ब्रेक अप
आज के लड़के लड़कियाँ प्रेम भी फटाफट और ब्रेक अप भी उतनी ही तेजी से करते हैं । कभी-कभी तो लगता है सुखद साथ के लिए वे प्रेम करते हैं। कभी-कभी दूसरों को दिखाने और जलाने के लिए भी प्रेम करते हैं। जिस्मानी जरुरत को पूरा करने के लिए भी प्रेम करते हैं । प्रेम में जब एक दूसरे को अपने प्रभामंडल / मिल्कियत में लेने की कोशिश करते हैं तब अहं का टकराव होता है और ब्रेक अप की नौबत आ जाती है। या जब उद्देश्य पूरे नहीं होते तब भावहीन होकर ब्रेक अप कर देते हैं।
उसने ब्रेक अप करते हुए मुझे से कहा कि उसे मुझे से कभी प्यार था ही नहीं। मुझे एकदम से शॉक लगा। मैं अपसेट हो गई और गुस्सा भी आया। तो क्या वह सब अभिनय था? एक स्वांग जिसे रचकर मुझे फँसाया गया था। ऐसा तो नहीं है कि उसने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाने के लिए प्यार का ढोंग रचा था?
इतनी बड़ी चूक मुझ से कैसे हो सकती है! उसकी आँखों में मैंने प्यार की चमक देखी है। वह मुझसे झूठ बोल रहा है। पर क्यों? कहीं वह किसी चक्रव्यूह में तो नहीं फंस गया है। या उसे घर वालों के दबाब में शादी तो नहीं करनी पड़ रही है। यह भी हो सकता है कि वह अपनी मर्जी से उससे विवाह करने जा रहा हो। या एक साथ दो लड़कियों से प्यार की पुंगी बजा रहा हो और अब उसने दूसरी के साथ जीवन गुजारने का निर्णय लिया हो। कुछ भी हो सकता है। इस मामले में उसने मुझसे बात तो की ही नहीं। मैं भी कितनी मूर्ख थी कि उसके जाल में फंस गई।
मुझे अपने आप से घृणा होने लगी। मैंने उसे इतना प्यार क्यों किया? जबकि उसने मेरी भावनाओं की कभी कद्र नहीं की, न ही मुझे इतना प्रेम दिया, कहता है ‘तुमसे प्यार था ही नहीं। पर मैंने तो प्यार किया था, अब मैं उससे प्यार करना कैसे बंद कर सकती हूँ !’
नहीं, सच्चाई को स्वीकार करना होगा। उसने तो अपनी तरफ से ब्रेक अप कर दिया है। और आगे का रास्ता भी तय कर दिया है। मैं ही अतीत में कब तक ठहर सकती हूँ मुझे भी अपने भविष्य को लेकर कुछ सोचना चाहिए। फिलहाल तो बहुत डिस्टर्ब हूँ।
मैं अवसाद से घिर गई। मैं करीब एक साल तक डिस्टर्ब्ड रही। इस बीच मैंने उसे फोन किया, उसने उठाया भी लेकिन बोला कुछ नहीं, मैं फोन पर हिचकियां भर-भर रोती रही लेकिन उसने संवेदना का एक शब्द नहीं बोला। बल्कि उसने फोन ही काट दिया। फिर उसे कईं मैसेज किये लेकिन कोई रेस्पॉन्स नहीं आया। आखिर उसने मुझे ब्लॉक कर दिया। मेरी इस निष्ठा का क्या अर्थ है! जब दूसरा उसे कोई भाव ही नहीं देता। मेरी पूरी निष्ठा के बदले उसका कोई कमीटमेंट नहीं, उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं!
इस दौरान मैंने अपनी अंतरंग सखी मधु से बात की, आखिर किसी के सामने तो अपना दिल खोलना चाहिए, कुछ दिल का बोझ हल्का तो होगा। ‘प्यारी महक तू कौन से जमाने में जी रही है? ये इक्कीसवीं सदी है जमाने को ठोकर मार और आगे बढ़। दुनिया में एक से एक अनमोल हीरे पड़े है तो तू क्या कांच के चक्कर में अपना जीवन बर्बाद कर देगी? जो हो चुका, उसे स्वीकार तो करना होगा। जो हो गया वह अतीत का हिस्सा है भुला दे उसे और अपने भविष्य की सोच। यह जीवन एक बार मिलता है यूं रो रोकर बर्बाद न कर।” फिर रुक कर बोली, “मान लो वह अगर तुझे वापस मिल जाय तो क्या तू उसे स्वीकार कर लेगी? बता।“ उसने ऐसा सवाल मेरे सामने रख दिया जिसका उत्तर इतना आसान नहीं था। उस बेवफा को पाकर क्या पा लूँगी? उसने मेरे प्यार का अपमान किया, मेरे रोने पर भी जिसका दिल नहीं पसीजा उसे पाकर क्या होगा? नहीं, नहीं वह मेरा जीवन साथी बनने लायक नहीं है।
धीरे-धीरे मैंने चीजें जैसी है वैसे उन्हें स्वीकार करना शुरू किया। अवसाद से बाहर निकलने की भरसक कोशिश की। अगर इस कोशिश में सफल नहीं हुई तो हमेशा के लिए मनोरोगी होकर जीवन को बर्बाद कर बैठूँगी। मैं एक हाथ की ताली बजाने की कोशिश कर रही हूँ जिसे कभी बजना ही नहीं है। मैं जबरदस्ती किसी के गले कैसे पड़ सकती हूँ! प्यार तो खोया ही खोया, अब स्वाभिमान भी कुचल जाएगा।
तो क्या करना चाहिए? ‘ऐसी गतिविधियों में अपने को लगाएं जहाँ आप ग्रो कर सकें। अपने व्यक्तित्व को संवार सकें। व्यक्तित्व के विकास के लिए यह जरूरी है कि अपने से प्रेम करें और खुद का अच्छा संस्करण तैयार करें। अपने को नकारात्मक रूप से ‘जज’ करना बंद करें। इस जहान में स्वयं का होना सबसे जरूरी है। और इस ‘होने’ से प्रेम करें ।‘
उसके बारे में सोच-सोच कर अपना समय खराब क्यों करना? उससे क्या हासिल होना है? अब जब मुझे वह चाहिए ही नहीं तो उसके नाम वक्त क्यों बर्बाद करना। बेहतर है फॉर्गिव एण्ड फॉर्गेट। वह एक हवा का झौंका था जो आया और चला गया। वह अब मेरे जीवन का नियंता नहीं हो सकता। मैं अपने आप में पर्याप्त हूँ।
फिर एक दिन अचानक उसका फोन आया। मैंने फोन काट दिया। फिर थोड़ी देर बाद वापस फोन आया, उठाया यह जानने के लिए कि आखिर क्या कहना चाहता है?
‘पहले तो ब्लॉक किया और अब फोन क्यों कर रहा है?’ उसके बोलने के पहले ही वह गुस्से में बोल गई।
‘सॉरी, मैंने तेरा दिल दुखाया, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।‘
“तेरे मुँह से तेरे मन की सच्चाई निकल गई। नहीं तो मैं जीवन भर भ्रम में ही रहती कि मुझे कितना प्यार करने वाला जीवन साथी मिला है।“
“गलत सोच रही है तू, आई रियली लव यू रदर ‘आई एम मेडली इन लव विद यू। यह तो तुमसे दूर रहकर मुझे मालूम हुआ। मेरे जीवन से तो ‘महक’ ही निकल गई।”
‘तुम्हें तो मुझ से प्यार था ही नहीं फिर ये सब नाटक क्यों?’
‘नाटक तो पहले था जो परिवार के दबाब में किया था। ‘मुझे तुमसे प्यार था ही नहीं’ यह इसलिए कहा ताकि तुम मुझसे घृणा करने लगोगी और आगे का रास्ता तय कर सकोगी।‘
‘यानी तुमने मेरी भलाई के लिए ये बात कही थी क्यों?’
‘मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था, उस समय मुझे यही बात ठीक लगी।‘
‘तो अब क्या हो गया ?’
‘होना क्या है तुझ से जुदा होकर देख लिया, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। कुछ भी हो मुझे तेरे साथ रहना है।‘
“सुनो मैंने मेरी सहेली से तब इस बारे में बात की थी। उसका प्रश्न था कि अगर वह तुम्हें फिर मिल जाय तो क्या तुम उसे एक्सेप्ट करोगी? तब मेरा उत्तर था ‘नहीं जो अपने प्यार से सच नहीं बोल सके जो अपने प्यार का भरोसा तोड़ते जरा सा वक्त न लगाये क्या वह मेरे लायक हो सकता है। प्यार भी नहीं, भरोसा भी नहीं फिर किस बात का जीवन साथी। प्यार और विश्वास के बिना जीवन सफर क्या सुखद हो सकता है? जीवन खाली खोखला हो जायगा, ऐसा जीवन न तुम चाहोगे न मैं।”
“फिर पहले जैसा हो सकता है एक कोशिश करके तो देखो।”
“और जो गांठ बीच में पड़ गई है उसका क्या?”
“दोनों मिलकर खोल देंगे। पहल मेरी ओर से मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा इसके लिए माफी ही माँगता हूँ, माफ कर दो, प्लीज।”
‘कल आकर मिलो, दिल खोलकर सारी बात बताओ आँख में आँख डालकर फिर माफी मांगो तब सोचा जायेगा।” और उसने फोन बंद कर दिया।
दूसरे दिन वह आया। गले मिला, और आँसुओं भरी आँखों से सारा मामला बयान किया। माफी भी मांगी।
“मुझे तेरे भरोसे की जमानत चाहिए।”
“किसकी जमानत चाहिए? मेरा दिल तो अमानत के तौर पर तुम्हारे दिल में रखा है।”
“तेरे माँ बाप की जमानत चाहिए कि वे इस रिश्ते को मंजूर करते है। आखिर शादी के बाद मुझे उनके ही घर में तो रहना है।”
“यह तो जरा मुश्किल है वे आन बान शान वाले हैं, टूटेंगे पर झुकेंगे नहीं। मैं स्वयं अपने को प्रेम में पूर्ण समर्पण करता हूँ।”
“यह समर्पण पहले भी कर सकते थे, पर नहीं किया।”
इतने में उसकी सखी मधु आ गई। वस्तुतः उसने ही उसे बुलाया था।
“तो सुलह-सफाई चल रही है, यही है तेरा प्रेमी।” उसके स्वर में व्यंग्य था। “क्यों मजनूँ अब क्या हो गया? तुझे तेरा प्रेम वापस चाहिए?” वह चुप रहा। क्या बोलता!
“मुझे अपने किये पर पछतावा है बस मुझे स्वीकार कर लो।”
“यह तो अपनी महक से कहो, वो ही तुम्हें स्वीकार करेगी।”
महक ने दृढ़ स्वर में अपना निश्चय सुना दिया, “पहला वाला ब्रेक अप एक तरफा था इसे मुकम्मल बनाने के लिए जरूरी है कि यह दो तरफा हो इसलिए अब मेरी ओर से भी ब्रेक अप। यह फाइनल है। आगे कोई बहस नहीं। मैं ब्रेक अप के बाद खुश हूँ।”
“ये ठीक किया तुमने, शादी किए बैठा है और तुम्हें भी पाना चाहता है यह भी भला कोई बात हुई !” महक की सखी ने कहा।