पथरीले कंटीले रास्ते - 14 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 14

 

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

14

अभी तक आपने पढा ...

बठिंडा के आंचल में बसे गाँव चक राम सिंह वाला का रविंद्र पाल सिंह बठिंडा कालेज से एम ए कर रहा था । साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ भी दे रहा था । आँखों में कई सुनहरे सपने झिलमिलाने लगे थे । एक दिन रोज की तरह वह रामपुरा बसस्टैंड पर उतरा । पानी पीने के लिए हैंडपम्प पर गया कि उसने देखा कि शैंकी और उसके दोस्त उसके दोस्त सरताज को घेर कर हाकियों , लाठियों से बुरी तरह से पीट रहे थे । रविंद्र ने टोका तो उन लोगों ने रविंद्र को भी खूब गालियाँ दी । गुस्से में रविंद्र ने हाथ में पकङी नलके की हत्थी फेंकी जो शैंकी को जा लगी और वह वहीं मर गया । कोर्ट ने उसे विचाराधीन कैदी मान कर जेल भेज दिया । यहाँ जेल की एक अलग ही दुनिया है जो बाहर की दुनिया और जेल के बारे में सुनी सुनाई बातों से बिल्कुल अलग है ।
अब आगे पढिये ...

 

रविंद्र योग कक्षा से फारिग होकर एक पेङ के नीचे आ बैठा था और अब इधर उधर देख रहा था ताकि कोई खाली कैदी मिले तो वह उससे उस रात वाले हीर गाने वाले का नाम पता पूछे । इतना सुरीला वह आदमी यहाँ जेल में क्या कर रहा है ? कौन है वह ?क्या अपराध किया है उसने ? उसे इधर उधर देखता पाकर नल पर नहाने के लिए एकत्र हुए लोगों में से एक तरुण उसकी ओर आया ।
भाई जी आपको नहाना है क्या ? आइए पहले नहा लीजिए ।
नहीं , तुम लोग पहले नहा लो । मैं बाद में नहा लेता हूँ ।
आइए न चलिए । नहा लीजिए ।
वह लङका उसको आग्रह करके मुङ चला ।
रविंद्र भी अपनी बैरक से तौलिया और साबुन लेकर नल पर जा पहुँचा । उसे आया देख सब लङके , आदमी एक ओर होकर उसके लिए जगह बनाने लगे । कुछ अपने धोए कपङे फैलाने चले गये । सिर्फ एक आदमी एक कोने में बैठा अपने अनभ्यस्त हाथों से कपङों पर साबुन लगाता रहा । जो लङका उसे बुलाने गया था , उसने सरसों के तेल की शीशी उसके सामने कर दी – लो भाई जी । लगा लो ।
इसकी जरुरत नहीं है । रविंद्र ने नहाने में तीन चार मिनट लगाए । और फिर से आकर उसी पेङ के नीचे बैठ गया । थोङी देर बाद मैस से घंटा बजने की आवाज आने लगी । साफ सफाई और नहाने धोने में करीब एक घंटा लगा होगा और सब कैदी नहा धोकर मैदान में पहुँच गये थे । कल शाम की तरह यहाँ फिर से हाजरी हुई और उसके बाद सब लोग नाश्ते के लिए मैस में पहुँच गये ।
आज नाश्ते में नमकीन दलिया बना था । सबको तीन तीन कङछी दलिया और एक कप चाय मिली । कुछ कैदी लंगर बांटने वालों से उलझ गये .- ऍं , इतना कम दलिया । इतना सा दलिया खाकर दोपहर के दो बजे तक कैसे काटेंगे । दलिया बढाओ या साथ में कुछ और दो ।
लांगरियों ने हाथ खङे कर दिये । हम क्या करें । हमें तो जो बनाने का और जितना देने का हुकम मिला है , हम उतना कर रहे हैं । शिकायत है तो जाकर जेलर साहब से कहो ।
लोग चुपचाप खाने लग गये । रविंद्र एक कोने में खङा यह सब देख रहा था कि एक लांगरी उसके पास दलिया की थाली प्लास्टिक का चम्मच लेकर आया ।
लीजिए । खा लीजिए ।
रविंद्र ने ध्यान दिया । कल से उसे यहाँ वी आई पी ट्रीटमैंट मिल रहा है । कल उसकी बैरक साफ करवा दी गयी थी । रात खाने के समय उसे लाइन में नहीं लगना पङा था । सबसे पहले उसे खाना मिला था । सुबह टायलेट और अब नहाने के समय भी सबने उसके लिए जगह छोङ दी थी । और अब यहाँ अलग थलग खङे होने पर भी उसे दलिया मिल गया था और वह भी सबसे ज्यादा । पूरे चार चम्मच । ऐसा क्या उसके नये होने की वजह से हो रहा है । शायद सहानुभूति के कारण ।

यह तो उसे बहुत बाद में पता चला कि मर्डर केस में आने की वजह से सब कादियों से वह श्रेष्ठ माना गया । सब कैदी उसकी इज्जत करते थे, लिहाज करते थे । शायद एक हद तक डरते भी थे । 
उसने दलिया खा लिया । दलिया स्वाद में ठीक ठाक था । कल रात वाली दाल से कुछ बेहतर । आगे बढ कर उसने मग में चाय ली और चुपचाप पीने लगा ।
चाय पीकर उन्हें एक बार फिर से हाजरी देनी थी । तो वे सारे फिर से पहले वाले मैदान में आ गये थे । हाजरी के बाद वे सब अलग अलग टोलियों में बँट गये । हर टोली में बीस बीस सदस्य थे । हर टोली का एक लीडर बनाया गया । उनमें से कुछ टोलियाँ फूलों की क्यारियों का काम करने चली । कुछ को सब्जियाँ की क्यारियों में गुङाई करनी थी वे उधर चली । कुछ टोलियों को लकङी पाङने का काम मिला । तीन टोलियाँ फर्नीचर वर्कशाप में काम करती थी वे उधर चली गयी । दो टोलियाँ घास पर पानी देने चली । इस तरह करीब आघे घंटे में सबके काम बँट गये और ये सब अलग अलग काम करने चले गये ।
इंचार्ज ने रविंद्र से पूछा – तुम नये हो । तुम्हें क्या काम करना आता है या कोई काम सीखना चाहते हो । बताओ तो तुम्हें भी कोई काम सौंप दिया जाय । यहाँ हर कैदी कोई न कोई काम करता है । बदले में उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी मिलती है जिससे वे कैंटीन से अपनी जरुरत का सामान खरीदते है । जब सजा पूरी होने पर ये लोग बाहर जाएंगे तो उस हुनर के जरिये ये अपनी रोटी कमा सकेंगे । सबसे बङी बात इनके समय का सदुपयोग होता है ।
रविंद्र सोच में पङ गया । सर , मैं इन कैदियों को पढा सकता हूँ । नाटक का निर्देशन कर सकता हूँ । भांगङा आता है मुझे । वह सिखा सकता हूँ । सुबह योग और व्यायाम करवा सकता हूँ । अपने कालेज की टीम में फार्वर्ड पर फुटबाल खेलता था तो वह भी आता है मुझे । थोङा बहुत कम्प्यूटर भी आता है तो दफ्तर के काम में मदद कर सकता हूँ । बाकी किसान का बेटा हूँ तो फावङा तो चला ही लूँगा ।
ठीक है , मैं साहब से बात करता हूँ । जैसा वे कहेंगे । आज तुम्हारा जो करने का मन हो वह करो ।
रविंद्र ने थोङी देर सोचा फिर फूलों की क्यारियों की तरफ बढ गया ।

बाकी फिर ...