गाँव के तिलिस्म भाग -1 डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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गाँव के तिलिस्म भाग -1

द्रोपदीबाई के घर आज विजय कुमार खुद आए। बाहर से ही आवाज लगाई-‘ सरपंच जी हैं?’ वे तब अपनी भैंस की सेवा में थीं,।उसे दूध निकालने के बाद  उसके पाड़े को दूध पिला रहीं थीं। वहीं से आवाज दी –‘सेकेटरी साब! बैठो, मैं अभी आई ।‘वे पाड़े को बांध कर पौर में आईं,बोली –‘सेक्रेटरी साब! आज सबेरे-सबेरे एकदम कैसे?’तो विजय कुमार जो पंचायत सेक्रेटरी थे बोले ‘-भाई साब कहां हैं ?उनके साथ आज शहर जाना था, बात तो हुई थी ।‘द्रोपदी बाई-‘वे तो रिश्‍तेदारी में गए,कल रात को ही उनके साढ़ू मतलब मेरे जीजाजी आ गए सो भोर ईं निकर गए,उनकी बिटिया के लिए लड़का देखने जाना था।‘

विजय कुमार –‘कब तक आएंगे ?’

 द्रोपदीबाई-‘ अब इसमें दो -तीन दिन लग सकते हैं ,अभी जीजाजी के घर जाएंगे, फिर जिनके मारफत बात हुई उन्‍हें लेकर लड़के वालों के बाप –चाचा से मिलेंगे ,फिर लड़का देखेंगे,लड़का कहां नौकरी कर रहो? कितनो पढ़ो है? जमीन कितनी है? कै भैया हैं ?अभी तो पूछेंगे, झूठ -सांच का पता बाद में लगाएंगे। ज्‍यादा दिन भी लग सकते हैं। इन बातों में जल्‍दी नहीं होती, लड़के वालों के पचास नखरे होते हैं ।लम्‍बी चर्चा चलती है ।दान-दहेज ,लेन- देन ,लड़की की फोटो कितेक पढ़ी लिखी है? लड़की वालों का घर कैसा है? जमीन –जायदाद कितनी है? क्‍या करते हैं? तब कैसी मांग करें ,बहुत गुणा भाग लगाते हैं, तब आखिर में जन्‍म पत्री देते हैं। लड़की की जन्‍म पत्री की मांग करते हैं ।उसके बाद  अगर  कुछ ठीक जमी तो लड़की देखने आएंगे ।बीच में बात कहीं भी अटक सकती है ,जे बहुत कठिन और लम्‍बो काम है।‘

विजय कुमार –‘ सरपंच जी तो ऐसा करो, हमारी भाई साब से बात हो गई थी ,उन्‍हें हमारे साथ चलना था ,हमने पंचायत में जो निर्माण कार्य कराने थे ,उनका प्रस्‍ताव बना के भेज दिया था ,अब आप ठीक समझो तो हमें कार्ड देदो, तो हम बैंक से रूपये निकाल लाएं ,और काम चालू कर दें।‘

द्रोपदी बाई ने अंदर से कार्ड निकाल कर उन्‍हें दे दिया।और विजय कुमार चले गए।

द्रोपदी बाई के पति भंवर सिंह ने दो बार पंचायत का चुनाव लड़ा वे एक बार पंच तो बन गए पर सरपंच नहीं बन सके। इस बार पिछड़ेवर्ग की महिला सरपंच की सीट लॉटरी से निकली ।उन्‍होंने अपनी पत्‍नी को खड़ा कर दिया और वह चुनाव जीत गई। अब द्रोपदी बाई महिला सरपंच थीं ।पर असल में सारा काम सरपंच पति यानी भंवर सिंह  ही देखते थे ।द्रोपदी बाई वैसे तो अशिक्षित महिला थीं ,पर उन्‍होंने गांव की महिला स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता से  हस्‍ताक्षर करना सीख लिया था ।।हां भंवर सिंह जरूर रूक -रूक कर हिन्‍दी के छापे के कागज पढ़ लेते थे। उनका बेटा तो पढ़ा था, पर जब वह उन्‍हें पढ़ाने का प्रयास करता तो या तो पिता जी नाराज हो जाते या बेटा धीरज खो बैठता ।मां को भी पढ़ाने की कोशिश की पर मां बोली बेटा-‘ इतेक गोड़ गप्‍पन्‍ना?  रहन दो घर में बहुत काम है।‘

 वह कुछ दिनों के लिए आता, मां को समझा न पाता, ओर उसका प्रयास निष्‍फल ही  रहता।अत: उन्‍होंने राम कली सिट्टर से दोस्‍ती गांठी। वे बोलीं-‘ सरपंच जी काए के लाने सीखने?’

तब उन्‍होंने कहा-‘ अफसरन ने कई के अंगूंठा अच्‍छो नईं लगत ।‘

तो सिस्‍टर जी ने उन्‍हें द्रोपदी लिखना सिखा दिया। हां इसमें भी एक महीना लग गया ।जब बेटा घर आया तो उन्‍होंने उसे कागज पर बड़े उत्‍साह से हस्‍ताक्षर कर दिखाए –‘देखो लल्‍लू! तुम कहत ते अम्‍मा! तुम नहीं सीख पाओगी, हमें सिस्‍टर बाई ने सिखा दओ, बड़े मन से सिखाओ, तुम तो गरम हो जात ते ।वे तो बड़ी धीरज बारीं हैं, कभऊं  गुस्‍सा  नहीं होतीं ।‘

        बेटा मुस्‍करा दिया।रामकली सिस्‍टर ने कोई फीस की मांग नहीं की पर द्रोपदी जब मीटिंग में पहली बार हस्‍ताक्षर कर के लौटीं तो उन्‍होंने सिस्‍टर जी को न सिर्फ भोजन कराया और  भैंस के दूध की बढि़या खीर  बना कर खिलाई बल्कि बच्‍चों के लिए टिफिन में भी भर कर दी। जब उनकी भूरी भैंस ब्‍याई तो उसकी पियूषी भी दी। इस तरह कई बार गुरू दक्षिणा दी ।

पिता पुत्र दोनेा उन्‍हें कम अक्‍ल समझते पर उन्‍होंने एक ऐसा  कारनामा कर दिया कि  जिसकी गांव में किसी को उम्‍मीद नहीं थी । असल में गांव के किनारे  एक बहुत छोटी सी बरसाती नदी बहती थी गरमियों में सूख जाती पर बरसात में वही प्रचंड बन जाती ,कई बार गाय  - बछड़े बह गए एक दो बार बच्‍चे बह गए । यह एक गम्‍भीर  समस्‍या  थी ।

 गांव का ही एक लड़का इंजीनियर बन गया। पहली बार नौकरी लगी तो उसके मां बाप उसे सरपंच जी द्रौपदीबार्इ के पास आर्शीवाद के लिये लाए ।उन्‍होंने पूछा –‘लल्‍लू का बन गए ?’

 वह बोला-‘अम्‍मा मैं इंजीनियर बन गया ।‘

 द्रोपदीबाई-‘लल्‍लू तो करेागे का?,इंजीनियर तो सुनत केऊ तरा के होत तुम काए के हो ?’

लल्‍लू –‘अम्‍मा! मैं सिविल इंजीनियर हूं बांध, पुल ,सड़कें बनाऊंगा ।‘

 द्रोपदी-‘अरे लल्‍लू तुम तरक्‍की करो आंगे बढ़ो । हमारो एक काम कर सकत?’ अपने गांव की नरिया पै कछू कर सकत ?’

लल्‍लू-‘ हां अम्‍मा बोलो का करने ?’

द्रोपदी बाई –‘लल्‍लू एक बार पूरी नरिया देख लो आज संझा के ही घूम आओ देखो व पै बांध कहां पर बन सकत? कैसे बनहे? कितेक बजट में बने ?दो –तीन दिना में बताओ। चलो जे ही पहले काम शुरू करो अपनी अम्‍मा की बेगार करो ।‘

 लल्‍लू –‘अरे अम्‍मा ! वो तो दिखी – दिखाई है का देखने । ‘

द्रोपदीबाई –‘ नहीं लल्‍लू !पहले तुम एक लड़का थे, चौमासे में खूब तैरे होगे डुबकी लगाई होगी ,अब एक इंजीनियर की नजर से चक्‍कर काट आओ,कहां बन सकत कैसे बनहे ?’ लल्‍लू –‘अम्‍मा  जे तो बड़ो काम है तुम अकेले करोगी?’ ।‘

द्रोपदी-‘ अरे लल्‍लू !तुम भूल रये तुम्‍हारी अम्‍मा अब सरपचं है ,अपन शुरू तो करें फिर रस्‍ता निकारेंगे ,तुम इतनो काम कर दो बस्‍स ।‘

            पांचवे दिन वायदे के अनुसार लल्‍लू जिसका असल नाम कृष्‍ण  कुमार था ,सारे  नक्‍शे और कागज लेकर हाजिर हो गया। द्रौपदी बाई ने उसका स्‍वागत किया वे उससे समझ ही रहीं थीं कि उनके पति आ गए-‘ अरे! क्‍या समझ रहीं? अब जे किसना का पढ़ा रओ ?’ कृष्‍ण  कुमार-‘ दादा !अम्‍मा नरिया पे बांध बनावे की कह रईं। सो समझा रये । हम सर्वे कर लाए।‘

 पति –‘ अरे तुम तो सिर्रिया गईं जे तो बहुत बड़ो काम है अपईं पंचायत कर सकत का? जो सुनहे सो हंसहें ! काए को अपना मजाक बनवा रहीं ।‘

 और वे जोर से हंसने लगे ,साथ में कृष्‍ण  भी धीमे -धीमे मुस्‍कराने लगा ।द्रौपदी-‘ अरे तुम काम बनावे के बजाय हंसी उड़ान लगे ,अपन कम से कम प्रस्‍ताव तो पंचायत में रख सकत, पास करवा कें सरकार खों तो भेज सकत बने न बने आगे की बात है ,हमारे बाद गांव में बात तो चलेगी कभऊं न कभऊं बनेगो ही ।‘

        यह बात सुन कर सरपंच पति महोदय की हंसी थम गई ।वे गम्‍भीर हो गए।, हां, ये बात तो तुमने सही कही आज तक गांव में कोनऊ सरपंच ने नहीं सोची चलो ठीक है शुरू करो ।‘

          कृष्‍ण  से मुखातिव होकर बोले-‘ हां किसन! हमें भी समझाओ ।‘और वे तीनों कागजों पर झुक गए और सामने फैले नक्‍शे को देखने लगे ।कृष्‍ण उन्‍हें कागज देकर बोला-‘ अम्‍मा! रख लो अब चलूं घर पर दादा- अम्‍मा इन्‍तजार कर रहे होंगे । बहुत देर हो गई।‘

द्रौपदी-‘लल्‍लू! इन्‍हें अभी तुम अपने पास रखो ,शहर जा कर इन्‍हें अपने सर को दिखाना ,बिन इंजीनियर साहब को दिखइयो जिनने पुल व बांध बनाए हों ।उसका तजुर्बा हो अगर हो सके तो, यहां आकर साईट देख जाएं, नाप जोख कर लें ,फिर तुम, जाय दोबारा तैयार करियो। जो कमी हो पूरी करके ,तब मोय दियो ।‘

 कृष्‍ण कुमार सुन कर थोड़ा घबड़ा गया । तो द्रोपदी बोली-‘ लल्‍लू! घबड़ाएं नहीं, उनका किराया देंगे, फीस भी देंगे, स्‍वागत करेंगे। तुम संकोच न करना।‘ पति की ओर इशारा करते बोलीं-‘ अगर जरूरत हो तो ,तुम्‍हारे साथ ये चले जाएंगे , हम सरकार को अर्जी दें तो कागज पूरे हों,तुम्‍हें भी खर्चा देगे ।‘

 उनके पति महोदय मुस्‍कराए बोले –‘अब तो तुम पूरी सरपंच बन गईं!’

कृष्‍ण -‘ नहीं अम्‍मा मुझे आपके आर्शीवाद के सिवा कुछ नहीं चाहिए ।‘ और उसने झुक कर द्रौपदी के चरण स्‍पर्श कर लिए ।

उनके पति मुस्‍करा कर बोले-‘ वाह बेटा !तब तो तुम ने कर ली इंजीनियरी, पहले धंधे का जुगाड़ होते ही न- न करने लगे ।‘

पत्‍नी की ओर मुखातिब  होते हुए –‘अरे इसे शहर में फोटो कॉपी वगैरह को तो कुछ दो बेचारा मांग नहीं पा रहा ।‘

          द्रौपदी ने अंदर जाकर से सौ का नेाट निकाल कर दिया-‘लो लल्‍लू! रख लो।‘ वह न न कर रहा था तो जबरदस्‍ती उसकी जेब में ठूंस दिया कहा-‘ मेरा आर्शीवाद बोहनी समझकर मानो ।‘ कृष्‍ण  चला गया ।

 

क्रमश: