ज्ञान Satyam Khaire द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ज्ञान

सरस्वती एक प्रतिभाशाली लड़की है। एक दिन उनके पाठशाला में रासने मैडम को सम्मानित किया जाना था। उस कार्यक्रम में रासने मैडम का भाषण सुन के सरस्वती ने भी मन में ठाना की हमें आगे जाकर शिक्षिका बनना है । इस सपने के साथ वह अभी दसवीं में आ गई थी। पर उसका जीवन बदलने वाला था।
(गांव के बरगद के पेड़ के नीचे)
गणपत -: ए सखा... किधर जा रहे हों?
सखाराम (सरस्वती के पिता)-: खेती मैं पानी देने जा रहा हूं।
(उनमें से एक आदमी उठकर सखाराम से बोला)
१ आदमी -: सखाराम तुझे मालूम है
सखाराम-: क्या रे क्या हुआ?
१ आदमी -: किशन की लड़की किसी लड़के के साथ भाग गई
सखाराम-: क्या बोलते हो वह तो हमारे घर के सामने ही रहती है
गणपत-: जमाने का कोई भरोसा नहीं
१ आदमी-: में तो कहता हूं कि, लड़की ने अपने पिता की इज्जत नहीं रखी, इसलिए लड़कियों की शादी जल्द से जल्द की जानी चाहिए ताकि ऐसी चीजें ना हो
गणपत-: सही कहते हो भाई । वरना अभी की लड़कियां बाप का थोड़ा सा भी विचार नहीं करती
इस घटना ने सखाराम के दिमाग पर गहरा परिणाम किया वह सोचने लगा अगर मेरी बेटी ने भी ऐसा किया तो समाज में मेरी क्या इज्जत रहेगी गांव में तो मेरी नाक कट जाएगी
(अगले दिन सुबह)
रत्ना (सखाराम की पत्नी)-: कल से देख रही हूं मैं आपको किस ख्यालों में हो आप ?
सखाराम-: कुछ नहीं
तभी सरस्वती अपनी किताबें लेकर पाठशाला जाने के लिए चलने लगती हैं
सखाराम -:सरस्वती अब तुम पाठशाला नहीं जाओगी
सरस्वती -: क्यों पिताजी
सखाराम -: (क्रोध से)एक बार बोला जो समझ में नहीं आया क्या?
सरस्वती -: मां पिताजी को समझाओ ना
रत्ना-: ऐसा क्यों कर रहे हो आप उसे जाने दीजिए ना
सखाराम-: रत्ना तुझे कुछ समझ में नहीं आता। वो आज से घर में ही रहेंगी कुछ पढ़ने -लिखने की जरूरत नहीं है
सरस्वती रोते-रोते के अंदर चली गई उसे शिक्षिका बनने का सपना कांच की तरह टूटता हुआ दिखाई दे रहा था
(कुछ दिनों के बाद)
"आ जाइए ,आ जाइए ,आपकी ही प्रतिक्षा में था " कुछ लोगों को देखकर सखाराम ने कहा
सखाराम-: रत्ना मेहमान आए हुए हैं उनके खाने-पीने का देख लो
सखाराम और मेहमान बातों में खो जाते हैं तभी रत्ना आती है
सखाराम-: रत्ना यह है मोहनजी, इनके बेटे के लिए रिश्ते की बात करने आए हैं । जा रत्ना को तैयार करके लाओ
रत्ना सरस्वती को लेकर आती है
मोहन-: सखाराम तुम्हारी बेटी तो बहुत खूबसूरत है ।मेरे बेटे के लिए सही रहेगी ।थोड़ी दिन में शादी की तारीख तय करेंगे अच्छा मैं अब चलता हूं।
( मेहमान जाने के बाद)
रत्ना-:आप यह क्या कर रहे हो, बेटी की शादी की अभी उम्र भी नहीं है, और आप उसकी शादी कर रहे हो।
सखाराम-: कभी तो कभी उसकी शादी करनी ही पड़ेगी। तो आज किया तो कल किया उसमें क्या? और लड़के वाले अच्छे घर से है ,वहा हमारी लड़की खुश रहेगी
सरस्वती -:पिताजी मुझे शादी नहीं करनी है मुझे आगे पढ़ना है और शिक्षिका बनना है
सखाराम-: पढ़ने लिखने की कोई जरूरत नहीं है महिलाओं को सिर्फ "चुल और मुल" (खाना बनाना और लड़के संभाल ना) इस पर ही ध्यान देना चाहिए

एक दिन पूजा (सरस्वती कि दोस्त) और सरस्वती पेड़ के नीचे बैठे हुए थे
पूजा -: सरस्वती अब तुम पाठशाला क्यों नहीं आ रही हो?
सरस्वती -: (नाराजगी से)मेरी शादी तय हो चुकी है। इसलिए मेरे पिताजी ने मेरी पाठशाला बंद की
पूजा-: क्या.., कल ही मैंने किताबें में पड़ा लड़की की शादी की उम्र १८ होती है और लड़कों की शादी की उम्र २१ होती है
सरस्वती-: हां पर पिताजी के सामने किताबी ज्ञान फीका है। पूजा में चलती हूं मां मुझे ढूंढ रही होगी

सुखराम गेहू का बीज लाने दूसरे गांव जा रहा था तभी उसने एक अजीब बात देखी एक दादी बारात को देखकर रो रही थी। ओ दादी के पास गया और पूछने लगा दादी आप इस बारात को देखकर क्यों रो रहे हो?
दादी -:(रोके) क्या बताओ बेटा ,यह जो बारात जा रही है वो एक लड़की की जिंदगी खराब करने जा रही है।
सखाराम -:आप जो कह रही है वह मैं समझा नहीं
दादी सखाराम से कहने लगती है-
कुछ सालों पहले मैं और मेरी पोती इस गांव में रहते थे। १६ साल की पोती का इस दुनिया में मेरे सिवाय कोई नहीं था। एक दिन मेरे बेटे का दोस्त आकर मुझसे कहने लगा "हमारे गीता के लिए मैंने एक अच्छा सा रिश्ता लाया है"लड़के की उम्र ३०है पर हमारे गीता के लिए अच्छा है
इतनी उम्र वह तो हमारे गीता से कितना बड़ा है मैंने उससे कहा
उसने मुझसे कहा इसमें क्या होता है मासी ।हमारे गीता खुशी से रहेगी ,रिश्ता अच्छा है।

मैंने भी इस रिश्ते के लिए हां कर दी ,और मेरे पोती की शादी उस लड़के से हो गई।
पर मेरे बेटे के दोस्त ने मुझसे एक बात छुपाई थी उस लड़के की पेहेले भी शादी हो चुकी थी। और उसकी बीवी कुछ महीने पहले मर गई थी । और उस लड़के ने दूसरी शादी इसलिए की थी कि उसे बेटा हो। उस लड़के के घर का मानना था, अगर बेटा होगा तो हमारा वंश आगे बढ़ेगा।इस कारण से परेशान होकर पहले पत्नी ने आत्महत्या की थी।

जिस उम्र मेरे पोती की खेलने कूदने की पढ़ने की थी उस उम्र में मैंने उसकी शादी की थी। उसे विवाहित जीवन की कोई समझ नहीं थी,और उसका परिणाम मेरे पोती की १७ की उम्र में ही गर्भधारणा हो गई। इस का पोती के स्वास्थ्य पर गहरा परिणाम हुआ उसे कमजोरी महसूस होने लगी और वह कम उम्र में ही इस दुनिया को छोड़ कर चली गई । और वही लड़के की वह बारात थी।

यह कहानी सुनकर सखाराम की आंखों से पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उसे उस कहानी में गीता की जगह सरस्वती दिखाई दे रही थी और वह भाग के मोहन के गांव में पहुंचा।

सखाराम मोहन से कहने लगा "मेरी बेटी की अभी शादी की उम्र नहीं है । मैं उसे अच्छी शिक्षा देना चाहता हूं, मुझे माफ कीजिए यह शादी नहीं हो सकती"

सखराम ने अपने घर आकर अपने पत्नी और सरस्वती को यह फैसला बताया तो ,सरस्वती का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। और फिर सरस्वती पाठशाला जाने लगी और उसने अपने शिक्षिका बनने का सपना साकार किया।