दिल जो न कह सका - भाग 1 Kripa Dhaani द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दिल जो न कह सका - भाग 1

"खूबसूरती न उम्र की मोहताज है न श्रृंगार की। खूबसूरती तो वो है, जो खुशी के रंग से निखरकर चेहरे पर खिल जाये और नज़र में समा कर होंठों पर बिखर आये। एक ख़ुशगवार चेहरा उम्र की रेखाओं और झुर्रियों की परतों के बावजूद मेकअप से लिपटे मुरझाये चेहरे से कहीं ज्यादा खूबसूरत है..."

स्टेज पर खड़ी वनिता इन पंक्तियों को जिस अदा से पढ़ रही थी, उससे ज़ाहिर था कि वह इन पंक्तियों को पढ़ ही नहीं रही, महसूस भी कर रही है। उम्र के चालीस बसंत पार कर चुकी वनिता की खूबसूरती से आज एक अजब-सा अल्हड़पन एक अजब-सी चंचलता फूट रही थी। ख़ुशी का हर रंग मुस्कान बनकर उसके होंठों पर थिरक रहा था, नूर बनकर उसके चेहरे पर झलक रहा था। उसका संपूर्ण व्यक्तित्व आज एक अलग ही सांचे में ढला मालूम हो रहा था। हमेशा कॉटन की साड़ी में लिपटी रहने वाली वनिता की शिफॉन साड़ी का आंचल आज हवा में यूं लहरा रहा था, मानो पतंग डोरी संग दूर आसमान में मदमस्त उड़ा चला जा रहा हो; जूड़े में बंधे रहने वाले बाल आज कंधों पर यूं झूल रहे थे, मानो काली घटायें अंगड़ाई ले रही हों; मेकअप के नाम पर चेहरे पर हल्का-सा पाउडर और होंठों पर लाली थी, पर उसकी दमक सबको विस्मृत कर रही थी।

"क्या बात है? आज वनिता मैम का अंदाज़ ही जुदा है।" वनिता का बदला हुआ अंदाज़ स्टॉफ की औरतों में कानाफूसी की वजह बन चुका था।

"मैम तो आज सोलहवां सावन लग रही हैं...नज़र नहीं हटती उनसे...।" मर्दों के जुमले भी आज वनिता के लिए ही थे।

अवसर था वनिता के पब्लिकेशन हाउस से प्रकाशित हो रहे एक नये उपन्यास के लोकार्पण का। शहर के नामी होटल के लॉन में छोटा-सा समारोह आयोजित किया गया था। शहर के चुनिंदा गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ पत्रकारों की मौजूदगी इस समारोह को ख़ास बना रही थी।

किताब का लोकार्पण शहर के मेयर साहब ने किया था और अपने दो शब्दों में व्यस्तता की दुहाई देकर वे समारोह से विदाई ले चुके थे।

वनिता एक हाथ में किताब और एक हाथ में माइक थामे स्टेज पर खड़ी कार्यक्रम संचालित कर रही थी। किताब से नज़र उठाकर मौजूद शख्सियतों को संबोधित करते हुए उसने कहा -

"ये पंक्तियाँ थी हमारे पब्लिकेशन से प्रकाशित होने वाले अगले हिंदी उपन्यास की, जिसका शीर्षक है - 'दिल जो न कह सका'। इसके लेखक हैं, पहली बार अपनी कलम का जादू बिखेर रहे - नमन शाह।"

वनिता के ये लफ्ज़ हवाओं में घुले और फिज़ा जोरदार तालियों की झंकार से गूंज उठी। वनिता ने नज़रें पास ही खड़े नमन पर टिका दी, जो हाथ जोड़े सबका अभिवादन कर रहा था।

"नमन एक बेहतरीन लेखक हैं...आप भी इनके शब्दों के क़ायल होने से खुद को न रोक सकेंगे। हमारे पब्लिकेशन ने कई शानदार किताबें दी हैं और कई बेहतरीन लेखक भी...इस बार भी आप निराश नहीं होंगे।"

फिर ज़ोरदार तालियों ने माहौल गरमा दिया।

अपनी बात कहने के बाद वनिता ने माइक नमन की तरफ बढ़ा दिया। नमन ने माइक हाथ में लेकर सबका अभिवादन किया, फिर अपने उपन्यास के विषय से सबको रूबरू करवाकर उसने कहा, "...यूं तो मेरे लिखे उपन्यास का शीर्षक है – ‘दिल जो न कह सका’। पर मैं उनमें से नहीं, जो दिल की बातें न कह सके...आज अपने दिल की बात मैं वनिता मैम से कह देना चाहता हूँ..."

नमन की ये बात वनिता को हैरान कर गई और वहाँ मौजूद लोगों के कान खड़े हो गये।

नमन तीस बरस का मध्यम कद और गठीले शरीर का एक आकर्षक युवक था। सांवले चेहरे पर बोलती आँखें, होंठों पर सजी सदाबहार मुस्कान और उस पर हँसमुख और खुला व्यवहार! नमन का हर अंदाज़ ऐसा था, जिस पर लड़कियाँ न्यौछावर हो जाना चाहे। ये उसके व्यक्तित्व का कमाल ही था कि उम्र के फ़ासले के बावजूद वनिता खुद को उसकी तरफ आकर्षित पाती थी। मन के चोर के कारण नमन की इस बात पर वह नज़रें चुराने लगी।

नमन कहने लगा, "वनिता मैम! आपको बात चाहे बुरी लगे, पर सच यही है कि पहली बार जब मैं आपसे मिला था, तो बहुत गुस्सा आया था आप पर...बड़ी खडूस लगी थी आप मुझे...नॉवेल पब्लिश न करवाना होता, तो मैं कभी आपकी शक्ल न देखता..."

नमन की इस बात पर वनिता के चेहरे के भाव बदलने लगे। वह बड़े गौर से नमन का चेहरा देखने लगी, जो अपनी बात बेधड़क कहे चला जा रहा था -

"....मेरी मेनूस्क्रिप्ट जब आपने मेरे मुँह पर मारी थी, तब सच कहूं, मन हुआ था कि आपके ऑफिस की दीवार और कार के बोनट पर लिख जाऊं - 'बच कर रहना इस बला से!' मगर फिर मन में ठान लिया कि एक दिन आपके मुँह से अपनी तारीफ़ करवानी है और नॉवेल पब्लिश करवाना है, तो आपके ही पब्लिकेशन हाउस से...फिर जो पापड़ बेले, वो आप भी जानती हैं। आपने मुझे अपनी छत्रछाया में ले लिया और तब मैंने जाना कि इस खूसट औरत का दिल बड़ा सोना है। आपने जिस तरह से एक लेखक के तौर पर मुझे संवारा, उसके लिए मैं जिन्दगी भर आपका शुक्रगुजार रहूंगा। आप न होती, तो मेरा लेखक बनने का सपना कभी हक़ीकत न बन पाता। आज मेरे दिल में आपके लिए बेशुमार इज़्जत है मैम...आज मुझे आपके ऑफिस की दीवार और कार के बोनट पर कुछ लिखना हो, तो मैं लिखूंगा - आपसा कोई नहीं...."

नमन की इस बात पर वनिता हँस पड़ी। फिज़ा में फिर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। पत्रकारों के सवाल जवाब के दौर के बाद डिनर के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

लौटते वक्त नमन वनिता को उसकी कार तक छोड़ने आया और कार की पिछली सीट का दरवाजा खोलने के बाद सहसा बोल पड़ा, "मैम अपना हाथ दिखाइये।"

वनिता ने हैरानगी में अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। नमन ने ब्लैक बॉलपेन से उसके हाथ पर छोटी-सी काली बिंदी बना दी और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "मैम आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं। मैं नहीं चाहता आपको किसी की नज़र लगे।"

नमन लौटने लगा और वनिता कार की खिड़की से उसे जाते हुए देखती रही। उसके ज़हन में नमन की कही बात गूंज रही थी - "मैम आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं..."

भीड़ को चीरते हुई कार आगे बढ़ी चली जा रही थी, मगर वनिता के ख़याल आगे न बढ़कर दिनभर के घटनाक्रम पर ही भटक रहे थे। एक व्यस्त दिन था आज, बावजूद इसके वनिता बोझिल न महसूस कर तरोताजा महसूस कर रही थी। शायद इसकी वजह नमन था। एक ख़ुशगवार शख्स आसपास हो, एक सकारात्मक ऊर्जा के भरा शख्स आसपास हो, तो एक ताज़गी खुद-ब-खुद दिलो-दिमाग पर छा जाती है। नमन का ख़याल ज़हन में आते ही वनिता के होंठों पर मुस्कुराहट की रेखा खिंच गई।

अपनी रफ़्तार से बढ़ती कार ट्रैफिक सिग्नल के पास जाकर रुकी। कार के शीशे पर दस्तक हुई। वनिता ने देखा, एक छोटी बच्ची फूल बेच रही है। वनिता ने खिड़की खोलकर फूलों के दाम पूछे और कुछ फूल ले लिये। इन दिनों उसे फूल और फूलों की खुशबू भाने लगी थी। उसने पर्स खोलकर लड़की को पैसे दिये और लड़की मुस्कुराती हुई पास ही खड़ी दूसरी कार की तरफ दौड़ गई। वनिता की नज़र अब तक उस लड़की पर जमी थी, जो बड़ी उम्मीद से दूसरी कार का शीशा खटखटा रही थी। कार का शीशा गिरा और तकरीबन इकतालीस-बयालीस बरस के एक शख्स का चेहरा नज़र आया। उस चेहरे पर नज़र पड़ते ही वनिता के चेहरे की दमक गायब हो गई।

क्रमश:

किसे देखकर वनिता के चेहरे की दमक गायब हो गई? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।