पथरीले कंटीले रास्ते
15
रविंद्र से आगे आगे कुछ कदमों की दूरी पर काम करने वाले लोगों की तीन टोलियाँ जा रही थी । उसने अपनी चाल तेज की । तेज कदम चलते हुए वह भी इन लोगों से जा मिला । करीब पंद्रह मिनट चल कर ये लोग एक बगीची में पहुँचे । फूलों की क्यारियों में इस समय सूरजमुखी , डहेलिया , गेदा , गुड़हल , बालसम , गैलार्डिया के फूल खिले हुए थे । सूरजुमखी के फूल सूरज की ओर मुख किये उसकी स्वर्ण रश्मियों के सुनहरे रस के रसपान से स्वयं को तृप्त कर रहे थे । भुवनभास्कर भी अपनी स्वर्णिम आभा इन फूलों पर मुक्त हस्त से लुटाकर गौरवान्वित हो रहे थे । करीब बीस बाइस लोग हाथों में कुदाल , फावङा लिए इन क्यारियों की निराई गुङाई करने में तत्पर हो गये । रविंद्र को पास आया देख वे सब थोङा घबरा गये । उनके काम करते हाथ वहीं अटक गये थे । वे सब रुक कर उसे देखने लगे । लीडर ने सवालिया नजरों से रविंद्र को देखा ।
भाई एक फावङा या खुरपी मुझे भी दो । मैं भी काम करूँगा ।
तू करेगा – उस कैदी ने अविश्वास से देखा । तू वहाँ उस पेङ की छाया में बैठ । ये सब कर रहे है । कर लेंगे ।
पर मैं क्यों नहीं ...
उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही उसने एक बूढे कैदी से फावङा लिया और रविंद्र की ओर बढा दिया – ले पकङ । करके देख ले ।
रविंद्र ने गैंदा की क्यारी में गुङाई शुरू की । गरमी से मिट्टी तपी पङी थी । धूप ने उसके भीतर का पानी सुखा दिया था । रविंद्र ने पापा के साथ खेतों में थोङा बहुत काम किया था । पानी की बारी आने पर वह भी खेतों में पानी लगाने पापा के साथ खेत गया था । पर वह उसके लिए खेल होता था । जितनी देर मन किया , खेले । जब मन ऊब गया , भाग लिए । यहाँ दस बजे ही सूर्य प्रचंड रूप दिखा रहा था । ऊपर से रूखी धरती । बहुत जल्दी ही वह थक गया । पसीना अलग टपक रहा था । उसे इस हालत में देख कर एक लगभग उसकी ही उम्र का लङका भाग कर उसके पास आया और फावङा उसके हाथ से ले लिया ।
रविंद्र को अपने आप पर बहुत शर्म आई । उससे दुगनी आयु के लोग मेहनत कर रहे थे और वह आधे घंटे में थक कर हांपने लग गया । एक लङका उसके बदहवास देख कर क्यारी में लगी पाईप उठा लाया – लो पानी पी लो ।
रविंद्र ने ओक बनाई और मुँह लगाकर पानी पीने लगा । पानी पीकर उसने मुँह पर पानी के छींटे मारे तो उसे अच्छा लगा ।
तेरा नाम क्या है भाई
मेरा ... गिंदा ... नहीं मेरा मतलब मेरा नाम तो जोगिंदर है पर सारे गिंदा ही कहते हैं । और आगे कुछ पूछो , उससे पहले ही बता देता हूँ , किसी से मोबाइल छीनते हुए पकङा गया था । चार महीने की सजा हुई है । हुई तो तीन महीने की थी । साथ में दो सौ रुपया जुर्माना हुआ था । अब जुर्माना कौन देता इसलिए सजा एक महीना बढ गयी । अब आराम से चार महीने से सरकारी मेहमान हूँ . दस दिन बाद रिहाई हो जाएगी ।
अच्छा
हुम्म .. ।
बाहर कौन कौन है तेरे घर में
माँ है जो लोगों के घरों में काम करती है । बाप है जो माँ के कमाए पैसों पर ऐश करता है , दिन भर जुआ खेलता है । पत्ते फेंटता है । शाम से ही शराब पीता है जिस दिन जुए में जीत जाता है , उस दिन जीत की खुशी मनाने के लिए और जिस दिन हार जाता है , उस दिन हार के गम को भुलाने के लिये । घर पहुँचते ही गाली गलौज और मार पीट शुरु कर देता है । तीन बहनें हैं दो भाई हैं ।
बाहर जाकर क्या करेगा
फिर से किसी का मोबाइल छीनूँगा । और क्या
मोबाइल तो मुझे चाहिए ही । मेरे सब दोस्तों के पास है ।मेरे ही पास नहीं है । मैंने तीन चार आदमियों के पास एप्पल देख रखा है । मौका मिलते ही उङा ले जाऊंगा ।
ये सब करते हुए डर नहीं लगता ।
डर किस बात का । मार का तो वह तो पैदा होने के दिन से ही खा रहा हूँ अपने शराबी बाप से ।
अगर पकङा गया तो
तो और भी मजा है । यहाँ न बाप की मार का डर है न गालियों का । तीन टाइम खाने को मिल जाता है – उसने लापरवाही से कंधे उचकाये और चला गया । जाकर फिर से फावङा चलाने लगा ।
रविंद्र क्यारी में उगे फूलों की खूबसूरती निहार रहा था कि एकाएक उसके मन में ख्याल आया कि ये फूल भी तो धूप झेल रहे हैं । इन्हें भी तो इस तीखी धूप में गरमी लगती होगी । इन्हें भी प्यास सताती होगी । गला सूखता होगा । रात को अंधेरे में हो सकता है , इन्हें भी डर लगता हो । सुबह की ओस इनके आँसू तो नहीं पर सूरज की किरणें जैसे ही इन पर पङती हैं खुशबू से मह मह करने लगते हैं । पूरा बगीचा उनकी महक से सराबोर हो उठता है । ये फूल संदेश दे रहे हैं कि हालात कितने भी बुरे क्यो न हो , हमें हमेशा खुश रहना चाहिए और अपना सर्वश्रेष्ठ संसार को देना चाहिए ।
वह अपने कपङे झाङ कर उठा और पाइप लेकर घास को पानी देने लगा । थोङी देर पानी पीकर मृत सी दिख रही घास में जीवन दीखने लगा तो वह उत्साहित होकर सब तरफ पानी का छिङकाव करने लगा । इस काम से उसको बहुत संतुष्टि मिली । तब तक लांगरी चाय और नींबूपानी की बाल्टियाँ ले आया । सब लोग पेङों की छाया में जा पहुँचे । लांगरी ने जेब से डिस्पोसेबल गिलास निकाले और सबसे पहले नींबूपानी डाल कर लीडर कैदी की ओर बढाया । तब तक उसकी नजर रविंद्र की ओर पङी तो उसने एरगिलास उसकी ओर भी बढा दिया । फिर सभी कैदी बारी बारी से आकर अपनी अपनी इच्छानुसार चाय या नींबूपानी लेने लगे । जलपान के बाद सब दोबारा काम पर लग गये । करीब दो गंटे तो म किया ही होगा कि जेल में घंटी बजने लगी । यह काम के घंटे खत्म होने की सूचना थी । सब कैदी अपने फावङे खुरपे संभालते पंक्तिबद्ध हो गये और वापस जेल की ओर चल पङे । पाँच घंटे की मेहनत करके सब कैदी लौट रहे थे । वहाँ फिर हाजरी देनी थी । हाजरी लगी और सारे कैदी हाथ मुंह धोने , नहाने में व्यस्त हो गये । कुछ कैदी नीम की घनी छांव में बैठे थे । रविंद्र भी वहाँ जा बैठा ।
तूने सचमुच स आदमी को नलके की हत्थी दे मारी थी ?
हाँ रविंद्र ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
और वह मर गया ?
हाँ
बाप रे , सचमुच ?
सचमुच भाई ।
सामने वाले की आँखें अचरज से फटी पङी थी । वह प्रशंसाभरी नजरों से रविंद्र के हाथ और बाजू देख रहा था ।
चलिए आप पहले नहा लीजिए – उसने बङे आदर से कहा और ले चलने केलिए उद्यत हो उठा ।
रविंद्र पिछले दो दिनों से इस वी आई पी सत्कार को देख समझ रहा था । आज इस लङके को देख कर पूछे बिना रह न सका –
एक बात तो बताओ , ये जेल में सब कुछ मुझे पहले क्यों ? कल खाना भी मुझे सबसे पहले मिला । आज नहाना भी और नाश्ता भी । और तो और बाहर नींबू पानी और चाय दोनों मिले और वह भी सबसे पहले । ऐसा क्यों
वह आदमी सहम गया या संकोच से भर गया कहना कठिन है । पर तत्काल उसे कोई उत्तर नहीं मिला । जब रविंद्र ने दोबारा अपना सवाल दोहराया तो वह डरते डरते बोला – भाई जी , हम सब छोटे छोटे मुजरिम हैं । कोई चोर , कोई जेबकतरा , कोई ठगी जालसाजी के जुर्म में अंदर आया है । छोटे मोटे झगङेवाले भी एक दो केस हैं ।
मैंने तो सुना है इस जेल में आतंकवादी भी बंद हैं ?
हैं भाई पर वे अलग रहते हैं । उन्हें बाकी कैदियों से मिलने की इजाजत नहीं है । उनकी रोटी वहीं कोठरी में पहुँचाई जाती है ।
हम यहाँ पांच हजार के आसपास कैदी हैं पर कत्ल के केस वाले चार पांच ही हैं । एक दो औरत हैं और तीन यहाँ आप समेत ।
अच्छा औरतें भी हत्या करती हैं ? और बाकी दो लोग कौन हैं ?
मिल लीजिएगा बाद में । अभी तो वे लोग नहाने के लिए आपको बुला रहे हैं । जल्दी से नहा लीजिए फिर खाना लग जाएगा ।
रविंद्र को अभी उस लङके से बहुत कुछ जानना था पर समय की नजाकत देखते हुए वह तुरंत नहाने चल पङा ।
बाकी फिर..