जो मिले तुमसे भाग - 4 M K द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जो मिले तुमसे भाग - 4

धीरे धीरे समय बीतने लगा था , समीर तारा को छुप छुप कर देखने लगा था । तारा के सामने आते ही अपनी नजरे झुका यूं लेता था जैसे उसके आंखों में तारा के लिए जो मोहब्बत है उसे वो देख न ले ।।।


धीरे धीरे वक्त बीतने लगा था करीब 3 महीने गुजर चुके थे। क्लास में कभी कभी क्वेश्चन डिस्कस करने के दौरान थोड़ी बहुत बातें दोनों के बीच हो जाया करती थी।


वक्त के साथ दोनों की दोस्ती हो गई ।


दोनों पढ़ने में काफी तेज भी थे ......और ऐसा हम अकसर देखते हैं कि दोस्ती होने के बाद दो लोगों के बीच लगाव हो ही जाता है और वो लगाव धीरे धीरे प्यार में बदल ही जाता है ।।।


कुछ ऐसा ही समीर और तारा के बीच हुआ था ।


बिना समाज , जाति, धर्म को देखे एक दूसरे से प्यार करने लगे।


कहते हैं न अगर हम किसी से प्यार करते हैं तो ये सब देखते ही नही है ....सामने कौन है और कहां से आया है ?


उसकी उम्र क्या है और किस जाति धर्म का है ।


पर दोनों इस बात से अंजान थे कि दोनो एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं क्योंकि दोनों में से किसी ने नहीं एक दूसरे के सामने स्वीकार किया था ।


लेकिन उनकी दोस्ती के चर्चे पूरे क्लास में मशहूर थी ।


********************************


शाम का वक्त था समीर और तरुण अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद ... दोनों बाहर घूमने निकले थे ।


तभी सामने से एक लड़की जिसके खुले बाल हवाओं में झूम रहे थे वो आ रही थी.....


उसके साथ उसकी दोस्त साक्षी भी थी, दोनो एक ही साथ रहती थी ...... तारा , साक्षी की मामा की लड़की थी ।


समीर की नजर तारा पर पड़ते ही कुछ पल के लिए घबरा उठा ये अचानक सामने कहां से आ गई?


इसे तो मैने बुला ही नहीं फिर इसे कैसे पता चला ....


आज संडे था और संडे को क्लास बंद रहता था ।


तारा से अपनी नजरे हटा तरुण को घूरने लगा


" जरूर इसी का काम है वरना ये दोनों यहां नही आती ।"


मैने कहा था इससे किसी को नहीं बताना आज मेरा जन्मदिन है पर ये नही माना ।


तरुण समीर को घूरता देख ..... मुझे ऐसे मत घूर मैने कुछ नहीं बताया है , मुझे नहीं पता ये दोनो कहां से आ गई ?


तो तुम बाहर आने के लिए जिद क्यों कर रहा था ? समीर घूरते हुए तरुण से पूछा ।


मुझे तो साक्षी ने बुलाया था कही घूमने चलते हैं न..... तो मेरे मुंह से निकल गया था " नही आ पाऊंगा आज समीर का बर्थडे है कुछ स्पेशल करने की सोच रहा हूं मैं "


शायद फोन स्पीकर पर था , तारा ने सुन ली और साक्षी से फोन लेकर तुम्हे अपने साथ लाने को बोली ।


सॉरी यार ,,,, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है ..... तारा तुम्हे बिना बताए लाने को बोली थी ।


मैं क्या करता यार ??


आखिर होने वाली मेरी भाभी है ऐसे कैसे माना कर देता मजाकिया अंदाज में बोला तो....


समीर फिर से तरुण को घूरने लगा ।


ऐसा वैसा कुछ नहीं है हमारे बीच समझा .....!!!


अपनी हंसी दबाते हुए... हां, समझ गया मैं तरुण बोला ।


तरुण को अपनी हंसी दबाते देख समीर गुस्से में आकर कुछ बोलना चाहा उससे पहले तारा " केक अकेले खाने की सोच रहे थे तुम ..... हम क्या तुम्हारे दोस्त नही है ?? "


तारा की मीठी आवाज ने समीर का सारा गुस्सा गायब कर चुका था ।


नही ऐसा कोई बात नहीं .....


तुम तीनों मेरे दोस्त हो ।।


तो तुम अकेले केक तरुण को खिलाने की क्यों सोच रहे थे ? साक्षी सोचते हुए बोली ।


अगर फोन नही करती मैं तो मुझे पता भी नहीं चलता .....


तुम झूठ भी बोलते हो समीर तारा ने समीर को देखते हुए बोली.....

नही तो ! बस मुझे जन्मदिन मनाना पसंद नहीं है इसीलिए किसी को नहीं बताता मैं ।
तरुण मेरा बचपन का दोस्त हैं इसीलिए इसे पता है ।।

अब चले ! या यहां बातें और शिकायतें ही करते रहेंगे एक दूसरे से ।।

" क्यों हुआ और कैसे हुआ
कुछ मुझे समझ न आया , कुछ तुम भी अंजान रही "


Continue.......