देवाधिदेव ABHAY SINGH द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देवाधिदेव

शिव देवाधिदेव हैं..

वे देवो के देवता है। मनुष्यों के देव हैं, महादेव हैं।
लेकिन वे दैत्यों के भी देवता हैं।

हर असुर ने उनका पूजन किया, वरदान पाए। शिव ने भक्त भक्त में भेद नही किया। उसकी जाति नही देखी, रंग और पूजन पद्धति का भेद नही देखा।

वे तो मानव और पशु का भी भेद नही देखते। तो पशुओं के भी देवता वही है, पशुपति हैं।
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शिव चतुर और कुटिल चाणक्य नही हैं, वे तो भोलेनाथ हैं, औघड़ दानी है।

शिव की महानता उनकी इसी साधारणता में है।
हीरे- मोती- सिक्के और नोट नही जनाब, वे बेल के पत्तो में खुश है।

कतरा भर भांग की बूटी में खुश हैं, धतूरे के एक फूल, बेल के तीन पत्तो से खुश हैं। श्मशान की राख से खुश हैं।

क्या कीर्तन, भजन, संगीतय आराधना- शिव तो अनगढ़ डमरू की आवाज में खुश हैं।
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कोई विधि नही, नियम नही, शिव की आराधना कीजिए, तो बस, उनका नाम लीजिए।

या न भी लीजिए।

क्योकि शिव ही सत्य हैं, सुंदर हैं। तो जिसमे सत्य है, सुंदरता है, वह शिव ही है। लेकिन यहां तो सुंदरता भी बाधा नही। उनके गण, उनके भक्त, असुंदर भी है..

चलेगा।
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गंजेड़ी, भंगेड़ी, शराबी भी बिना अपराध बोध के, भरपूर नशे में प्रभु को याद करता है, तो जै भोलेनाथ ही कहता है।

तो क्या आश्चर्य की शिव सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देव हैं। विश्वास नही??? तो जरा आंख बंद कीजिए, अपने घर से पांच किलोमीटर के दायरे में सारे छोटे देवस्थलों को याद कीजिए।

मेरा दावा है आपको, सत्तर प्रतिशत सिर्फ शिव के स्थान मिलेंगे। 20 प्रतिशत हनुमान हैं, और बाकी तमाम देवता मिलकर शायद 10% भी आराध्य नहीं।
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कारण उनकी सरलता है। शिव को मंदिर नही चाहिए। तालाब के किनारे, वृक्ष के नीचे, घने वन में, सड़क के किनारे, खुले में शिव बैठे हैं, और मस्त हैं।

उसी लोटे से तालाब में खुद नहाइये, और फिर उसी तालाब का पानी, उसी लोटे में भरकर, तालाब के किनारे शिवलिंग पर चढ़ा आइये।

शिवा इज मोर देन हैप्पी!!!
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तो ईश्वर अगर सर्वव्यापी है, तो शिव को इस कसौटी में 100 में से 100 नम्बर हैं।

वे कण कण में हैं, गण गण में, घट घट में हैं। स्फटिक नही, सोना नही, हीरा नही, संगमरमर नही,। हर मामूली पत्थर, बर्फ का टुकड़ा, मिट्टी की लोई, शिव बन सकती है,

महादेव हो सकती है।

मगर जब भाजपा जब शिव को खोजती है, राम को खोजती है- तो जाने क्यूँ, मस्जिदों में, फवारो ही खोजती है।

पुलिस और न्यायालय से सर्वे करवाती है।
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शिव बेशक उस फवारे में भी है। वे किसी मस्जिद में भी धूनी रमाये हुए हैं। यह मानने के लिए कोर्ट से सर्वे करवाने की जरूरत सिर्फ उन्हें है, जिन्होंने शिव को लिंग में, शिवालयों में, महालयों में कैद करने का षड्यंत्र किया है।

वही लोग,जिन्होंने हर-हर और घर-घर के नारे से महादेव को हटाकर, किसी मलिन को स्थापित कर दिया है।
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आज शिव संसद में दिखे। उनकी निडरता, उनकी सरलता, उनकी अभय मुद्रा पर बात हुई, तो सबने देखा, सत्ता पक्ष कैसा भयभीत हो गया..

राम के नाम पर राजनीति करने वालो को, सदन में शिव की तस्वीर असंसदीय लगी।

वे जानते हैं, कि शिव तो सत्ता नही देखते, पक्ष और विपक्ष नही देखते। उन्हें अपने गण प्रिय है। अपने जन प्रिय है।

जन गण मन की वे जाति नही देखते, धर्म नही देखते। बस पीड़ा देखते हैं। और उनकी आर्तनाद पर त्रिशूल उठाये दौड़े चले आते है।
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और जिस सदन की दरो दीवार पर जन गण मन पर अत्याचार के जोशीले नारे गूंज चुके हैं, वहां शिव के पदार्पण से मैं भी डरता हूँ।

जाने किसकी अनकही आर्तनाद शिव सुन लें।
दौड़े आयें।

त्रिशूल से वज्रपात हो, मृत्यु का तांडव हो, और तीसरा नेत्र, तिनकों से बने साम्राज्य को भस्म कर दे।
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डरता हूँ मैं..
तुम भी डरो।

हम सब डरें। क्योकि तिनकों से बने अत्याचार के साम्राज्य के बीच ही कहीं तुम्हारा और मेरा घरौंदा भी है।

और शिव का ज्वाल रोकना कठिन है। शिव का क्रोध असीमित है। शिव से बड़ा काल अभी तक कल्पित नही हुआ।
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दौर पलट रहा है। शिव करीब हैं।
तो अपने कर्म से डरो, उसके फल से डरो।

काल के क्रम से डरो।
महाकाल के न्याय से डरो।