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मदद
रिमझिम नाना की लकड़ी की दुकान पर बैठकर उनकी कहीं कल की बात के बारे में सोच रही हैI वह सोच रही है, ‘ऐसा क्या हुआ था, मेरी माँ के साथ? नाना नानी मुझसे ज़रूर कुछ छुपा रहें हैं ।‘ तभी एक ग्राहक ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा, “ दीदी यह चौंकी कितने रुपए की है?” “ सौ रुपए की है ।“ उसने उससे पैसे लिए और चौंकी उसको पकड़ा दीं।
निहाल कुछ देर तक सोचता रहा फिर उसके दिमाग में एक विचार कौंधा, उसने नंदन की तरफ देखते हुए कहा, “ हमें एडमिट कार्ड लेने सरकारी दफ्तर जाना पड़ेगा।“
लेकिन नन्हें, वो लोग देंगे ?
क्यों नहीं देंगे ।
मगर मैं वहाँ अकेले नहीं जा सकता। उसने अपने भाई किशोर को बुलाया तो पहले तो उसने न नकुर की, मगर जब निहाल ने अपनी की गई मदद उसे याद दिलाई तो वह मान गया। अब वे दोनों निहाल का एडमिट कार्ड लेने ग़ाज़ियाबाद से भी दो किलोमीटर दूर सरकारी दफ्तर के लिए चल पड़े।
वही दूसरी ओर अपनी बाइक पर राजवीर भी रघु के साथ मंडुआ शहर जा रहा है। रघु ने उससे रास्ते में पूछा,
यार !! हम मंडुआ क्यों जा रहें हैं ?
तेरे लिए लड़की देखने !! उसने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
सही सही बता भाई, तेरे मन में क्या चल रहा है।
मुँह बंद रखेगा तो कुछ देर में पता चल ही जायेगा।
निहाल घर बैठकर सोच रहा है, किसी तरह आज एडमिट कार्ड मिल जाये, अब पेपर होने में सिर्फ दस दिन ही रह गए हैं। तभी सोमेश उसके पास आया और कहने लगा, “भैया मैं कॉलेज जा रहा हूँ । आपको अपने कॉलेज से कुछ मंगवाना है?” अब उसने उसे, दो तीन पुस्तकों के नाम बता दिए और अपना लाइब्रेरी कार्ड थमा दिया।
सोनाली भी अपने कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठी, पेपर की तैयारी कर रही है, तभी ज्योति उसके पास आकर पूछती है, “ सोना क्या लग रहा है, पेपर क्लियर होगा?”
उसने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,
उम्मीद तो कम है।
वैसे पिछले साल के पेपर देखे तूने?
हम्म लगी तो हुई हूँ, मगर कुछ कह नहीं सकते और फिर वे दोनों काफी देर तक बतियाती रहीं।
अब राजवीर की बाइक मंडुआ पुलिस स्टेशन के बाहर आकर रुक गई। उसने अपनी बाइक पार्क की और रघु को साथ लेता हुआ, अंदर जा पहुँचा। बड़ा सा पुलिस स्टेशन है। चार-पाँच टेबल पर पुलिस वाले बैठकर अपना काम कर रहें हैं। कोई फ़ोन पर लगा हुआ है, कोई फाइल में देख रहा है तो किसी की नज़रें कंप्यूटर में गढ़ी हुई है। तभी एक कांस्टेबल ने राजवीर को देखकर कहा,
कंप्लेंट करवानी है तो टेबल नंबर चार पर चले जाओ।
नहीं सर, वो दिनेश राजपूत से मिलना है। उसने थोड़ा हिचकते हुए ज़वाब दिया।
क्यों ??
उसके गॉंव के है तो सोचा मिल लें। अब उसने उन दोनों को बुरी तरह घूरा, फिर अकड़कर बोला,
मिलना है तो बाहर बैठो, वो साहब के साथ गया हुआ है, आएगा तो बात करना। दोनों सिऱ हिलाते हुए बाहर खड़ी बाइक पर बैठकर उसका इंतज़ार करने लगें।
नंदन का स्कूटर भी डासना में बने ऑफिस के बाहर आकर रुक गया । किशोर और वो दोनों स्कूटर पर से उतरे तो नंदन ने कहा, “ भाई !! पहुँच तो गए, अगर काम नहीं हुआ तो आफत आ जाएगी।“ “शुभ शुभ बोल, यहाँ से खाली हाथ नहीं जायेंगे ।“ अब दोनों अंदर गए तो देखा एक बाबू आँखों पर चश्मा चढ़ाए, कुर्सी पर बैठा, किसी कागज़ पर अपना कलम घिस रहा है । दोनों अब आराम से उसके सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गए।
नमस्ते सर !!!
कहिये क्या काम है?
सर वो दस दिन बाद सब इंस्पेक्टर का पेपर होने वाला है न.......
तो ? उसने बात बीच में काटते हुए कहा ।
सर, उसका एडमिट कार्ड चाहिए था ।
जो कुछ है, वेबसाइट पर है । अब जल्दी से नंदन ने फ़ोन निकाला और उसे दिखाते हुए कहा,” सर देखिए, अं डर कंस्ट्रक्शन दिखा रहा है ।“ उसने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा,
एक -दो दिन में चल जाएगी, तब ले लेना ।
सर, दस दिन बाद पेपर है, प्लीज सर कुछ करें, अब किशोर ने विनती की । अब बाबू भड़क गया। “पंद्रह दिन पहले से एडमिट कार्ड साइट पर डाला हुआ है, यह वेबसाइट तो कल से नहीं चल रही, तब क्या सो हुए थें ।“ अब दोनों झेंप गए। फिर किशोर ने हाथ जोड़ते हुए उसे एडमिट कार्ड के खोने की बात बताई तो उसकी त्योरियां चढ़ गई । “तुम लड़कों को मैं अच्छे से जानता हूँ, तुम एक नंबर के लापरवाह लोग क्या पुलिस में भर्ती होंगे ।“ अब नंदन ने उसे निहाल की कहानी बताई तो वह नरम होते हुए बोला,
यह तो बहुत बुरा हुआ, पता चला किसने मारा ?
नहीं सर, तफ्तीश ज़ारी है ।
देखो !! अभी एक घंटे बाद, बड़े बाबू आएंगे, उनके कंप्यूटर में रिकॉर्ड है, वो तुम्हारी मदद कर सकते हैं ।
सर मदद तो आप भी कर सकते हैं ।
हमें उनका कंप्यूटर हाथ लगाने की अनुमति नहीं है । वह अब फिर से फाइल में देखने लग गया और वे दोनों बाहर खड़े स्कूटर पर बैठकर बड़े बाबू का इंतज़ार करने लगें ।
यार!! राजवीर बड़ी देर हो गई है!!! अभी तक नहीं आया।
“चल कुछ खा पी लेते हैं। उसने पास बने चाय के ठेले की तरफ ईशारा किया तो दोनों चाय और बिस्कुट लेकर वही पास बिछी कुर्सी पर बैठ गए। तभी उसकी नज़र दिनेश पर पड़ी जो किसी दूसरे इंस्पेक्टर के साथ जीप से उतर रहा है। उसने दिनेश को आवाज लगाई,
दिनेश भाई !! उसने उन दोनों को पहचान लिया, “साहब मैं अभी आया!!”
अब वह राजवीर के पास पहुँच गया तो राजवीर उसे गले लगाना लगा मगर उसने उसे पीछे करते हुए कहा, “मैं यूनिफार्म में हूँ।“ “ओह! भाई गलती हो गई।“ अब दिनेश भी वही रखी कुर्सी पर बैठ गया । चायवाले ने उसे सलाम करते हुए एक चाय पकड़ा दी ।
यहाँ कैसे आना हुआ ?
भाई पेपर की तैयारी कर रहें हैं।
कौन सा ?
सब इंस्पेक्टर वाला।
उड़ान तो बहुत ऊँची मारी है। वह दोनों झेंप से गए।
बस भाई कोशिश की है ।
मुझसे क्या चाहते हो?
अब वह उसके नज़दीक आकर बोला, “भाई यह पेपर क्या पढ़कर ही पास किया जा सकता है?” उसने दोनों को घूरा तो वे दोनों शर्मिंदा हो गए। फिर वह ज़ोर से हँसा और बोला, “कोई ज़रूरी नहीं है।“ अब दिनेश ने चाय का घूँट भरते हुए उनकी तरफ देखा, राजवीर को उसकी आँखों में खुद के लिए एक उम्मीद दिखाई दे रही है ।
वही एक घंटा इंतज़ार करने के बाद, उन्होंने बाबू से पूछा तो उसने बताया कि “बड़े बाबू आज नहीं आ रहें इसलिए कल आना” “ पर सर, कल तो शनिवार और फिर एतवार है।
हाँ, वो तो है। वह ज़ोर से हँसा तो वह उसका मुँह देखने लगे।
लेकिन सर?? किशोर बोला।
उसने सोचते हुए कहा, “ मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ पर........ अब वह बोलते हुए चुप हो गया तो नंदन उसके चेहरे पर आई कुटिल मुस्कान को समझने की कोशिश करने लगा।