अमावस्या में खिला चाँद - 4 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमावस्या में खिला चाँद - 4

- 4 -

       जब प्रवीर कुमार घर पहुँचा तो सूरज पश्चिम दिशा में ऊपर से नीचे खिसकता जा रहा था। रिंकू उसकी टाँगों से लिपट गया और उसे बाज़ार चलने के लिए कहने लगा। 

        ‘क्यों बेटा, बाज़ार चलने के लिए क्यों कह रहे हो?’

        ‘पापा, छुट्टी वाले दिन आप हमेशा हमें आइसक्रीम खिलाने बाज़ार जो ले जाते हो।’

        ‘बेटा, मैं अभी बाहर से आया हूँ। थोड़ी देर आराम कर लूँ, फिर चलते हैं।’ 

       लेकिन रिंकू तो बच्चा ठहरा, तत्काल बाज़ार जाने की ज़िद करते हुए बोला - ‘पापा, फिर तो रात हो जाएगी, अभी चलो।’

        नवनीता ने रिंकू की फ़रमाइश सुन ली थी, अत: उसने पास आकर कहा - ‘रिंकू, ज़िद नहीं करते बेटा। जब पापा कह रहे हैं तो थोड़ी देर उन्हें आराम कर लेने दो,’ कहते हुए नवनीता पानी लेने रसोई की ओर चली गई और रिंकू रूठकर बेडरूम में जाकर औंधे मुँह लेट गया। 

         प्रवीर कुमार ने रिंकू की नाराज़गी अनुभव की। पानी पीने के बाद वह बेडरूम में गया। उसने रिंकू को उठाया। उसे प्यार करते हुए कहा - ‘अच्छे बच्चे पापा से रूठा नहीं करते। चलो, आइसक्रीम खाकर आते हैं,’ बाहर आते हुए उसने कहा - ‘नीता, बँटी कहाँ है?’

         ‘बँटी तो अपने दोस्तों के साथ पार्क में खेलने गया है।’

         ‘नीता, बँटी को बुला लो। सारे ही बाज़ार चलते हैं।

        ‘प्रवीर, मुझे तो अभी खाना बनाना है। आप इसे ही बाज़ार ले जाओ। बँटी के लिए बटर स्कॉच का कोण ले आना।’

         ‘और तुम्हारे लिए?’

         ‘मेरे लिए कुछ भी मत लाना। मैं आइसक्रीम नहीं खा पाऊँगी, मेरी दाढ़ में दर्द है।’

         ‘अरे, तुमने बताया नहीं, डेंटिस्ट को दिखा लाते!’

         ‘डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं, मैंने सरसों के तेल में नमक डालकर मसाज कर लिया था और लौंग भी चबा लिया था। अब काफ़ी आराम है। …. जल्दी आ जाना। सारा दिन आपका बाहर ही निकल गया।’

          प्रवीर कुमार बिना कोई उत्तर दिए रिंकू को लेकर बाज़ार की ओर चल दिया। सप्ताहांत होने के कारण बाज़ार में खूब गहमागहमी थी। आइसक्रीम की रेहड़ी के साथ गोल-गप्पों की रेहड़ी देखकर प्रवीर कुमार का मन गोल-गप्पे खाने का कर आया। उसने पूछा - ‘रिंकू बेटे, गोल-गप्पे खाओगे?’

          रिंकू को लगा, पापा गोल-गप्पे खिलाकर आइसक्रीम की छुट्टी करने वाले हैं, सो उसने कहा - ‘नहीं पापा, मैं तो आइसक्रीम ही खाऊँगा।’

         उसके बाल-मनोविज्ञान को समझते हुए प्रवीर कुमार ने कहा - ‘आइसक्रीम तो खाएँगे ही, पहले गोल-गप्पे खा लें?’

           रिंकू ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा - ‘हाँ, फिर तो मैं तैयार हूँ।’

          और इस प्रकार पिता-पुत्र ने गोल-गप्पों और आइसक्रीम का आनन्द लिया तथा बँटी के लिए बटर-स्कॉच का कोण लेकर घर लौट आए।

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