न्याय का समय Bhavika Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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न्याय का समय



कहानी:📌

बहुत समय पहले की बात है, हिमालय की तलहटी में बसे एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक महिला रहती थी। राधा अपनी ईमानदारी, सच्चाई और मेहनत के लिए पूरे गाँव में जानी जाती थी। उसका जीवन सादगी भरा था, और वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहती थी। राधा का परिवार छोटा था—उसका एक बेटा, अर्जुन, जो उसका गर्व और आशा का केंद्र था।

अर्जुन, अपनी माँ की तरह, मेहनती और ईमानदार था। लेकिन गाँव के कुछ लोग उसकी सफलता और उसके परिवार की खुशहाली से जलते थे। उनमें से एक था महेश, जो धनी था, लेकिन उसके मन में राधा और अर्जुन के लिए ईर्ष्या भरी थी। महेश ने अर्जुन के खिलाफ साजिश रचने की ठान ली।

एक दिन, महेश ने अर्जुन को अपने खेत में काम करने का न्योता दिया। महेश ने अपने खेत में कुछ सोने के सिक्के छिपा दिए थे और वह चाहता था कि किसी तरह अर्जुन उन सिक्कों को चुरा ले, ताकि वह उसे चोर साबित कर सके। अर्जुन, जो हर काम को ईमानदारी से करता था, महेश के खेत में काम करने के लिए तैयार हो गया।

काम के दौरान, अर्जुन ने गलती से एक सिक्का देख लिया। उसने तुरंत महेश को बुलाकर वह सिक्का लौटा दिया। महेश का चेहरा काला पड़ गया, क्योंकि उसकी साजिश नाकाम हो गई थी। अर्जुन के इस कृत्य ने महेश को और भी क्रोधित कर दिया। महेश ने अब और भी बड़ी योजना बनाई।

महेश ने गाँव के प्रमुखों के सामने अर्जुन पर चोरी का झूठा आरोप लगाया। उसने कहा कि उसके खेत से कई सोने के सिक्के गायब हो गए हैं और उसने अर्जुन को दोषी ठहराया। गाँव के लोग, जो अर्जुन की ईमानदारी से भलीभांति परिचित थे, इस आरोप को मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन महेश ने जोर देकर कहा कि एक जांच होनी चाहिए।

गाँव के प्रधान ने मामले की जांच के लिए अर्जुन और महेश दोनों को बुलाया। महेश ने अपने खेत की खुदाई करवाई, जहाँ उसने पहले से कुछ सिक्के छिपा रखे थे। उसने दावा किया कि ये सिक्के अर्जुन ने चुराए थे और बाद में डर के मारे वापस छिपा दिए थे। अर्जुन ने सच्चाई बताते हुए कहा, "मैंने केवल एक सिक्का देखा था और उसे महेश जी को लौटा दिया था। मैं चोर नहीं हूँ।"

गाँव के प्रधान ने इस मामले की और गहनता से जांच की और अर्जुन के खेत में भी जांच का आदेश दिया। कुछ ही समय बाद, प्रधान को महेश की योजना का पता चल गया। उन्होंने देखा कि महेश के खेत में और भी कई सिक्के छिपे हुए थे, जिन्हें महेश ने खुद वहां रखा था। प्रधान ने सच्चाई का पता लगाते हुए महेश की चालाकी को सबके सामने उजागर किया।

गाँव के लोग महेश के छलावे से नाराज हो गए और उन्होंने उसे कड़ी सजा देने का निर्णय लिया। महेश को गाँव से निकाल दिया गया और उसकी संपत्ति अर्जुन और उसके परिवार के नाम कर दी गई। अर्जुन और राधा को अब और भी सम्मान और स्नेह मिलने लगा।

समय बीतता गया और अर्जुन ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से गाँव में नई ऊँचाइयाँ हासिल कीं। उसकी फसलें अच्छी होने लगीं और उसने गाँव में एक विद्यालय भी बनवाया ताकि सभी बच्चों को शिक्षा मिल सके। राधा अपने बेटे की उपलब्धियों को देखकर बहुत गर्वित महसूस करती थी।

महेश, जो अब एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर था, ने अपनी गलतियों का पछतावा किया। उसने समझा कि उसके बुरे कर्मों का फल उसे मिल गया है। उसने निर्णय लिया कि वह अपनी शेष जिंदगी सच्चाई और ईमानदारी से जियेगा। उसने गाँव के बाहर एक छोटा सा आश्रम बनाया और लोगों की सेवा करने लगा।

समय का पहिया घूमता रहा और अर्जुन की सफलता की कहानियाँ दूर-दूर तक फैलने लगीं। लोग उससे प्रेरणा लेते और उसकी ईमानदारी और मेहनत की सराहना करते। गाँव के लोग महेश की कहानी भी नहीं भूले। वे इसे एक उदाहरण के रूप में देखते कि कैसे बुरे कर्मों का फल बुरा ही होता है।

अर्जुन ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उसने कभी अपनी सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता नहीं छोड़ा। उसने अपने गाँव को एक आदर्श गाँव बनाने का सपना देखा और उसे साकार करने के लिए कठिन परिश्रम किया। उसकी माँ, राधा, ने उसे हमेशा प्रेरित किया और उसकी हर सफलता में उसका साथ दिया।

शिक्षा:📌

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अच्छे कर्मों का फल हमेशा अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल बुरा। ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को कोई नहीं हरा सकता। समय के साथ, सच्चाई हमेशा जीतती है और बुराई को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है।