फ़ाइनल डिसीज़न - भाग 2 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फ़ाइनल डिसीज़न - भाग 2

भाग -2

गार्गी ने किचन में अपने लिए नाश्ता तैयार करते हुए माँ को फोन किया तो वह बहुत तनाव में उसी की कॉल की प्रतीक्षा करती हुई मिलीं। बात शुरू होते ही उन्होंने कहा, “गार्गी, तुम्हारी बेटी के प्रश्नों के जवाब दे पाना अब मेरे वश में नहीं रहा। अभी वह अठारह-उन्नीस की हो रही है। लेकिन मेरी हर बात को ग़लत कहना उसकी आदत बन गई है। तीस साल कॉलेज में बच्चों को पढ़ाया, लेकिन नातिन को बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। 

“मैं जब भी उससे पढ़ाई-लिखाई, टाइम से घर आने, हेल्थ का ध्यान रखने के लिए कहती हूँ, वह मुझसे ही बहस करने लगती है। शाम पाँच बजे से सो रही है। आठ बजने वाले हैं, दो बार जगाने की कोशिश की तो कहती है, ‘क्या नानी आप मुझे सोने भी नहीं देतीं।’ कह कर फिर सो गई। दस बजे उठेगी फिर रात-भर लैपटॉप, मोबाइल पर लगी रहेगी। कभी-कभी तो तीन-चार बजे सुबह जब जागने का समय होगा तब सोएगी। इसके चलते कई बार कॉलेज जाने के टाइम उठ नहीं पाती और कॉलेज छूट जाता है। 

“यह सब सुनकर तुम वहाँ परेशान होगी इसलिए तुम्हें नहीं बताती थी, लेकिन जब इसके कॅरियर, हेल्थ दोनों पर ही इफ़ेक्ट पड़ता दीखने लगा तो विवश होकर तुमसे बताना ज़रूरी समझा। क्योंकि मेरी तो कोई बात ही नहीं सुनती। इसके पीरियड्स को भी लेकर कुछ प्रॉब्लम है। पूछती हूँ तो कुछ बताती नहीं। जब भी कहती हूँ बेटा कपड़े ठीक से पहना करो, इतने छोटे, खुले कपड़े अच्छे नहीं लगते, अब तुम बड़ी हो गई हो। 

“बहुत ज़्यादा टाइट कपड़े भी नुक़्सान करेंगे तो बोलती है, ‘नानी तुम नहीं समझोगी। आख़िर फ़ैशन भी कोई चीज़ होती है, लाइफ़ में उसकी भी एक इम्पॉर्टेंस है। उसके बिना लाइफ़ एंजॉय नहीं की जा सकती। और वह लाइफ़ ही क्या जिसमें कोई एंजॉयमेंट न हो।’

“जब मन होता है स्कूटर लेकर निकल देती है, मैं पूछती ही रह जाती हूँ बेटा कहाँ जा रही हो, कितनी देर में आओगी? बाद में जब भी फोन करती हूँ तो बोलती है, ‘नानी क्यों परेशान होती हो, मैं बस थोड़ी देर में आ जाऊँगी।’ उसके थोड़ी देर का मतलब कम से कम दो से ढाई घंटा होता है। मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है क्या करूँ। उसे कैसे समझाऊँ? 

“इस तरह उसके फ़्यूचर, हेल्थ को ख़राब होते देखा नहीं जा रहा, मुझे अब चलने-फिरने में भी समस्या होती है, इसलिए और मुश्किल हो रही है। लगता है कि अब तुम्हारे आए बिना काम नहीं चल पाएगा। या तो तुम वापस आ जाओ या फिर यदि हो सके तो इसे भी अपने ही पास बुला लो, क्योंकि ऐसे तो यह अपनी हेल्थ ही नहीं अपना कॅरियर भी नष्ट कर लेगी। मुझे बहुत चिंता हो रही है, बताओ मैं क्या करूँ।”

माँ की बातों से गार्गी समझ गई कि बेटी या तो ग़लत रास्ते पर जा रही है, या फिर जेनरेशन गैप की प्रॉब्लम है। नानी नातिन को नहीं समझ पा रही है और नातिन नानी को भी कुछ समझाना है, यह नहीं समझ पा रही है। विदुषी से भी बात करूँ तभी एक्चुअल प्रॉब्लम क्या है, मालूम होगी। उसकी पीरियड प्रॉब्लम भी समझनी होगी। बेवुक़ूफ़ लड़की ने मुझसे कभी कुछ नहीं बताया। 

उसने माँ से कहा, “अम्मा आप परेशान नहीं हों। जब विदुषी उठे तो उससे कहना मुझसे बात करे। मैं उसे समझाऊँगी कि अपनी हेल्थ, कॅरियर का ही नहीं बल्कि तुम्हारा भी ध्यान रखे। बेवजह बाहर ज़्यादा समय नहीं बिताए। उसकी पीरियड की प्रॉब्लम क्या है, वह भी पूछूँगी।”

“वह तो ठीक है गार्गी, लेकिन मैं सोच रही हूँ कि अब विदुषी को पेरेंट्स के साथ की ज़्यादा ज़रूरत है। इसीलिए कह रही हूँ या तो तुम भारत वापस आ जाओ या फिर उसे अपने पास ही रखो। उसके अच्छे फ़्यूचर के लिए यह बहुत ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। देखो तुम मेरी बातों का यह मतलब बिल्कुल नहीं निकालना कि मैं उसे रखना नहीं चाहती, परेशान हो गई हूँ, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। 

“वह साथ है तो लगता है जैसे जीवन का कोई उद्देश्य है। जीवन जीने का कोई कारण भी है। लेकिन मैं अपने लिए अपनी नातिन के भविष्य की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ सकती। बेटा अब तुम तीनों के सिवा मेरे जीवन में है ही कौन। तुम सब जैसे भी हो ख़ुश रहो, मेरे लिए इससे बढ़कर और कुछ नहीं है।”

यह कहते-कहते वह बहुत भावुक हो गईं तो गार्गी ने उन्हें समझाते हुए कहा, “अम्मा तुम परेशान नहीं हो, बस दो साल की बात और है। फिर हम वापस आ जाएँगे। सभी साथ ही रहेंगे। मैं विदुषी को समझाऊँगी कि वह हर बात का ध्यान रखे, अब बड़ी हो गई है। मुझे उस पर विश्वास है, वह मान जाएगी।”

गार्गी ने सोचा माँ को बताए कि दुनिया को मानवाधिकार, नस्लवाद, रंग-भेद के विरुद्ध ज्ञान देने वाले दरोगा के ख़ुद अपने देश ब्रिटेन में स्थितियाँ कितनी बुरी और शर्मनाक हैं। यहाँ हिंदू ही नहीं सिक्ख, ईसाई, यहूदी लड़कियाँ महिलाएँ भी सुरक्षित नहीं हैं। हिंदू लड़कियाँ तो सबसे ज़्यादा जिहादियों के टारगेट पर रहती हैं। यहाँ ज़्यादातर पेरेंट्स नौकरी, अपने काम-धाम में व्यस्त रहते हैं, जिससे बच्चे-बच्चियाँ काफ़ी समय अकेले ही रहते हैं। और यह जिहादी इसी स्थिति का फ़ायदा उठाकर लड़कियों को धोखे से अपने जाल में फँसा कर उनका शारीरिक शोषण करते हैं। 

उनका ब्रेन वाश कर उन्हें कन्वर्ट करते हैं, अपने देश की तरह यहाँ भी लव-जिहाद पूरे ज़ोर-शोर से चल रहा है। रंग, नस्ल, धार्मिक भेदभाव से वृद्धाश्रम तक अछूते नहीं हैं, शिकायत करने वाले वृद्ध को आश्रम से बाहर कर दिया जाता है। ऐसे दुर्भाग्यशाली वृद्ध हर तरफ़ से बेसहारा हो जीवन से मुक्त हो जाते हैं। 

बारह-बारह, चौदह-चौदह साल की लड़कियाँ प्रेगनेंसी, एबाॅर्शन, इल्लीगल चाइल्ड की प्रॉब्लम फ़ेस कर रही हैं। इनका फ़्यूचर, कॅरियर, हेल्थ, परिवार का सम्मान सब नष्ट हो रहा है। मैं यहाँ बारह-चौदह घंटे घर से बाहर हॉस्पिटल में रहती हूँ। इतने लम्बे समय तक विदुषी अकेली रहेगी। यहाँ उसके लिए ख़तरा बहुत ज़्यादा है। यह समस्या इतनी ज़्यादा बढ़ चुकी है कि अब गवर्नमेंट कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है। यह कोशिश भी तब शुरू हुई जब बड़ी संख्या में ईसाई लड़कियाँ, औरतें भी शिकार बनने लगी हैं। 

लेकिन इन कोशिशों का कोई ख़ास रिज़ल्ट निकलता मुझे नहीं दिखता क्योंकि अपने भारत देश की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण का रोग यहाँ की राजनीति को भी गहरे लग गया है। जो इस देश, देशवासियों को उसी तरह खोखला करता जा रहा है, जैसे अपने देश को कर रहा है। यहाँ की भी राजनीतिक पार्टियाँ कुछ भी करने से पहले मुस्लिम वोट बैंक की तरफ़ देखती हैं कि वो नाराज़ हो कर दूसरी तरफ़ तो वोट नहीं कर देंगे। 

ऐसा इसलिए होने लगा क्योंकि जेहादियों ने यहाँ भी अपनी पॉपुलेशन ख़ूब बढ़ा ली है। अपनी लीगल-इल्लीगल हर डिमांड पूरी कराने के लिए ये बहुत ही रणनीतिक ढंग से जिधर जाने से इन्हें अपनी डिमांड पूरी होती दिखती है, उधर ही पूरा झुण्ड मूव कर जाता है। 

लेकिन फिर गार्गी यह सोच कर चुप रही कि इससे माँ की टेंशन दुगनी हो जाएगी। विदुषी के साथ-साथ वह उसकी चिंता में भी परेशान होने लगेंगी। माँ से बात करने के बाद उसने थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद किचन में खाना बनाने लगी। बाहर की कोई भी चीज़ उसे पसंद नहीं आती। ब्रिटेन में भी वह शुद्ध शाकाहारी बनी हुई है। रात के खाने में वह बहुत सादी सी कम से कम दो हरी सब्ज़ियाँ और एक या दो रोटी ही खाती है। 

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काम करते हुए भी उसका पढ़ना-लिखना चलता रहता है। लेकिन इस समय वह पति और बेटी दोनों के कारण पढ़ाई में अपना ध्यान ठीक से लगा नहीं पा रही थी। ध्यान बेटी की आने वाली कॉल पर लगा हुआ था। जब दो घंटे से भी ज़्यादा समय बीत गया, उसने अपना डिनर भी ख़त्म कर लिया, बेटी की कॉल नहीं आयी तो उसने उसके ही नंबर पर कॉल किया। दूसरी बार कॉल करने पर उसने रिसीव किया। 

गार्गी ने पूछा, “बेटा कैसी हो?” 

वह अलसाई हुई बोली, “मम्मी मैं ठीक हूँ, आप कैसी हैं।”

“मैं भी ठीक हूँ बेटा, क्या कर रही थी?”

“सो रही थी, आपकी कॉल आई तो उठी हूँ।”

“लेकिन बेटा शाम को क्यों सोती हो? यह कोई सोने का टाइम नहीं है।”

“मम्मी जब नींद आएगी, तभी तो सोऊँगी न।”

“लेकिन बेटा रात-भर जागना, दिन भर सोना यह तुम्हारी हेल्थ, स्टडी, और कॅरियर सभी के लिए ही बहुत ख़राब है।”

“मम्मी, लगता है नानी से आपकी लम्बी बात-चीत हो गई है।”

“ऐसा नहीं बोलते बेटा, वह तुम्हारे अच्छे के लिए ही तो बोलती हैं। अच्छा बताओ तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?” 

“जी ठीक चल रही है।”

“और तुम्हारी हेल्थ? मुझे ठीक नहीं लग रही है। पीरियड को लेकर क्या प्रॉब्लम है?” 

बेटी ने बताने में आनाकानी की तो गार्गी ने कहा, “बेटा प्रॉब्लम को छुपाने, टाइम से ट्रीटमेंट नहीं लेने से प्रॉब्लम बहुत बढ़ जाती है। इसलिए किसी भी बीमारी को इग्नोर नहीं करना चाहिए। बताने में कोई संकोच भी नहीं करना चाहिए।”

गार्गी के ज़्यादा ज़ोर देने पर विदुषी बोली, “मम्मी पीरियड तो हर दो तीन महीने बाद कम से कम एक हफ़्ते लेट हो जाता है। दो तीन दिन काफ़ी पेन होता है। बाक़ी ठीक है। ज़्यादा प्रॉब्लम ब्रेस्ट में है। अक़्सर पेन होता रहता है। इस समय भी हल्का-हल्का हो रहा है।”