पथरीले कंटीले रास्ते - 11 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 11

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

11

 

केंद्रीय जेल का पहला फाटक था हरी भरी फुलवारी , रंग बिरंगे गेंदे , गुलाब , डेलिया के फूलों से मह मह करती क्यारियों से सजे मैदान वाला । चारों ओर बिछी हरी हरी घास पर भरपूर पानी का छिङकाव किया गया था । सुंदर पार्क बने थे । जहाँ तहाँ सात आठ लोग इन क्यारियों में काम कर रहे थे । दूर दूर तक फूल ही फूल । खुशबू ही खुशबू ।
इस हरियाली को पार करते ही सामने था बहुत बङे गेट वाला एक और फाटक । रखवाली के लिए तैनात थे जेल की गारद के कई सिपाही । उस फाटक के पार थी तपती बंजर धरती । कहीं कोई पेङ नहीं । कोई गाछ नहीं । यहाँ तक कोई घास का तिनका भी नहीं । एकदम पथरीली रेतीली मिट्टी । धूल उङाती आँधी चलती तो यह रेत भरी मिट्टी सीधी आँखों और बालों में घुस जाती । इस रेगिस्तान को पार करते ही खङे थे कुछ दफ्तर और उनकी इमारतें । यहाँ पुलिस गारद के लिए आराम करने को बैरकें थी । क्लर्क का कमरा था । जेलर का दफ्तर था । और भी छोटे बङे कई भवन थे वहाँ । वहाँ से आगे फिर रेत का समुंद्र पार करने को था । ढेर सारी रेत को पार करने पर सामने आती थी सब्जियों की क्यारियाँ जिनमें तरह तरह की मौसमी सब्जियाँ लगी थी । लंबे रेगिस्तान को पार करने के बाद यह हरियाली मन को , आँखों को गहरे सुकून से भर देती ।
उन आङी तिरछी क्यारियों की मेङ पर चलते चलते आखिर में एक और फाटक आ गया था । बङा सा लोहे का फाटक जिस पर बङी बङी सांकल लगी थी । ऊपर लगी थी लोहे की भाले जैसी तीखी नोक वाली शलाखें । बङे फाटक में एक छोटा फाटक भी बना था । अक्सर पहचान बताने पर यही छोटा फाटक खोला जाता था अन्यथा यह बङा फाटक हमेशा बंद रहता ।
जगतपाल ने डयूटी पर खङे सिपाही से दो मिनट बात की और वे आगे बढ दिये । इस फाटक को पार कर जब रविंद्र भीतर पहुँचा तो उसे ऐसा लगा जैसे वह भवसागर के तीन लोक पार कर आया हो । अब तक उसने जो सुन रखा था , वह यह कि धरती पर दूसरे नरक का नाम है जेल । जहाँ पुलिस वाले अपराधियों को जंजीरों से जकङ कर बहुत तंग करते है । यहाँ इस फाटक के भीतर एक पूरा शहर बसा हुआ था । हर तरफ एक जैसी वरदी पहने लोग काम कर रहे थे । सामने अनगिनत कमरेनुमा आकार बने थे । जिनके बाहर कुछ कच्छे बनियाननुमा कपङे सूख रहे थे । यहाँ एक खुला सा मैदान था जिसपर सींमैंट का फर्श लगा हुआ था । एक कोने में एक नीम का घना सा पेङ था जिसे चारों ओर भी पक्का फर्श बना था । उसी में दो नल लगे थे जिनके नीचे कुछ लोग कपङे धोने और निचोङने में लगे थे । वह अभी यह सब देखने में लीन था कि जगतपाल ने उनमें से एक को पुकारा – गणेश रे , इधर आ तो ।
कपङे निचोङ रहा वह गणेस नाम का आदमी हाथ में पकङा कपङा वही छोङ कर दौङा चला आया – जी जमादार साब , हुकम ।
ये रविंद्र है । जब तक इसका फैसला नहीं हो जाता , यह यहीं रहेगा । इसे अपने साथ ले जा और मैस , कंटीन , पखाना , प्रार्थना वाली जगह सब अच्छे से दिखा दे और हाँ इसे एक सौ ग्यारह नम्बर वाली बैरक दे देना ।
गणेश ने चौंक कर जगत को देखा । उधर की बैरकों में तो भयानक कैदियों को रखा जाता है । इस मासूम से लङके को उधर क्यों रखा जाएगा
उसे इस तरह अपनी ओर देखते देख कर जगत भी मुस्कुराया – इसने अभी तीन दिन पहले कत्ल किया है किसी जवान लङके का और वह भी नलके की हत्थी मार के । इसलिए...। समझा । अब जा और इसे अपने साथ ले जा ।
गणेश ने रविंद्र को सिर से पाँव तक देखा और आगे आगे चल पङा । पीछे पीछे रविंद्र भी चला । खुल जा सिम सिम की तरह एक रहस्यमय दुनिया उसके सामने खुलने जा रही थी । सबसे पहले वे लोग एक खुले से कमरे में पहुँचे । ये मैस थी । यहाँ दाल को जीरे का बघार दिया जा रहा था । जीरे और सरसों की महक से पूरा इलाका महका पङा था । एक ओर कुछ लोग बङी सी परात में आटा गूँध रहे थे । दूसरी ओर रोटियाँ बेली जा रही थी । एक बङी सी तवी पर दो लोग रोटी सेक रहे थे । बाहर तीन लोग लकङियाँ फाङ रहे थे । ये मैस है भाई । यहाँ सुबह सात से आठ , दोपहर में एक से तीन और शाम को पाँच से छ खाना मिलता है । बंधा बंधाया खाना मिलता है । बेवक्त आनेवाले को फिर भूखा ही रहना पङता है ।
पाँच बजे ही खाना ... ?
हाँ , उसके बाद सबको हाजिरी देनी होती है फिर सब अपनी बैरक में चले जाते हैं । जिसे देर से खाना है, वह रोटी थाली बैरक में ले जाता है । जब मन करे खा ले पर तब उसे ठंडी रोटी ही खानी पङती है । खाना पकाने की डयूटी लगती है । कैदी ही बारी बारी से खाना बनाते हैं ।
वह वहाँ से चला और मैदान में आ गया – यहाँ दिन में चार बार हाजिरी देनी होती है । पहले सुबह पाँच बजे , फिर ग्यारह बजे , दो और ढाई के बीच और शाम को साढे पाँच – छ बजे ।
पाँच बजे ...?
हाँ पाँच बजे सब उठ कर यहाँ आ जाते हैं फिर हाजरी के बाद योग और ध्यान के लिए जाते हैं । कुछ लोग कसरत करते हैं फिर नहाना धोना वहाँ नल पर जहाँ तुम हमसे मिले थे । सात बजे मैस में नाश्ता ।
ठीक है ।
और वह जो दूर एक जगह पर दो कमरे देख रहे हो वह अस्पताल है । वहाँ एक सरकारी डाक्टर और दो नर्स बैठते हैं । एक गोलियाँ देने को लिए फार्माटिस्ट भी होता है ।
फार्माशिस्ट । - रविंद्र ने उसे सुधारा ।
हाँ हाँ वही । छोटी मोटी बीमारी में दवा मिल जाती है । ज्यादा बीमार हो जाओ तो शहर के बङे अस्पताल जाना पङता है । बाकी रैस्ट लेना हो या स्पैशल डाईट वो भी लिख देता है ।
वह उसे एक दुकाननुमा बिल्डिंग में ले गया – यह कैंटीन है । अगर जेब में पैसे हैं तो यहाँ से कुछ भी खरीद सकते हो । उसने आँख मारते हुए कहा ।
रविंद्र इस नयी दुनिया में अनमना सा हो रहा था । उसने उसे बैरक नम्बर एक सौ ग्यारह के सामने लाकर छोङ दिया – ये आज से तेरा टिकाना ।
वह रविंद्र को वहीं छोङ कर लौट गया । रविंद्र ने बैरक में देखा – ये तो बहुत गंदी है । सामने से एक कैदी गुजर रहा था – नये आए हो । तभी ऐसे देख रहे हो । वह रखी है झाङू । पकङो और साफ करलो । यहाँ सबको अपनी बैरक के साथ साथआस – पास का सारा ऐरिया खुद ही साफ करना होता है ।
रविंद्र ने झाङू उठा ली और अनभ्यस्त हाथों से बैरक साफ करने लगा ।

बाकी फिर ...