फिल्म के नाम में ही उलझना लिखा है तो बस उलझ जाओ इस फिल्म की कहानी में। इस कॉन्सेप्ट को हिन्दी सिनेमा देखने वाले आसानी से डाइजेस्ट नहीं कर पाते क्यूंकी हमें मसाला और मस्ती चाहिए, यहाँ थोड़ा अलग टेस्ट है , मस्ती है पर मसाला सामान्य व्यक्ति की समझ से एक टेबल स्पून अधिक है । फिल्म एमेज़ोंन प्राइम पर है, अब घर तक आ गई है तो देख लीजिए, इतनी भी बुरी नहीं है ।
कहानी समझने से पहले समझते हैं मनोविज्ञान। आज कल लड़के और लड़कियां शादी करने से कतराते हैं । वजह है की उन्हें शादी करने का कोई ठोस कारण नहीं मिल रहा। नवजवान लड़के लड़कियां आज कल अच्छा पैसा कमा लेते हैं । उस पैसे से आपको चाहिए वह साधन सामग्री मिल जाती है जिससे क्षणिक सुख मिल जाता है । अगर सब कुछ पैसे से मिल रहा है तो शादी क्यूँ?
घर संसार में तो जिम्मेदारी होगी, एडजस्टमेंट होगा , कॉम्परोमाइज़ होगा , पर अगर शादी नहीं तो सुख और आनंद। यह है आज कल के लड़के लड़कियों का ओपिनियन। और अगर शादी करनी है तो सब कुछ परफेक्ट चाहिए। कद, काठी, पसंद , नापसंद, खूबसूरती , ज्ञान वगैरह, सब कुछ वर वधू में मिले तो ही शादी करेंगे। अब सब कुछ परफेक्ट होना संभव नहीं हो पाता इसलिए सिंगल रहना पसंद करते हैं । यह था मनोविज्ञान, जो ले गया शाहिद कपूर को कृति सेनन की तरफ।
कृति मतलब सिफरा और शाहिद मतलब आर्यन अग्निहोत्री। सिफरा इतनी परफेक्ट है की हजारों लड़कियों के गुण एक मे डाल दो तो एक सिफरा बने। खाना , बोलना , नाचना , इश्क लड़ाना और नजाने क्या क्या है इस लड़की में । आर्यन खुद परफेक्शनिस्ट है, इस प्रकार के लोगों को दूसरे लोग कम पसंद आते हैं । पर सिफरा पेरफेक्ट से भी बड़ी पेरफेक्ट है तो जोड़ी तो बननी ही थी। दोनों का नाचना गाना और बहुत कुछ। पर फिर आता है कहानी में ट्विस्ट, कैसे ?
एक महान किरदार है डिम्पल कपाड़िया मतलब उर्मिला शुक्ल, आर्यन की मासी। ये मासियाँ दोस्त भी होतीं हैं और सलाहकार भी । मम्मी जैसी पर मम्मी से अलग। आर्यन की केमेस्ट्री मासी से मैच करती है क्यूंकी उर्मिला अपने भांजे से भी ज़्यादा पेरफेक्शनिस्ट है । सिफरा को आर्यन के करीब लाने में उर्मिला का हाथ पाँव दिमाग सब कुछ है ।
सिफरा के कारनामे आपको बहुत हसाएंगे और अंत में रुलाएंगे। आगे कहानी फिल्म देखकर पता करें, फिल्म में बहुत अच्छी मात्रा में कॉमेडी है, गाने लाजवाब हैं और कहानी थोड़ी प्रिडिक्टिव है। पर सब कुछ पता हो फिर भी देखने को मन करे तो समझो एंटरटेनमेंट तो है। शाहिद कपूर बिचारा बहुत मेहनत करता है और डांस , कॉमेडी, एक्टिंग सब कर लेता है पर फिल्म इंडस्ट्री इस बंदे को अभी भी सिरियस्ली नहीं ले रही। मुझे लगता है जब सब विकल्प खतम हो जाते होंगे तभी शाहिद को अंतिम विकल्प के तौर पर पसंद किया जाता होगा। शाहिद को देखने स्पेशियली कोई सिनेमा नहीं जाता। उसकी फिल्म जर्सी आई और चली गई, ब्लाडी डैडी अभी देखना बाकी है ।
प्रश्न ये है की क्या रोबोट इंसान के साथ जिएंगे ? हमारे साथ चलेंगे , खायेंगे, पियेंगे और वो सब कुछ करेंगे जो एक इंसान दूसरे इंसान के साथ करता है? अकेलापन आज कल के समय की बहुत बड़ी समस्या है, और शायद रोबोट में लोग अपना अकेलापन दूर करने का माध्यम तलाश करें। पर क्या ये दोस्ती और प्यार रोबोट सच में कर पाएंगे?
लेखक और निर्देशक अमित जोशी ने पहले ट्रैप्ड फिल्म राजकुमार राव के साथ और दूसरी बबली बाउंसर तमन्ना भाटिया के साथ बनाई है। इस फिल्म के साथ उन्हें नए विषयों पर काम करने के लिए निर्माता आमंत्रित कर सकते हैं। फिल्म के ४ गाने सुपर हिट हैं। २ गाने तो तनिष्क बागची के हैं और एक सचिन जिगर का। इतने हिट हैं को जब ये रेडियो पर बजते थे तो मुझे ये पता नहीं था फिल्म कौनसी है पर बहुत अच्छे लगते थे। तो फिल्म थोड़ी अंडर रेटेड है। देखने जैसी है।
आपको यह रिव्यू कैसा लगा अवश्य कमेंट में बताएं।
– महेंद्र शर्मा