कलयुग का उत्कर्ष नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कलयुग का उत्कर्ष



समय के साथ समाज मे घटित कुछ घटनाएं समाज पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ जाती है जिसके परिणाम स्वरूप समाज त्वरित प्रतिक्रिया देता सकारात्मकता एव नकारात्मकता का विश्लेषण कर अपने आचरण में ही प्रस्तुत कर देता है जो युग काल समय कि संस्कृति सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता भविष्य को सचेत एव जागरूक करता है ।

पुराणों के अनुसार, सतयुग सत्य का युग है जिसमे चारो चरण में धर्म ही धर्म रहता है, त्रेता तीन चरण धर्म एक चरण अधर्म ,द्वापर दो चरण अधर्म दो चरण धर्म। धर्म शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार कलयुग में सर्वत्र अधर्म अनैतिकता का ही बोल बाला होगा। जबकि यह भी सत्य है कि सतयुग में भी हिरण्यकश्यप हिरण्याक्ष थे त्रेता में नाकारात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व रावण परिलक्षित करता था तो द्वापर में पूर्ण ब्रह्म अवतार भगवान श्री कृष्ण के परिवारजन जैसे मामा कंस भाई शिशुपाल नकारात्मकता का प्रतिनिधित्व करते थे ।

सतयुग त्रेता द्वापर में नकारात्मक शक्तियां परिवर्तन का कारक कारण बनती प्रतीत होती है तो कलयुग में सामाजिक समरसता ,रिश्तों कि मर्यादा में इतनी गिरावट हो चुकी है कि सामाजिक संस्कृति संस्कार आचरण असहिष्णुता हठधर्मिता अहंकार द्वेष घृणा दम्भ लालच के वशीभूत पल प्रति पल नए काल कलंक कि पृष्ठभूमि तैयार करते है, जो पाप पुण्य धर्म अधर्म को नए सांचे में ढाल कर आधुनिक समाज का मार्गदर्शन करता है।

मैं जिस घटना विशेष को प्रस्तुत कर रहा हूं वह वास्तव में हृदय विदारक , सामाजिक रिश्तों को शर्मसार करती ,लोभ नियत के नए सामाजिक संस्कृति का ही आवाहन करती, पतोन्मुख समाज के मार्ग को और अंधकारमय बनाती ,दलदल कि ओर ले जाती है।


रितेश सिंह पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जनपद के ग्रामीण अंचल के साधारण से परिवार के प्रगतिशील नौजवान थे l माता पिता कि आकांक्षाओं के आज्ञाकारी पुत्र ,मेहनत निष्ठा लगन ही जिसकी पूंजी और परिवार पुरखो द्वारा स्थापित मर्यादाओं का निर्वहन करते हुए नए उच्च मर्यादित आयाम तक पहचाना मात्र ही उनके जीवन का मात्रा उद्देश्य प्रतीत होता था।

सन् 1948 में जन्मे रितेश सिंह बचपन से ही बहुत कुशाग्र परिश्रमी एवं उद्देश्य के प्रति दृढ़ समर्पित थे l प्राइमरी ,मिडिल फिर हाई स्कूल इंटरमीडिएट गांव एवं आस पास के शैक्षिक संस्थानों से करते हुए ,उच्च शिक्षा कृषि से स्नातकोत्तर कि उपाधि हासिल करने के उपरांत, रोजगार कि तलाश बहुत से प्रतियोगी परीक्षाओं, साक्षात्कार कि असफलता के बाद,1976 में भारत के सिक्किम राज्य में कृषि के प्रसार विभाग में नौकरी मिली ।

घर से दूर सुदूर पूर्वोत्तर के रहन सहन ,खान पान, सामाजिक परिवेश ,मूल संस्कृति से भिन्न लेकिन भारतीयता से ओत प्रोत रितेश सिंह ने अपनी सौम्य व्यवहार ,मिलनसार स्वभाव एवं सबके सुख दुख में निस्वार्थ भाव से खड़े रहने की आदत ने रितेश सिंह को सिक्किम जैसे छोटे राज्य में बहुत लोकप्रिय अधिकारी के रूप में विभाग एवं जनसमुदाय कि स्वीकृति और प्रसिद्धि मिली ।

विभाग के अतिरिक्त सिक्किम के प्रशासनिक कार्यों में भी रितेश सिंह को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। रितेश सिंह ने अपनी सूझ बूझ ,धैर्य दृढ़ता से सिक्किम कि बहुत सी जटिल समस्याओं का समाधान तो दिया ही साथ ही साथ सिक्किम में किसानों एवं कृषि विकास में अति विशिष्ट और अविस्मरणीय योगदान दिया जिसके आश्चर्यजनक परिणाम सिक्किम के विकास में अपनी भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे है।

रितेश सिंह का विवाह गोरखपुर में ही वैदिक सिंह की पुत्री आशा सिंह से हुई l आशा सिंह पढ़ी लिखी, धर्म भीरु,बेहद कुशल गृहणी एवं बहुत से गुणों कि ज्ञाता थी जैसे संगीत सिलाई कढ़ाई पेंटिंग आदि l कुल मिलाकर आशा सिंह अपने समय में उच्च शिक्षित एवं प्रतिभा सम्पन्न लड़की थी l रितेश सिंह से विवाहपरांत आशा सिंह बेहद खुश थी l रितेश सिंह को तो जीवन मे आशा के रूप में जैसे वरदान ही मिल गया हो।

रितेश सिंह और आशा कि आदर्श जोड़ी को देखकर कितनो को रस्क होता था। विवाह के बाद आशा सिंह कुछ दिन गांव रही फिर रितेश सिंह के साथ सिक्किम चली गई । घर की खेती बारी रितेश के पिता रामबुझ सिंह ही देखते अधिया बटाई कराते ।

आशा सिंह जैसा अपने मां बाप कि लाडली थी वैसे सास रामदुलारी एवं श्वसुर रामबुझ कि भी दुलारी बेटी बहु थी l
कुल मिलाकर खुशहाल परिवार जो समाज के लिए आदर्श एवं मार्गदर्शक था ।

समय अपनी गति से बीतता गया l आशा सिंह ने दो पुत्र रत्नों को जन्म दिया l दोनों बेटे कि प्रारम्भिक शिक्षा सिक्किम शुरू हुई l दोनों बेटे परिवार कि परम्परानुसार होनहार थे l रितेश सिंह ने पत्नी आशा की देख रेख में बच्चों कि उच्च शिक्षा हेतु पत्नी बच्चों को अपने गृह जनपद में गोरखपुर शिफ्ट कर दिया और स्वयं अकेले ही सिक्किम में अपनी सेवा कि जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे ।

दोनों बेटे विनय सिंह एवं रणविजय सिंह ने उच्च शिक्षा ग्रहण किया l रणविजय सिंह इंडियन ऑयल के विदेश सेवा में कार्यरत हुए एवं विनय सिंह गोरखपुर में ही अपना व्यवसाय देखने लागे l कुल मिला जुलाकर रितेश सिंह सफल पुत्र पिता पति एवं अधिकारी के रूप में समाज मे मर्यादित एवं प्रतिष्ठित थे l हर व्यक्ति अपने परिवार को रितेश सिंह कि तरह बनाने की लालसा रखता l जीवन कि शानदार सफलता एवं सेवा के बाद रितेश सिंह सन् 2005 में सिक्किम से सेवा निवृत होकर अपने गांव गृहजनपद गोरखपुर आये ।

सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने गोरखपुर शहर में मकान बनवाया और अपनी पत्नी के नाम से आशा कॉम्प्लेक्स का निर्माण कराया l मकान एवं आशा कॉम्प्लेक्स के निर्माण के साथ ही रितेश सिंह के रिश्ते नाते परिवार कुटुंब वाले बेवजह उनसे जलते और बैर भाव रखते ।

मगर रितेश सिंह अपने व्यवहार से सबको खुश रखने का प्रयास करते और किसी को कोई अवसर नही देते स्वाभाव के अनुसार सबके सुख दुख में सद्भावना एवं समर्पण के साथ खड़े रहते l इसके वावजूद कुछ उनके ही रिश्ते नातों वाले वैमनस्य भाव रखते, जिसकी भनक रितेश सिंह को नही थी l इसी कड़ी में आशा सिंह की छोटी बहन शशि का दामाद धीरज सिंह था ,जिसके मन मे यह बात गहराई तक घर कर गई थी कि मौसियां शशुर रितेश सिंह ने सिक्किम में सेवा के दौरान बहुत धन कमाया है, जिसका कुछ हिस्सा मिलना उसका हक है क्योंकि रितेश सिंह को कोई लड़की नही थी।


धीरज सिंह की गिद्ध दृष्टि रितेश सिंह कि तरक्की पर तो थी ही l वह मौसिया ससुर से धन ऐंठने कि जुगत लगाने की फिराक में रहता l रितेश सिंह एवं आशा सिंह रिश्ते में दामाद धीरज सिंह को वैसे ही प्यार सम्मान देते जैसा कि आशा की छोटी बहन शशि और पति महातम सिंह अपने दामाद को देते ।

रितेश और आशा ने कभी भी धीरज के कुटिल दृष्टि कलुषित विचारों पर कभी ध्यान नही दिया और ना ही उनको दामाद से किसी प्रकार के जोखिम की संभावना दूर दूर तक नजर आ रही थी।

आशा सिंह और रितेश सिंह ने अपने रिश्ते के दामाद पर कभी किसी प्रकार का शक नही किया। उसे लाड, प्यार और सम्मान देते थे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार से वे अपने पुत्रों को देते थे ,क्योंकि उनका स्पष्ट मानना था कि बेटा दामाद का कद एक समान ही होता है l परंतु धीरज सिंह के अंतर्मन में मौसेरे ससुर के विषय मे यही धारणा घर कर गयी थी कि बहुत दौलतमंद है और उसे उनकी दौलत का कुछ हिस्सा मिलना ही चाहिए l इसके लिए वह मन ही मन में योजनाए बनाता,जिससे अनभिज्ञ रितेश सिंह और आशा सिंह अपने परिवार समाज में खुश रहते।

एकाएक एक दिन धीरज सिंह ने रितेश सिंह को बड़े प्यार सम्मान के साथ एक गुप्त स्थान पर बुलाया । किसी दुर्भावना या कुटिलता से अनभिज्ञ ,रितेश सिंह दामाद धीरज सिंह के बुलावे पर चले गए । उन्हें कुछ अंदेशा ही नहीं था कि जिस दामाद के बुलावे पर जा वे रहे ,वह स्वयं उनके एवं उनके परिवार के लिए काल बनने जा रहा था।

निर्धारित स्थान पर पहुंचते ही धीरज सिंह के द्वारा प्रयोजित कुछ आदमियों ने रितेश सिंह को बड़े सम्मान से बैठाया । कुछ देर इधर उधर कि बाते करने के बाद, सीधे मतलब पर आ गए और बोले आपने बहुत दौलत बनाई है । आप उसका कुछ हिस्सा हम लोगो को दे। पहले साधारण बात चीत से शुरू वार्ता हिंसक होने लगी थी l रितेश सिंह भी दृढ़ एवं किसी भी गलत बात पर न झुकने वाले व्यक्ति थे। जब धीरज सिंह के आदमियों से वार्ता हिंसक रूप लेने लगी और बातों ही बातों में रितेश सिंह को पता चल गया कि सारी साजिश उनके ही रिश्ते में दामाद धीरज सिंह द्वारा रची गई है तो धीरज और उसके साथियों के लिए मुसीबत बन गई।

इधर रितेश सिंह के घर पर पत्नी एवं बेटे रितेश सिंह के लौटने में बहुत बिलंब होने पर चिंतित होकर पता लगाने की कोशिश करने लगे कि आखिर रितेश सिंह गए तो गए कहा ।

उधर धीरज के मित्रों ने कैद में रूपेश सिंह पर थर्ड डिग्री टार्चर कर धन दौलत के लिए मानसिक दबाव बनाते रहे और रितेश सिंह को तोड़ने का हर सम्भव प्रयास करते रहे । परंतु रितेश सिंह टूटने का नाम ही नही ले रहे थे ।

धीरज मौसी सास से मिला और बताया कि मौसा जी बहुत पहले ही उसके पास से घर के लिए लौटे थे l आशा सिंह एवं उनके बेटों के लिए धीरज सिंह का व्यवहार वैसे ही था जैसे विपत्ति के समय निकटवर्ती रिश्ते नातों का होता है l अतः किसी के द्वारा शंका कि कोई गुंजाइश ही नही रही की धीरज ना सिर्फ ये सारी की योजनाओं को जानता था परंतु स्वयं भी शरीक था और गुप्त रूप से अपने साथियों को सूचनाएं दे रहा था। रूपेश सिंह को गए एक सप्ताह बीत गए थे और उनका कही कोई सुराग नही मिल रहा था l पुलिस ने भी अपने सारे प्रयास किए लेकिन उनके हाथ भी कुछ ना लगा ।

इधर हद तक टार्चर करने के बाद भी जब रूपेश सिंह नही टूटे तो धीरज एवं उसके साथी घबराने लगे l धीरज के साथियों के आपसी व्यवहार बात चीत से रूपेश सिंह को स्पष्ट हो चुका था कि उनके साथ धोका हुआ है l विश्वासघात उनके ही रिश्ते के दामाद धीरज सिंह द्वारा किया गया है l अब शंका कि कि कोई गुंजाइश ही नहीं थी l यह बात जब धीरज सिंह को पता चली तो वह और भी घबरा गया और अपना धैर्य खोने लगा l उसकी साजिश का पर्दाफाश ना हो , इस भय से उसने अपने साथियों के साथ रूपेश सिंह की हत्या कर दी और उनके शव को एक हास्टल के सेप्टिक टैंक में डाल दिया और स्वयं रूपेश के परिवार के साथ संकट कि घड़ी में हमदर्द कि तरह बना रहा ।

पुलिस के माथे बल पड़ना स्वाभाविक था। उसने अपने सारे खुफिया तंत्रों को लगा दिया और सारे पुलिसिया हथकंडे आजमाना शुरू किया ।परिणाम स्वरूप रूपेश का शव हॉस्टल के सेप्टिक टैंक से बरामद हो गया l पुलिस की जांच से यह स्पष्ट हो गया कि रूपेश का अपहरण एवं हत्या उनके ही रिश्ते के दामाद धीरज ने कि है l यह सत्य जानने के बाद कि रूपेश सिंह कि हत्या उनके ही रिश्ते के दामाद ने षड्यंत्र धोखा विश्वास घात एवं रिश्ते का गला घोटते हुए किया है ,तो रूपेश कि धर्मपत्नी आशा सिंह एवं दोनों पुत्र विनय और रणविजय के पैरों तले जमीन खिसक गई । परंतु उनके पास अफ़सोस और मातम के सिवा कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था l पुलिस द्वारा गहन जांच के बाद चार्जशीट दाखिल किया । मुकदमे में धीरज सिंह को मुख्य साजिश कर्ता एवं आरोपी बनाया गया l ट्रायल का सिलसिला शुरू हुआ और चलता रहा , और अब हो भी क्या सकता था l पवित्र रिश्तों कि डोर टूट चुकी थी, समाज शर्मशार हो चुका था ,कलयुग अपने उत्कर्ष पर अट्टहास कर रहा था, मर्यादा लज्जित होकर भगवान श्री राम द्वारा स्थापित सामाजिक रिश्तों कि मर्यादा कि दुहाई दे रही थी तो भगवान श्री कृष्ण का आवाहन कर रही थी कि सामाजिक रिश्तों के विकृत स्वरूपों के संघार के लिए कलयुग के एक नए महाभारत, जीवन सामाज के कुरुक्षेत्र में नेतृत्व कर धर्म युक्त समाज स्थापना का अनुष्ठान करे l लेकिन यह सभी सामाजिक अंतर्मन में उठती ज्वाला पर सकारात्मकता कि शीतल फुहार भी नही थी ।रितेश का परिवार अपने ही प्रियजन की साजिश कि बलि चढ़ चुके था l बचा था तो सिर्फ बिखरते समाज मे स्वार्थ के रिश्तों कि चीत्कार खौफ जो यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि कलयुग का उत्कर्ष है।
नोट : मुझे व्यवसायिक कारणों से आशा कॉम्प्लेक्स में कुछ वर्षों तक बैठने का अवसर प्राप्त हुआ जिसके कारण मैंने स्वयं सत्य घटना की अनुभूति किया और बिखरते समाज एवं विकृत रिश्तों कि बड़े करीब से देखा है।