नक़ल या अक्ल - 34 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 34

34

विदाई

 

सरला ने पार्वती के मुँह से दहेज़ न देने की बात सुनी तो वह कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी किशोर बोल पड़ा, “दहेज़ का क्या है, वह तो आता जाता रहता है,” अब उसने पंडित जी को आवाज़ लगाई, जो इस समय मीठे पान का आनंद ले रहें हैं। “पंडित जी विदाई का मुहूर्त तो नहीं बीता जा रहा है।“ पंडित जी को जैसे होश आया,  “वह जल्दी से वर-वधू के पास पहुँचे और तपाक  से बोले,  “हाँ बेटा, लक्ष्मण प्रसाद जी अब विदाई करवाए, शुभ घड़ी का निकलना ठीक नहीं है।“ सरला ने मुँह बनाते  हुए कहा,

 

 “डोली तो तारों  की छाँव में  जानी चाहिए।“

 

अरे! बहन जी, बारह  बजे के बाद, अमावस्या शुरू हो जाएगी। कोई तारे नहीं दिखने, उल्टा सवा बारह बजे के बाद तो अमावस्या का प्रभाव नव दम्पति के ऊपर पड़ेगा।  अब लक्ष्मण प्रसाद भी बोल पड़ा, "पंडित जी ठीक कह रहें हैं, डोली जाने का यही समय ठीक है। " अब किशोर ने ग्यारह हज़ार सुमित्रा के हाथों  में  पकड़ायें, फिर पार्वती ने राधा के आगे चावल की थाल रख  दी और सभी औरतों ने विदाई  के  गीत गाना  शुरू कर दिया,

 

चल री सजनी अब क्या सोचे 

कजरा ना बह जाये रोते रोते

चल री सजनी अब क्या सोचे

 

ममता का आँगन, गुड़ियों का कंगना

छोटी बड़ी सखियाँ, घर गली अंगना

छूट गया, छूट गया, छूट गया रे

चल री सजनी अब क्या सोचे!!!!

 

 

औरतें  लगातार गीत  गाए जा रही है और सभी की आँखों में  आँसुओं का सैलाब उमड़ता  जा रहा है।  राधा  की रुलाई फूट पड़ी, रोते  हुए उसने  पहले चावल  पीछे  की ओर  गिराए और फिर अपने माता-पिता से रोते हुए मिली,  उसके पिता ने उसे सीने से लगाते  हुए कहा, “अब अपने बापू से नाराज़  तो नहीं है न?” “बापू! कैसी बात करते हो!!” वह फिर ज़ोर से रोने लगी। “अरे! बिटिया बस, रोते नहीं है, वह  अब  अपनी बहनों और रिश्तेदारों से मिलने लग  गई।“  रिमझिम ने उसे गले लगाते  हुए कहा, “हमेशा खुश रहियो !!” अब बाकी सखियों से भी मिलकर, वह किशोर संग, शमियाने के बाहर  खड़ी गाड़ी की तरफ जा रही है। अगर लड़की वालों की आँखे नम है तो लड़के वाले भी गमगीन नज़र आ रहें हैं। अब फूलों से सजी वैन में दोनों दूल्हा-दुल्हन को बिठाया गया और फिर उसमे नन्हें और उसके माता पिता बैठे और वैन घर की ओर रवाना हो गई। गॉंव के लोग बृजमोहन और पार्वती को समझाते हुए कहने लगें, “आप लोगों  को तो ख़ुश  होना चाहिए, हमारी राधा अपने ही गॉंव में तो ब्याही है, जब मन करें, उससे मिल लेना।“ यह सुनकर भावुक दम्पति  को थोड़ी तस्सली हुई तो वही किशोर ने भी राहत की साँस ली।  भगवान  का शुक्र है कि बिना किसी विघ्न के यह ब्याह  हो गया।  उसने मन ही मन कहा।

 

घर में  बुआ जी के साथ साथ पहले से ही  कुछ औरते वर-वधू  का स्वागत करने के लिए तैयार बैठी है। डोली से उतरने के बाद, उनकी आरती उतारी गई। चावल का एक लोटा  गिराते हुए राधा ने घर में  प्रवेश किया और सभी औरतें उसे घेरकर बैठ तो वहीं किशोर अपने कमरे में कपड़े बदलने गया तो देखा कि  पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ है, यह देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

 

 बुआ जी की हालत में पहले से सुधार है, वह अब बेहतर महसूस कर रही  है। सभी रीति रिवाज़ निभाए जा रहें हैं। किशोर कुरता पजामा पहनकर, अपने कमरे से निकला तो नन्हें उसका हाथ पकड़कर अपने साथ ले गया,

 

क्या बात है? कहाँ ले जा रहा है?

 

कहीं तो ले जा रहा हूँ। अब उसने उसे दोस्तों के बीच में बिठा दिया । उसके एक दोस्त रवि ने कहा, क्यों भाई क्या सोचा है?

 

मैं कुछ समझा नहीं।

 

अरे !! भाभी को हनीमून पर कहाँ ले जा रहा है।

 

हनीमून! वो क्या होता है???

 

क्यों बे!! इतना भोला है, क्या तू!!  सब हम बतायें.....?

 

अब नन्हें बोल पड़ा, “भाई  आप कहाँ घुमाने ले जाओंगे, वही पूछ रहें हैं।“

 

अरे!! शुक्र करो की शादी हो गई। वैसे भी ये सब शहर  वालों  के चोंचले हैं।  किशोर ने गहरी  साँस छोड़ते  हुए कहा।

 

“क्यों होनी नहीं थी और वैसे भी हम गाँव वाले किसी से कम  है, क्या!!! अब तू  बात को मत टाल और बता कि  कहाँ ले जा रहा है।“ रवि ने ज़ोर देकर पूछा।

 

“राधा से पूछूँगा,” उसके यह कहते ही सब उससे छेड़ने लगें, “जोरू के ग़ुलाम”, “शाहजहाँ की औलाद,” किशोर ने अपने लिए यह जुमले सुने तो शरमा गया और तभी उसकी माँ सरला ने आकर कहा कि “सब थक गए हैं, अब तुम लोग भी जाकर आराम करो, अब किशोर की शादी हो गई है, दोस्त हुए पराए।“ क्या चाची, हम तो  चिपको लोग है, इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाले।“ रवि के मुँह से यह सुनकर सभी हँसने लगें।

 

“चल किशोर तू खड़ा हो,” अब बहू भी अपने कमरे में चली गई है। वह अपने दोस्तों से विदा लेता हुआ, अंदर कमरे की ओर जाने लगा तो उसे लक्ष्मण प्रसाद और बुआ जी की बातचीत  सुनाई दीं।

 

बताओ,  मैं भी कितनी अभागिन हूँ पटना से शादी के लिए आई पर शादी में ही नहीं जा सकी।

 

कोई  बात नहीं बहनजी, आपकी तबीयत ज़्यादा ज़रूरी है।

 

वैसे लड़की वालों ने खातिरदारी में  कोई कसर तो नहीं छोड़ी?

 

इंतज़ाम बहुत बढ़िया था। लक्ष्मण प्रसाद ख़ुश  होते हुए बोला।

 

पर दहेज़ का क्या हुआ?कोई बात  हुई, कब मिलेगा?

 

मिल जायेगा। नकद तो दे दिए। अब सरला भी वही आकर बैठ गई।

 

पर जीजी! आपने ऐसा क्या खा लिया जो इतना स्यापा पड़ गया। सरला बोली

 

“खाया तो कुछ नहीं था,” किशोर के हाथों से एक शरबत का गिलास लेकर पिया था, किशोर अब जल्दी से अपने कमरे में जाने लगा तो उसके बापू ने उसे आवाज़ लगाते  हुए कहा, “दूल्हे मियाँ, ज़रा इधर आये !!” वह नज़रे झुकायें उनकी  तरफ जा रहा है, “मैं तो गया, बुआ जी को पता चल ही गया कि  मैंने ही उनके शरबत में  मिलावट की थी।“ अब उसने देखा कि बुआ जी उसे खा जाने वाली नज़रों से देख रही  है और उसके माँ बापू भी उसे सवालियां नज़रों से देखे जा रहें हैं ।