बिल्कुल जाओ।"
मैं भी अब अपनी कक्षाएं लेने के लिए कदम गिनते गिनते अपनी कक्षा की ओर बढ़ने लगा।
(क्रमश:)