तमस ज्योति - 2 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 2

प्रकरण - २

अमिताने कहा, "चलिए अभी दोस्तो! एक छोटे से ब्रेक के बाद मैं इस शो की होस्ट अमिता एक बार फिर रोशनजी से उनके बचपन के बारे में बात करने के लिए वापस आ गई हूं। तो रोशनजी! हमारे दर्शक आपके बचपन की बाते जानने के लिए बहुत ही उत्सुक हैं। तो चलिए आज की बात शुरू करते हैं।"

"जी हां बिलकुल।" ऐसा कहकर रोशनने अपनी कहानी सुनानी शुरू की और कहा, "मुझे भी अपने बचपन के बारे में बाते करते हुए बहुत ही खुशी का अनुभव होता है। तो चलिए आइए अब हम मैं आपको मेरे बचपन की सैर करवाता हूं।"

ऐसा कहकर रोशनने फिर से अपनी बात बताई और बोला, "ये आज से कुछ ही सालों पहले की बात है। मैं उन दिनों शायद पाँच साल का था और मेरा बड़ा भाई रईश सात साल का था और हमारी बहन दर्शिनी तो अभी तक हमारे बीच में भी नहीं आई थी। तो उस समय हमारे घर में सिर्फ हमचार लोगों का ही परिवार था। हम दो भाई, मैं और रईश और हमारे मम्मी पापा।

मैं तब किंडरगार्टन में पढ़ रहा था और रईश दूसरी कक्षा में। रईश को पहले से ही पढ़ाई में बहुत ही रुचि थी। अगर मैं कहूं की वह एक किताबी कीड़ा था तो उसमे कुछ गलत नही था और मैं उससे बिलकुल विपरीत। मैं था बिलकुल बिंदास। मुझे तो घूमना फिरना ही पसंद था। फिर भी कुछ चीजें थी हम दोनों के बीच जो एक जैसी थी जैसे की हमारी जिज्ञासा। हम दोनों भाइयों को हमेशा कुछ नया सीखना और कुछ नया जानना अच्छा लगता था। और यही वह बात थी जिसने हम दोनों भाइयों को हमेशा एक साथ जोड़े रखा। हम दोनों भाइयों के बीच बहुत ही प्यार था। अमिताजी! सुनिए। मैं आपको हमारे बचपन की एक मज़ेदार कहानी सुनाता हूँ। आपको ये बाते सुनने में बड़ा मज़ा आएगा।"

अमिता बोली, "जी रोशनजी! सुनाईए। मैं और हमारे दर्शक हम दोनों ही आपकी सारी बाते सुनने के लिए बहुत ही उत्सुक हैं।"

रोशनने अपनी बात बताते हुए कहा, "सुनिए। एक वक्त की बात है। आप को याद है हम सब बचपन में कागज की नाव बनाते थे? जब भी बारिश होती थी, हमारे घर के आसपास पोखर भर जाते थे और जहां भी ऐसे पोखर भर जाते थे, वहा हम अपनी इस कागज़ की नाव को तैराते थे। बचपन का आनंद ही कुछ और है! लेकिन कागज़ की नाव तो कब तक अच्छी रह सकती है? कागज गीला होने की वजह से वो तो कुछ ही मिनटों में खराब हो ही जाता है न?

तब यह देखकर रईश को एक तरकीब सूझी और उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए जिस कागज से हम नाव बनाते थे, उस पर एक प्लास्टिक का कवर लगा दिया और फिर हमने प्लास्टिक कोटेड कागज की नाव बनाई और उसे तैराया। इस तरह अब उसकी कागज की नाव पूरी तरह से सुरक्षित हो गई। अब उसे अपनी नाव डूबने का कोई डर नहीं था।

ये सुनकर अमिता बोल पड़ी, "वाह! बहुत खूब! रोशनजी! ये तो आपने बहुत ही अच्छी बात बताई है। तो संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि उनके मन में रिसर्च का जन्म यहीं से हुआ होगा, है न? यानी कुछ अलग करने की प्रवृत्ति उनमें पहले से ही थी। क्यों? सही बात है न?"

रोशनने कहा, "हां बिल्कुल। मेरे इस भाई रईश की बुद्धि सामान्य बच्चों से भिन्न प्रकार की ही थी और तब हम सब भी कहा जानते थे कि उसकी इसी बुद्धि आगे चलकर हमें और विशेषकर मुझे लाभ होने वाला है?"

ये सुनकर अमिता बोली, "हां बिल्कुल। और रईश की इसी बुद्धिमत्ता के कारण आप आज हमारे बीच अपनी आंखो से देख पा रहे है। है ना? अन्यथा किसी भयानक दुर्घटना में आपकी आँखों की रोशनी तो चली ही गई थी। है ना?

रोशनने कहा, "जी। अमिताजी! आप बिलकुल सही कह रही हैं। अगर आज मैं अपनी इन आंखो से देख पा रहा हूं तो एक इसका सारा श्रेय मैं मेरे भाई रईश को ही देना चाहूंगा। उसने वैज्ञानिक की नौकरी भी मेरी आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए ही स्वीकार की थी। अन्यथा वह तो चाहता था एक वन्यजीव फोटोग्राफर बनने के लिए। लेकिन मेरी आँखों पे छाए हुए तमस ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी और उसने आँखों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया।"

अमिता बोली, "हाँ, रोशनजी! आप शायद सही कह रहे हैं। हमारे जीवन में कुछ घटनाएँ हमारी उम्मीदों से परे घटित होती हैं, और हम भी अक्सर प्रकृति के सामने अपने आप को असहाय महसूस करते हैं।"

रोशन बोला, “हां, अमिता जी, आप बिलकुल सही कह रही हैं।”

अमिताने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "चलिए अब अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं और थोड़ा आपके भाई के बारे में जानते हैं। तो रोशनजी! अब आप हमारे दर्शकों को अपने भाई के बारे में भी कुछ बताएंगे।"

रोशनने कहा, "जी हां बिल्कुल! मेरा भाई रईश जो फिलहाल एक वैज्ञानिक के रूप में काम करता है, लेकिन उसका बचपन का सपना एक वन्यजीव फोटोग्राफर बनने का था। उन्हें बचपन से ही जानवरों से बहुत प्यार था। मैं आपको यह भी बता दूं कि इसका एक अच्छा सा किस्सा भी है जो मैं आपको अभी सुनाता हूं।

जब रईश किंडरगार्टन में पढ़ता था, तो एक बार माँ मुझे और उसे स्कूल छोड़ने जा रही थी तब रास्ते में उनकी नज़र एक गाय पर पड़ी। उसने देखा की वो गाय अपने बछड़े को जीभ से सहला रही थी और प्यार से चाट रही थी। वह इस दृश्य को बड़ी ही उत्सुकता से लंबे समय तक देखता ही रहा था और थोड़ी देर के लिए वह चलते-चलते रुक गया और कुछ क्षण तक गाय और बछड़े दोनों को देखता रहा।

गाय और बछड़े के बीच के स्नेह को देखकर उसके मन में जो खुशी थी वह उसके चेहरे पर झलक रही थी। वह स्कूल पहुंचने तक पूरे रास्ते में मां से उसी गाय और बछड़े की ही बाते करता रहता था। इस प्रकार उसकी आँखें सदैव कुछ नया ढूँढ़ती रहती थीं। आपको मैं बता दूं कि ऐसा एक ओर भी किस्सा है।

एक बार जब वह स्कूल से घर आ रहे थे तो उन्हें सड़क पर एक कुत्ता दिखाई दिया। कुत्ते का पैर टूटे हुए ढक्कन वाले नाले में फंस गया था और वह अपने पैर को नाले से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था पर वो निकाल नहीं पा रहा था। यह देखकर रईश तुरंत उस कुत्ते की मदद के लिए दौड़ा और कुत्ते को सुरक्षित बाहर खींच लिया। इस प्रकार उसकी उस कुत्ते से दोस्ती भी हो गई।”

ये सुनकर अमिताने कहा,"आपके इन दोनों किस्सों को सुनने के बाद तो यही लगता है कि आपका भाई वाकई में पशुप्रेमी होगा। हमने आपके भाई और आपके बचपन की कहानियों के बारे में बहुत कुछ सीखा और उन्हें सुनने का आनंद भी लिया।"

रोशनने भी कहा, "और मैं आपके इस स्टूडियो में आकर और उन पुरानी कहानियों और किस्सों को फिर से याद करने का अवसर पाकर मैं अपने आप को भी आज बहुत ही भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। मेरे लिए यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि आपने मुझे अपने स्टूडियो में आमंत्रित करने के योग्य समझा।"

अमिता बोली, "जी धन्यवाद। रोशनजी! ये बातें तो आपके साथ होती ही रहेंगी। लेकिन अब वक्त आ गया है विराम का। तो मेरे प्यारे दर्शकों! रोशनजी के साथ ये बाते तो ज़ारी ही रहेंगी। विराम के बाद हम बात करेंगे रोशनजी की बहन दर्शिनी के बारे में। लेकिन ये सारी बाते करने से पहले आइए एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं। तो मेरे प्यारे दोस्तों! अब कहीं मत जाइएगा। एक छोटे से ब्रेक के बाद हम फिर से मिलेंगे। तब तक देखते रहिए हमारा ये कार्यक्रम रुबरु।"

(क्रमश:)