रिशीपुर के हरे-भरे पहाड़ों और फुसफुसाते पेड़ों के बीच बसा हुआ था एक छोटा सा गाँव, जहाँ दो अनमोल दोस्त, निक्कू और गोल्डी, रहते थे। उनकी दोस्ती ऐसी थी जिसे कहानियों में लिखा जाता है, एक ऐसा बंधन जो साझा सपनों और अनंत हँसी में गढ़ा गया था। वे एक-दूसरे के दिलों को अपने से बेहतर जानते थे और एक नज़र में पूरी बात कह सकते थे। फिर भी, उनके बीच एक अनकहा धागा था जिसे कोई खींचने की हिम्मत नहीं करता था।
निक्कू, एक शांत और चिंतनशील स्वाभाव का, अक्सर अपने मन के कोनों में शांति पाता था, उन विचारों और भावनाओं को कागज़ पर उतारता था जिन्हें वह व्यक्त नहीं कर पाता था। गोल्डी, अपनी जीवंत व्यक्तित्व और हँसी के साथ, हर कमरे को रोशन कर देती थी। दोनो एक से थे थोड़े अलग भी , उनके बीच एक अनकहा रिश्ता था, एक लगाव जिसे शब्दों की आवश्यकता नहीं थी।
वर्षों बीत गए और उनकी ज़िंदगियाँ अलग-अलग राहों पर चल पड़ीं। निक्कू शहर चला गया, अपने लेखक बनने के सपने का पीछा करते हुए, जबकि गोल्डी रिशीपुर में ही रही, अपने परिवार की छोटी सी किताबों की दुकान को संभालते हुए। दूरी के बावजूद, वे पत्रों और कभी-कभार फोन कॉल्स के ज़रिए संपर्क में बने रहे, हर बातचीत उन्हें उनके साझा अतीत से जोड़ती थी।
फोन कॉल के हेलो के साथ जैसे हवाएं
एक गर्मी में, निक्कू रिशीपुर लौट आया। गाँव वैसा ही था जैसा उसने याद किया था, और गोल्डी भी। उनकी मुलाकात में वही पुरानी बातें थीं, वही आसान बाचतीत जो उनके लिए स्वाभाविक थी। फिर भी, एक अनकहा भावनाओं की धारा थी, एक बोझ जिसे कोई बयां कोई नहीं कर रहा था, दोनो चुप रहे
एक शाम, पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठे हुए, जहाँ उन्होंने बचपन में अनगिनत घंटे बिताए थे, निक्कू और गोल्डी खुद को एक आरामदायक चुप्पी में लिपटा हुआ पाए। हवा में अनकहे शब्दों का बोझ था, उनके दिलों की धड़कनें अनकहे विचारों के साथ तालमेल बिठा रही थीं।
निक्कू ने गोल्डी की ओर देखा, उसकी आँखों में ढलते सूरज का प्रतिबिंब था। कैसी हो, गोल्डा? उसने पूछा, उसकी आवाज़ में उसकी भावनाओं की गहराई झलक रही थी।
गोल्डी मुस्कुराई, उसकी आँखों में हल्की उदासी थी। "मैं अच्छी हूँ, निक्कू। सब ठीक है। और आप?"
"मेरा भी सब ठीक है," निक्कू ने उत्तर दिया, हालांकि उसका दिल अनकहे शब्दों के बोझ से टूट रहा था।
दोनों सच्चाई साझा करने की तड़प रखते थे, उस भावनात्मक खाई को पाटने की जो उनके बीच बढ़ गई थी। वे एक-दूसरे से वही सवाल पूछना चाहते थे जो वास्तव में मायने रखते थे, उनकी सतही बातचीत के नीचे की गहराई में उतरना चाहते थे। लेकिन उनके नाजुक संतुलन को बिगाड़ने के डर ने उन्हें रोक दिया।
चाह कर भी कुछ कह नहीं पाए
उस शाम वे अलग हो गए, अनकहे शब्दों का बोझ उठाए हुए। निक्कू शहर लौट आया, उसके मन में वह क्या हो सकता था का अतीत पीछा करता रहा। गोल्डी भी बयां न कर सकी अवसरों की चुभन महसूस करती रही, उसका दिल यह जानते हुए भारी था कि निक्कू ने हमेशा उसे सबसे बेहतर समझा था।
वर्षों बीत गए और उनका जीवन की व्यस्तता में चिट्ठियां लिखना कम हो गया, उनके बीच की दूरी सिर्फ चिट्ठियों तक नहीं थी। जीवन चलता रहा, लेकिन उनके अनकहे बंधन का दर्द कभी नहीं मिटा। दोनों ज़िंदगी में आगे बढ़ते रहे , नए लोगों से मिले, और नई यादें बनाईं, लेकिन उनके अनसुलझे भावनाओं की छाया कभी पूरी तरह नहीं मिट सकी।
निक्कू एक सफल लेखक बन गया, उसकी कहानियाँ अक्सर उसके अतीत के मौन दुखों और अनकही भावनाओं को प्रतिबिंबित करती थीं। गोल्डी की किताबों की दुकान फल-फूल गई, सपने देखने वालों और कहानियों के प्रेमियों के लिए एक आश्रय स्थल बन गई। उन्होंने अपने-अपने तरीकों से ज़िंदगी में सुकून तलास लिया, फिर भी उनके दिलों का एक हिस्सा उस अनकहे बंधन से बंधा रहा जो बरगद के पेड़ के नीचे था।
वर्षों बाद, जब निक्कू की प्रकाशित कहानियों की खबर रिशीपुर पहुँची, तो गोल्डी मुस्कराए बिना नहीं रह सकी। वह जानती थी, बिना पढ़े ही, कि उस कहानी में उनके साझा अतीत के अंश होंगे, वे गूंजें जो उन्होंने कभी नहीं कही।
एक ऐसी दुनिया में जहाँ शब्द अक्सर कम पड़ जाते हैं, निक्कू और गोल्डी की कहानी उन अनकही भावनाएं और अनकहा दर्द , उन मौन धागों की जो समय और दूरी के पार दिलों को जोड़ते हैं। और भले ही उनके रास्ते अलग हो गए, उनके बंधन का सार उनके जीवन के पन्नों में अंकित रहा, उस प्यार की एक कालातीत गवाही जो हो सकता था।