मायका एक सुकून का घर Sarika Sangani द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मायका एक सुकून का घर

गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गई। साथ ही किट्टी पार्टी की तारीखों में फेरबदल शुरू हो गए। भाई क्यों न हो, आखिर सबको मायके जो जाना था। बस एक रूपाली को ही वेकेशन न था। सब सहेलियां अपने ट्रेन की ,फ्लाइट की टिकटें बताकर कितनी खुश थी पर उसकी आंखे नम हो चली थी। तभी किसीने पूछ ही लिया, " अरे रूपाली क्या तुम्हे मायके नही जाना ? " रूपाली घबड़ाकर बोली, " नही, इसबार नही, छुट्टियों में घर का काम करवाना है।" कह तो दिया पर उसका मन ही जनता था की मायके ना जा पाने की टीस क्या होती है।
कहने को तो रूपाली का मायका था। वह भी काफी संपन्न एवं सुखी। पर मां _ बाबूजी के जाने के बाद भैय्या_ भाभी ने कोई रिश्ता ही न रखा । कभी सालमे एखाद बार भी फोन न किया । जब रूपाली ने सामने से खुद होके फोन किया तो भैय्या ने ठीक से बात तक न की। कोई मनमुटाव की बात तो न हुई कभी फिरभि न जाने क्यो भैय्या ने तो बहना को भुला ही दिया। अब ऐसेमे वह मायके जाती भी तो कैसे? चाहे कितने ही बरस हो जाए, ससुराल से निकलने के लिए मायके का एक खत , एक मनुहार का फोन तो लगताही है। वरना ससुराल वाले यूं भेजते नही। पर भैय्या _ भाभी ने तो कभी तीज_ त्योहार पे भी फोन न किया। शायद बहुत व्यस्त थे। ससुराल में सास और जेठानी रूपाली को ताना कस ही देती थी के ,"हम तो तुम्हे खुशिसे भेजेंगे पर पहले कोई लिवाने तो आए।" मां _ बाबूजी के परलोक सिधारतेही , भैय्या ने उसे पराया कर दिया। उससे उसके सुकून का घर छीन गया।
बहुत ही बोझिल मन से रूपाली घर लौटी।और रात भर तकिए के सिरहाने रोती रही। कुछ गम अपनो को भी बताए नही जाते। मायके की तड़प वही समझ सकता है जिसका अपना मायका न हो।खैर, सुबह रूपाली सबका चाय _ नाश्ता बनाने में जुटी हुई थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी। इतनी सुबह कौन आ गया ये सोचते हुए उसी ने दरवाजा खोला , सामने देखा तो भौंचक्की सी रह गई। सामने उसके भैय्या एक हाथमे छोटा सूटकेस और दूसरे में बड़ा सा तोहफा लिए खड़े थे। इतने सालों बाद अपने भाई को देख रूपाली की खुशी का ठिकाना न था।
उसने बड़े प्यार से भैय्या का स्वागत किया। औपचारिक बाते हुई, चाय नाश्ता हुआ। भैय्या ने उसके बेटे को तोहफा दिया, मिठाई के डिब्बे और फल दिए। रूपाली भी भाई की आवभगत के लिए व्यंजन बनाने में लग गई।
जब दोपहर के खाने के बाद रूपाली अपने भाई से दो बातें करने उनके पास बैठी। तब भाई की आंखो से आंसू निकल आए। रूपाली का हाथ अपने हाथ में ले कर भैय्या ने कहा, " मुझे माफ़ करदो दीदी। मां _बाबूजी के जाने के बाद मैने आपकी बिल्कुल परवाह नही की । मैं परिवार के मूल्य को समझ ही न सका। लेकिन जब मैंने अपने ससुराल में मेरे पत्नी के भाइयों को जायदाद के लिए उससे लड़ते देखा , उनके भाई बहनों को एक_ दूसरे को कोर्ट तक घसीटते देखा तब मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ। तब मुझे ख्याल आया कि आपने तो सिवा प्यार के हमसे कभी कुछ मांगा ही नही। मैने आपके साथ बहुत गलत सुलूक किया है दीदी। पर अब मैं अपनी गलती सुधारना चाहता हु।अपना सामान पैक करलो दीदी, मैं आपको आपके सुकून के घर , आपके मायके ले जाने आया हु। आपका मायका, आपके भैय्या_ भाभी, आपके भतीजे सब आपका इंतजार कर रहे है। चलिए दीदी।"
यह सुनतेही रूपाली की आंखो से खुशी के आंसू छलक पड़े। बोझिल मन पर से हल्का हो गया ,मानो किसीने दिल पर पड़ा पत्थर हटा दिया हो।
देर सेही सही पर आखिर उसे अपना सुकून का घर वापस मिल ही गया। उसका मायका लौट आया।