चिकनी मिट्टी की प्रेमिका - भाग 1 Rajesh Rajesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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चिकनी मिट्टी की प्रेमिका - भाग 1

"राज बेटा आप दस दिनों से जिस लड़की की पेंटिंग बना रहे थे, वह मेरी बेटी रत्ना नहीं थी, बल्कि रत्ना की बहन माया थी।" रत्ना की विधवा मां बताती है
"मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं आप क्या कहना चाह रही है।" चित्रकार राज पूछता है?
"रत्ना और माया मेरी जुड़वा बेटियां है, माया दस दिन पहले ही पड़ोस के रंजीत नाम के लड़के के साथ घर पर बिना बताए मुंबई हीरोइन बनने भाग गई है, लेकिन आपकी पेंटिंग देखकर और आपकी बातों से मुझे पक्का यकीन हो गया है कि उस आवारा नीछ धोखेबाज रंजीत ने उसे धोखा दे दिया है और वह मुंबई पहुंची ही नहीं है, इधर दिल्ली में ही इधर-उधर भटक रही है।" यह बात राज को बोलते बोलते रत्ना माया की विधवा मां बिना एक भी आंसू टपकाए रोने लगती है।

अपनी मां को रोता हुआ देखकर रत्ना राज की बगल वाली कुर्सी से उठकर मां के पास पलंग पर बैठकर अपनी मां को दोनों कंधों से पड़कर रोने से चुप करवाते हुए राज से कहती है "पेंटर बाबू आप अभी ही यहां से चले जाओ, हम पहले ही माया की वजह से बहुत दुखी परेशान है, आपने माया की पेंटिंग दिखाकर हमें और दुखी कर दिया है।" रत्ना की इस बात से चित्रकार राज अपने को बहुत अपमानित महसूस करता है, इसलिए वह रत्ना की मां को प्रणाम करके चुपचाप उनके घर से जाने लगता है, लेकिन सर्दी का मौसम ऊपर से जाड़े की रात में मूसलधार बारिश और कार की जगह बाईक राज घर जाए तो कैसे घर जाएं रत्ना माया का घर भी दिल्ली के बॉर्डर के देहाती इलाके के टिकरी गांव में और राज का घर दिल्ली के बीचों-बीच इतनी मुश्किलों के बावजूद भी राज को रत्ना माया के घर एक मिनट भी ठहरना गवारा नहीं होता है, वह तुरंत उनके घर से निकाल कर सामने बंद पड़ी काली पन्नी (पॉलिथीन) की छत वाली छोटी सी चाय की दुकान के नीचे बरसात से बचने के लिए खड़ा हो जाता है, तभी गुप अंधेरे में उसे अपनी तरफ कोई आता हुआ दिखाई देता है, जैसे ही बिजली के खंभे की रोशनी में उसे साफ़ दिखाई देता है तो वह रत्ना थी रत्ना उसी की तरफ लाल रंग का छाता लेकर आ रही थी।

रत्ना राज चित्रकार के पास आकर कहती है "मां ने कहां है बारिश बंद होने तक आप हमारे घर पर रुक जाए, फरवरी की बारिश में ओले पड़ने का भी डर रहता है और आप बाईक से अपने घर कैसे पहुंचेंगे।" रत्ना के शब्दों में मिठास तो नहीं थी, लेकिन राज मजबूर था, बारिश ठंड ऊपर से अनजान इलाका चोर लफंगों के साथ-साथ जंगली जानवरों सांप दूसरे जहरीले कीड़े मकोड़ों का डर, इसलिए राज रत्ना के साथ छाते में छुपकर उनके घर पहुंच जाता है।

उनके घर पहुंच कर राज समझ नहीं पता है कि आधे घंटे पहले इनके घर में कितनी उदासी निराशा फैली हुई थी और अब घर में ऐसा लग रहा जैसे किसी के जन्मदिन की पार्टी हो घर में रंग बिरंगे गुब्बारे रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों की लड़ी जल रही है।

तभी रत्ना की मां रसोई घर से आवाज देकर पूछती है? "रत्ना बेटी राज बेटा को अपने साथ घर ले आई है ना।"
"हां मां आप सच कह रही थी, इतनी बारिश में पेंटर बाबू बाईक से घर कैसे जाते।" रत्ना कहती है
"चल ठीक है, उनके पास कोयले की जलती हुई अंगीठी रखकर जल्दी से मेरे पास रसोई घर में आ जा।"

और कुछ ही देर में दोनों मां बेटी गरमा-गरम चाय समोसे आलू प्याज के पकोड़े राज के सामने रखी टेबल पर लाकर रख देती है और राज को चाय के साथ समोसे गरम पकोड़े खाने के लिए कहकर खुद भी खाने लगती है।

राज अपने मन की शंका मिटाने के लिए पूछता है? "कुछ देर पहले तो घर में इतनी सजावट नहीं थी किसी का जन्मदिन है क्या।"
"हां बेटा आज रत्ना माया का जन्मदिन है। आप रत्ना के साथ बैठकर बातें करो मैं माया की पसंद का गाजर का हलवा पकाने रसोई घर में जा रही हूं।" और फिर रत्ना कि मां रसोई घर में जाने से पहले मुस्कुरा कर कहती है "रत्ना तो अपनी पसंद के छोले भटूरे खुद ही पकाती है, मेरे हाथ से पके हुए छोले भटूरे इसे पसंद नहीं आते हैं, हां माया के हाथ के पके हुए छोले भटूरे खूब स्वाद से खाती है।"

रत्ना कि मां के यह बात कहने के बाद राज जब रत्ना के चेहरे कि तरफ देखता है तो अपनी मां की यह बात सुनकर रत्ना के चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं, जैसे कि उसकी मां झूठ बोल रही हो।

मां के रसोई घर में जाने के बाद रत्ना राज से पूछती है? "माया ने अपने घर का पता आपको लिख कर दिया था या उसने बोला था फिर आपने लिखा था।" रत्ना के इस सवाल का जवाब राज पूरे आत्मविश्वास के साथ नहीं दे पाता है कि माया ने खुद अपने हाथों से मुझे अपने घर का पता लिख कर दिया था।
"आप झूठ बोल रहे हो पेंटर बाबू क्योंकि माया अनपढ़ है और मैं दसवीं पास हूं।" रत्ना कहती है
और फिर राज कुछ सोच कर कहता है "हो सकता है, माया अनपढ़ हो, लेकिन मैं सच कह रहा हूं, माया ने खुद अपने हाथों से अपने घर का पता मुझे लिख कर दिया था।"
" जब मैं दुकान पर चलीं जाती हूं, तब माया ने शायद मुझसे चोरी छिपे हिंदी पढ़ना लिखना सीख लिया होगा।" रत्ना ने कहा "क्या सामान बेचने की आपकी दुकान है।" राज पूछता है?
"हमारी श्मशान घाट के पास अंतिम संस्कार का सामान बेचने की दुकान है।" रत्ना बताती है?
"स्त्री होकर आपको श्मशान घाट के पास ऐसा सामान बेचने से भय महसूस नहीं होता है।" राज पूछता है?
"क्या करूं पेंटर बाबू मजबूरी है, अगर हम दोनों बहनों का भाई होता तो पिता की मौत के बाद दुकान की सारी जिम्मेदारी वही उठता।" रत्ना कहती है
रत्ना का यह जवाब सुनकर राज चुप हो जाता है, लेकिन उसे ऐसा महसूस होता है कि रत्ना किसी मजबूरी में नहीं बल्कि यह काम अपने शौक से कर रही।

राज के चुप होने के बाद रत्ना राज से पूछती है "आपके परिवार में कौन-कौन है, मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान था, एक प्लेन दुर्घटना में दो बरस पहले उनका देहांत हो गया है।" राज बताता है

तभी राज के पीछे से कोई बोलता है "तो मुझसे शादी कर लो कब तक अकेलापन बर्दाश्त करोगे।" राज तुरंत पीछे मुड़कर देखता है तो रत्ना माया की मां हाथ में गाजर का हलवा लिए खड़ी हुई थी। मां के मुंह से यह अजीबोगरीब शब्द सुनकर राज पूछता है? "कुछ कहा आपने।"
"हां मैं यह कह रही हूं, बेटा कोई अच्छी लड़की देखकर शादी कर लो कब तक अकेलापन बर्दाश्त करोगे, मैं जानती हूं, अकेलापन कितना दुखदाई होता है, मुझ अनाथ को रत्ना के पिता शादी करके सहारा नहीं देते तो न जाने मेरा क्या होता वह हमेशा कहते थे, माया मुझे तुमसे मौत के अलावा दुनिया की कोई भी शक्ति जुदा नहीं कर सकती है।" मां बोलती है
राज चौक कर पूछता है? "क्या आपका नाम भी माया है।"
रत्ना माया की मां कुछ भी जवाब दिए बिना गाजर का हलवा राज के सामने टेबल पर रखकर रसोई घर में चली जाती है, इसलिए यही सवाल राज रत्ना से पूछता है? तो रत्ना बताती है "जब से माया घर छोड़कर गई है, तब से मां के दिलों दिमाग पर माया ही माया छाई हुई है, दिन-रात मां माया को याद करती रहती है, इसलिए मां के मुंह से अपना नाम माया निकल गया होगा।" रत्ना बताती है "वैसे आपकी मां का नाम क्या है।" राज पूछता है?
"मां का नाम तो मुझे नहीं मालूम।" रत्ना कहती है
"आपको अपनी मां का नाम नहीं पता यह अनोखी बात मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी इंसान से सुनी है, अच्छा अपने पिता का तो आपको नाम पता होगा ना।" राज पूछता है?
"हां पिता जी का तो नाम मुझे मालूम है, उनका नाम था रंजीत।"रत्ना बताती है
रंजीत नाम सुनकर राज की उलझन और बढ़ जाती है इसलिए वह फिर दोबारा पूछता है? "अभी आपकी मां ने बताया था कि आपकी बहन माया पड़ोस के किसी रंजीत नाम के लड़के के साथ मुंबई हीरोइन बनने घर से भाग गई है।"
"हां मां ने सच कहा था, माया पड़ोस के रंजीत नाम के लड़के के साथ घर से भाग गई है और रंजीत नाम दुनिया में किसी और का भी हो सकता है।" रत्ना इतने आत्मविश्वास के साथ जवाब देती है कि राज की बोलती बंद हो जाती है।

उसी समय राज सोच में पड़ जाता है कि मैंने किस लड़की की पेंटिंग बना दी है और मैं किस लड़की को अपना दिल दे बैठा हूं, वह खुद भी अनोखी अजीबोगरीब थी और अपने परिवार की तरह अनोखी बातें कर रही थी, उसका परिवार भी उसी कि तरह अनोखी बातें कर रहा है, सबसे डरावना तो मुझे इनका घर लग रहा है सौ दौ सौ साल पुराना खंडहर जैसा, माया मुझे मिली भी थी तो वह भी बहुत अनोखे ढंग से हाईवे के किनारे वीरान अंधेरे में कीचड़ चिकनी मिट्टी से सनी हुई और बारिश की बूंदों से ऐसे बचने की कोशिश कर रही थी कि उसके ऊपर जैसे कोई ज्वालामुखी का गरम-गरम लवा फेंक रहा हो और ठंड से कांपती हुई अगर उस जगह मेरी गाड़ी पंचर ना होती तो वह शराबी ट्रक ड्राईवर ना जाने उसे कहां से कहां पहुंचा देता शायद माया रत्ना को नहीं मालूम उनके पास अपार हुस्न की माया है, इसलिए तो दोनों बहने लापरवाह होकर बेखौफ घर से बाहर निकल जाती है, रत्ना मर्दों का समान बेचने वाली अंतिम संस्कार की दुकान संभालती है और माया अच्छे बुरे लोगों की पहचान किए बिना हीरोइन बनने का ख्वाब देख रही है।

फिर राज अपने से ही नाराज होकर सोचता है, काश में माया की तस्वीर बनाते हुए उसे अपने दिल का हाल सुना देता है कि मैं उस खूबसूरत गुड़िया जैसी लड़की का दीवाना हो गया हूं, लेकिन कैसे सुनाता भी वह अपनी तस्वीर बनवाने के विषय के अलावा दूसरी बात मुझसे करने के लिए तैयार ही कहां थी। अपना नाम तक तो उसने मुझे बताया नहीं था, सिर्फ मुझसे कहा था कि मेरी सहेली की शादी है, इसलिए जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती मैं उसके घर पर रहूंगी और तब तक ही में आपके घर आकर अपनी तस्वीर बनवा सकती हूं और पहली मुलाकात में मेरे घर के अंदर सोने की जगह मेरी गाड़ी में ही खाना खाकर सोई थी, मुझसे डर कर नहीं बल्कि मेरे मोती कुत्ते से डर कर और तस्वीर पूरी होने के बाद उसने मुझे श्मशान घाट में बुलाया था, ऐसी जगह में कैसे अपने प्यार का इजहार माया के सामने कर सकता था, और मैं पहले ही अपने प्यारे मोती कुत्ते की अचानक मौत से दुखी था।

उस रात वह अपनी तस्वीर देखकर बिना तस्वीर लिए अपने घर का पता लिखकर मुझे देकर चली गई थी, मुझे यह याद क्यों नहीं आ रहा की माया ने पता बोला था और मैंने लिखा था या माया ने खुद पता लिखा कर मुझे दिया था, लेकिन एक बात तो मुझे समझ आ गई है कि माया ने मुझे श्मशान घाट क्यों बुलाया था, क्योंकि श्मशान घाट से ही उसके परिवार का पालन पोषण होता है क्योंकि श्मशान घाट ही उनकी रोजी-रोटी साधन है।

तभी राज को याद आता है कि माया ने श्मशान घाट के बाहर जो सीमेंट पत्थर की पानी पीने की टंकी लगी हुई है, उस टंकी के ऊपर एक पन्नी (पॉलिथीन) में लपेटकर कुछ सफेद रंग के पेपर चिट्ठी जैसे टंकी की छत पर भारी पत्थर से दबाकर रखे थे, कहीं वह उसका मेरे लिए प्रेम पत्र तो नहीं था या उसने वह पता लिखकर वहां रखा था, जिस पते पर वह इस समय रह रही है।

यह विचार मन में आने के तुरंत बाद राज अपने घर नौकर को फोन करके बोलता है "अभी ही हमारे घर के पास वाले श्मशान घाट में जाओ और श्मशान घाट के बाहर जो पानी पीने की टंकी लगी हुई है, उसके ऊपर पत्थर से दबा हुआ पॉलिथीन में जो कुछ भी समान रखा हुआ है, उसे लेकर घर आओ और फिर उस समान की फोटो मुझे मेरे व्हाट्सऐप पर भेजो ऑटो से जाना ऑटो से आना पैसे की जरूरत हो तो ताकिए के नीचे अलमारी की चाबी रखी हुई है, अलमारी से निकाल लेना।"
"ठीक है साहब मैं अभी जाता हूं।" नौकर कहता है

जब राज अपने नौकर से फोन पर बात कर रहा था, तब रत्ना उसकी मां खड़े होकर भूखी आदमखोर शेरनी की तरह उसकी तरफ देख रही थी, उनसे नजरे मिलते ही राज को अजीब सी घबराहट होने लगती है, जैसे वह साधारण स्त्रियों के सामने नहीं बल्कि दो भयानक डरावनी चुड़ैलों के सामने बैठा हुआ है, जो अपने मन में उसकी हत्या करने का विचार लाकर उसकी तरफ घूर-घूर कर देख रही है, राज उनकी डरावनी नजरों से बचने के लिए बहाने से पलंग से खड़ा होकर मकान के पीछे की खिड़की खोलकर देखाता है की बारिश बंद हुई है या नहीं, लेकिन खिड़की खोलकर यह देखकर राज का डर घबराहट और बढ़ जाती है क्योंकि वह जिस हवेली जैसे टूटे-फूटे मकान में रत्ना और उसकी मां के साथ था, वह मकान गांव से दूर खेत में बना हुआ था, उसके पास से गांव की जोहड़ (तालाब) गुजर रही थी और दूर दिल्ली पंजाब हाईवे दिखाई दे रहा था, यह गांव दिल्ली के सिंधु बॉर्डर के पास का टीकरी गांव था।

राज रत्ना की मां से बिना कहे बिना आज्ञा लिए उनके किसी भी सवाल का जवाब दिए बिना घर दरवाजा खोलकर देखाता है, तो सच में उनका घर गांव से दूर सुनसान सन्नाटे में खेत में बना हुआ था, घर के थोड़ा दूर पुराना टूटा-फूटा पक्का रोड जा रहा था, रोड की दूसरी तरफ छोटी सी चाय की दुकान थी, रोड पर बिजली की लाइटों के दो खम्भे लगे हुए थे, उनकी रोशनी भी ज्यादा दूर तक नहीं फैल रही थी। दूर सिहरो (गीदड़) के चिल्लाने की आवाजे और कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी, घर की चौखट के पास काली बिल्ली रो रही थी, बारिश रुक गई थी, राज जैसे ही दरवाजा बंद करके रत्ना और रत्ना की विधवा मां से यह कहने आता है कि बारिश बिल्कुल बंद हो गई है, मैं अपने घर जा रहा हूं तो अचानक बिजली चली जाती है और राज का फोन आने कि वज़ह से उसके मोबाइल की घंटी तेज तेज सन्नाटे में गुंजने लगती हैं राज फोन उठाता है तो दूसरी तरफ से पुलिस इंस्पेक्टर मिलन कहता है "आप राज पेंटर साहब बात कर रहे हैं।"
"जी मैं राज चित्रकार बोल रहा हूं, लेकिन मेरे नौकर के नंबर से आप सर कौन बात कर रहे हैं।" राज पूछता है? "मैं आपके इलाके का पुलिस इंस्पेक्टर मिलन बात कर रहा हूं, श्मशान घाट के पास आपके नौकर की किसी ने हत्या कर दी है, उसकी लाश को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे किसी खूंखार जंगली जानवर ने उसकी हत्या की है।" फोन पर इतनी बात सुनते ही राज के मोबाइल का नेटवर्क गायब हो जाता है और राज को गुप अंधेरे में ऐसा महसूस होता है कि रत्ना उसकी मां के अलावा घर में कोई तीसरा भी है तीसरा स्त्री है या पुरुष या कोई आदमखोर जानवर यह पता लगाने की जगह राज को अपने घर जल्दी पहुंचने का काम ज्यादा जरूरी लगता है, क्योंकि श्मशान घाट के पास उसके वफादार नौकर की किसी ने हत्या कर दी थी।

राज रत्ना माया की मां से अपने घर जाने की कहकर जैसे ही अपनी बाईक स्टार्ट करता है तो बाईक के एक नहीं दोनों टायर उसे पंचर नजर आते हैं, प्राइवेट टैक्सी बुलाने के लिए फोन करता है तो उसके मोबाइल का नेटवर्क गायब था, इसलिए राज को दोबारा रत्ना के घर में जाना पड़ता है कि अगर आपके मोबाइल में नेटवर्क आ रहा है तो मुझे अपना मोबाइल प्राइवेट टैक्सी को फोन करने के लिए थोड़ी देर के लिए दिखा दो।

राज जैसे ही प्राइवेट टैक्सी बुलाने के लिए नंबर लगता है तो रत्ना का फोन आ जाता है, राज यह कहकर मोबाइल रत्ना को देता है कि "आपका फोन आ रहा है।"
"फोन उठाओ यह आपका फ़ोन है।" रत्ना कहती हैं
"मेरा फोन यह कैसे हो सकता है।" राज कहता है "एक बार फोन उठाओ मैं सच कह रही हूं, आपका ही फोन है।" रत्ना कहती है राज रत्ना के कहने से फोन उठाता है तो दूसरी तरफ से माया राज से नाराज होकर कहती है "जो चीज मैंने श्मशान घाट की पानी की टंकी के ऊपर आपके लिए रखी थी उसको लेने के लिए आपने अपने नौकर को भेजा उसकी इस गुस्ताखी के लिए मैंने उसे मौत की सजा दी है।"
"कौन बोल रही हो तुम।" राज पूछता है?
"मैं माया बोल रही हूं।" माया कहती है और फोन खुद व खुद स्विच ऑफ हो जाता है, माया का फोन सुनकर राज अपनी शुद्ध बुद्ध खो देता है

तभी रत्ना राज का हाथ पकड़ कर घर से बाहर लाकर कहती है "अगर अपनी जान बचाना चाहते हो तो तुरंत यहां से भाग जाओ मेरी विधवा मां ही माया है, वह मेरी सौतेली मां है और वह 20 वर्ष से आपको खोज रही है, क्योंकि मेरी सौतेली मां माया आपके पिछले जन्म में आपकी प्रेमिका थी, मेरे पिता रणजीत ने आपकी हत्या करवा कर माया से शादीशुदा होने के वाबजूद दूसरी शादी कर ली थी, माया मां को जब यह बात पता चली तो उसने आपकों याद कर करके आपकी याद में तड़प तड़प कर अपनी जान दे दी थी,उस समय मैं एक वर्ष कि छोटी बच्ची थी, वह बरसों से इंतजार कर रही है कि कब आप उसे मिले और वह आपकी जान लेकर आपको हमेशा के लिए अपने साथ ले जाए।"