अदिति आश्चर्य से बोली ' क्या हुआ मां ऐसा क्या गलती कर दिया मैंने ? ' कल - पड़सो तुम्हारी शादी ही हुई है और आज बिना सिंदूर अपने मांग में भरे नीचे अा गई तुम्हे पता भी है ये कितना बड़ा अप सगुण है। मुझे माफ़ करना मां जल्दी जल्दी में सिंदूर लगाना भूल गई । अभी जा रही हूं कमड़े में सिंदूर लगा कर आती हूं ।
अदिति सीढ़ियों के तरफ बढ़ गई , रुको अदिति बेटा तुम्हे ऊपर जाने की जरूरत नहीं है अदिति अपने बढ़ते कदम को रोक दी फिर झटके में पीछे पलटी । अदिति डरी हुई लग रही थी ।
सांवरी जी अदिति के पास आती है अरे बेटा डर क्यों रही हो ? तुम्हे सिंदूर लगाने की कोई जरूरत नहीं। पर क्यों मां अभी तो आप बोल रही थी ये अप सगुण है ? हां वो तो है ही सांवरी जी बोली । रिवान को आते देख मुस्कुराते हुए सांवरी जी बेटा मंदिर से सिंदूर उठा कर लाना । रिवान सिंदूर उठा कर मां के पास अा गया , ये लीजिए सिंदूर मां । अरे बेटा जब तुम सिंदूर मंदिर से उठा कर लाया ही तो फिर जल्दी से बहू के सुनी मांग में भर दो कहते हैं इससे पति- पत्नी का साथ हमेशा। बना रहता है।
रिवन संकोच में बोला " मां सिंदूर मैं कैसे लगा सकता हूं ?
क्योंकि तू उसका पति है और तुम्हारा पूरा हक भी है सावरी जी बोली "
" मैं लगा लूंगी मां रिवन जी को क्यों तकलीफ दे रही है । नहीं बेटा सिंदूर तो रिवन ही लगायेगा । सावरी जी जिद करने लगती है । आखिर रिवान को अदिति को सिंदूर लगाना पड़ता है।
आज तुम्हारी पहली रशोई है बेटा जो तुम्हारी मर्ज़ी हो वो बना लो मैं भी तो देखूं मेरी बहू खाना बनाने में एक्स्पर्ट है कि नहीं । मितल खानदान की बहू हो तुम , तुम्हारे हाथों में
स्वाद है कि नहीं ।
" अदिति " मां आप अपनी पसंद और बाकी सब की पसंद बता दीजिए , सबके लिए कुछ न कुछ बना लूंगी मैं
कुछ ही घंटो में सभी के पसंद के खाना डाइनिंग टेबल पर गरमा गर्म खाने को तैयार होता है ।
" विराज " आज तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही खाने की मुझसे अब और इंतजार नहीं हो रहा है । ।
अदिति सब को बारी बारी से खाना पड़ोस देती है । अरुण मितल बिना कुछ बोले बड़ी चाओ से खा रहे थे । मितल साहब को छोड़ कर सभी खाने की तारीफ पर तारीफ किए
जा रहे थे ।
सब के जाने के बाद सांवरी ' बेटा अब तुम भी खा लो कुर्सी पर बैठा ने के बाद ख़ुद से खाना परोसती है , वकय
में बहुत अच्छा खाना बनाई थी । अब सोच क्या रही हो ?
खाना शुरू करती हो या रुको मैं ही खिला देती हूं फिर सांवरी जी अदिति को खिलाने लगती हैं ।
एक निवाला खाते ही अदिति के आंखों से आंसू लुढ़क के गिर पड़ते हैं ,सांवरी जी बेटा ये क्या तुम्हारे आंखों में आंसू । कुछ नहीं बस मां की याद आ गई , वो भी मुझे ऐसे ही खिलाया करती थी।
आंसू पोछते हुए अब तुम बिल्कुल नहीं रुओगी मैं भी तो तुम्हारी मां ही हूं । हम्म बोलकर सांवरी जी से लिपट जाती है ।
सांवरी जी अपने पति को दवा खिला रही थी उसी वक़्त
वहां अदिति एक शीशी लेकर पहुंची जिसमें दवा भरा था उस दवा को ख़ुद अदिति ने बनाया था । अदिति को देखकर अरुण मित्तल गुस्से से अदिति को देखकर घूरने लगे । सांवरी जी अपने पति को अच्छे से जानती थी उनके चेहरे को देखकर भांप ली उनको गुस्सा अा रहा है ।
क्या हुआ बेटा तुम यहां कुछ काम था ?? सांवरी अदिति से पूछी । नहीं मां मुझे ये दवा मालिश करने के लिए पापा को देना था । ये दवा बहुत गुणकारी है इस दवा की मालिश करने से बहुत लाभ मिलता है । एक बुजुर्ग व्यक्ति को मैंने यही दवा दिया था एक ही महीने में उनको बहुत लाभ मिला था । जब की को कई सालो से व्हील चेयर पर थे । आयुर्वेद है थोड़ा धीरे - धीरे अपना असर दिखाएगा । मेरी बात सुनकर पापा जी एक बार इस दवा का मालिश दिन में तीन बार रेगुलर मालिश कीजिए आप बहुत जल्द अपने पैरों पर खड़े होंगे , एक बार भरोसा कर लीजिए मुझ पर यकीन मानिए आप व्हील चेयर से पैरों पर चलेंगे ।
अरुण मित्तल अपना मुंह बिचकाते हुए मालिश करने से साफ साफ इंकार कर देते हैं । दवा सामने टेबल पर रख कर मायूस होकर अदिति वहां से चली जाती है ।
आप नहीं सुधरेंगे , एक बार तो उस बच्ची का बात मान लेते । कितना प्यार से आपके पास वो दवा लेकर अाई थी लेकिन आपको तो अभी भी अपने दौलत के घमंड में ही रहना है । जानती हूं आप उस बच्ची को पसंद नहीं करते पर कोई वजह भी तो होनी चाहिए ना पसंद करने की ।
इतना दौलत रहते हुए भी बस इस लिए उस बच्ची से नफ़रत करते क्योंकि वो अपने साथ दहेज लेकर नहीं अाई
वो किसी बड़े बिजनेस मैन की बेटी नहीं है गुस्से में आकर बोली ।
आपको मालिश नहीं करना तो कोई बात नहीं मैं ये दवा फेक देती हूं , कुछ सोच कर मित्तल साहब मत फेको इस दवा को मैं मालिश करूंगा इतना यकीन के साथ बोल रही है तो शायद ये दवा मेरे पैरों के लिए गुणकारी साबित हो जाए ।
एक महीने बाद
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अरुण मित्तल को छोड़ कर सभी घरवाले बात करते हुए चाय की चुस्की ले रहे होते हैं उसी बीच अरुण मित्तल आते हैं उनको देखकर सब हैरान थे ....
Continue .......