बहुत देर लग गई शर्माजी इस फिल्म का रिव्यू लिखने में?
जी बिलकुल, मेरी व्यस्तता कहें या फिर लिखने का माहोल नहीं बन रहा था ये कह दें। दोनों ही झूठ हैं जिसे कहकर आपका समय व्यर्थ नहीं करूंगा। फिल्म सिनेमाघर से नेटफ्लिक्स पर भी आ चुकी थी, मैंने नेटफ्लिक्स अभी तक नहीं लिया क्योंकि एमेजॉन, जी, सोनी, होटस्टार पर ही इतनी फिल्में और सीरीज हैं जिन्हें देख नहीं पाया तो अन्य ओटीटी लेकर अपने पैसे व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहता था। इसलिए जैसे ही फिल्म ओह माई गॉड जियो सिनेमा पर आई और २९ रूपए का पैकेज मिला, मैने ले लिया और फिल्म देख ली। ओह माई गॉड प्रथम वाली मैंने ९ बार देखी है और खुद को कई बार आस्था और अंधविश्वास के बीच नापा तोला है। अब जब ओह माई गोड २ की घोषणा हुई तब प्रतीक्षा थी की एक बार फिर ईश्वर और मनुष्य के बीच आस्था और विश्वास की टक्कर होगी, पर यहां थोड़ी निराशा प्राप्त हुई।
इस फिल्म के माध्यम से बालकों में यौन शिक्षा के लिए जागृति लाना और इस विषय पर चल रहे अवैज्ञानिक बातों और धंधों को दर्शकों के सामने लाना था। जिसपर पूरा ध्यान केंद्रित करके फिल्म की घटनाओं और कहानी को लिखा गया है। पंकज त्रिपाठी , अक्षय कुमार और यामी गौतम को भी अच्छे किरदार देकर उनकी अभिनय कुशलता को दर्शाया गया है पर फिर कहां चूक रह गई है की जिसकी वजह से फिल्म दर्शकों के दिलो दिमाग पर अपना वर्चस्व नहीं बना पाई? ऐसा क्या है की शायद आप एक बार देखकर फिर इसे देखना नहीं चाहेंगे?
सबसे बड़ा कारण है विषय और संवाद लेखन। इस विषय को ओह माई गॉड से क्यों जोड़ा गया? इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा? यौन शिक्षा के विषय में यहां ईश्वर का कार्य केवल इतना था की शिवलिंग को सदियों से पूजा जा रहा है लेकिन यौन शिक्षा को वर्तमान में सिखा सके ऐसे माध्यमों की कमी है। यौन शिक्षा पाठशाला में कौनसी कक्षा से पढ़ाई जाए और कहां तक पढ़ाई जाए यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर अभी तक विद्यालय और संचालन संस्थान को नहीं प्राप्त हुआ।
यौन शिक्षा को लेकर कोर्ट रूम तक जाना और पाठशाला को यह शिक्षा एक योग्य माध्यम और प्रमाण में नहीं पढ़ाने पर उनको कोर्ट में ले जाना इस मुद्दे को बहुत बड़ा बनाने के लिए पर्याप्त है पर इसमें भगवान की उपस्थिति और उनकी कृपा और ज्ञान से इस मार्ग पर आगे चलना, भगवान का भक्त के आस पास रहना और मार्गदर्शन करते रहना, यह सब उतना प्रभावित नहीं कर रहा था जितना ओह माई गॉड प्रथम वाली फिल्म में हुआ था।
यौन शिक्षा के मुद्दे पर न्यूज चैनल का कांति शरण के साथ होना, युवाओं का उनके साथ आकर आंदोलन करना और फिर कोर्ट का माहौल, निर्देशक शायद उतना उत्तेजक और रोमांचक नहीं करवा पाए। संवाद और दलीलें सामान्य रहीं और कहानी रोचक नहीं बन पाई। अक्षय कुमार अपना श्रेष्ठ दे पाते अगर उन्हें उचित संवाद और समय दिया जाता। कुल मिलाकर एक बहुत संवेदनशील मुद्दे को भावनाओं का चोला और आस्था के आभूषण पहना दिए हैं।
हंसराज रघुवंशी का गीत ऊंची ऊंची वादी में रहते हैं भोले शंकर बहुत अच्छा लगा, यह गीत लोग सालों तक गाते रहेंगे। एक पिता की अपने बेटे के लिए पूरी दुनिया से लड़ाई इस फिल्म की सबसे साकारात्मक बात है। ईश्वर ऐसे पिता सबको दे।
आपको यह समीक्षा कैसी लगी कमेंट में अवश्य बताएं।
– महेंद्र शर्मा