श्रीमद भगवत गीता के 51 अमूल्य विचार Mahendra Sharma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

श्रीमद भगवत गीता के 51 अमूल्य विचार

1. स्वयं का ज्ञान: अपने सच्चे स्वरूप को पहचानें और आत्मज्ञान प्राप्त करें।


2. कर्तव्य का पालन: अपने कर्तव्यों का पालन बिना फल की चिंता किए करें।


3. समता: सुख-दुःख, लाभ-हानि में समता का भाव रखें।


4. संकल्प शक्ति: अपनी इच्छाओं और संकल्प को मजबूत बनाएं।


5. सच्ची भक्ति: भगवान के प्रति अटूट भक्ति और विश्वास रखें।


6. योग का महत्व: योग के माध्यम से मन को नियंत्रित करें।


7. स्वधर्म पालन: अपने धर्म का पालन करें और अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें।


8. अहंकार त्याग: अहंकार को त्यागें और विनम्र बनें।


9. मोह से मुक्ति: मोह से मुक्त होकर जीवन जिएं।


10. कर्म योग: कर्म को योग की भावना से करें।


11. निर्लिप्तता: कर्म करते हुए भी उसमें लिप्त न हों।


12. ज्ञान प्राप्ति: ज्ञान की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।


13. आत्मसंयम: इंद्रियों का संयम और नियंत्रण रखें।


14. ध्यान का महत्व: ध्यान के माध्यम से मन को एकाग्र करें।


15. संयमित आहार-विहार: जीवन में संतुलित आहार-विहार का पालन करें।


16. सच्चाई: सच्चाई और सत्यनिष्ठा का पालन करें।


17. समर्पण भाव: भगवान के प्रति समर्पण भाव रखें।


18. अज्ञान का नाश: अज्ञान को ज्ञान से दूर करें।


19. कर्मफल की चिंता छोड़ें: फल की चिंता किए बिना कर्म करें।


20. संतोष: जो प्राप्त है उसमें संतोष रखें।


21. दूसरों की सेवा: दूसरों की सेवा को भगवान की सेवा मानें।


22. मृत्यु से भय मुक्त: मृत्यु का भय त्यागें और आत्मा की अमरता को समझें।


23. शांति का मार्ग: शांति प्राप्त करने के लिए ध्यान और आत्मज्ञान का मार्ग अपनाएं।


24. विवेक बुद्धि: सही और गलत का विवेक बुद्धि से निर्णय लें।


25. अहिंसा: अहिंसा का पालन करें और सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखें।


26. त्याग की भावना: त्याग की भावना विकसित करें।


27. धैर्य और साहस: जीवन में धैर्य और साहस का महत्व समझें।


28. प्रकृति के नियम: प्रकृति के नियमों का सम्मान करें और उनके अनुसार चलें।


29. आध्यात्मिकता: जीवन में आध्यात्मिकता का समावेश करें।


30. समर्पण और विश्वास: भगवान में पूर्ण समर्पण और विश्वास रखें।


31. अस्थाई सुख-दुख: सुख-दुख को अस्थाई मानें और उनमें संतुलन बनाए रखें।


32. प्रकृति के साथ सामंजस्य: प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करें।


33. आत्मा की अमरता: आत्मा को अमर मानें और शरीर को नश्वर।


34. वैराग्य: संसार के मोह-माया से वैराग्य प्राप्त करें।


35. अनासक्ति: अनासक्ति के साथ जीवन जीएं।


36. धर्म का पालन: धर्म का पालन करें और अधर्म से बचें।


37. प्रेम और करुणा: प्रेम और करुणा का भाव रखें।


38. मौन का महत्व: मौन के महत्व को समझें और अनावश्यक बातें न करें।


39. दृढ़ संकल्प: अपने संकल्प को दृढ़ बनाएं और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहें।


40. प्रकृति के नियमों का पालन: प्रकृति के नियमों का पालन करें और उनके प्रति सजग रहें।


41. अंतरात्मा की आवाज़: अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें और उसके अनुसार कार्य करें।


42. दृष्टि की पवित्रता: अपनी दृष्टि को पवित्र और सकारात्मक रखें।


43. ज्ञान का महत्व: ज्ञान के महत्व को समझें और इसे प्राप्त करने का प्रयास करें।


44. आत्मबल का विकास: आत्मबल को विकसित करें और निर्भीक बनें।


45. समाज सेवा: समाज सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाएं।


46. सहनशीलता: सहनशीलता का गुण विकसित करें और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखें।


47. संयम: अपने मन और इंद्रियों को संयमित रखें।


48. निर्मल हृदय: हृदय को निर्मल और सरल बनाएं।


49. अन्याय का विरोध: अन्याय का विरोध करें और सत्य का समर्थन करें।


50. स्वयं पर विश्वास: स्वयं पर विश्वास रखें और आत्मनिर्भर बनें।


51. आत्म-अवलोकन: आत्म-अवलोकन करें और अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें।


इन शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन को अधिक संतुलित और सार्थक बना सकते हैं।


भगवद गीता का सार (गीता सार) निम्नलिखित है:


1. कर्म योग: अपने कर्तव्यों को बिना फल की चिंता किए निष्पक्ष भाव से करना ही कर्म योग है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि हमें अपने कर्मों को धर्म के अनुसार करना चाहिए और फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए।


2. ज्ञान योग: आत्मज्ञान और आत्मा के सत्य स्वरूप का बोध ज्ञान योग है। गीता में बताया गया है कि आत्मा अमर है, और शरीर नश्वर। आत्मज्ञान के द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।


3. भक्ति योग: भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण भक्ति योग कहलाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भक्त मुझमें अनन्य श्रद्धा और भक्ति रखता है, मैं उसे अपना मान लेता हूँ।


4. समता: गीता में सिखाया गया है कि सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समानता का भाव रखना चाहिए। यह मानसिक संतुलन हमें जीवन की कठिनाइयों में स्थिर रहने की शक्ति देता है।


5. मोह-माया से मुक्ति: मोह और माया से मुक्ति पाने के लिए अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करना आवश्यक है। गीता में कहा गया है कि इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ही हम सच्चे आनंद की अनुभूति कर सकते हैं।


6. स्वधर्म का पालन: हर व्यक्ति को अपने स्वधर्म का पालन करना चाहिए। अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन करना ही सच्ची सेवा है।


7. अहंकार और अहिंसा: अहंकार का त्याग और अहिंसा का पालन करना चाहिए। यह सिखाता है कि हम सभी एक समान हैं और सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना चाहिए।


8. ध्यान और आत्मसंयम: ध्यान और आत्मसंयम के माध्यम से मन की चंचलता को दूर किया जा सकता है। ध्यान से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।


9. प्रकृति और पुरुष: गीता में प्रकृति और पुरुष के संबंध की व्याख्या की गई है। यह बताता है कि कैसे आत्मा (पुरुष) प्रकृति से परे है और शरीर (प्रकृति) नश्वर है।


10. अंतिम सत्य: अंत में, गीता सिखाती है कि सच्चा ज्ञान आत्मा का बोध है। आत्मा अमर है और जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है।


गीता के इन सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर व्यक्ति आत्मज्ञान, शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है।