कैलियन एमबापे ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कैलियन एमबापे

ये कैलियन एमबापे हैं..

फ्रेंच फुटबॉलर, वर्ल्ड सेंसेशन। आप दस बीस सचिन तेंदुलकर और पांच सात अमिताभ बच्चन को दो सौ गौतम गम्भीर में घोल दीजिए। तो जो बनेगा, उसकी मशहूरियत शायद एमबापे का 10% होगी।
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ग्रेट फ्रेंच फुटबॉलर जिनेदिन जिदान की लेगेसी के वाहक एमबापे, फ्रेंच नही, अल्जीरियन हैं।

अल्जीरिया कभी फ्रेंच कालोनी हुआ करती थी। अल्जिरियन्स का पेरिस आना जाना वैसा ही था, जैसे पुराने जमाने मे हमारे सब बड़े नेता और स्कॉलर इंग्लैंड जाया करते थे। बहुत से भारतीय वहीं बस गये।

अल्जीरिया को आजाद करने के सवाल पर ही फ्रेंच प्रेजिडेंट चार्ल्स डीगॉल की हत्या की कोशिशें हुई, जिस पर मशहूर नॉवेल और फिल्म " द डे ऑफ जैकाल" आधारित है।
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बहरहाल, पेरिस में आपको बड़ी मात्रा में अल्जिरियन्स मिलेंगे। जो अब फ्रेंच नागरिक ही हैं।

लेकिन धुर दक्षिणपंथी नेता, मरीन लेपेन के लिए वह फ्रेंच नही हैं।

अफ्रीका से, एशिया से, पूर्वी यूरोप से बड़ी मात्रा में इमिग्रेंट्स का आना, अब एक बड़ी समस्या है।
वे जॉब्स और दूसरी सुविधाओं में लोकल्स से कम्पीट करते है।

और इन्हें धर्म, रंग और कल्चर के आधार पर डिस्क्रिमिनेशन का सामना करना पड़ता है। और लेपेन की पार्टी, खुलकर इन डिस्क्रिमिनेशन का समर्थन करती है।

इसके अतिरिक्त देशभक्ति, गर्व, हेट स्पीच औऱ तमाम युजुअल नफरती तौर तरीके जो विभाजनकारी दक्षिणपंथ की पहचान है, लेपेन की पार्टी की भी पहचान हैं।
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दुनिया भर में पिछले दस साल में आये दक्षिणपंथी उबाल से फ्रांस भी अछूता नही रहा, और लेपेन के दल के सत्ता में आने के आसार दिख रहे थे।

पार्लियामेंट्री इलेक्शन के पहले राउंड में उन्हें अच्छी बढ़त भी मिली। मगर फिर, एमबापे बीच मे आ गए।

फ्रांस में यदि किसी सीट पर कोई भी कैंडिडेट अगर 50% से ज्यादा वोट न पाए, तो दूसरे राउंड की वोटिंग होती है।

इस राउंड में सिर्फ पहले और दूसरे नम्बर के कैंडिडेट, या जिसे 12.5% से अधिक वोट मिले, वही मुकाबले मे रहते हैं।

ऐसे में बाहर हो जाने वाले दल, दूसरे राउंड में अन्य पक्ष को समर्थन दे सकते हैं।

फ्रांस में दूसरे राउंड के पहले एमबापे ने सीधी अपील कर दी।
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वे लेपेन के नफरती एजेंडे के खिलाफ खुलकर बोले। कहा कि ऐसे लोगो को देश चलाने की इजाजत नही दी जा सकती। खासकर युवाओं को उन्होंने समझाया।

नतीजा, लेपेन के कैंडिडेट दूसरे राउंड में बुरी तरह हार गए। आज फ्रांस जश्न में डूबा हुआ है।
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सम्भव है लेपेन जीत जाती। तब एमबापे का क्या होता..??यह सोचने की बात थी। पर एमबापे ने न सोचा।

वो डरा नही। करियर के लिए, जान के लिए, पॉपुलरटी खोने के डर से चुप न रहा।

कैलियन एमबापे वह नजीर है, जो भारत की सेलेब्रिटी, खिलाड़ी, अभिनेता और सांस्कृतिक सितारे बनने में फेल रहे।

यहां हमने रीढ़हीन भांड, और नचनियों और रीलबाजो को सिर चढ़ा रखा है। उन्हें मशहूरियत और दौलत से नवाज दिया।

सिवाय गिने चुने कॉमेडियन, मुट्ठी भर पत्रकार, सोशल मीडिया पर कुछ यू ट्यूबर ही अपने सेलेब्रिटी स्टेटस के साथ जिंदा भी होने का अहसास देते है। लेकिन 140 करोड़ के देश में कोई एमबापे नही है।
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क्या यह पूरी कौम के लिए शर्म की बात नही है??