पर्दाफाश - भाग - 3 Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

पर्दाफाश - भाग - 3

आहुति अपनी नानी को यह सब बता कर हल्का महसूस कर रही थी। उसे विश्वास था कि उसकी नानी इस विकट समस्या का कोई ना कोई हल अवश्य निकाल लेंगी।

ऐसा सोचते हुए आहुति ने जाने से पहले फिर कहा, "नानी, प्लीज आप यह बात मम्मी को बिल्कुल मत बताना। मम्मी को तो पापा बहुत प्यार करते हैं और वह उनके साथ खुश भी बहुत रहती हैं। उन्हें ऐसे खुश देखना मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैंने बचपन से उन्हें हमेशा उदास ही देखा है। मैं जानती हूँ नानी इतनी मार खाकर भी वह केवल मेरे लिए ही तो ज़िंदा रही हैं। अभी मैं छोटी हूँ ख़ुद को बचा नहीं पाऊंगी, इतनी ताकत और हिम्मत कहाँ से लाऊंगी लेकिन बड़ी होकर जब वापस लौटूंगी तब तक अपनी रक्षा करना स्वयं सीख जाऊंगी। नानी किसी भी तरह यह सब मम्मी को पता नहीं चलना चाहिए वरना वह उसे छोड़ देंगी और एक बार फिर से अकेली हो जाएंगी।"

"हाँ-हाँ आहुति मैं किसी से नहीं कहूंगी, तुम्हारी मम्मी से भी नहीं और हाँ, तुम भी किसी से मत कहना। मैं कुछ करती हूँ। सोचती हूँ तुम्हें पढ़ाई के लिए बाहर भेज दूँ वही एक मात्र रास्ता सूझ रहा है।"

वह मन में सोच रही थीं, "हे भगवान, तू यह कैसी अग्नि परीक्षा ले रहा है? बता दूं तो वह ग़लत होगा, न बताऊँ तो अंजाम और भी ज़्यादा ग़लत होगा।"

आहुति ने कहा, "नानी, आप पंचगनी के किसी हॉस्टल में मेरा दाखिला करवा दें।"

पार्वती की आंखों से आंसू बह रहे थे और उन्हें रौनक पर बहुत क्रोध आ रहा था। वह सोच रही थीं कि कितना बेकार और घृणित इंसान है रौनक। अरे आहुति तो उसकी बेटी जैसी है पर उसकी नीयत में खोट आ गई तो सब कुछ भूल कर मति भ्रष्ट हो गया है। यदि आहुति वहीं रहेगी, तो अनर्थ हो सकता है। क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है?

आहुति ने कहा, "नानी, मैं अभी रखती हूँ, बाद में फिर से फ़ोन करूंगी।" यह कहते हुए वह एस.टी.डी. बूथ से बाहर निकल रही थी कि तभी उसे अचानक रौनक दिखाई दिया।

रौनक के साथ पीछे की सीट पर, एक महिला उसके दोनों कंधों पर हाथ रखे हुए बैठी थी। उसके इतने नज़दीक चिपक कर बैठी महिला को देख कर आहुति की नज़र और पैनी हो गई। उन्हें इस तरह देखकर वह हैरान रह गई। उसे ऐसा लग रहा था मानो कोई पति पत्नी साथ में बैठकर जा रहे हों। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था परन्तु प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। वह समझ गई कि उसके पापा तो इस तरह से मम्मी को धोखा दे रहे हैं, उनके साथ विश्वास घात कर रहे हैं। इनका तो कोई भरोसा ही नहीं है। इनका प्यार तो केवल छल मात्र ही लग रहा है।

ऐसा सोचते हुए वह वहाँ से निकलकर धीरे-धीरे अपने कदमों को आगे बढ़ाने लगी। रास्ते में उसे उसकी नानी के वह शब्द याद आ रहे थे जब उसे समझाते समय उन्होंने कहा था, "बेटा आहुति बात तो बहुत गंभीर है। एक बार किसी की नीयत बिगड़ गई हो ना, तो उसे सुधारा नहीं जा सकता, बदला नहीं जा सकता। तुम्हारा उस घर में रहना खतरे से खाली नहीं है। सब कुछ ख़त्म हो जाएगा। मुझे लगता है हमें तुम्हारी मम्मी को सब कुछ सच-सच बता ही देना चाहिए।"

उस समय तो आहुति इस बात के लिए तैयार ही नहीं थी कि उसकी मम्मी को कुछ भी बताया जाए लेकिन रौनक की यह हरकत देखकर उसे लगने लगा कि यह तो उसकी मम्मी को बेवकूफ बना रहा है। उनकी आंखों में धूल झोंक रहा है, उन्हें धोखा दे रहा है और अपनी मम्मी के साथ इस तरह का छल वह नहीं होने देगी। उसे रौनक का एक और चेहरा जो उसकी मम्मी से अनदेखा छूट गया है उन्हें दिखाना ही होगा। वह समझ रही थी कि उसकी मम्मी का भविष्य भी तो खतरे में ही लग रहा है। इस इंसान का क्या भरोसा वह तो कभी भी उन्हें छोड़ सकता है।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः