रुबिका के दायरे - भाग 3 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रुबिका के दायरे - भाग 3

भाग -3

रुबिका को महबूबा का आवेश भरा लहजा बहुत ही नागवार गुज़रा। उसने कहा, “मैं किसी ऐरे-ग़ैरे की बात नहीं कर रही हूँ, मैं इतिहास से सबक़ लेने की बात कर रही हूँ। कितना अफ़सोसनाक है कि तुम भी मेरी तरह ही इतिहास में ही पीएच. डी. कर रही हो, लेकिन जिसके नाम से ही दुश्मनों की रूह काँप जाती थी, उस हरि सिंह नलवा और मुस्लिम मर्दों के सलवार कुर्ता पहनने के कनेक्शन को नहीं जानती। 

“क़ौम के लिए वह हालत बड़ी शर्मिंदगी वाली होती है, जब क़ौम के मर्द, कोई काम निकालने के लिए औरतों के कंधों का सहारा लेने लगते हैं। शाहीन बाग़ मामले में देश-भर में बुर्कानशीं औरतों को आगे कर दिया गया था, अब फिर से वही किया जा रहा है। 

“मुझे डर इस बात का है कि जब आगे इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें ध्वनि यही होगी कि तब क़ौम के मर्द इतने कमज़ोर और कायर थे कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी अपना कोई भी सही या ग़लत विरोध दर्ज कराने की हिम्मत नहीं रखते थे। 

“इसके लिए भी महिलाओं के पीछे खड़े होकर, उनके कन्धों पर बंदूक रखकर चलाने को छोड़ो, बंदूकें उनके हाथों में पकड़ा कर दूर बहुत दूर से खड़े होकर तमाशा देखते थे। अपनी उन्हीं महिलाओं को जिन्हें वह और दिनों में, एक कोठरी में, सात तहों में छुपा कर रखने के लिए जी-जान से जुटे रहते थे कि सूरज की रोशनी भी उन पर न पड़ने पाए लेकिन जब काम पड़ता था तो सड़कों पर खदेड़ देते थे। 

“आने वाली नस्लें ऐसे मर्दो पर हँसेगी नहीं तो क्या उनको सलाम करेंगी। आज भी इतिहास में जब पढ़ती हूँ कि सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह के महान सेनानायक हरि सिंह नलवा ने पूरा कश्मीर, पेशावर, अटक, मुल्तान, सियालकोट, क़ुसूर, जमरूद, कंधार, हेरात, कलात, बलूचिस्तान एक तरह से पूरा अफ़ग़ानिस्तान, फ़ारस तक जीत लिया था, पठान उनसे बुरी तरह हार गए, बड़ी संख्या में उन्हें हरि सिंह ने क़ैद कर लिया, इन सबके सिर क़लम किए जाने थे। 

“जान बचाने के लिए मर्दों ने कहा कि हिंदू राजा, सेना नायक, लोग महिलाओं का सदैव सम्मान करते हैं, यदि महिलाएँ हरि सिंह नलवा से अपने पतियों, बेटों, भाइयों की जान बख़्शने के लिए रहम की भीख माँगें तो हरि सिंह सबक़ी जान बख़्श देंगे। 

“औरतों की मर्ज़ी नामर्ज़ी जाने बिना मर्दों ने जब उन्हें अपना फ़रमान सुनाया, तो औरतों ने मर्दों की जान बचाने के लिए हरि सिंह से रहम की भीख माँगी, लेकिन वह किसी पर रहम करने को तैयार नहीं थे। 

“क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि यह सारे क़ैदी छूटने के बाद विद्रोह करने की तैयारी करेंगे। यह जानकर मर्द औरतें फिर गिड़गिड़ाने लगीं, तब हरि सिंह नलवा ने कहा, कि जो भी क़ैदी सलवार-कुर्ता पहन कर क़ैद से बाहर आने को तैयार होगा, उसकी ही जान बख़्शी जाएगी। 

“इसके बाद सारे के सारे पठान सलवार-कुर्ता पहनकर अपनी जान बचाकर नलवा की क़ैद से निकले। पठानों में नलवा का इतना ख़ौफ़ था कि उनका नाम सुनते ही वह भाग जाते थे या कहीं छिप जाते थे। 

“अपनी जान बचाने के लिए वह हमेशा सलवार-कुर्ता ही पहने रहते थे। यही धीरे-धीरे चलन में आ गया। उनकी परंपरा सी बन गई। 

“हरि सिंह नलवा ने अपनी तलवार के दम पर विशाल सिक्ख साम्राज्य स्थापित कर दिया था। वह इतने बहादुर थे, इतनी जंगें उन्होंने जीती थीं कि सर हेनरी ग्रिफिन जैसों ने उन्हें खालसा जी का चैंपियन की उपाधि से नवाज़ा था। 

“सभी इतिहासकार उन्हें नेपोलियन बोनापार्ट जैसा महान सेनानायक कहते हैं। उन्हें शेर-ए-पंजाब की भी उपाधि दी गई है। उनके दुश्मन, सभी पठान उनसे कितना ख़ौफ़ खाते थे उसका अंदाज़ा तुम इसी बात से लगा सकती हो कि जहांगीरिया की लड़ाई में बर्फ़ीली नदी को पार करके उन्होंने पठानों पर भयानक हमला कर दिया। 

“दस हज़ार से अधिक पठान मारे गए, बाक़ी अपनी जान बचा कर पीर सबक़ की ओर भाग गए। हरि सिंह की बहादुरी को देख कर डरे घबराए पठान चिल्लाने लगे, ‘तौबा-तौबा ख़ुदा ख़ुद खालसा शुद।’

“मतलब कि ‘ख़ुदा माफ़ करें, ख़ुदा स्वयं खालसा हो गए हैं।’ इन डरे घबराए पठान मुसलमानों का हाल देखो कि क़रीब दो सौ साल होने वाले हैं और जो इन लोगों ने सलवार पहनी तो पहनते ही चले आ रहे हैं। 

“अफ़ग़ानिस्तान में तो मर्दों की जैसे राष्ट्रीय पोशाक बन गई है। चाहे वहाँ आज के आतंकी तालिबानी शासक हों या वहाँ की जनता, सब एक ही रंग में रँगे हैं। 

“अपने भारत में ही देख लो, ज़्यादा कट्टर मुसलमान दिखने के चक्कर में बहुत से बेवुक़ूफ़ नक़ल करते हुए बड़ी शान से सलवार-कुर्ता पहन रहे हैं। 

“ये सब कभी भी यह जानने की भी कोशिश नहीं करते कि उन्हें औरतों के यह कपड़े सलवार किसने पहनाई? बस ऐसे पहनते चले आ रहे हैं, जैसे कि वह उनकी बहादुरी, शानो-शौकत की निशानी है। अजीब बात तो यह है कि सलवार टखने से बहुत ऊपर पहनेंगे और कुर्ता घुटने से बहुत नीचे। 

“अजीब जोकरों सी-स्थिति होती है। सोशल मीडिया से लेकर ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ लोग हँसते न हों। मज़ाक में कहते हैं कि छोटे भाई का पजामा, बड़े भाई का कुर्ता। सोचो जिस तरह जान बचाने के लिए बहादुर मुसलमान पठानों ने औरतों के कंधों का सहारा लिया, औरतों के कपड़े सलवार कुर्ते पहन लिए, तो वह अपमानजनक वाक़या इतिहास में दर्ज हो गया है हमेशा-हमेशा के लिए, तो क्या अब ऐसा कुछ किया जाएगा तो वह इतिहास में दर्ज नहीं होगा।”

जिस आवेश में महबूबा ने नॉन-स्टॉप अपनी बातें कही थीं, उससे कहीं ज़्यादा आवेश, गति में रूबिका ने अपनी बातें कहीं। उसकी अतिप्रतिक्रियावादी आदत से महबूबा परिचित थी इसलिए उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन वह अब भी अपनी कोशिश में पीछे नहीं हटना चाहती थी। उसने तुरंत ही कहा, “कमाल की बात करती हो, पठान तो बहादुर लोग हैं। न जाने कितनी पिक्चरों में उनकी बहादुरी के क़िस्से भरे पड़े हैं।” 

“महबूबा मुश्किल तो यही है कि एक एजेंडे के तहत पिक्चरों में उलटी तस्वीर उकेरी गई, इनको बहादुर दिखाया गया। लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ में स्थापित कर दिया गया कि पठान बहादुर होते हैं। मगर जब इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो उसमें हक़ीक़त इसके उलट नज़र आती है। वहाँ हमें पठान जान बचाने के लिए अपनी औरतों की सलवार कुर्ता पहनने वाले, दुश्मन से जान बचा कर भागते, छिपते नज़र आते हैं, बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती है।” 

इस बार महबूबा कुछ विचलित होती हुई बोली, “हिंदुस्तान पर एक नहीं कितने ही मुसलमानों ने हमले किए, यहाँ के राजाओं को हराया। मुग़लों ने सैकड़ों साल शासन किया, यह भी तो एक सच है।” 

रूबिका ने महबूबा की आँखों में देखते हुए गहरी साँस लेकर कहा, “नहीं महबूबा, यह एक सच नहीं वामपंथी, पश्चिमी, कांग्रेसी मानसिकता वाले इतिहासकारों का अधूरा या गढ़ा हुआ सच है। जैसे जोधा और अकबर का विवाह। तमाम रिसर्च के बाद अब यह सच सामने आ गया है कि जोधा बाई भारत, प्राचीन भारतीय संस्कृति से चिढ़ने, खुन्नस खाने वाले इन्हीं इतिहासकारों के दिमाग़ की उपज है। 

“मुस्लिम देशों, इन्हीं दुराग्रही इतिहासकारों, लोगों का एजेंडा चलाने वाले बॉलीवुड के लिए ही इन्हीं लोगों ने कपोल कल्पित कैरेक्टर गढ़े। एजेंडे का गोलमाल ही तो है कि हम-सब लोग, सारी दुनिया कल्पित कैरेक्टर जोधा बाई का क़िस्सा तो जानते हैं, लेकिन राजपूताने के ही महान शासक जिन्हें ‘फ़ादर ऑफ़ रावलपिंडी’, ‘काल भोज’ भी कहा जाता है, उनकी तीस से भी अधिक मुस्लिम पत्नियों के बारे में नहीं जानते। 

“अपनी जान और सत्ता बचाने के लिए इन मुस्लिम राजकुमारियों के अब्बा, भाईजान उन्हें बप्पा रावल को सौंपते जाते हैं लो, बना लो इसे अपनी बेगम, बख़्श दो मेरी जान। इसमें ग़ज़नी का मुस्लिम शासक मुख्य था जिसने अपनी बेटी का विवाह बाप्पा रावल से किया था। बप्पा रावल का बसाया शहर रावलपिंडी आज भी पाकिस्तान का प्रमुख शहर है। 

“राणा सांगा के नाम से ही दुश्मन काँपते थे, शरीर में अस्सी घावों के बावजूद वह युद्ध में सेना का संचालन करते थे। उनकी चार पत्नियाँ मुस्लिम थीं, उनमें से एक का नाम मेहरून्निसा था। 

“हल्दी-घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को इतनी बुरी तरह परास्त किया था कि वह उनसे घबराने लगा, जब राणा प्रताप के बेटे अमर सिंह गद्दी सँभालते हैं तो अकबर ने अपनी बेटी शहजादी खानम की शादी उनसे कर दी। हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी बेटी रूहानी बाई की शादी राजा छत्रसाल से कर दी। जोधपुर के राजा हनुमंत सिंह ने जुबेदा से विवाह किया। 

“इसी तरह कुँवर जगत सिंह से उड़ीसा के नवाब कुतुल खां की लड़की मरियम का, वजीर खान की बेटी का महाराणा कुंभा से, राजा मानसिंह का मुबारक से, अमरकोट के राजा वीर साल का हमीदा बानो से विवाह हुआ था। 

“सेलेक्टेड ही नहीं झूठ, छद्म मक्कारी से भरा इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों की मक्कारी झूठ का सबसे बड़ा उदाहरण है जोधा बाई कैरेक्टर। सोचो कि अकबर अपनी आत्म-कथा में सब-कुछ लिखता है, बेगमों का ज़िक्र करता है, लेकिन जोधा बाई के बारे में एक शब्द कहीं नहीं है। 

“एक बार को यह मान भी लें अकबर भूल गया होगा, लिखते समय किसी कारण से ग़ुस्सा रहा होगा, इसलिए उसने जोधा बाई का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन उसके ज़माने के बाक़ी इतिहासकारों ने भी अकबर की बेगमों के बारे में विस्तार से लिखा, उनके नाम बताए, लेकिन जोधा बाई का कहीं नामोनिशान नहीं है। यह तथ्य ही बताते हैं कि जोधा बाई मक्कारों के दिमाग़ की उपज के सिवा और कुछ नहीं है। 

“जिन जंगों की फ़तह, राज्य, शासन-व्यवस्था के आधार पर मुग़लों को महान-फहान बताया गया है, जब ईमानदारी से तथ्यों का विश्लेषण करो तो सचाई यह सामने आती है कि मुग़ल साम्राज्य हिन्दू राजाओं ख़ासतौर से राजपूतों के परस्पर झगड़ों के कारण बना। कुछ को छोड़ कर बाक़ी सारे युद्धों में मुग़लों के सेना-पति, सेना हिन्दू ही होते थे, वही लड़ते जीतते थे। सारी व्यवस्था राजा टोडरमल जैसे हिन्दू राजाओं की बनाई थी। 

“जिन कुछ युद्धों को मुग़ल सेनापति ने जीता वह भी छल छद्म से ही जीता, किसी युद्ध में गायों को आगे कर दिया कि हिन्दू सेना गायों के सामने होने पर हथियार ठीक से चला नहीं पाएगी, क्योंकि वो धार्मिक मान्यताओं के चलते किसी भी सूरत में गायों को नुक़्सान नहींपहुँचाएँगे। तो किसी में कुछ और। यदि वो इतने ही महान लड़ाके थे तो छत्रपति शिवा जी, उनके मराठा साम्राज्य को समाप्त क्यों नहीं कर पाए? आख़िर मराठा साम्राज्य ही मुग़ल साम्राज्य के नष्ट होने का कारण बना। 

“पूर्वोत्तर में आहोम साम्राज्य मुग़लों को नाकों चने चबवाता रहा, उसके सेनानायक लाचित बरफुकन ने सोलह सौ इकहत्तर में सराईघाट के युद्ध में मुग़ल सेना को रौंद कर रख दिया था। यहाँ भी मुग़ल सेना का सेनापति हिन्दू रामसिंह प्रथम थे। इस युद्ध में भी मुग़लों ने छल-छद्म किया, फ़र्ज़ी पत्र के माध्यम अफ़वाह उड़वाई कि सेनापति लाचित को मुग़लों ने युद्ध हारने के लिए एक लाख रुपये दिए हैं।