हाल ए दिल DINESH KUMAR KEER द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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हाल ए दिल

1.
बिखरे कितने गम है जमाने में
हर एक आंख नम है जमाने में
इन्सान ही इन्सान के काम आएगा
तौबा कैसे वहम है जमाने में
भीड़ अपनों की बहुत है लेकिन
तन्हा तन्हा आलम है जमाने में
तीसरा कोई नजर नहीं आता
एक तुम एक हम है जमाने में
ढूंढने पर भी नजर नहीं आई
वफा कितनी कम है जमाने में
झूठे किस्से हैं झूठे वादे हैं
झूठी हर कसम है जमाने में जब
दवा जख्मों की कुछ भी नहीं
दर्द ही अब मरहम है जमाने में

2.
किस पर कितना विश्वास... बता दूं,
कौन आम कौन खास... बता दूं
चोरी और बेईमानी का पैसा
आता नहीं कभी रास... बता दूं
पतझड़ सा लगता ये जीवन
कैसे भला मधुमास... बता दूं
कब बढ़ जाती प्यार में दूरी
होता नहीं अहसास... बता दूं
मिलते ही कुर्सी सब के वादे,
ले लेंगे संन्यास... बता दूं
खून चूस कर मजदूरों का,
रखता वो उपवास... बता दूं
पहने हुए जो सफेद लिबास
काला उनका इतिहास... बता दूं
इंसानियत का इस दुनियां से
हो गया स्वर्गवास... बता दूं
जनता की परवाह किसे भला
सत्ता के सब दास... बता दूं
बिछड़ कर मुझसे वो भी कितना
रहता होगा उदास... बता दूं

3.
ना मुंह छिपा के जियो और ना सर झुका के जियो
गमों का दौर भी आए तो मुस्कुरा के जियो ।
घटा में छुप के सितारे फना नहीं होते
अंधेरी रात के दिल में दीये जला के जियो ।
ना जाने कौन - सा पल मौत की अमानत हो
हर एक पल की खुशी को गले लगा के जियो ।
ये जिंदगी किसी मंजिल पे रूक नहीं सकती
हर इक मुकाम से आगे कदम बढ़ा के जियो

4.
कोई खुशियों की चाह में रोया
कोई दुखों की पनाह में रोया...
अजीब सिलसिला हैं ये ज़िंदगी का...
कोई भरोसे के लिए रोया...
कोई भरोसा कर के रोया...

5.
माँ ने रोक टोक लगाई,
उसे प्यार का नाम दे दिया ।
पिता ने बंदिशे लगाई,
उसे संस्कारो का नाम दे दिया।
सास ने कहा अपनी इच्छाओं को मार दो।
उसे परम्पराओं का नाम दे दिया।
ससुर ने घर को कैदखाना बना दिया,
उसे अनुशासन का नाम दे दिया।
पति ने थोप दिये अपने सपने अपनी इच्छायें ।
उसे वफा का नाम दे दिया।
ठगी सी खड़ी मैं जिन्दगी की राहों पर,
और मैने उसे किस्मत का नाम दे दिया।

6.
बहुत सुंदर दिल को छूने वाली लाईन
सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा...
कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा...
खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में...
कुछ थे परेशान कुछ उदास थे...
पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे...
दूर खडीं देख रही थी मैं ये सारा मंजर...
तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया...
और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था...
हाथ थामने वाला कोई और नही... मेरा भगवान था...
चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था...
जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञासा भरी नज़रों से...
तो हँस कर बोली...
"तूने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था...
आज प्यारे उसका क़र्ज़ चुकाने आया हूँ...।"
रो दिया मै... अपनी बेवक़ूफ़ियो पर तब ये सोच कर ...
जिसको दो घडी जपा
वो बचाने आये है...
और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है...
तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था...
कितना थी नादान मैं हकीकत से अनजान थी...