पथरीले कंटीले रास्ते - 12 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 12

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

12

 

रविंद्र को झाङू दिखाकर वह कैदी तो चला गया पर रविंद्र काफी देर गुमसुम सा खङा सोचता रहा कि क्या करे , कहाँ से शुरु करे । हर तरफ गर्दे के अंबार लगे थे । धूल मिट्टी से अटा पङा था पूरा कमरा । हालांकि कमरा बहुत छोटा सा था । मुश्किल से 8 *10 या 11 का होगा पर उसने तो कभी कसम लेने को भी झाङू न उठाई थी । कभी नौबत ही न आई थी । बी जी खुद ही सारा दिन लगी रहती । ठीक होती तब तो उन्होंने ही करना हुआ । छोटी मोटी तकलीफ में भी सिर पर दुपट्टे का मुडासा बाँध कर लगी रहती ।  घर के काम काज तो औरतों के लिए हुए न इसीलिए उसने कभी यह सब करने के बारे में सोचा ही नहीं था । गाँव में सब मर्दों की यही सोच थी कि वे बाहर के कामों के लिए बने हैं । बाजार और मंडी के काम उन्हें करने हैं । इसलिए सभी घरों के सारे पुरुष सुबह कलेवा करके बाजार की तरफ निकल जाते । जिंन्हे कोई काम न होता ,कहीं जाना न होता ,  गली के मोङ पर बोरी बिछाकर ताश या बारह टहनी खेला करते । या फिर देश की राजनीति पर चर्चा करते । इधर उधर की फालतू बातें हांका करते । खाना खाने या सोने के लिए ही घर आते और वजह बेवजह औरतों पर हुक्म चलाते । बाहर का सारा गुस्सा , तनाव , अवसाद घर की औरतों पर निकलता । गालियाँ आम बात होती । कभी कभी हाथ भी चल जाते । औरतें इसे अपनी नियती मानकर सिर झुकाये सारी गालियाँ और सारा अपमान झेल जाती । उन्हें बचपन से यही सिखाया जाता था कि पति दूसरा परमेश्वर है । उसे हर तरह से खुश रखना पत्नी का धर्म है । अगर पति नाराज हो गया तो पत्नी को नरक में भी जगह नहीं मिलेगी ।

समाज में इस पितृसत्ता को कायम रखने के लिए सतियों की तरह तरह की कहानियाँ गढ ली गयी थी । औरतों को गुलाम बना कर रखने के लिए  ये कहानियाँ नानियों , दादियों से चलती हुई पीढी दर पीढी बच्चियों तक पहुँचती रहती । सुलभा सती की कहानी जो अपने कोढी पति की काम वासना की पूर्ति के लिए उसे हर रात कंधे पर बैठा कर वैश्या के कोठे तक ले जाती थी और पति को ऋषि के कोप से बचाने के लिए उसने सूरज का उगना अपने सतीत्व के प्रभाव से रोक दिया था । सती सावित्री , सती अनुसूया से लेकर सती पद्मिनी तक सैंकङों कहानियाँ इन बूढी औरतों के पिटारे में बंद थी ।

छोटी बच्चियाँ ये कहानियाँ सुन सुन कर बङी होती और पति की सेवा में ही अपना सुख खोजने लगती । उसकी अपनी माँ ने भी कभी किसी चीज की इच्छा जाहिर नहीं की । माथे तक दुपट्टा ओढे सुबह से शाम तक पति और बच्चों की हर जरुरत का ध्यान रखती काम में लगी रहती । पता नहीं कभी थकती भी है या नहीं । घर के सारे लोग सो जाते हैं तब तक काम में जुटी रहती है और सुबह सबके उठने से पहले रसोई चौंका धो पोंछ कर दाल सब्जी चढा देगी । चाय बना लेगी । झाङू बुहारी कर लेगी । पता नहीं कभी सोती भी है या नहीं । इस बार अगर घर जाने का मौका मिला तो वह घर के काम में उनका हाथ जरुर बँटाएगा ।

तभी उसे गुणजीत का ख्याल आया । लंबी ऊँची , छमक जैसी पतली , रूई के फाहे जितनी गोरी चिट्टी , कटार जितनी तीखी नाक , संतरे की दो फांकों जैसे रसभरे पतले होंठ ये सब रब ने पूरी फुरसत में बनाया बिल्कुल वेहले बैठ कर । पहले के हालात होते तो नौकरी लगते ही उसने हाथ पकङ के ले आना था घर अपनी वहुटी बनाकर बी जी की मदद करने के लिए पर अब ?  अब वह कैसे कहेगा उसे ब्याह के लिए और उसके घर के लोग क्यों पकङाएंगे उसका पल्ला ।

सोचते हुए वह झाङू लगा रहा था पर कूङा काबू में आने का नाम ही नहीं ले रहा था । वह एक कोने में झाङू लगाता तो कूङा दूसरे कोने में जाकर पसर जाता ।  दौङकर दूसरे सिरे पर जाकर वहाँ से शुरु करता तो धूल कमरे के बीचोबीच डेरा डाल कर पाँव पसार लेती और वह झाङू उठाये उठाये उधर चल पङता ।

ओये बस कर तेरे बस का नहीं यह सब । आज झाङू लगवा देता हूँ । तू बस देख झाङू कैसे लगती है । कल से खुद लगा लेना  - जगतपाल हँसते हँसते कह रहा था ।

भाई आप , आप यहाँ कब से खङे हैं ।

जब से तू इस झाङू से युद्ध लङ रहा है ।

नरेश , सुन – उसने दूर जाते एक लङके को आवाज मारी ।

जी साहब कहिये – नरेश नाम का वह लङका तुरंत आ गया था ।

सुन यह कोठरी अच्छे से साफ कर दे और चबूतरा झाङ कर कंबल भी बिछा देना ।   

जी अभी कर देता हूँ ।

लङके ने रविंद्र के हाथ से झाङू ले ली और फुर्ती से कमरा साफ करने लगा । लगभग दस मिनट में उसने कमरा झाङ पौंछ कर कंबल बिछा दिया । फिर कोने में पङा घङा उठाकर भरने चला गया । पाँच मिनट में पानी भर कर वह लौट आया ।

शुक्रिया भाई ।

नरेश हौले से मुस्कुराया । पर मुस्कान उसके होठो पर एक झलक दिखाकर फटाफट गायब हो गयी ।

नरेश तू कब से है यहाँ ?

चार महीने होने वाले हैं – उसकी आँखें घर की स्मृति में सजल हो गयी थी । अभी तो साढे चार साल से ज्यादा और यहीं रहना है ।

ऐसा क्या किया तूने ।

ज्वैलर की दुकान से चार अंगूठियाँ , तीन टाप्स और एक चेन चोरी की थी । पहली बार चोरी करने गया था । पकङा गया । पुलिस ने पीटा वह अलग । सामान सारा ले लिया । जिस काम के लिए यह खतरा मोल लिया था वह काम भी सिरे नहीं चढा ।

ऐसा क्या काम था जिसके लिए तू चोरी करने चला गया ।

मेरी बहन है तनुजा । उसके लिए बङी मुश्किल से बैंक में क्लर्क लङका ढूँढा था । सब कुछ अच्छे से हो रहा था । शादी में चार दिन बाकी थे । एक दिन बिचौलिया आया । लङके वालों को मिलनी में चार अँगूठियाँ , दो जोङी कानों के और एक चेन चाहिए थी । एक अँगूठी दादा की , एक पापा की , एक मामा की । बहन के लिए और माँ के लिए कानों के । जीजा की चेन । सुन कर हम सकते में आ गये थे । न देने पर रिश्ता टूट जाने की धमकी थी । मैं पता करने  सरार्फ की दुकान पर गया । सारे जेवर सवा दो लाख के बन रहे थे । बाकी सारा जुगाङ करने में ही दाँतों पसीना आ रहा था । अब इतना पैसा कहाँ से लाते । सुनार उधार करने को तैयार नहीं हुआ ।

तो तूने ये सब चुरा लिया ?

और क्या करता ?   उस वक्त दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था । कुछ सूझा ही नहीं । पहली बार चोरी करने गया था ,पकङा गया । सारे जेवर धरा ले गये । बहन की शादी टूट गयी । टूटनी तो वैसे भी थी पर अब सारा इल्जाम मेरे सिर आया ।

बाहर घंटा बजने लगा । रविंद्र ने सवाल किया ।

ये शाम की हाजिरी का बुलावा है । पहले मैस से खाना लेना है फिर हाजरी होगी । उसके बाद सब अपनी बैरक में ।

 

बाकी फिर ...