पर्दाफाश - भाग - 5 Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पर्दाफाश - भाग - 5

अगले ही दिन आहुति ने फिर एस टी डी बूथ से पार्वती को फ़ोन लगाया, “हैलो नानी”

“हैलो बेटा, क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?”

“नानी, आज मैं आपको कुछ और बताने वाली हूं।”

उसकी नानी ने घबराहट में पूछा, "क्या हुआ, आहुति?"

"नानी, मैं अब कहीं नहीं जाऊंगी, किसी हॉस्टल में भी नहीं। मैं अब हमेशा यहीं मेरी मम्मी के साथ रहूंगी, क्योंकि मुझे पता है उन्हें मेरी जरूरत है।"

“आहुति पहेलियाँ मत बुझा, बेटा बता दे क्या बात है?”

“नानी मैंने पापा को एक और महिला के साथ कई बार देखा है। उनका उसके साथ अफेयर चल रहा है। वह रोज़ उससे मिलते हैं।”

“यह क्या कह रही है तू आहुति?”

“नानी मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ। 14-15 साल की उम्र में इतना तो समझ में आ ही जाता है। नानी मेरी मम्मी को ये इंसान धोखा दे रहा है। वह कभी भी कुछ भी कर सकता है, मम्मा को छोड़ भी सकता है। अब मुझे मेरे साथ मेरी मम्मा को भी बचाना है और मैं बचा भी लूंगी। नानी बस मुझे आपका साथ चाहिए।”

आहुति की नानी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा, "मेरी आहुति एक बहुत ही बहादुर बेटी है। मैं आ रही हूँ बेटा, और अब हम दोनों मिलकर इस जंग को अवश्य जीतेंगे और उस रौनक की जलील हरकतों का पर्दाफाश भी ज़रूर करेंगे।" 

"ठीक है नानी," ऐसा कहकर आहुति ने फोन रख दिया।

नानी से बात करके घर पहुँचने में आज आहुति को कुछ ज़्यादा ही समय लग गया था। अब तक उसकी मम्मी भी घर पहुँच गई थीं। रौनक पाँच बजे से कमरे में यहाँ से वहाँ चक्कर लगाकर आहुति की रास्ता देख रहा था पर आज भी उसे निराशा ही मिली। आज उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था।

जैसे ही आहुति की मम्मी ने घर में प्रवेश किया, रौनक का गुस्सा भड़क उठा, "वंदना तुम्हें पता भी है कि तुम्हारी बेटी स्कूल से कहाँ जाती है? वह क्या करती है? उसके स्कूल की छुट्टी पाँच बजे होती है, और वह तुम्हारे आने के 5-10 मिनट बाद ही घर आती है।"

“अरे रौनक, इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो? अचानक तुम्हें क्या हुआ? आहुति मेरी बेटी है, और मुझे पता है वह कभी कुछ गलत नहीं करेगी। वह अपनी सहेलियों के साथ लाइब्रेरी में पढ़ाई करती है, इसमें बुराई क्या है, रौनक? यह तो बहुत अच्छी बात है पर हाँ तुम पिता हो तुम्हारा चिंता करना मुझे बहुत अच्छा लगा रौनक लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है।”

जैसे ही आहुति दरवाजे से घर के अंदर प्रवेश कर रही थी, उसने ये बातें सुनीं और तभी उन दोनों की नजरें भी उस पर ठहर गईं।

आहुति बोली, "पापा, मम्मी सच कह रही हैं, मैं वास्तव में लाइब्रेरी में थी और यह भी सच है कि मैं कभी कुछ गलत नहीं करूंगी।"

रौनक खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे जैसा महसूस कर रहा था। वह शांत रहा और अपने ऐनक को नाक से वापस ऊपर चढ़ाता हुआ अपने कमरे में चला गया। आज वह थोड़ा परेशान भी था। आहुति के तेवर देखकर शायद थोड़ा डर भी गया था।

आज रात जब आहुति सोने गई, तो वह सोच रही थी कि वह यह सब मम्मी को कैसे बताए? उनका दिल टूट जाएगा, वह पापा पर कितना प्यार और विश्वास करती हैं। उन्हें बताना इतना भी आसान नहीं है, यह सोचते हुए कि नानी के आते ही वह उन्हें सब बता देगी, उसकी नींद लग गई परंतु नींद में भी आहुति को चैन कहाँ था। उसे रात में डर लगता था। उसके दिमाग़ में विचारों का आवागमन लगातार चलता ही रहता था। उसे इंतज़ार था तो बस अपनी नानी के आने का। यह इंतज़ार के पल भी मुश्किल से कट रहे थे। पूरी रात आहुति पहले की तरह शांति से अब नहीं सो पाती थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः