अभागा... - अध्याय 1 Akassh Yadav Dev द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अभागा... - अध्याय 1


नागे...!!!

पूरे मुहल्ले से अगर यह पूछा जाए की- "एरिये भर में सबसे ज्यादा शैतान और उपद्रवी लड़का कौन है?"
तो सर्वसम्मति से सभी यही नाम बताएंगे ।

नागे के पिता भोला नाथ महतो शहर में एक ठेकेदार के यहां मुंशी थे,इसीलिए खाने पहनने की कभी दिक्कत नही हुई।
थोड़ी बहुत जमीन भोला नाथ के पिता छोड़ कर मरे थे और कुछ बीघे जमीन बगीचे और कई तलाबें स्वयं भोलानाथ की स्वयं की अर्जित की हुई थी,इसीलिए बड़ी इज्जत थी उनकी पूरे गांव भर में ।

कहते हैं नागे जब अपनी माँ के पेट मे था तब भोला का आना जाना एक नाचने वाली के कोठे पर शुरू हुआ ,कोठे वाली का नाम सुमन बाई था।
पूरे शहर भर में उसके रूप और सौंदर्य की चर्चा थी,यौवन की देवी ने यौवन की वर्षा भी उस पर पूरे मन से की थी।
सुमन बाई के पास लुटाने के लिए सौंदर्य और यौवन था तो भोला महतो के पास भी धन की कोई कमी नही थी ।

शुरू शुरू में तो भोला महतो देर रात अपने घर लौट भी आते थे लेकिन जैसे जैसे वे सुमन बाई के केशों में उलझते गए वैसे ही उनका घर आना भी कम होता गया।

आषाढ़ का महीना था ,किसी समाजिक सेवा समिति के नालिश पर सुमन बाई के कोठे पर पुलिस का छापा पड़ा और सुमन बाई के साथ साथ भोला महतो भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए।

इस से पहले की बात आगे बढ़ती भोला महतो ने पुलिस के दारोगा से सांठ गांठ कर एक मोटी रकम के एवज में मामले को वहीं पर दबा दिया ,पर इस से सुमन बाई का कोठा न बच सका ,उस कोठे को पुलिस ने हमेशा हमेशा के लिए बंद करा दिया तथा उस मकान में सेवा सीमति के संचालन में एक विद्या निकेतन खोल दिया गया।
यानी दारोगा ने जहां एक हाथ से पाप किया तो वहीं दूसरे हाथ से पुण्य को भी बटोर लिया।

नागे का अपनी माँ के पेट मे ये आठवां महीना था जब भोला महतो ने समाज की मर्यादा और लोक लाज त्याग कर सुमन बाई से विवाह कर के अपने घर ले आये,समाज और बिरादरी को ये कह कर भोला महतो ने दबा दिया कि भोला महतो से बैर करोगे तो चूल्हे में हांडी तो चढ़ेगी पर उस में अनाज का कोई दाना नही होगा।
इसी डर से सभी गांव वाले चुप रह गए...हालांकि कुछ लोग दबी आवाज इसका विरोध कर रहे थे पर भोला महतो की पहली पत्नी सुलोचना देवी का सुमन बाई के प्रति उदारता इस रहे सहे विरोध को भी खत्म कर दिया ।
सुलोचना देवी बहुत ही पूजा पाठ करने वाली स्त्री थी और उसका भगवान पर अटूट श्रद्धा था लेकिन जब भोला महतो घर मे उसकी सौत ले आए तो उसका ईश्वर पर से विश्वास जाता रहा।

गांव के शिव मंदिर के पुजारी बिसनाथ पाँड़े सुलोचना देवी के नइहर(मायके) के गांव के थे इसीलिए वो उन्हें बड़े भाई का दर्जा देती थी ,बिसनाथ पाँड़े भी सुलोचना को अपनी बहन जितना मानते थे और उतना ही प्रेम करते थे।
उनसे ये देखा ना गया तो उन्होंने गांव के पंचो को बटोर लिया, जब भोला महतो के कान ये बात पहुंची तो उन्होंने नाक भौं सिकोड़ते हुए बिसनाथ पाँड़े को धर दबोचा ,पर भोला महतो जानते थे अब वे बिसनाथ पाँड़े का कुछ नही बिगाड़ सकते ,सरपंच के सामने जा कर जवाब देना ही पड़ेगा।

पंचायत का समय इतवार रखा गया और गांव के प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में निर्धारित समय पर पंचायत शुरू की गई।

बिसनाथ पाँड़े- "पंचों आपके नज़र के सामने इतना बड़ा अन्याय हो रहा है और आप सभी चुप बैठे हैं?"

"पाँड़े जी है तो ये घोर अन्याय और पाप भी और इस पाप के लिए भोला महतो को ये पंचायत क्षमादान कतई नही करेगी।" - पंचों के मुखिया रामजी महतो मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा

ये कहते हुए रामजी महतो की नज़र नीचे झुकी हुई थी जबकि भोला महतो की जलती हुई निगाह रामजी महतो पर आग बरसा रही थी
रामजी महतो जानते थे अगर भोला महतो से बैर मोल लिया तो उन्हें बहुत सारी समस्याओं से दो चार होना पड़ेगा परंतु उन्हें अपना फर्ज और धर्म भी तो बचाना था इसीलिए वे पंचायत के सरपंच के रूप में सिर्फ और सिर्फ न्याय करने का विचार कर बैठे थे ।
इस से पहले की पंचायत किसी नतीजे पर पहुंचती वहां आठ महीने की गर्भवती स्त्री सुलोचना देवी पहुंच गई और सरपंच के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई।
सुलोचना देवी- "हे पंचो एक गर्भवती महिला का आज इस पंचायत में इस प्रकार से आना इस समूचे प्रकरण की जटिलता को स्वयं ही बयान कर रहा है।"

रामजी महतो- "लेकिन आप इस प्रकार यहाँ क्यों आईं हैं, क्या आपका यहां आना उचित है?"

"मैं जानती हूं सरपँच जी तभी तो कहा कि इस पंचायत में इस प्रकार से आना इस समूचे प्रकरण की जटिलता को स्वयं ही बयान कर रहा है।"- सुलोचना देवी हाथ जोड़े बड़े ही कातर स्वर मे बोली

एक क्षण रुक कर अपने घूंघट को जो कि उसके सिर से थोड़ा सा ढलक गया था उसे वापस अपने माथे पर व्यवस्थित करती हुई बोली- "मैं कुछ कहना चाहती हूं।"

"क्या कहना चाहती हैं आप?"- रामजी महतो ने कहा

भीड़ में ही एक ओर भोला महतो और सुमन बाई खड़े थे ,उन पर एक नज़र डालती हुई सुलोचना देवी ने कहा- "मेरे आदमी ने दूसरी शादी की है , लेकिन इस से मुझे कोई भी दिक्कत या असुविधा नही है।"

सुलोचना देवी के एक एक शब्द भोला महतो और सुमन बाई पर घडो पानी बरसा रहे थे ,वे लज्जित से सिर झुकाये खड़े थे

एक पल रुक कर सुलोचना देवी पुनः बोली- "मैं चाहती हूं कि मेरे घर के इस मामले को यहीं पर खत्म किया जाए मुझे इस सुमन बाई से कोई बैर नही है ,मैं इसे अपने छोटी बहन के समान ही प्रेम करूंगी और आदर करूँगी।"

बिसनाथ पाँड़े एक टक सुलोचना देवी को देखते रहे जबकि पंचो को ऐसा लगा जैसे सुलोचना देवी ने उनके माथे से टनों वजन का पत्थर उतार दिया है।
उन्होंने बिना भी एक क्षण गंवाए पंचायत को बर्खास्त कर दिया ।
आखिर वे भी तो भोला महतो के दुश्मन बनना नही चाहते थे।

★★★
पंचायती के पूरे एक महीने और 9 दिन बाद नागे का जन्म हुआ अब तक सुलोचना देवी और सुमन बाई बीच अच्छी तरह एक संबंध ने जन्म ले लिया था लेकिन सुलोचना देवी और भोला महतो इतने समय मे ही एक दूसरे के लिए बिल्कुल अनजान बन गए थे ,एक ही छत पर रहने के बावजूद भी उनकी अब बात तक नही होती थी ,वे एक दूसरे से बहुत दूर जा चुके थे ।

प्रसव पीड़ा से दो दिनों तक तड़पने के बाद नागे का जन्म हुआ और अपने एक दिन के नागे को सुमन बाई की गोद मे डाल कर पीड़ा से व्याकुल सुलोचना देवी स्वर्ग सिधार गईं।
जाते जाते सुलोचना देवी ने अपनी आंखों से बहते अनवरत लोरों की भाषा मे सुमन बाई से कहा था- "इस अभागे को मेरा नही अपनी ही संतान समझ कर पालना।"
और विदाई के दुःखद घड़ी में सुमन बाई ने अपनी मौन स्वीकृति दे दी थी-"हां जीजी ऐसा ही होगा नागे सिर्फ तुम्हारा ही नहीं मेरा भी बेटा है।"

बांस की चंचरी पर सवार हो कर जब सुलोचना देवी श्मशान की तरफ निकली तो भोला महतो , सुमन बाई और बिसनाथ पांड़े की ह्रदय विदारक करुण क्रंदन से पूरा गांव गमगीन हो गया।

भीड़ में से ही एक मोसमात(विधवा) बूढ़ी औरत ने अर्थी को जाते हुए देख रही थी ,भीड़ लगातार ऊंचे स्वर में कह रही थी- "राम नाम सत्य है।"
"राम नाम सत्य है।"

"भाग की बड़ी तेज थी तुम बहन जो सुहागन ही स्वर्ग जा रही हो।"- उस मोसमात बूढ़ी औरत ने अपनी आंखों को अपने सफेद साड़ी के आंचल से पोछते हुए कहा
भीड़ अब गांव के बाहर जा चुकी थी लेकिन सब के कानों में अभी भी रह रह कर "राम नाम सत्य है!" के जयघोष सुनाई पड़ रहे थे ।

★★★
...और देखते देखते चौदह वर्ष बीत गए।
सुलोचना देवी का बेटा जिसका नाम बड़े ही प्यार से नागेश्वर महतो रखा गया था वो अब चौदह वर्ष का हो गया था ,जबकि सुमन बाई अब 40 वर्ष की हो गई थी ।
इन चौदह वर्षों में बहुत कुछ बदल गया था ,सुमन अब बाई की जगह सुमन देवी हो गई थी तथा उसके सिर के दोनों तरफ के बालों में हल्की हल्की सफेदी भी आ गई थी।
भोला महतो को गुज़रे भी पांच वर्ष गुज़र गए थे और अब गृहस्थी मात्र तीन लोगों की थी सुमन देवी ,नागे और नागे का सात साल का सौतेला भाई गोलुआ।
नागे और गोलुआ में खूब प्रेम था जहां भी जाते दोनों साथ मे जाते।

एक दिन दोपहर को सुमन अरहर की दल जांते (चक्की) में दर रही थी,गर्मी का मौसम था सो सुमन देवी पसीने से पूरी तरह लथपथ थी और रह रह कर महराजिन को कोस रही थी- "उस करमजली को भी आज ही जाना था।"
अभी वो दाल को जांते के मुंह मे डाल कर दोबारा से चक्की घुमाने जा ही रही थी कि दरवाजे पर किसी की आहट हुई।

सुमन ने सोचा नागे और गोलुआ ही होंगे इसीलिए बैठे बैठे ही ऊंचे स्वर में कहा- "अरे खुल्ला तो है दरवाजा क्या तोड़ कर ही दम लोगे अब?"

बहुत देर तक जब कोई भी भीतर नही आया तो सुमन देवी ने नज़र उठा कर देखा तो सामने रामेसर महतो खड़े थे।
"अरे काका आप वो भी इस वक़्त?"
"हां छोटी बहू सोचा तो था कि घर तक नही जाऊंगा पर तुम्हारे जो दोनों लाडले हैं न वे चैन से रहने दें तब न!" -रामेसर महतो बड़े ही उदास भाव से बोले

"क्या बात हो गई काका अब क्या उपद्रव कर दिया उन दोनों ने?"

"दोनों को मत घसीटो छोटी बहू इस उपद्रव में ,बदमाशी तो बस वो अभागा नागे ही करता है।"

"काका...खबरदार जो मेरे नागे को अभागा कहा तो अच्छा नही होगा कहे देती हूं।" - बड़ी ही तेज लेकिन कातर स्वर में कहा था सुमन देवी ने ,रामेसर महतो एक बार तो सहम से गये लेकिन फिर थोड़ा ठिठक कर बोले- "छोटी बहू समय रहते समेट लो नही तो किसी दिन बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाएगा, आज तो बस मेरे गऊओं की रस्सी खोल कर उन्हें नदी के उस पार ही छोड़ा है ,कल को अगर कोई बड़ा कांड कर दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।" - कहते हुए रामेसर महतो बाहर निकल गए ।

रामेसर महतो की बातों ने सुमन देवी के तन बदन में आग लगा दिया और वो जांता छोड़ कर उठ खड़ी हुई , बाहर तमक कर निकली और बरामदे में सो रहे घर के नौकर को आवाज़ लगाई- "जग्गू काका जरा देखो तो इस घर के दोनों नालायकों को इस समय कहाँ मटरगश्ती कर रहे हैं?"

जग्गू काका उस जमाने से इस घर के नौकर हैं जब भोला महतो की माँ ब्याह कर आई थी और तभी से वे इस घर के हर सुख दुख को देखते आए हैं।
उम्र इतनी की सिर के बाल के साथ साथ देह का मांस भी पक कर हड्डियों को छोड़ कर झूलने लगा है,नागे के जन्म के कुछ साल बाद तक वे हर छोटे मोटे काम कर दिया करते थे लेकिन जैसे ही भोला महतो गुज़रे सुमन ने उन्हें ज्यादा मेहनत वाले काम करने से मना कर दिया,वे अब घर के बुजुर्ग की तरह ही उस घर मे रहते थे।
सुमन देवी की उन पर विशेष कृपा थी।

जग्गू काका को मालूम था नागे और गोलुआ कहां मिल सकते हैं इसीलिए सभी संभावित जगहों पर ढूंढते हुए अभी ग्रीन सिंह के बगीचे की ओर बढ़ ही रहे थे कि दूर से ही बांधा पोखर(तालाब) के पटाल(मेड) पर उन्हें बच्चों का झुंड दिखाई पड़ गया ,वे उसी ओर बढ़ गए
बांधा पोखर पहुंचने पर जग्गू काका ने देखा दस बारह की संख्या में बच्चें बंसी से मछली पकड़ रहे हैं, हालांकि वे सभी नागे की उम्र से बहुत छोटे थे ,प्राय सभी के सभी गोलुआ के हमउम्र और संगी साथी थे ।
जग्गू काका को देखते ही नागे एक बड़ी सी मछली हाथ मे लेकर जग्गू काका को दिखाते हुए कहा- "जग्गू काका देखो कितना बड़ा रोहू फंसाया है अपने गोलुआ ने!"
बगल में ही गोलुआ भी बंसी तालाब में डाल कर बैठा था,अपनी तारीफ सुन कर वो भी मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

"छोटे बाबू मछली पकड़ने की धुन में समय का कुछ ख्याल है तुम लोगों को?"
जग्गू काका की बात सुन कर नागे आसमान में चमक रहे सूर्य की ओर देखते हुए कहा- "अरे जग्गू काका अभी तो ठीक से दो भी न बजे होंगे,जरूर आपको माँ ने भेजा होगा ,तभी आप आते ही समय की बात करने लग गए।"

"अगर अपने मन से आते तो आते ही मछलियों की पोटली पर झपटते!"- ये बात गोलुआ ने कहा था

"आज किसकी गऊएं नदी पार करा आये तुम सब?"

ये सुनते ही नागे गोलुआ समेत सभी बच्चों के कान खड़े हो गए

"रामेसर महतो घर पहुंच गए लगता है।"- नागे मन ही मन बुदबुदाया

और फिर अपनी घबराहट छुपाते हुए कहा- "अरे जग्गू काका हमे क्या पड़ी है जो किसी की गऊओं को पार कराएं,हम क्या इतने बेगार हैं?"

"वो तो दिख ही रहा है बेटा!"- "चलो छोटी बहू ने तुरंत बुलाया है खाने के लिए।"
"जग्गू काका थोड़ी देर रुको न अभी तो मछलियां आई हैं घाट पर।"- गोलुआ उकताते हुए बोला
पर जग्गू काका भी जग्गू काका थे,वे उन दोनो को अपने साथ घर ले जा कर ही माने ।

आंगन के बीचों बीच ललगुदिया अमरूद के पेड़ के तने से दोनों को बांधा गया और बेंत की छड़ी तब तक उनके कोमल देह ओर चलती रही जब तक कि सुमन बाई थक नहीं गईं।
गोलुआ कातर दृष्टि से अपनी माँ को देख रहा था और सिसकते हुए कह रहा था- "म..माँ भो.... भोला महतो झूठ कहते हैं हमने उनकी गऊएं नदी पार नही कराई।"
सड़ाक...एक बेंत फिर गोलुआ के हाथ पे पड़ा और वो तिलमिला उठा

"माँ...इसे क्यों मार रही इसने क्या किया है ?"

"भोला महतो की गऊएं मैंने खोली है,जो भी दंड देना है मुझे दो।"- नागे अंदर ही अंदर हुलसते हुए कहा

"नहीं माँ दादा सिर्फ मुझे बचाने के लिए झूठ बोल रहे ,सच तो ये है कि भोला महतो की गऊएं मैंने खोली थी।"-अभी सुमन देवी कुछ कहने के लिए मुँह खोली ही थी कि गोलुआ बीच मे बोल पड़ा

"खूब समझती हूं तुम दोनों की मस्का फेरी तुम दोनों ही 'चोर-चोर मौसेरे भाई हो'।"- गुस्से में भी अपनी हंसी को रोक नही पाई थी सुमन देवी

"दोनो ही दोनों को बचाने की कोशिश कर रहे,जाओ मैं तुमसे बात नही करती"- सुमन देवी झूठ मुठ ही गुस्से से मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया

"माँ क्या सच मे हम सगे भाई नही हैं?"-गोलुआ ने पूछा था

"ऐसा किसने कहा रे?"- पेड़ से बंधे गोलुआ को अपने सीने से लगाती हुई बोली सुमन बाई

"और कौन बोलेगा,वही भोला महतो।"- नागे ने जवाब दिया

"मुँह नोच लुंगी मैं उस बूढ़े भोला महतो का।"- यह कह कर सुमन देवी ने झटपट दोनो की रस्सियों को खोल दिया
और फिर तीनो माँ बेटे आंगन में ही एक दूसरे के गले से लग कर एक दूसरे को प्यार दुलार करने लग गए ।

सामने ही दरवाजे पर महराजिन खड़ी हो कर ये तमाशा देख रही थी और मन ही मन कह उठी- गुस्सा तो ऐसे करेगी मानो लड़कों को चीर फाड़ देगी लेकिन अब देखो उन से ज्यादा स्वयं ही रो रही है ।

जब लाड़ प्यार हो गया तो सुमन देवी बोली- "चलो जाओ जल्दी से नहा धो कर आओ मैं भात काढ़ रही।"

नागे और गोलुआ भी गमछा ले कर कुएं पर नहाने चले गए

तभी बरामदे में चारपाई पर लेटे जग्गू काका ने कहा- छोटी बहू छोटे बाबू रोहू फंसा कर लाये हैं इसका भी कोई इंतजाम कर दो ,नही तो पीछे से वे मेरी गर्दन पर चढ़ जाएंगे ।

सुमन देवी तब तक रसोई में जा चुकी थीं इसीलिए कोई जवाब नही दिया तो जग्गू काका अपनी धोती की फेंट से एक बीड़ी निकाल कर सुलगाया और फिर धीमे फूंकने लगे ।

महराजिन तमकते हुए आई और मछलियों के थैले को उठा कर ले गईं।

सुमन देवी रसोई घर से ही चिल्ला कर बोली- "चूल्हे से छाई(राख) निकाल कर ले जा ऐसे मछली का चोंयटा(छिलका) नही निकलेगा।

महराजिन छोटे कुल की होने के साथ साथ बेहद कर्कश स्वभाव की थी उसे ज्यादा काम करना किसी भी शर्त पर मंजूर नहीं होता और इस समय भी यही हुआ था और वो मन ही मन बुदबुदा रही थी- "मछली ही खाएंगे ,शाक-भाजी से मन ही नहीं भरता इनका।"
मछली काट कर चूल्हे में कढाई को चढ़ाया और तेल डाल कर मछली को भुनने लगी ।
मछली की खुश्बू कढ़ाई से उड़ती हुई नागे और गोलुआ के साथ साथ जग्गू काका के नथुनों तक भी पहुंची ।
खाने की खुश्बू की यही तो विशेषता होती है जब ये नाकों तक पहुंचती है तब मन मे खाने इच्छा और भी अधिक बलवती होती जाती है।

जब नागे और गोलुआ खाने बैठे तो मछली के सिर को खाने को लेकर दोनों में फिर एक बार बहस होने लगी।
गोलुआ जानता था वो अकेले ही इतनी बड़ी मछली का सिर नही खा पायेगा लेकिन फिर भी वो नागे को चिढाने के लिए सुमन देवी से बार बार मनुहार करने लगा तो सुमन देवी खीजकर बोली- "इस डेढ़ फुटिये का न फुटानी ही अलग है!"

और फिर नागे से बोली- "अब से अगर केवल एक रोहू फंसे तो उसे वहीं तालाब में डाल आना,खबरदार जो एक रोहू लेकर मेरे घर आये तो।"

"तुम्हें क्षण भर शांति मिले तब तो हम पकड़ें-जरा जरा सी बात पर बूढ़े जग्गू काका को दौड़ा देती हमारे पीछे!"- गोलुआ अपने सिर को नचाते हुए बोला