मनुष्यता गुंजन: एक अनूठा उपहार Sudhir Srivastava द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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मनुष्यता गुंजन: एक अनूठा उपहार

पुस्तक समीक्षा
मधुब्रत गुंजन: एक अनूठा उपहार
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वरिष्ठ शिक्षक/कवि/संपादक/छंद प्रणेता डा. ओम प्रकाश मिश्र 'मधुब्रत'जी के काव्य संग्रह "मधुब्रत गुंजन" का प्रारंभ ही कवि के परिचय के बाद उनकी "साहित्य के प्रति अनुराग एवं लेखन की प्रेरणा...." में उनके साहित्य के प्रति अनुराग आरंभ, रचनाएं, सम्मान एवं पुरस्कार, शैक्षणिक सम्मान और पुरस्कार, रचनाओं के प्रकाशन, संप्रति एवं शैक्षणिक कार्य स्थल के बारे में विस्तार से लिखा गया। इसके प्रारंभ में ही डा. मधुब्रत के साहित्य के प्रति बढ़ते अनुराग, उन्हें प्राप्त होने वाले सानिध्य, प्रोत्साहन और वरिष्ठ, श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ने और उसमें रहने का पता चलता है। प्रसाद,पंत, निराला, महादेवी वर्मा, दिनकर, डा. राम कुमार वर्मा, राम नरेश त्रिपाठी, हरिवंशराय बच्चन, प्रोफेसर क्षेम के साहित्य से प्रेरित डा. मधुब्रत आचार्य शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डा.नगेंद्र के ऐतिहासिक ग्रंथों के प्रति और इतिहास को पढ़ने की रुचि बढ़ गई , जिसका असर उनके हिंदी, अंग्रेज़ी और संस्कृत तीनों साहित्यों का प्रभाव कवि मधुब्रत के जीवन पर पड़ने लगा।
एक साहित्यकार का युगबोध एक कवि निबंधकार, कहानीकार और समीक्षा के प्रति सहज लगाव हो गया। जिसका लाभ यह कि गद्य की लगभग सभी विधाओं को पढ़ने के साथ उनकी बारीकियां सीखने में समय बीतने लगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश के दौरान मधुब्रत जी महादेवी वर्मा के आवास अशोक नगर प्रयाग में जब पहली बार महादेवी वर्मा के दर्शन प्राप्त किया और महादेवी वर्मा को अपनी रचना-पुष्पांजलि दी तो महादेवी वर्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया। उसका लाभ और असर ये हुआ कि युवा कवि ओम प्रकाश मिश्र पर इतना गहन प्रभाव हुआ कि ये साहित्य सर्जना में एक साधक की भांति तल्लीन हो गये।अध्ययन के साथ साथ सृजन यात्रा में गीतों, कविताओं का सृजन किया। छायावाद से विशेष प्रभावित होकर रोचक-रोचक " नीड़ और मंजिल" जैसी कविता का सृजन किया।
साहित्यिक यात्रा और शैक्षणिक सेवाएं जारी हैं। यही नहीं आज डा. मधुब्रत एक जाना पहचाना नाम ही नहीं अनेक साहित्यिक संस्थाओं के जिम्मेदार पदाधिकारी होने के साथ नवोदय वैश्विक प्रज्ञान साहित्यिक मंच के संस्थापक का दायित्व भी गंभीरता से निभा रहे हैं।
अनेकानेक सम्मानों से सम्मानित कवि साहित्यकार अपनी बात में लिखते हैं कि अंतर्मन की पीड़ा का वर्हिजगत की पीड़ा से तादात्म्य होते ही अभिव्यक्ति की आकुलता कवि हृदय में जाग पड़ती है।
इसी व्याकुलता में प्रकृति के कुशल चितेरे कविवर सुमित्रानंदन पंत जी ने लिखा था- वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा गान।
उमड़ कर आंखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान।।
अस्तु किं बहना "मधुब्रत-गुंजन",
मधुब्रत जी ने इस आशय के साथ पुस्तक सुधी साहित्यकारों, प्रबुद्ध मनीषियों को समर्पित करते हुए अंत में लिखा है कि-
"जे पर भणिति सुनते हरसाहीं
ये नरवर तोरे जग माहीं।"

आशीर्वचांसि में डा. वाई. एस. पाण्डेय "प्रकाश" जी के अनुसार मधुब्रत गुंजन भाषा भाव एवं अभिव्यक्ति के सौष्ठव से मंडित है।

माधवपुरी शुभेच्छा में श्रेष्ठ कवि/छंदकार लवकुश तिवारी "माधवपुरी" मानते हैं कि मधुब्रत गुंजन के रूप में आज साहित्य जगत को एक उपहार मिलने जा रहा है।

111 रचनाओं के इस संग्रह में विविध छंदों में सृजित रचनाओं/ छंदमुक्त कविता/ मुक्तक/हाइकु /गीत /ग़ज़ल आदि को स्थान दिया गया है। जिसका प्रथम सोपान वंदन अभ्यर्चन में अंत:करण से माँ की प्रार्थना करते हुए कवि प्रार्थना करता है-
"आंचल की छाया में आकर,
जग-शिशु रोता व्याकुल होकर।
उसको आश्वासित कर देना,
पावन पय-पान करा देना।।"

उसके बाद माँ सरस्वती वंदना के बाद रचनाओं के क्रम में अज्ञात मिलन से होते हुए "मधुब्रत की पीड़ा का मोल" की पंक्तियां भावुक करती हैं-
मनुष्यता की पीड़ा का मोल,
कौन देता जगती में बोल।
सुमन के सौरभ का पट खोल,
गुनगुनाता रहता है डोल।।

गीत में कवि उलाहना देते का हुए कहता है-
"जल गगन में विचर लो भले से मनुज!
किंतु थल पर न आया तुम्हें डोलना!! "

"खुश रहें सर्वदा" में सकारात्मक संदेश देने की कोशिश में कवि कह रहा है-
"अपने परिवार को,
स्नेह दें नित नया।
गीत गाते चलें
खुश रहें सर्वदा!!"

"जीवन में ठहराव कहाँ" में कवि सत्य को स्वीकार करते हुए लिखता है-
"जीवन में चलते रहना
ठहराव कहाँ।"

"काव्य साधना" में गंभीर भाव कवियों की काव्य साधना सूत्र की तरह है-
"शोक को ही श्लोक में अभिसिक्त कर रचना करें।
निज व्यथा का साथ जोड़ें जग व्यथा, रचना करें।।"

एक अन्य रचना की पंक्तियां आम जन को सचेत करती प्रतीत हो रही हैं-
"मेरा नहीं संसार है!
माया भरा परिवार है!!
पानी भरा मझधार है!
सूचना नहीं आधार है!!

"देश हमारा सबसे न्यारा" की ये पंक्तियां देशप्रेम के भाव जगाती हैं-
"भिन्न जातियों की सरिता की बहती अविरल धारा।
देश हमारा सबसे न्यारा, हमको है प्राणों से प्यारा।।"

... और सबसे अंत में सुगीतिका छंद में "शुभ कामनाएं"- की सामाजिक संस्कृति का चित्रित करती ये पंक्तियां-
"रहें सुखी सब लोग अब तुम, स्नेह दो अनुकूल।।
करो नहीं अब द्वेष ईर्ष्या, अहंकार की भूल।।
मिला नहीं नर योनि ऐसी, क्यों यहां किस हेतु।
दुखों भरी इस योनि में ही, भव उदधि का सेतु।।"

बुक्स क्लीनिक द्वारा मां शारदे के चित्र से सुसज्जित मोहक मुखपृष्ठ और आखिरी पृष्ठ पर कवि के जीवन परिचय के साथ प्रकाशित इस संग्रह को गंभीरता के साथ पढ़ा जाए तो काफी गहरे चिंतन, भाव, उद्देश्य की झलक साफ देखने को मिलेगी। रचनाएं छोटी-छोटी जरुर हैं, लेकिन रचनाओं के भाव, शिल्प और कथ्य व्यापकता के दर्शन कराते हैं।मेरे नजरिए से संग्रह की सबसे खास बात तो यह है कि एक साथ इतने छंदों में सृजित रचनाओं को संग्रह में स्थान मिलना यह बताने के लिए निश्चित रूप से काफी है कि कवि ने छंदों को जीकर सीखा है।यह हर किसी के सामर्थ्य से बहुत दूर की बात है। मेरा मानना है कि छंदों में सृजन-पथ पर चलने वाले विशेष रूप से नवोदित रचनाकारों के लिए यह संग्रह संग्रहणीय है।
मैं "मधुब्रत गुंजन" काव्य संग्रह की ग्राह्यता और सफलता के प्रति विश्वास रखता हूं कि प्रस्तुत संग्रह अपने पाठकों के बीच अपनी सार्थक उपस्थित दर्ज़ कराने में जरुर सफल होगी। साथ ही मैं डा. मधुब्रत जी के सुखद जीवन और उज्ज्वल साहित्यिक सामाजिक पारिवारिक जीवन की कामना करता हूँ।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ..........।

डॉ.सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश