अगस्त्य : मेरे साथ जाने के बाद पता नहीं कौन सा तूफान लायेगी ये लड़की । पर कोई न..... मैं भी इस तूफान को झेल लूंगा bed पर लेट कर सोच रहा था ।
हमारी दोस्ती आरोही के साथ हो जाए बस ।।।।
लेकिन अगर उसने जाने से माना कर दिया तो सोचते हुए बड़बड़ाया और उठ कर बैठ गया।
फिर भगवान को याद करते हुए , ऊपर की ओर देखते हुए अपनी आंखे बंद कर लेता है " कुछ ऐसा चमत्कार करना भगवान जी जिससे आरोही मेरे साथ पटना जाने को तैयार हो जाए । "
फिर वापस बेड पर लेट जाता है ।।।
आरोही अपने कमरे में जा कर लेट जाती है , कमरे में काली गहरी अंधेरा था । सीने पर फ्रेम की एक तस्वीर जिसे अपने बाहों में जकड़ कर आरोही बेड पर लेटी थी ।
आंखों में बरसात भी उमड़ पड़ी थी । हालाकि घर से बाहर की बारिश अब थम चुकी थी । लेकिन कमरे में आरोही के आंखों से पानी बरसना अभी शुरू ही हुआ था ।
आरोही की दिल का दर्द उसके आंसू जो पलकों से बिछड़ कर लुढ़क कर गालों को चूम रहे थे वही समझ रहा था ।
" किससे उदासी बताऊं या दिल में
उमड़ रहे दर्द को बयां करूं .....
अगर तुम होती मां मेरे पास तो
रौशनी की चाहत होती मुझे
यूं अंधेरों से दोस्ती न निभा रही होती "
फिर आरोही की आंखें कब लग जाती हैं उसे भी पता नहीं चलता है ।
अगले दिन सुबह
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शर्मा जी सुबह सुबह ही उठ कर घर के बाहर गार्डन में टहल रहे थे । तभी आरोही ही पहुंच जाती है ।
आरोही की आंखें लाल हो चुकी थी ।
शर्मा जी आरोही के सामने आते ही उसकी आंखें देख कर समझ जाते हैं " लगता है फिर अपनी मां को याद कर रोई है , छोटी सी उम्र में कितनी समझदार हो गई हो आरोही बेटा । मेरे जाने के बाद तो तुम और भी अकेली हो जाओगी।।
" जाने से पहले मैं तुम्हे ऐसे इंसान को सौंप कर जाना चाहता हूं जो तुम्हारा ख्याल अपनी जान से भी ज्यादा करे । तुम्हारी हर खुशी में खुश रहे और तुम्हारी हर एक तकलीफ में साथ रहे । "
बड़े प्यार से अपनी बेटी के तरफ देख कर सोच रहे थे ।
क्या पापा आप भी सुबह सुबह सीआईडी की तरह क्यों मुझे देख रहे हैं आरोही अपनी नजरे चुराते हुए बोली ...... ताकि शर्मा जी को सक न हो कल रात मैं रोई थी ।
लेकिन कहते हैं न पिता हो या मां अपने बच्चों के दर्द को भांप ही लेते हैं ।
आप मुझे घूर क्यों रहे हो सोचते हुए बोल रही थी ?
शर्मा जी : मैं यही सोच रहा था , आज अगस्त्य के साथ पटना तुम जा रही हो या नहीं ?
अभी तक तुम मुझे जवाब नहीं दी.....
आरोही : पापा मैं अभी दो नाव पर सवार हूं ऐसा लग रहा है ।।। कभी जाने का मन कर रहा है तो कभी मन उदास हो जा रहा है तो कभी न जाने का मन करता है । क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है ?
शर्मा जी : तुम अगस्त्य के साथ पटना जाओगी समझी यही मेरा आखिरी फैसला है ।
शर्मा जी आरोही के सामने आंखें दिखाते हुए बोले .. .... जैसे कोई राजा बिना कोई गलती के ही मुजरिम के सामने सजा सुना रहा हो ।।
आरोही को भी शर्मा जी के बात को मानना पड़ा या यूं कहूं
मुजरिम की तरह सजा काटने को तैयार हो गई।
मन ही मन ..... पापा इतना जोर क्यों दे रहे हैं ?? मैं अगस्त्य के साथ पटना जाऊं वो भी एक ऐसे लड़के के साथ जिसे मैं जानती तक नहीं हूं।
कही ऐसा तो नहीं है पटना ले जाकर " मेरी चट मंगनी पट ब्याह करवा दे । "
तब तक आरोही के कान में आवाज पड़े " कुछ बोलोगी या यूं ही स्टैचू की तरह खड़ी रहेगी तुम । "
आरोही का ध्यान भटका " मैं भी एक दम बुद्धू हूं खाली दिमाग में कुछ भी सोच लेती हूं हल्की मुस्कान के साथ बोली और शर्मा जी के तरफ देखते हुए बोली , सिर्फ आपके कहने पर पटना जाऊंगी पापा । "
वरना किसी में इतना है हिम्मत जो मेरे साथ पटना जाने की जबरदस्ती करे ...... सामने से अगस्त्य को आता हुआ देख कर बोलती है ।
फिर आरोही तिरछी नजरों से एक बार अगस्त्य की ओर देख कर उसके पास से गुजर जाती है।
अगस्त्य : कुछ तो बात है इस लड़की में .... ताना मार कर चली गई और मुझे बुरा भी नहीं लगा ।
आरोही : बेटा अगस्त्य चलो तुम्हारे साथ पटना घूमने नही डेट पर चलती हूं ... तुम भी क्या याद रखोगे , किस आफत को साथ ले आया हूं शैतानी मुस्कुराहट के साथ बड़बड़ाई और चाय बनाने में लग गई ।
तब तक कमला घर आ जाती है जो शर्मा जी के यहां मेड का काम करती हैं। पास ही रहती थी ।
लेकिन कुछ दिन अपने घरेलू काम में व्यस्त थी ।
आरोही उनको आंटी कहती थी ।
आरोही : आंटी , आप आ ही गई है तो पापा के लिए नाश्ता बना लीजिए .... हमे कही जाने के लिए निकलना है।।।।
कमला : अरे , बिटिया " घर से खाली पेट बाहर नहीं जाया करते है बस 10 मिनट दे दो मैं सबके लिए कुछ बना देती हूं । "
ठीक है बोल कर आरोही चली जाती है तैयार होने ।
15 मिनट बाद , सुबह के तब तक 8 बजे चुके थे
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नाश्ता करने के लिए सभी बैठे थे ....आरोही को शर्मा जी आवाज दिए बेटा जल्दी आ जाओ .....
आरोही : आई पापा ..... झटके में जल्दी जल्दी आई ।
आरोही के सामने आते ही अगस्त्य मानो कुछ देर के लिए अपना होश गवा बैठा था।
पिंक कलर के कुर्ती और खुले लहराते बालों में बला की खूबसूरत लग रही थी ।
आरोही अगस्त्य की नजरे खुद पर पाकर प्लेट में जोड़ से चम्मच को छोड़ देती है .... आवाज के कारण अगस्त्य होश में आया।
आरोही : देखने की भी हद होती है ....... मैं कोई हिरोइन तो हूं नहीं .... बिना पलके झपकाए देखे जा रहा था ।
लगता है इसका इलाज करना पड़ेगा ।
प्लेट की ओर देखते हुए मन ही मन खुद से बोल रही थी।
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Continue.....