फ़ाइनल डिसीज़न - भाग 1 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फ़ाइनल डिसीज़न - भाग 1

भाग -1

प्रदीप श्रीवास्तव

आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छियों से घायल होकर घर लौटी है। वह रास्ते भर कार ड्राइव करती हुई सोचती रही कि आख़िर ऐसे कॅरियर पैसे का क्या फ़ायदा जो सम्मान सुख-चैन छीन ले। क्या मैं गायनेकोलॉजिस्ट इसीलिए बनी, इसीलिए अपना देश भारत छोड़कर यहाँ ब्रिटेन आयी कि यहाँ नस्लवादियों, जेहादियों की नस्ली भेद-भाव पूर्ण अपमानजनक बातें, व्यवहार सुनूँ, बर्दाश्त करूँ, इनके हमलों का शिकार बनूँ। 

देश में सुनती थी यह बातें तो विश्वास नहीं कर पाती थी। सोमेश्वर भी कहते थे, ‘छोटी-मोटी घटनाएँ हो जाती होंगीं, वह एक डेवलेप्ड कंट्री है, वेलकल्चर्ड लोग हैं। यह एक प्रोपेगंडा के सिवा और कुछ नहीं है।’ सचाई मालूम होती कि यहाँ वास्तविक स्थिति यह है तो अपना देश भारत, ससुराल, बेटी और माँ को छोड़कर कभी भी नहीं आती। सपने में भी नहीं सोचा था कि यहाँ आकर हस्बेंड से भी . . .। हस्बैंड का ध्यान आते ही उसके हृदय में एक सूई सी चुभ गई। 

उसने रास्ते में किचन का कुछ सामान ख़रीदा। डिपार्टमेंटल स्टोर में हस्बेंड, बाक़ी बातें नेपथ्य में चली गईं। वह सामान लेती हुई सोचने लगी कि ‘यह रिकॉर्डतोड़ महँगाई सारी इनकम खींच ले रही है, मार्किट से सामान अलग ग़ायब हैं। ये गवर्नमेंट पता नहीं कब-तक यूक्रेन युद्ध की आड़ में अपना फैल्योर छिपाती रहेगी।’ उसकी ख़रीदारी पूरी भी नहीं हो पायी थी कि डॉक्टर मेघना शाह का फोन आ गया। 

कुछ देर बात करने के बाद उसने कहा, “यह प्रॉब्लम तुम्हारे साथ ही नहीं, मेरे साथ भी है। बल्कि मुझे तो अब पूरा विश्वास हो गया है कि यह प्रॉब्लम यहाँ रह रहे सभी हिन्दुओं के साथ है। आज भी लंच हॉवर में मेरे साथ फिर ऐसा ही हुआ है। एनीवे मैं घर पहुँच कर बात करती हूँ।”

घर पहुँच कर उसने कॉफ़ी बनाई, कुछ भुने हुए काजू लिए और ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठ कर पीने लगी। उसने ग्लव्स उतार दिए थे। कॉफ़ी के मग को दोनों हाथों के बीच पकड़ा हुआ था, जिससे उन्हें कुछ गर्मी मिल सके। जनवरी महीने का दूसरा सप्ताह चल रहा था, लंदनवासी कड़ाके की ठंड झेल रहे थे। टेंपरेचर दो-तीन डिग्री हो रहा था। लेकिन उसे कड़ाके की ठंड से नहीं नस्लवादियों, जिहादियों की बातों, व्यवहार से तकलीफ़ हो रही थी। उसके दिमाग़ को अब भी डॉक्टर लिज़, डॉक्टर स्मिथ की उसके स्किन कलर, फ़िगर को लेकर किए गए अपमानजनक कॉमेंट पिघले शीशे की तरह झुलसा रहे थे। 

वह सोच रही थी कि ‘क्या मैं इतनी गंदी भद्दी और बेडौल हूँ कि गोरी चमड़ी वाले या कोई भी मुझसे घृणा करे, अपमानजनक कॉमेंट करे। हमारे धर्म-संस्कृति की खिल्ली उड़ाए।’ कपड़े चेंज करते समय शीशे में उसने अपने पूरे बदन पर कई-कई बार दृष्टि डाली, दाएँ-बाएँ घूम-घूम कर हर एंगिल से जितना देख सकती थी, उसे ध्यान से देखा और मन ही मन कहा, ‘लिज़ ईर्ष्या के चलते तुम कितना भी झूठ बोलो, लेकिन यह मिरर मुझे हर बार सच दिखाता और बताता है। कहता है कि जो बातें तुम मुझे कहती हो एक्चुअली कम्प्लीटली तुम पर फ़िट होती हैं। 

‘बेडौल थुलथुल फ़िगर तो तुम्हारा है। मैं न तो बेडौल हूँ, न ही थुलथुल। मेरे देश में मेरे जैसे रंग को दूधिया गोरापन कहते हैं। सुपर व्हाइट पेंट जैसा तुम्हारा गोरापन लोगों की आँखों में चुभता है। मेरी ननद मुझे आज भी पूर्व फ़िल्म एक्ट्रेस स्मिता पाटिल जैसी बताती है। और डॉक्टर स्मिथ तुम्हें क्या कहूँ, तुम तो लिज़ से भी ज़्यादा ओवरवेट, थुलथुल हो। 

‘हैम बर्गर की तरह फूले हुए हो। तुम्हारा पेट लिज़ से भी इतना ज़्यादा बाहर निकला हुआ है कि चलते हो तो लगता है जैसे कि वह तुमसे पहले ही बहुत आगे निकल जाने के लिए फुदक रहा है।’ कपड़े पहन कर उसने डॉक्टर मेघना को फोन किया। वह उसकी ही कॉल का वेट कर रही थीं। उसने मेघना से कहा, “सॉरी उस समय तुमसे पूरी बात नहीं कर सकी, अब कहो तुम्हारे साथ क्या हुआ?” 

मेघना ने क्रोधित स्वर में कहा, “मेरे साथ वही हुआ जो डेली होता है, जिसे डेली तुम भी फ़ेस कर रही हो। लेकिन आज मेरे दोनों ही बच्चों के साथ तो बदतमीज़ी गंदे व्यवहार की हद हो गई। बेटी प्रियांशी के साथ उसकी ही क्लॉस के जैद और नेल्सन ने बहुत बदतमीज़ी की। दोनों ने पहले की ही तरह उससे कहा, ‘तुम्हारे इतने ढेर सारे गॉड हैं, सब फ़ेक हैं। तुम लोग बेवुक़ूफ़ गँवार हो, गॉड तो एक ही होता है, और वह अल्लाह है’।

“प्रियांशी भी चुप नहीं रही, उसने भी कह दिया, ‘मेरे बहुत से नहीं एक ही गॉड है। पेरेंट्स ने हमें बताया है कि उन्हें जो जिस रूप में देखना चाहे वो उस रूप में देखे। हमारे यहाँ सभी को अपने हिसाब से पूजा-पाठ करने की पूरी छूट है। हम लोग अंध कट्टरता में विश्वास नहीं करते। और हमारा सनातन धर्म बीसों हज़ार साल पहले तब से है जब दुनिया के बाक़ी लोग सिविलाइज़्ड भी नहीं हुए थे।’ उसने वही बातें बोल दीं जो हम बच्चों को बताते रहते हैं। उसकी बात पर वह दोनों उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। 

“हमारे देवी-देवताओं पर भद्दे-भद्दे कॉमेंट करने लगे, शिवलिंग, देवी काली माता के बारे में बड़ी वल्गर बातें कहने लगे। प्रियांशी ग़ुस्सा हुई तो वह दोनों मार-पीट पर उतारू हो गए। तभी टीचर ज़ेनिफ़र आ गईं, प्रियांशी ने उनसे शिकायत की तो उन्होंने उन दोनों को मना करने की बजाय प्रियांशी को ही डाँट कर बैठा दिया। उसे ही झगड़ालू लड़की कहकर अपमानित किया। 

“इससे उन दोनों लड़कों की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि क्लॉस ख़त्म होने के बाद लंच टाइम में प्रियांशी के साथ मार-पीट की। उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालने, ज़बरदस्ती किस करने की कोशिश की। जैद ने बीफ़ से बने अपने लंच का एक टुकड़ा प्रियांशी के मुँह में ज़बरदस्ती डालने की भी कोशिश की। प्रियांशी उनसे बचकर अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ, बीफ़ का टुकड़ा लेकर भागी हुई प्रिंसिपल के पास गई। 

“लेकिन प्रिंसिपल डायना ने भी उसे चुप रहने, झगड़ा नहीं करने की बात कह कर वापस भेज दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ? अब यह रोज़ की बात हो गई है। पहले भी मैं दो बार प्रिंसिपल से मिल चुकी हूँ लेकिन वो हर बार सफ़ेद झूठ बोलती हैं कि ‘नहीं, यहाँ ऐसी कोई बात नहीं होती।’ कुछ ज़्यादा बोलो तो उल्टा प्रियांशी को ही झगड़ालू लड़की कह कर मुझे चुप कराने की कोशिश करती हैं। 

“नेल्सन और जैद जैसे स्टुडेंट्स ने पूरे क्लॉस क्या पूरे स्कूल में अपने ग्रुप्स बना लिए हैं। सभी ने सनातनी हिंदू स्टुडेंट्स को अलग-थलग किया हुआ है। सब मिलकर समय-समय पर उन्हें अपमानित करते हैं। पहले की तरह ही जैद ने आज फिर कहा, ‘तुम लोग बंदरों, पेड़ों, पत्थरों की पूजा करते हो, तुम लोग नर्क में जाओगे नर्क में। नर्क में जाने से बचना चाहती हो तो इस्लाम क़ुबूल कर लो, अल्लाह सारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा।’

“वह बार-बार भारत से भागे एक भगोड़े जिहादी का वीडियो देखने के लिए कहता है। मना करने पर भी उसके व्हाट्सएप पर भेज देता था। उसका नंबर ब्लॉक कर दिया तो उसके लिए भी झगड़ा किया। वह उसी भगोड़े के वीडियो को ख़ूब देखता है, उसी की सारी बातें याद कर ली हैं। वही सब सारे हिंदुओं से भी कहता है। वह स्टुडेंट कम एक कट्टर जिहादी बन गया है। क्लास में उसकी एक बहन ज़िया भी है, वह भी बिलकुल उसी के जैसी है। 

“वह हिंदू, सिक्ख और ईसाई लड़कियों के सेक्सुअल हैरेसमेंट की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ता। प्रियांशी पर भी कई अटैम्प्ट किए हैं। वह तो मैंने ऐसे संस्कार दिए हैं कि ऐसे जिहादियों, मिशनरीज बॉयज़ की छल-कपट भरी बातों को तुरंत समझ लेती है, अपने को बचाए रहती है। लेकिन अब वह सब लिमिट से भी आगे निकल गए हैं, इसलिए हमें भी इनको जवाब देना ही चाहिए। यह बेहद ज़रूरी हो गया है।”

“लेकिन कैसे? किस तरह उन्हें जवाब दिया जा सकता है।” 

“जैसे यह सभी बात बिना बात इकट्ठा होकर चाहे स्कूल हो या फिर कंट्री की एंबेसी या कोई भी जगह वहाँ इकट्ठा होकर प्रोटेस्ट के नाम पर बवाल करते हैं, लोगों में डर पैदा करते हैं। हम लोगों को भी अब प्रोटेस्ट करना चाहिए। उन लोगों की तरह किसी कांस्पीरेसी के तहत नहीं बल्कि स्वयं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध। हम उनकी तरह तोड़-फोड़, आगजनी, हिंसा नहीं करेंगे। 

“जिस देश में रहते हैं वह हमारा भी है, इसलिए उस देश को नुक़्सान नहीं पहुँचाएँगे, लेकिन हमारा भी मान-सम्मान, धर्म-संस्कृति, अधिकार, जीवन सुरक्षित रहे, इसके लिए आवाज़ तो अब उठानी ही पड़ेगी। हम लोगों को इस संडे को इकट्ठा होकर किसी एक प्लान को फ़ाइनल करना चाहिए। बोलो तुम क्या कहती हो, क्या मेरी बात से एग्री करती हो।”

इन समस्याओं से ख़ुद भी जूझ रही डॉक्टर गार्गी ने तुरंत हाँ कर दी। इसके बाद भी मेघना उससे काफ़ी देर तक बातें करती रही, आवेश में आकर उसने यह भी कहा कि “गार्गी सोचो कितनी ग़लत बात है कि पूरे ब्रिटेन की मेडिकल सर्विस हम भारतीय डॉक्टर्स पर डिपेंड करती है, और हम पर ही चहुंतरफ़ा हमले हो रहे हैं।” 

उसके हस्बेंड, कुछ अन्य फ़्रेंड कैसे ऐसे हमलों के शिकार होते आ रहे हैं, बताती रही, मगर गार्गी का मन भारत में अपनी माँ और बेटी से जुड़ चुका था। वह बातों का सिलसिला जल्दी ख़त्म करना चाहती थी लेकिन मेघना ने आधे घंटे बात की।