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ब्रीद - इन टू शैडोज़ ,वैब सीरीज़ रिव्यू

ब्रीद - इन टू शैडोज़ ,वैब सीरीज़ रिव्यू

ब्रीद - इन टू शैडोज़ यह ब्रीद सीरीज़ सिज़िन 2 है , जिसके मूल में है गुनाहों की दुनिया, उनका मनोवैज्ञानिक तौर से विश्लेषण और पुलिस का गुनहगारों को खोजकर गुनाह की तह तक पहुंचना।

गुनाह और गुनहगार दोनों के पीछे हमेंशा एक कहानी होती है और उस कहानी के रोमांच को दर्शकों के सामने रखना आज कल वेब सीरीज़ के लिए सक्सेस फॉर्मूला बन गया है। क्योंकि यह कहानियां आपको सामान्य सोच से परे एक कातिल, एक चोर, एक वकील, एक डॉक्टर या एक पुलिस के नज़रिए से सोचने पर मजबूर कर देतीं हैं और आप इन सीरीज़ को देखते हुए किसी न किसी पात्र से जुड़ जाते हो और उसकी तरह सोचते हो। आपके विचार और वेब्सिरिज़ साथ साथ चलते हैं , आप सोचते हो कि अब ये किरदार यह काम करेगा, अब यह वो काम करेगा, अब यह इस प्रकार सोचता होगा, बस यही वजह है की आजकल वेब सीरीज़ देखने का ट्रेंड बढ़ रहा है। एक और खास बात यहां बता दें कि यहां हिंदी फिल्मों की तरह हीरो की दबंग बातें नहीं दिखाते, वो स्टाइल से सिगरेट पीना, लड़की पटाना, गाने गाना, वो लड़की को भगा के शादी करना जैसी सिकवन्स वेब सीरीज़ में नहीं होतीं। इस वजह से भी युवा प्रेक्षक वेब ज़िरीज़ ज़्यादा पसंद करते हैं।

अब बात करें ब्रीद सीज़न 2 मतलब इन टू शैडोज़ की। एक साइकियाट्रिस्ट मतलब मनोचिकित्सक डॉ अविनाश सबबरवाल के खुशहाल परिवार पर एक बड़ी मुसीबत आ जाती है। उनकी बेटी का अपहरण हो जाता है और 9 महीने तक उन्हें अपनी बेटी नहीं मिलती। अविनाश की पत्नी आभा जो एक छेफ है, बढ़ी परेशान रहती है, बेटी को ढूंढने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है पर कुछ हो नहीं पाता। फिर उन्हें एक कुरियर आता है जिसमें उन्हें एक टैबलेट पर उनकी बेटी का वीडयो दिखाया जाता है, उनकी बेटी स्वस्थ है और एक दूसरी लड़की के साथ खेल रही है, दूसरी लड़की एक कॉलेज स्टूडेंट लग रही है। बच्ची का नाम सिया है और वह बचपन से डायबटीज़ के रोग से पीड़ित है, उसे हर रोज़ इन्स्युलिन इंजेक्शन लगते हैं। वह कॉलेज स्टूडेंट सिया को इन्स्युलिन देते हुए भी वीडयो में दिखाई गई है। इस वीडयो में अपहरण करता भी दिखाई दिया जो वीडयो के माध्यम से सिया के माता पिता को कहता है कि उन्हें अगर सिया वापस चाहिए तो उन्हें एक व्यक्ति को जान से मारना होगा।

यहीं से शुरू होती है कशमकश, अविनाश और आभा पढ़े लिखे लोग हैं, जुर्म से उनका कोई नाता नहीं। अविनाश एक साइकायट्रिस्ट है जो पुलिस को कुछ केसिस में मदद करता है। अपहरणकर्ता ने शर्त रखी है कि अगर उन्हें अपनी बेटी सिया चाहिए तो उन्हें एक व्यक्ति को जान से मारना होगा। मतलब एक जान को बचाने के लिए दूसरी जान लेनी है। आभा ने इस काम के लिए अविनाश को मना लिया, उसका मानना है कि इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं। क्योंकि पुलिस सिया को ढूढने में बिल्कुल नाकामयाब हो चुकी है। अब अविनाश उस व्यक्ति की तलाश करता है जिसे उसे मार डालना है। उसे खोज कर उसकी दिनचर्या पर नज़र रखता है और पता लगाता है कि उस व्यक्ति को गंदगी का फोबिया है। मतलब गंदगी देखते ही यह व्यक्ति मतलब प्रितपाल सिंह गुस्सा हो जाता है। तो प्रितपाल के मरने का कारण गंदगी होगी ऐसा प्लान अविनाश बना लेता है। प्रितपाल को एक कचरे के ढेर के पास ही अविनाश द्वारा मारा जाता है। पर फिर अविनाश और आभा को दूसरा वीडयो मिलता है और एक और कत्ल करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है।

शुरुआती एपिसोड बहुत दिलचस्प हैं पर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, थोड़ी प्रिडिक्टेबल हो जाती है। कहानी में मनोविज्ञान का भरपूर प्रयोग है जो शायद कई लोगों की दिलचस्पी को कम कर सकता है। कहानी में फिर एक बार रावण का ज़िक्र है और उसके दस सिर और उसकी दस खामियों को कहानी का आधार बनाने का निष्फ़ल प्रयत्न किया गया है। आज कल पौराणिक पत्रों को लेकर कहानियों को लिखना भी ट्रेंड में है।कहानी में एक बढ़ी मनोवैज्ञानिक बीमारी या परिस्थिति ' मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर MPD ' को दर्शाया गया है। इस बीमारी को लेकर बहुत विवाद होता रहा है, कम पढ़े लिखे लोग इसे भूत प्रेत का नाम देते हैं और कुछ पढ़े लिखे लोगों ने इसे मानसिक बीमारी के तौर पर स्वीकर देकर उचित चिकित्सा करवाई है। पर क्या हम इस समस्या को बीमारी के तौर पर स्वीकार करेंगे?

डॉ अविनाश सब्बरवाल के रोल में हैं अभिषेक बच्चन, जिन्हें काफी समय बाद एक अच्छा या फिर कहो उन्हें सूट होता रोल मिला, वे गंभीर किस्म के एक्टर हैं और इस किरदार में उन्होंने अच्छा काम किया है। आभा सब्बरवाल के रोल में हैं नित्या मेनन, जिन्हें आप मिशन मंगल में साइंटिस्ट के रोल में देख चुके हैं। साउथ की फिल्मों में बहुत नाम कमाया है इन्होंने और अब हिंदी फिल्म और वेब सीरीज़ में अच्छा काम कर रहीं हैं। इंस्पेक्टर कबीर सावंत के रोल में हैं अमित साध, जिन्हें वेब सीरीज़ स्पेशलिस्ट कहा जाता है। इन्हें सुल्तान और गोल्ड फ़िल्म में बहुत प्रशंसा मिली थी और अब हर दूसरी या तीसरी वेब सीरीज़ में आप इनको पाओगे। हृषिकेश जोशी और श्रीकांत वर्मा ने पुलिसवालों का बहुत ही बढ़िया रोल किया है। कॉमेडी करने का विफल प्रयास हुआ पर उसमें किरदार का कोई दोष नहीं। प्लाबिता बोर्थाक़ुर ने एक डिसेबल्ड लेडी के रुप में अच्छा किरदार निभाया जो इंस्पेक्टर कबीर सावंत की वजह से ही डिसेबल्ड हुई थीं। सिया सबरवाल मतलब किडनैप हुई बच्ची का रोल निभाया है इवाना कौर ने, छोटी बच्ची का रोल भी छोटा है पर उम्र के हिसाब से काम अच्छा है।

कुछ किरदार ऐसे भी थे जो नहीं होते तो काम चल जाता , शायद खर्च कम कर देते पर उन्हें रखने से कहानी को मज़बूत करने का प्रयत्न किया गया है। जैसे विभावरी देशपांडे जो पुलिस्टेशन के सामने एक लॉज चलातीं हैं और इतिफाक से एक पुलिस वाले कि एक्स गर्लफ्रेंड हैं। किरदार और काम दोनो अच्छे हैं पर क्या होता अगर वह किरदार नहीं होता? वह तो डाइरेक्टर जाने। सैयामी खैर भी ऐसा ही एक कॉल गर्ल का किरदार निभा रहीं हैं जिसमे उनकी प्रतिभा बिल्कुल बाहर नहीं आयी। कंसेप्ट एक दम बढ़िया है पर कहानी लॉजिक पर मार खा जाती है। क्यों कोई व्यक्ति एक छोटी सी गलती के लिए दूसरे को खत्म करना चाहता है? यह समझने के लिए शायद मनोविज्ञान को पढ़ना और समझना पढ़ेगा। पर फिल्में और वेब सीरीज़ अगर पढ़ने को मजबूर करें तो कोई क्यों फिल्में देखेगा। यहां सब कुछ स्क्रीन पर दिखाना ज़रूरी है जिससे प्लॉट को मज़बूती मिले।

अभिषेक बच्चन के लिए यह सीरीज़ बहुत ही शुभ रही, उन्हें अब बहुत अच्छे काम मिल रहे हैं।

वैसे मैं वेब सीरीज़ जल्दबाज़ी में नहीं देखता, एक या दो एपिसोड देखकर फिर अगके दिन एक या दो एपिसोड देखता हूँ, इतने समय में खाने की तरह मुझे कहानी हज़म करने का भी समय मिल जाता है। बिंज वॉच आपकी मानसिक स्थिति को चुनौती दे सकता है, सतर्क रहें और ज़िंदगी और वेब सीरीज़ आराम से जिएं।

- महेंद्र शर्मा 29.11.2020

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