द डे ऑफ रामलाल ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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द डे ऑफ रामलाल

"द डे ऑफ रामलाल"

छुट्टी पर लौटे अग्निवीर ने हाइवे रॉबरी का गैंग बनाया। उसने यूपी से अवैध हथियार खरीदा। एप से टैक्सी बुक करता, और गनपॉइंट पर लूटने के बाद नम्बर बदलकर बेच देता।
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ट्रेंड फौजी होना, एक रेयर योग्यता है।

आधुनिक हथियारों और कॉम्बेट में प्रशिक्षित होने का अवसर, आपको पड़ोस के कोचिंग सेंटर में नही मिलता। हथियार उठाकर किसी पे तानने की हिम्मत भी ऐसे ही नही आती। इसकी मुफ्त कोचिंग अब भारतीय फौज दे रही है।।
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किसी देश की नियमित सेना, ट्रेंड फौजी पैदा करके उन्हें सड़को पर नही छोड़ती। रिक्रूटमेंट और ट्रेनिंग के बाद उसे एब्जॉर्ब करती है, अच्छा वेतन देती है, और उसकी पूरी वर्किंग लाइफ एंगेज्ड रखती है।

ट्रेंड फौजी, बीच में ही निकाल दिये जायें, ऐसा कभी कभार ही होता है। और सुनियोजित रूप से नही होता है। इतिहास में इसके कुछ भयंकर नतीजे हुए हैं।
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जर्मनी में वर्साई की ट्रीटी के तहत सेना घटाने के कारण, नाजी पार्टी की प्राइवेट आर्मी, SS बनी।
यह पुरानी बात है।

हाल में ऐसा सोवियत रशिया में हुआ। रूस के विघटन के बाद फ़ौज से हाइली ट्रेंड कमांडो, बेरोजगार हो गए। जो नए देश बने, उनमे इतने सैनिको की जरूरत नही थी।

नतीजतन बहुत से फौजी, रशियन ओलिगार्क (पुतिन जी के अम्बाडानी) के सिक्युरिटी गार्ड बन गए।
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सिक्युरिटी ऑफिसर बनना तो फ़िर भी इज्जतदार था। बहुतेरे रशियन माफिया के शूटर भी बने। पर नौकरी में किसने खाई मलाई??

अपना काम तो अपना काम होता है। तो कुछ इंडिपेंडेंट सुपारी किलर बने। कुछ ने खुद का गैंग बनाया, औऱ स्वयं ही माफिया बने। हथियार, ड्रग्स, अपहरण, रंगदारी उद्योग में हाथ आजमाए।

यह अग्निवीर, भारत में इसका प्रथम मील का पत्थर हो गया है।
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लेकिन सितारों से आगे जहां और भी हैं। तो होता ये है कि कई बार नेताओ को अपनी विश्व विजेता होने की फीलिंग के लिए युद्ध वुद्ध लड़ना पड़ता है।

लेकिन युद्ध मे तो सैनिक मरते हैं, बॉडी बैग्स औऱ ताबूत में भरकर लौटते हैं। उन्हें शहीद का दर्जा मिलता है, हो हल्ला होता है। उधर दुश्मन भी उनको मारकर अपनी जीत के दावे करता है।

तो एक शॉर्टकट होता है- भाड़े के सिपाही हायर करो। मर्सिनरी, देश की मुख्य सेना के आगे होते हैं। पहला खतरा झेलते हैं।

भाड़े के फौजी, रास्ता साफ करके, पीछे के मासूम सिपाहियों को जीत का क्रेडिट लेने देते हैं। खुद कॉन्ट्रेक्ट की मोटी रकम, लूट और सुंदर स्त्रियों के बलात्कार का आनंद लेते है।
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वेगनर ग्रुप ऐसा ही ग्रुप है। इसमे 80 हजार से ढाई लाख रूबल तक सैलरी मिलती है। मर गए, तो 50 लाख रूबल तक का कम्पनसेशन घर पहुँच जाता है।

ऐसे कई ग्रुप दुनिया मे सक्रिय हैं। सीरिया, अफ्रीका, यूक्रेन और कई जगहों पर लड़ते हैं। तानाशाहों के लिए लड़ते हैं, लेकिन पैसा ज्यादा मिले, तो उसका तख्तापलट करने के लिए भी लड़ते हैं।

आपको राजीव गांधी के दौर में मालदीव में मरसिंनरीज का अटैक याद होगा, जब भारत मे गयूम सरकार को बचाया। जार्ज स्पीट नाम के बन्दे ने मर्सिनरिज के बूते फिजी में महेंद्र चौधरी का तख्ता पलट किया था।

याद है न?
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इस धंधे में कभी कोई भारतीय नही जा सका। क्योकि ट्रेंड फौजी होना, एक रेयर योग्यता है।
आधुनिक हथियारों और कॉम्बेट का प्रशिक्षण आपको पड़ोस के कोचिंग सेंटर में नही मिलता।

तो भारत, विश्व में केवल "शारीरिक मजदूर" और 'आईटी मजदूर" भेजने के लिए फेमस रहा है। अग्निवीर योजना के बाद हम इसमे भी अपनी पहचान बनाएंगे।
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दरअअसल शाखा वालो का सपना आम हिन्दुओ के रेडिकलाइजेशन और मिलिटराइजेशन का रहा है। मगर उनकी शाखाएं लाठी भांजने, और गाली देने से ज्यादा कुछ नही सिखा पाती।

तो सपना, भारतीय सेना से बेहतर कौन पूरा कर सकता है। पर उन्हें क्यो लगता है कि प्रशिक्षित बेरोजगार सैनिक केवल सिक्युरिटी गार्ड बनेगा। पार्टी का SS बनेगा??
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भारतीय सेना एक ब्रांड है। इससे 4 साल ट्रेंड और 22-23 साल का युवा एक अच्छा मर्सिनरी, शूटर, किलर हो सकता है। दुनिया की बड़ी बड़ी प्राइवेट सीक्रेट आर्मीज, गैंग वाले, इन्हें हाथोंहाथ लेंग।

वे खुद भी स्वरोजगार पा सकते हैं। एक गैंग बनाने भर की जरूरत है।

भारतीयों ने दुनिया मे हमेशा अपने कौशल के झंडे गाड़े हैं। इंद्रा नूयी से सुंदर पिचाई तक,मैनेजमेंट और सॉफ्टवेयर क्षेत्र के बाद, अब जल्द ही विश्व मे भारत के कांट्रेक्ट किलर्स और मर्सिनरिज की तूती बोलेगी।
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तो योजना का विरोध न करें। अपने बाप भाई पति और बॉयफ्रेंड को प्रोत्साहित करें। उन्हें अच्छे से ट्रेनिंग लेकर किसी "अल फायदा" को जॉइन करने के लिए कहें।

आपदा में अवसर को पहचाने। क्या पता कल को "द डे ऑफ जैकाल" की तरह कोई शानदार मूवी बने जिसका हीरो इंडियन हो, आपका ही बेटा हो। औऱ फ़िल्म का नाम हो

"द डे ऑफ रामलाल"