मोबाइक-स्कूटर संवाद Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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मोबाइक-स्कूटर संवाद

 

 

मोबाइक-स्कूटर संवाद

 

     यशवन्त कोठारी

 

एक दुपहिया वाहन स्टेण्ड पर एक नई चमचमाती मोटर साईकिल व एक पुराना खड़खड़िया स्कूटर पास-पास खड़े थे। दोनांे मंे संवाद हुआ। प्रस्तुत है संवाद के महत्वपूर्ण अंश।

मोबाइक - कहो स्कूटर जी कैसे हो ? तुम्हारे साहब कैसे है। अब तुम्हारा जमाना गया। बु़ढ़ा गये हो। किसी कबाड़ी की सेवाएं लो।

स्कूटर - इतना मत इतरा मोबाइक जवानी हम पर भी आई थी, मगर हमने मेहनत की खाई थी और इसी कारण इस प्रोढ़वय मंे ही अंजर-पंजर ढीले हो गये है। तुम तो सौलह श्रृंगार करके चलती हो।

मोबाइक - क्यांे न चलूं। अभी मैं जवान हूं। चमाचम हूँ। पेट्रोल कम पीती हूँ और मेरा मालिक भी कैसा गबरू जवान है। सड़क पर जब गर्लफ्रैन्ड को बिठाकर दौड़ाता है तो अपनी जवानी की कसम मजा आ जाता है और तुम सुनाओ अपनी ।

स्कूटर - अब क्या सुनाये मेडम। हमारे साहब जब अपनी प्रोढ़ा पत्नी को पीछा बिठाकर चलते है तो लगता है बैलगाड़ी चल रही है। पीछे बैठी भारी जनाना सवारी के कारण कई बार तो पहिया पंचर हो जाता है। कई बार दुर्घटना के आसार बन जाते है। मगर फिर भी एक बात है साहब मेरा ख्याल एक पुरानी प्रेयसी की तरह रखते है।

मोबाइक - हां-हां क्यांे नहीं, बुढ़ापे की प्रेमिका को कौन छोड़ना चाहता है। मगर मेरी बात अलग है मैं भी रोमांटिक, मेरा बॉस भी रोमांटिक और बॉस की गर्लफ्रैन्ड का तो कहना ही क्या ? अक्सर नित नई सवारी को बिठाने का मजा ही कुछ और है।

स्कूटर - अब ज्यादा मुंह न खुलवा। जवानी दिवानी होती है। चार दिनांे की चांदनी और फिर अन्धेरी रात ही रात है।

मोबाइक - होगी जब अन्धेरी रातंे अंधेरी तब देखा जायेगा। अभी तो मस्ती मार ले।

स्कूटर - मस्ती के लिए पैसा चाहिये।

मोबाइक - बस तुमने मेरी दुःखती रग पर हाथ रख दिया। बड़ी मुश्किल से एक लीटर पेट्रोल डला है पापी पेट मंे।

स्कूटर - पेट्रोल के मामलंे मंे मैं सही हंू। मेरी टंकी भी फुल और साहब की टंकी भी फुल। बस एवरेज जरा कम है। मगर इस उम्र मंे एवरेज की परवाह कौन करता है ?

मोबाईक - तुम तो पुरूष वर्ग हो। सर्वत्र प्रदूषण फैलाते रहना ही तुम्हारा काम है। तुम एवरेज की बात ना ही करो तो अच्छा है। कहां तुम्हारा मारूति का एवरेज और कहां मैं। महलांे की रानी हूँ मैं रानी। बस बॉस किसी एम.एन.सी. मंे घुस जाने तो पांचांे उंगलियांे घी मंे।

       स्कूटर - और सर कड़ाही मंे क्यांेकि तब तुम्हारे बॉस तुम्हंे छोड़कर किसी नई गाड़ी की खोज मंे चल देंगे। वैसे भी गाड़ी का रोमांस गर्लफ्रैन्ड के रोमांस की तरह ज्यादा दिनांे तक नहीं चलता। स्त्रीवादी मोबाइक का चरित्र कौन जा सकता है। हमारे साहब तो विवाह बंधन की तरह है। अब कहां जायंेगे और तुम्हारे बॉस पता नहीं कहां-कहां मुंह मारते फिरते है। हमारा बूढ़ा बॉस कहीं मुंह नहीं मारता।

मोबाईक - बस...........बस...............। मेरे बॉस के बारे मंे ऐसी-वैसी बात मंुह से निकाली तो ठीक नहीं होगा।

स्कूटर - क्यांे क्या कर लेगी तू।

मोबाईक - मैं...............मैं................तुम्हारा मुंह नांेच लूंगी। तुम अपने आपको समझते क्या हो ?

स्कूटर - अरे जा-जा.................. तोरे जैसे बहुत देखे हैं।

मोबाईक ने स्कूटर को एक धक्का मारा। बूढ़ा स्कूटर लुढ़क गया। कई फ्रेक्चर हो गये। मालिक ने देखा और उसे एक कबाड़ी के हाथांे मंे बेचकर नई मोबाईक खरीद ली। सोलह श्रृंगार कराके प्रोढ़ा पत्नी को पीछे बिठाकर निकले। मालिक ने भी बालांे मंे खिजाब लगा था। उसे अपनी जवानी की, पत्नी को शादी की कोर्टशिप की और मोबाईक को पुराने यार स्कूटर की याद आ रही थीं।

 

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       यशवन्त कोठारी

       86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर,

       जयपुर-302002