सुरक्षित रास्ता
फेसबुक विपरीत जेंडर के बीच रोमांच की संरचना करता है, संभावनाओं को पंख देता है, रोज नयी-नयी थ्रिल देता है। फेसबुक पर होड़ लगी है फ्रेंड्स बनाने की, फोलोवर बनाने की, लोकप्रियता अर्जित करने की। छोटा या बड़ा समूह वही अपनी दुनिया बन जाता है और वहीं के हम बाशिंदे बन जाते हैं। हम एक वर्चुअल वर्ड में रहने लगते है। यथार्थ की दुनिया हमसे दूर होती जाती है।
लड़की ने अपनी फेसबुक आई.डी. आयना के नाम से बनाई हुई थी। प्रोफाइल पर अपना ही फोटो चस्पां किया था। फेक आई.डी. नहीं थी जैसे कई अपनी बनाते है जिसमें नाम भी फर्जी, फोटो भी फर्जी। शायद छिपकर शिकार करना आसान हो। आयना के फेसबुक पेज पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई थी। देखा क्यूट सा छोरा है उसके वाल पर गई तो मालूम हुआ बंदा कविताएँ भी कहता है और गिटार भी बजाता है। उसके कई फोटो भी दिखे, सोचा एक्सेप्ट कर लूं। फिर रिक्वेस्ट पड़ी रही दो दिन। पता नहीं क्या सोच कर एक्सेप्ट का बटन दबा ही दिया। शायद जानने की जिज्ञासा रही हो कि देखें बंदा कैसा है? धन्यवाद का फूलों भरा मेसेज उसकी वाल पर पड़ा था जो उसने लाइक कर लिया। बंदा एकदम मस्त। कितनी प्यारी दोस्त! प्यारी प्यारी, न्यारी न्यारी!
भारतीय परंपरा और संस्कार में महिला मित्र होने की कोई सम्भावना नहीं है। सभी की नजर में यह कबूतरों के जोड़े का गुटरगूं ही है। हम इसे एक अनैतिक कर्म मानते हैं। कहावत है आग के आगे घी पिघलता है माने लड़की आग है और लड़का बेचारा घी। बेचारा इसलिए कि आग के पास जायेगा तो उसे पिघलना ही है, उसकी कोई गलती नहीं है। इसलिए नेता लोग कहते हैं लड़कों से गलती हो जाती हैं यानी वे माफ़ी के लायक है।
उसके कई पुरुष मित्र थे। वे उसकी पोस्ट पर खूब कमेन्ट करते। अगर स्वयं की फोटो के साथ पोस्ट होती तो लाइक के खूब बटन दबते। महिला मित्र भी तारीफ करती, अब मित्र है तो तारीफ करना बनता भी है। यह देखकर उसका सेल्फ एस्टीम बढ़ जाता और फिर आत्म मुग्धता भी। यह सब स्वाभाविक है और फिर युवावस्था में ऐसा होना किसको प्रफुल्लित नहीं करता! वह सपने देखती-देखती सो जाती। अपने सपनों में उसकी तमाम तरह की तमन्नाएं पुष्पित होने लगी। देह की भी कुछ जरूरतें थी अपनी फेंतासियाँ भी थी और सबसे ऊपर प्रेम और रोमांच, पुलकित करने के लिए काफी था।
कुछ दिनों बाद उस कवि मित्र आशु अकेला ने एक कविता पोस्ट की। वैसे तो उनका पूरा नाम आशुतोष वर्मा था लेकिन कवि ठहरे, कुछ तो अलग होना चाहिए, नाम में भी साहित्यिकता झलकनी चाहिए। आयना ने उसमें से दो लाइन कॉपी की और कमेन्ट बाक्स में पेस्ट कर दी। ये पंक्तियाँ प्रेम की आकुलता को प्रकट करती थी। उसने कमेन्ट को लाइक कर दिया। बन्दे ने सोचा कुछ राह बनी। कमेन्ट की रिप्लाई में लिखा आपका कमेन्ट मुझे प्रेरित करता रहेगा। अब वह उसकी प्रेरणा बन गई। इनबॉक्स में कविताएँ और गिटार की धुन के साथ विडिओ भी आने लगे। ‘माय स्टोरी’ में भी यह सब आने लगा। उसने भी अपनी बनाई तस्वीरें उससे शेयर की। उसकी अपनी फोटोज विभिन्न परिधानों, अंदाज, मुद्राओं में विभिन्न लोकेशन के साथ पोस्ट होने लगी।
“बेहतर होगा हम अपने कंटेंट व्हाट्स अप पर ही शेयर करें, इस पब्लिक प्लेटफार्म फोटो शेयर करना ठीक नहीं है। इसके खतरे हैं।” बंदे को जैसे मन की मुराद मिल गई। ‘अवश्य’ उसने अपना व्हाट्स अप नंबर दे दिया। दूसरे दिन उसका फोटो उसकी अपनी बनाई पेंटिंग के साथ व्हाट्सअप पर आया और उसने उसका नम्बर फोन में सेव कर दिया।
राह बनी तो बनती ही गई और व्हाट्स अप के साथ फोन से भी जुड़ गए। इस तरह का कंटेंट शेयर करना आत्मिक सुख देता है और मित्रता को अगले स्तर पर ले जाता है। धीरे-धीरे वे (परसनालाईज) व्यक्तिगत होने लगे।
“आज का दिन कैसा रहा?”
“वही घर से कॉलेज और कॉलेज से घर।”
“तुम्हारा कैसा रहा?”
“मेरा तो आज दिनभर तरुन्नुम में ही बीता। तुम्हारा स्मरण आते ही धुन अपने आप बनने लगी, और बनती ही गई। संगीत भी क्या चीज है आदमी इसमें डूब जाता है तो ख्याल ही नहीं रहता कि कितना समय बीत गया।”
“वाकई! यार आदमी तुम जानदार भी हो और शानदार भी।”
“धन्यवाद कोम्प्लिमेंट्स के लिए। चढ़ा दिया न चने के झाड़ पर।” और वे अचानक ही हँस पड़े।
मित्रता के अगले स्तर पर वे एक दूसरे के घर परिवार के बारे में जानने को उत्सुक थे। व्हाट्स अप पर चैटिंग भी चलती, मन होता तो फोन से भी बात हो जाती। इतनी मधुर आवाज सुनकर लगा कि चैटिंग जैसी नीरस तकनीक से बेहतर है बंदी से सीधे बात की जाय। दोनों ऐसा ही महसूस करते थे। सो अब सुविधाजनक समय में फोन किया जाता, पहले व्हाट्स अप पर परमिशन ली जाती ‘कब फ्री हो?’ बात करना धीरे-धीरे जरुरत बन गई। आशु कवि मिस कॉल करते, सुविधाजनक समय होता तो आयना बात कर लेती, आयना तो जब चाहे उससे बात कर सकती थी। उसे सुविधाजनक समय का इंतजार नहीं करना पड़ता।
“आयना मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ।”
“फोटो शेयर की तो है।”
“फोटो नहीं लाइव।”
“तो जनाब हमें जिन्दा देखना चाहते हैं। लगता है, हमारी फोटो में कोई जान नहीं है।”
“ऐसी बात नहीं है। विडियो कॉल कर रहा हूँ।”
इच्छा उसकी भी थी कि कहीं आदमी फेक न हो। एक बार विडिओ कॉल करने में क्या हर्ज है। अब दोनों को तसल्ली थी कि वे फेक नहीं है। वर्चुअल जगत में रहते हुए भी वास्तविक जगत के हैं। वे आश्वस्त हुए। अब मित्रता के स्तर को अगले पड़ाव तक पहुँचाया जा सकता है।
आयना लड़की है प्रेम के इजहार की पहल कैसे करे! भारत में इसके कई अर्थ निकाले जाते हैं जैसे लड़की चालू है, बेशर्म है, गणिका भी हो सकती है, सो धैर्य रखना ही ठीक है। आशुकवि तरुन्नुम में आ गए। नये-नये गीत रचने लगे। एक गीत में तो आयना का नाम भी आ गया। कवि उससे प्यार की पुकार कर रहा है। रिकार्डेड गीत भेज दिया आयना को। आयना प्रफुल्लित हो प्रसन्नता से उछल पड़ी। जमीं पर पैर नहीं पड़ रहे थे, खुशियां किससे बांटे! कोई अन्तरंग सहेली भी नहीं थी सो उसने चाँद तारों से, आकाश से खुशियां बांटी।
अब बारी आयना की थी कि वह कैसे प्रेम का इजहार करे! उसने आशु का पोट्रेट बनाया और नीचे लिखा ‘लव यू’ और व्हाट्स अप पर भेज दिया। नाच उठी धरती, नाच उठा आसमान और नाच उठे आशु कवि।
ऐसे मौकों पर देवता भी फूल बरसा देते है, बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, लगता है पूरी कायनात उनके प्रेमोत्सव में शामिल हो गई है। चहुँ ओर घंटियों की मधुर आवाज आने लगी। प्रेम हो तो जीवन सार्थक नजर आता है, जीवंत नजर आता है, नहीं तो अधूरा-अधूरा सा, खाली-खाली सा लगता है। प्रेम से ही पूर्णता आती है। धन्य हो जाता है प्राणी। हमारे यहाँ तो प्रेम पर जबरदस्त पहरे है। स्त्री पर तो और भी कड़े पहरे हैं। लेकिन इस वर्चुअल वर्ड में ऐसे पहरे नहीं लगे है, पूरी प्राइवेसी मिलती है, फिर भी एक खतरा तो बना ही रहता है कि कहीं बंदा चैटिंग, फोटोज को सार्वजनिक न कर दे। विश्वास का संकट है फिर भी प्रेम साहस कर आगे बढ़ता है, रिस्क लेता है जो होगा सो देखा जाएगा।
आशु कवि ने अपने दो-तीन अन्तरंग मित्रों को अपने कम्प्यूटर में ‘सेव’ की गई आयना से की गई चैटिंग, फोटोज आदि दिखाए इस अंदाज में कि तीर मार लिया। यह प्रदर्शन प्रियता कभी-कभी भारी पड़ जाती है। दिखाना तो वह बहुतों को चाहता था लेकिन लोगों पर भरोसा करना मुश्किल था। मित्र भी साले ऐसे कि पेट में कुछ हजम ही नहीं होता। सो पहुँच गए आयना की वाल पर गुलदस्तों के साथ, बधाइयाँ देखकर वह चौंक गई। ‘लिखा था भाभी को लख लख बधाइयाँ’। उसकी निगाह ‘भाभी’ शब्द पर अटक गई, उसने तुरंत डिलीट कर दिया। जरुर आशु के मित्र होंगे। उसने तुरंत आशु को फोन लगाया हेलो हाय के बाद वह मुद्दे पर आ गई। मित्रों के नाम लेकर पूछा, “क्या ये तुम्हारे मित्र हैं?” “हाँ” उसने कहा। “उन्हें कंट्रोल में रखा करो नहीं तो तुम्हारा-हमारा ब्रेकअप हो जायगा।” यह कहकर उसने फोन काट दिया।
आशु ने आयना का भरोसा तोड़ दिया। सम्बन्ध भरोसे के बल पर जिए जाते हैं। आशु को लगा कि जल्दी नहीं चेता तो आयना को भूलना होगा। कैसे करे? क्या करे? कहाँ से शुरू करे? प्रश्न उसे परेशान कर रहे थे। पहले दोस्तों से ही पूछना सही रहेगा कि उन्होंने क्या शरारत की। मालूम हुआ कि उन्होंने उसे ‘भाभी’ कहकर कांग्रेचुलेट किया था। इसमें इतना बुरा मानने की क्या बात थी? आखिर उनकी भाभी तो उसे बनना ही है। जरा प्री-मेच्योर है। उसकी वाल पर जाकर देखा तो उनके कमेन्ट डिलीट थे। फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि आखिर कहेगा क्या? सो उसने सीधे-सीधे माफ़ी मांगना ही उचित समझा। फोन किया उसने काट दिया, फिर किया, काट दिया। अत: उसने व्हाट्स अप पर माफ़ी नामा भेज दिया। मुझसे और मेरे दोस्तों से गलती हो गई प्लीज हमें माफ़ कर दो। असल गलती तो मुझ से हुई है, इतना खुश था कि उसे सम्भाल नहीं पाया सो उसे शेयर किये बिना नहीं रह सका। मुझे नहीं पता था कि वे यह शरारत कर देंगे। गलती बिल्कुल ‘इनोसेंट वे’ में हुई है। मैं तहे दिल से माफ़ी मांग रहा हूँ माफ़ कर दो प्लीज। कोई भी सजा दे दो मुझे मंजूर है लेकिन ब्रेक अप नहीं होगा।
डिस्टर्ब तो आयना भी थी। वह ब्रेकअप नहीं चाहती थी, मित्रता तो बनी रहनी चाहिए। ‘बस मुझे ही सावधान रहने की जरुरत है।’ उसने सोचा। उसे ब्लैक मेल करने वाले लड़कों की हरकते याद आई जो यदाकदा अखबारों में छपती रहती है। उसे वह वाकया भी याद है जब एक लड़के ने लड़की की क्लिप नेट पर डाल दी जो वायरल होकर उसके घर तक पहुँच गई और दूसरे दिन वो फॅमिली वहाँ से पैक कर कहीं चली गई। बिगड़ना तो लड़की का है लडकों का क्या! वे फिर चरने निकल लेंगे। ‘सो बी स्ट्रिक्ट’। अगर बात विवाह तक पहुँचती है तब बात दूसरी है। तब उसे अपनी बीबी की इज्जत का ख्याल रहेगा। वह एकदम निश्चिन्त हो गई।
लेकिन जज्बात तो उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। पहला प्यार किसी से हो जाय तो गहरा होता है। उसे अपनी जिंदगी से मिटाना जरा मुश्किल है, खासतौर पर लड़कियों के लिए। उसने व्हाट्स अप किया, ‘चलो माफ़ किया, मित्र बने रहोगे लेकिन उसके आगे कुछ नहीं। और कोशिश भी मत करना।’ भरोसा टूटने के बाद क्या भरोसा पुनः पैदा किया जा सकता है?
‘सो काइंड ऑफ़ यू, विशाल ह्रदय है तुम्हारा।’ अब अक्ल ठिकाने आयी। चलो एक चेप्टर ख़तम हुआ। क्या यह कहानी यहीं ख़तम हो जायेगी या इसका सिरा आगे भी बढ़ेगा।
जब रिलेशन को लेकर बहुत कोंसिअस हो जाओ तो वह बिखरने लगता है रिलेशन तो सरल और सहज ही रहना चाहिए, लेकिन अब ये होगा कैसे? आशु तो मायूस हो गया होगा। मुझे ही कुछ करना होगा. पर करूँ क्या? कुछ दिन ऐसे ही चलने दो कोई न कोई रास्ता तो निकल ही जायगा।
“नाराज हो?” दो दिन बाद आयना ने उसे फोन किया।
“नहीं तो!” उसने जबाब दिया।
“तो फिर दो दिन से कोई बात क्यों नहीं की?”
“मैंने सोचा कहीं तुम नाराज न हो जाओ। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता आयना।”
“खोना तो मैं भी नहीं चाहती तुम्हें।”
“तो फिर...” उसने बात का सिरा अधूरा छोड़ दिया।
“तो फिर क्या आज शाम को मिलते हैं।”
“श्योर कितने बजे और कहाँ?” उसने तत्परता से पूछा।
“पांच बजे मेरे ऑफिस के बाहर वाले पार्क में।”
“ठीक है वेट करूँगा।”
वे पार्क की एक बेंच पर जरा सट के बैठे थे। सामने अब भी फूल खिले-खिले लग रहे थे। थोड़ी दूर पर लॉन में एक ग्रुप बैठा बतिया रहा था। बाहर की हलचल पार्क तक नहीं पहुँच रही थी। गाड़ियों के हॉर्न की आवाजें यदाकदा सुनाई दे जाती थी। आशु ने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा तो आयना ने उसे अपने हाथ में थाम लिया। आशु खुश था कि ब्रेक अप नहीं हुआ।
“कहो आयना अब तो नाराज नहीं हो न?”
“तू है ही इतना प्यारा कि तुझसे नाराज हुआ ही नहीं जा सकता। लेकिन तुम्हारे दोस्त बहुत बदमाश है। साले मुझे रिश्ते के घेरे में लेना चाहते हैं।”
“तो इसमें बुरा क्या है?”
“नहीं, बुरा तो कुछ भी नहीं। तो फिर अपन विवाह कर लेते हैं।” उसने सरलता से कह दिया।
“विवाह?” अचानक आए प्रस्ताव ने उसे चौंका दिया। “क्या कह रही हो?”
“ठीक ही तो कह रही हूँ ताकि किसी तरह का कोई भय या आशंका नहीं रहे। बिंदास जीएँगे।”
“पर...ऐसा तो मैंने सोचा भी नहीं।” चिंतित स्वर, उहापोह की स्थिति, क्या जबाब दे?
“सोच लो” उसके सामने एक चैलेंज था।
“क्या सोचूं! विवाह करना क्या इतना आसान है?”
“क्यूँ नहीं! तुम पुरुष, मैं स्त्री और हम दोनों में आपसी प्रेम है। इतना पर्याप्त है विवाह के लिए।”
“घरवालों से बात करनी होगी, उन्हें राजी करना होगा, धर्म, जाति, दान-दहेज़ की बात उठेगी।”
“प्यार की पींगे बढ़ाने से पहले घरवालों से पूछा था? तो फिर अब यह सवाल क्यों?”
इस प्रश्न के आगे वह बगलें झांकने लगा।
प्रेम जीवन की मूलभूत जरुरत है दिल यूँ ही बिना सोचे-समझे प्रिय की तरफ खींचता जाता है। विवाह समाज की जरुरत है जिसे बहुत सोच-समझ कर किया जाता है। और ये सोचने-समझने का काम परिवार के लोग करते हैं। वे ही तय करते है युवा लड़के /लड़कियों का विवाह। प्रेम की परिणिती विवाह में हो इसकी स्वीकार्यता हमारे समाज में नहीं के बराबर है फिर भी युवा लोग प्यार कर बैठेते हैं। ‘प्रेम करना’ से लगता है यह क्रिया है जबकि प्रेम में हुआ जाता है, ‘बीइंग इन लव’। प्रेम तो हो जाता है। प्रेम को स्थायी भाव देने के लिए सामाजिक स्वीकृति के साथ विवाह करना अच्छी बात है लेकिन यह आसान नहीं है। देखना यह होगा कि आयना और आशुतोष इस मंजिल तक पहुँच पाते हैं? आप क्या सोचते हैं?
आशु को चुप देख आयना ने कहा, “घर वाले तो मेरे भी राजी नहीं होंगे बल्कि लड़की का मामला और भी पेचीदा होता है क्योंकि उसे इज्जत से जोड़कर देखा जाता है। फिर भी हम उनकी बिना स्वीकृति के विवाह कर सकते हैं, यह विकल्प है हमारे पास। लेकिन इसके लिए हिम्मत चाहिए।”
“यह तो ‘अननोन’ अँधेरे में छलांग लगाना हुआ।”
“हाँ तभी तो हिम्मत की जरुरत है। पारंपरिक शादियाँ तो बड़ी धूमधाम से होती है। उसमें हिम्मत नहीं ‘हां’ की जरूरत है। बाकी का काम घरवाले कर देते हैं।”
“छलांग लगाते ही हाथ पांव न तुड़वा बैठूं।”
“तब तुमसे नहीं हो सकेगा। छलांग तो मैं भी लगा रही हूँ, मैं तो अंजाम की चिंता नहीं करती।”
“ऐसी हिम्मत तुम में कहाँ से आ जाती है?”
“प्रेम में पगी लड़कियों में हिम्मत आ ही जाती है क्योंकि उनका समर्पण पूर्ण होता है वे केवल अपने प्रेमी के भरोसे सारी रिस्क ले लेती है। अगर-मगर के लिए उनके दिल में कोई जगह नहीं होती।”
“तुम ठीक कहती हो शायद मैं नहीं कर पाऊंगा।”
“क्यों नहीं कर पाओगे! तुम कवि हो भावों से भरपूर हो, भावों को स्वरलहरियों पर सजाने वाले संगीतकार भी हो, मेरे लिए लिखी कविताएँ और उनके विडिओ देखकर तो मुझे लगा था कि तुम मेरे लिए सारी दुनिया छोड़ दोगे। फिर इस मामले में तुम्हारा नजरिया इतना व्यवहारिक कैसे हो गया?”
“जिस शिद्दत से तुम्हें चाहता हूँ उतनी ही शिद्दत से अपने परिवार को भी चाहता हूँ इसीलिए शायद मुश्किल आ रही है।”
“तुम्हारे कहने का मतलब मैं अपने घरवालों को नहीं चाहती हूँ?”
“मैंने ऐसा तो नहीं कहा।”
“तुम्हारा ढुलमुल रवैया तो यही बता रहा है।”
“लगता है मुझमें साहस की कमी है।”
“पहले निश्चय तो करो कि तुम्हें हर हालत में आयना चाहिए फिर दृढ़ता और हिम्मत अपने आप आएगी।”
“सुरक्षित रास्ता तो परिवार की सहमति से ही बनता है मैं कोशिश करके देखूंगा।”
“देख लो मैं हर तरीके से तैयार हूँ। जब सुरक्षित रास्ता मिल जाय तो मुझे कॉल कर देना। ‘नाऊ बाय-बाय’ और वह चली गई।
वह भौंचक्क! देखता रह गया।