आज से दो तीन महीने पहले मेरे कॉलेज में उसके स्थापना दिवस का आयोजन किया गया था! जिसका उस दिन समापन समारोह था, और उस दौरान हुई प्रतियोगिताओं का परिणाम आने के बाद प्रतियोगियों को मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित भी किया जाने वाला था!
सुबह से ही सभी छात्र छात्राओं को आने को कहा गया था! जिसके कारण हम सभी वक्त पर पहुच गए!
कुछ वक्त बाद मुख्य अतिथि का आगमन हुआ, फूल मालाओं द्वारा उनका सम्मान हुआ!
जिसके बाद कार्यक्रम शुरू हुआ और कुछ घंटों के बाद अपने समापन पर था!
उसी बीच प्रधानाचार्य सर ने आग्रह किया कि मुख्य अतिथि जी दो शब्द कह कर बच्चों का मार्गदर्शन करे, जिसके पश्चात कुछ ही मिनटों में मुख्य अतिथि मंच पर माइक के सामने खड़े हुए, जिसके बाद कुछ सेकेंड उसे ठीक तरह से जांचने के बाद उन्होंने बोलना शुरू किया!
पहले मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के लिए सभी का धन्यवाद किया!
फिर उन्होंने हर क्षेत्र में अपना योगदान देती लड़कियों की तारीफ की और हमे उनसे सीख कर आगे बढ़ने को कहा, जब उन्होंने ये कहा तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा प्रांगण गूँज उड़ा, उनके मुख से ये सुन हम सभी तो खुशी से फुले न समाये!
हमने भी सोचा चलो किसी ने तो हमारी भावनाओं को समझा! लेकिन ये खुशी हमारी कुछ वक्त तक ही रह पाई!
तभी उन्होंने सभी लड़ाकों की तरफ देखा! जिनका ध्यान भी उनकी बातों पर ही था!
माननीय मुख्य अतिथि का कहना ये था कि, हमे अपना ये पुरुष प्रधान समाज खत्म नहीं होने देना है! हमारा पुरुष समाज खतरे में है! अब अगर हमने कुछ नहीं किया तो ये देश स्त्री प्रधान हो जाएगा! माना महिलाओं का बढ़ना अच्छी बात है लेकिन
हम अपना प्रभुत्व खत्म नहीं होने दे सकते!
उस समय उन्होंने लड़कों की कमजोर नस पर वार किया, वो ये कि उसी समय हम वर्ल्ड कप हार गए थे! और सभी में थोड़ा निराशा का माहौल था! किसी के साथ उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया! हालांकि उनकी बातों का असर ज्यादा लोगों पर हुआ नहीं था जिसका पता तालियों की आवाज से लगाया जा सकता था! पहले के मुकाबले तालियों की आवाज इस बार बहुत ही कम आई थी!
हालांकि उनका कहना बिल्कुल सही था, लेकिन उनका कहने का तरीका गलत था मेरे हिसाब से, उन्होंने बीच में कुछ कठोर शब्दों का चयन किया लड़कों को ये बातें समझाने के लिए!
क्योंकि मेरा मानना है कि हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अधिकार हर किसी को है चाहें वो लड़का हो या लड़की हो!
आज का स्त्री समाज हो या पुरुष समाज दोनों ही खुली विचारधाराओं के हो चुके हैं, जो ना तो स्त्रियों को कम मानते हैं और ना ही पुरुषों को, उनकी नजरों में दोनों ही का बराबर महत्व है!
पर कुछ क्षिण मानसिकता के लोग अब भी समाज में मौजूद है, जिनकी हमेशा ही ये कोशिश रहती है, कि कैसे उस लडकी को उस महिला को आगे बढ़ने से रोका जाए ?
और ये सब सिर्फ पुरुषों की सोच नहीं बल्कि कुछ औरते भी है जो ना ही खुद को और ना ही अपने परिवार की अन्य लड़कियों को भी आगे नहीं बढ़ने देती!
सुनने, पढ़ने में ये सब अच्छा नहीं लगता लेकिन हमारे समाज की सत्यता यही है!
शायद मेरे कुछ शब्द आहत कर जाए किसी न किसी को तो मैं माफी चाहूँगी! 🙏😊