अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२२) Saroj Verma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२२)

उधर सतरुपा फार्महाउस में कैद थी और इधर दिव्यजीत सिंघानिया हड़बड़ाया सा अपने विला पहुँचा और उसने अपनी माँ शैलजा को पुकारते हुए कहा....
"माँ...माँ..."
"क्या बात है बेटा तू इतना घबराया हुआ सा क्यों हैं?",शैलजा ने पूछा...
"माँ! क्या देविका घर आ गई",दिव्यजीत ने पूछा...
"ये क्या कह रहा है तू! वो तो तेरे साथ गई थी तो तेरे साथ ही वापस आऐगी ना!",शैलजा बोली...
"नहीं! माँ! वो मेरे साथ वापस नहीं आई",दिव्यजीत बोला...
"क्या कहा....वो तेरे साथ वापस नहीं आई तो कहाँ गई",शैलजा बोली...
"वही तो नहीं मालूम माँ कि वो कहाँ गई",दिव्यजीत बोला...
"तू कहना क्या चाहता है?",शैलजा ने पूछा...
तब दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"माँ! मैंने फार्महाउस से आते वक्त बीच में थोड़ी देर के लिए अपनी कार रोकी थी,देविका को कोल्डड्रिंक पीनी थी ,इसलिए मैं एक ढ़ाबे से कोल्डड्रिंक लेने चला गया,जब वापस आया तो देविका वहाँ नहीं थी,फिर मैंने आस पास उसे हर जगह खोजा लेकिन वो मुझे कहीं नहीं मिली,तब मैंने सोचा शायद वो आटो या टैक्सी पकड़कर घर आ गई होगी,लेकिन यहाँ आकर मालूम चल रहा है कि वो तो घर पहुँची ही नहीं",
"हे! भगवान! ये क्या हो गया,बड़ी मुश्किलों से तो मिली थी वो हम लोगों को,फिर से खो गई,आखिर कहाँ चली गई वो",शैलजा बोली...
"वही तो मैं भी सोच रहा हूँ",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"बेटा! तू ऐसा कर,अभी पुलिस स्टेशन जाकर उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाकर आ",शैलजा बोली....
"हाँ! यही ठीक रहेगा,मुझे तो डर है कि कहीं फिर से उसे किसी ने किडनैप तो नहीं कर लिया",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"शुभ..शुभ...बोल बेटा!",शैलजा बोली....
"तो माँ मैं पुलिस स्टेशन जा रहा हूँ,रिपोर्ट लिखाकर बस अभी आया",
और ऐसा कहकर दिव्यजीत सिंघानिया अपनी कार में बैठकर पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ा,पुलिस स्टेशन पहुँचकर वो भागा भागा सा भीतर जाकर इन्सपेक्टर धरमवीर से बोला....
"सर! वो नहीं मिल रही है,जाने कहाँ गई?"
"कौन नहीं मिल रही है?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"वही ..देविका" दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
सतरुपा के खो जाने की खबर सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर भी चौंककर बोले.....
"ऐसे कैंसे गायब हो गई वो?"
"ना जाने कैंसे गायब हो गई वो,मैं तो उसे ढूढ़ ढूढ़कर थक गया",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"कहाँ से गायब हुई वो,कुछ बताऐगें मुझे",इन्सपेक्टर धरमवीर ने गुस्से से पूछा...
"मैं और वो हमारे फार्महाउस घूमने गए थे,आते वक्त रास्ते में मैं एक ढ़ाबे से कोल्डड्रिंक लेने उतरा,वो कार में थी,मैं वापस लौटा तो वो गायब थी,मैंने उसे बहुत ढूढ़ा लेकिन वो नहीं मिली",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"झूठ बोलते हैं आप,मुझे आपकी किसी बात पर यकीन नहीं है" इन्सपेक्टर धरमवीर गुस्से से बोले....
"इन्सपेक्टर साहब! वो बीवी तो मेरी है लेकिन ऐसा लगता है उसकी फिक्र मुझसे कहीं ज्यादा आपको है" दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"ऐसी बात नहीं है सिंघानिया साहब! उसे मैंने ही ढूढ़ा था और आपने उसे फिर से खो दिया,इसलिए आप पर मुझे गुस्सा आएगा ही ना! ये तो जायज सी बात है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"ना जाने किस हाल में होगी बेचारी,मुझे उसकी बहुत फिक्र हो रही है"दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
दिव्यजीत की बात सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर का मन जल उठा,उन्हें पूरा यकीन था कि सतरुपा के साथ दिव्यजीत सिंघानिया ने ही कुछ किया है और यहाँ आकर उसकी गुमशुदगी की झूठी रिपोर्ट लिखाने चला आया,कमीना कहीं का,अब ना जाने सतरूपा कहाँ होगी,मेरी वजह से बेचारी की जान खतरे में पड़ गई,तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने मन में सोचा,ये इन्सान इतना कमीना है कि खुद से तो कुछ कुबूलने वाला नहीं है,मुझे कुछ और ही करना होगा इसका मुँह खुलवाने के लिए,इसलिए पहले इसे यहाँ से जाने के लिए कहता हूँ और करन के पास जाकर सब बताता हूँ,इसलिए उस समय इन्सपेक्टर धरमवीर ने दिव्यजीत सिंघानिया को पुलिसस्टेशन से जाने के लिए कह दिया और दिव्यजीत वहाँ से चला गया...
इसके बाद इन्सपेक्टर धरमवीर ने फौरन करन को फोन लगाकर उसे पूरी बात बताई तो करन बोला....
"अब क्या करेगें हम लोग,कैंसे ढूढ़ेगें बेचारी सतरुपा को",
"क्या पता सिंघानिया ने उसे मार दिया हो तो तब क्या होगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"नहीं! ऐसा नहीं होना चाहिए,बेचारी सतरुपा हमारी वजह से इस जन्जाल में फँसी है,हमें किसी भी कीमत में उसे खोजना ही होगा,भगवान करे वो सही सलामत हो",करन बोला...
"हाँ! काश! तुम्हारी बात सच हो और वो जिन्दा हो,लेकिन उसे ढूढ़े कैंसे?",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"सिंघानिया ने कहा ना कि वो उसे फार्महाउस लेकर गया था और वहाँ से आते वक्त वो गायब हुई तो इसका मतलब है कि सिंघानिया ने उसे फार्महाउस में ही रखा होगा",करन बोला...
" हमलोग कोशिश तो कर चुके हैं फार्महाउस के भीतर जाने की लेकिन कामयाबी नहीं मिली ना! सिंघानिया बहुत ही शातिर दिमाग़ है,वो हमें आसानी से फार्महाउस के भीतर दाखिल नहीं होने देगा,कोई ना कोई पैतरा चला कर वो हमें वहाँ जाने से रोक ही देगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"कुछ भी हो हमें सतरुपा को यूँ मरते रहने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए",करन बोला....
"हाँ! चलो कुछ करते हैं,कोई ना कोई रास्ता तो निकल ही आएगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
फिर दोनों मिलकर सारी रात सतरुपा को खोजने की कोशिश करते रहे लेकिन वो उन्हें कहीं ना मिली,वे दोनों सिंघानिया के फार्महाउस भी गए लेकिन उसके भीतर जाने का उन्हें कोई भी रास्ता ना मिला,थकहार कर दोनों वापस लौट आए....
अब सुबह हो चुकी थी और सतरुपा खिड़की से आती हुई सूरज की रोशनी देख सकती थी,लेकिन मदद के लिए वो किसी को भी पुकार नहीं सकती थी क्योंकि उसके मुँह पर टेप लगा था और तभी उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी,शायद कोई आ रहा था,अब उसकी जान में जान आई कि उसे अब यहाँ से निकाल लिया जाएगा और तभी एक शख्स स्टोर रुम में दाखिल हुआ.....
उसे सतरुपा नहीं पहचानती थी,वो साँवले रंग का दुबला पतला सा शख्स था,उसकी उम्र लगभग पच्चीस छब्बीस के ऊपर रही होगी,सतरुपा उसकी ओर ध्यान से देख रही थी,तभी वो शख्स सतरुपा के पास आकर उससे बोला....
"मुझे पहचानती हो"
सतरुपा ने ना के जवाब में सिर हिलाया तो वो शख्स बोला...
"मैं रघुवीर हूँ,सिंघानिया साहब का पार्टनर",
ये सुनकर सतरूपा को याद आया कि रघुवीर का नाम उसने इन्सपेक्टर धरमवीर और करन के मुँह से सुना है,तो ये है रघुवीर....
और तभी रघुवीर सतरुपा से बोला....
"अब मैं तुम्हारे छोटे छोटे टुकड़े करुँगा,क्योंकि ये मुझसे सिंघानिया साहब ने कहा है,लेकिन तुम तो कुछ बोल नहीं सकती तो मैं तुम्हें बता देता हूँ कि मेरा यही काम है,मुझे ये काम करने में बहुत मज़ा आता है,तुम जैसी कमसिन,नाजुक लड़कियों को जब मैं मारता हूँ ना तो मुझे एक अजीब सा सुकून मिलता है,अगर हफ्ते में मैं एकाध लड़की को ना मारूँ तो मैं पागल होने लगता हूँ और इस काम में सिंघानिया साहब मेरा पूरा पूरा साथ देते हैं,अभी मैं यहाँ से जा रहा हूँ,अपने हथियार ले आऊँ,फिर तुम्हें बड़ी तसल्ली के साथ काटूँगा"
और ऐसा कहकर रघुवीर वहाँ से चला गया और इधर सतरूपा उसकी बात सुनकर हक्की बक्की रह गई....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...