अमावस्या में खिला चाँद - 11 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमावस्या में खिला चाँद - 11

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        एक दिन प्रिंसिपल ने टाइम टेबल देखकर शीतल के ख़ाली पीरियड में उसे अपने ऑफिस में बुलाया और बताया - ‘शीतल मैम, इस बार ज़ोनल यूथ फ़ेस्टिवल अपने कॉलेज में होना है। कल्चरल एक्टिविटीज़ में आप क्या सहयोग कर सकती हैं?’

       ‘सर, स्टडीज़ के दौरान मैं वन एक्ट प्लेज में हिस्सा लेती रही हूँ। मंच संचालन का भी मुझे अनुभव है।’

      ‘वैरी गुड। फिर तो आपको चार सत्रों में से दोनों दिन एक-एक सत्र में मंच संचालन का उत्तरदायित्व निभाना होगा। मैं आपको ऑर्गनाइज़िंग कमेटी का कन्वीनर बनाता हूँ। मुझे विश्वास है कि आप यूथ फ़ेस्टिवल को कामयाब बनाने में अहम योगदान देंगी।’

          ‘सर, मैं आपके विश्वास को बनाए रखने की पूरी कोशिश करूँगी।’

……

        यूथ फ़ेस्टिवल आयोजन का कार्यभार सँभालते हुए शीतल काफ़ी व्यस्त रहने लगी। कॉलेज टाइम के बाद भी उसे रिहर्सल आदि में बहुत समय लगाना पड़ता था। इससे उसे ख़ुशी ही होती थी, क्योंकि एक तो उसके समय का सदुपयोग हो रहा था। दूसरे, इस काम से उसे आत्मतुष्टि मिल रही थी। फ़ेस्टिवल से कुछ दिन पूर्व प्रिंसिपल ने शीतल को उसकी तैयारियों की जानकारी लेने के लिए बुलाया।

       ‘शीतल मैम, फ़ेस्टिवल की तैयारियाँ कैसी चल रही हैं? अपने कॉलेज की ओर से क्या-क्या आइटम पेश किए जाएँगे?’

         ‘सर, प्रथम सत्र में सरस्वती वन्दना व स्वागत गीत तथा कविता-ग़ज़ल वाचन के लिए सुदेश मैम पूरी लगन से जुटी हुई हैं। मोनो-एक्टिंग तथा वन एक्ट प्ले सत्र के लिए भी हम प्रतिदिन रिहर्सल कर रहे हैं।’

         ‘गुड। बाई द वे, वन एक्ट प्ले सत्र के लिए कौन-सा प्ले चुना है आप लोगों ने?’

         ‘सर, मैंने अपने विभागाध्यक्ष से सलाह मशविरा करके आधुनिक काल की हरियाणा की प्रथम महिला साहित्यकार इन्द्रा स्वप्न के एकांकी ‘दयालु राजा’ का चयन किया है।’

          ‘यह एकांकी किस दयालु राजा से सम्बन्धित है?’

          ‘सर, यह एकांकी महाराजा रणजीत सिंह जी के जीवन से सम्बन्धित है।’

         ‘शीतल, वैसे तो मैं फ़ेस्टिवल से पहले किसी दिन तुम्हारी रिहर्सल देखने आऊँगा, लेकिन अभी यदि तुम फ़्री हो तो मुझे इस एकांकी का कथानक संक्षेप में बता सकती हो?’

          ‘श्योर सर। कथानक इस प्रकार है - एक बार महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में कुछ इलाक़ों में बरसात न होने के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। एक गरीब किसान के पास ऐसे समय खाने को कुछ न रहा। उसका परिवार भूख से तड़प रहा होता है कि उसका छोटा बेटा अपनी माँ से खाने के लिए रोटी का टुकड़ा माँगता है, लेकिन माँ स्वयं भूख की मारी है। कहती है - मैं भूख से अधमरी हो रही हूँ, तुम्हारे लिए खाना कहाँ से लाऊँ। तो लड़का रोते हुए कहता है कि मैंने बड़े घर के सामने सुना है कि महाराजा रणजीत सिंह ने भूखों के लिए अन्न के भंडार खोल दिए हैं। उसकी माँ रोते हुए बच्चे को चुप करवाते हुए कहती है - ‘रो मत लाड़ले, मैं भीख माँगने जाऊँगी’ तो उसका पति कहता है, तेरे पास तो लाज बचाने को कोई साबुत वस्त्र भी नहीं, मैं जाता हूँ। भंडार पर जाकर वह एक चादर में काफ़ी अनाज बाँध लेता है। गठरी भारी होने से उसकी कमजोर बाँहें उसे उठा नहीं पातीं। वहाँ उपस्थित एक अन्य व्यक्ति कहता है, जब गठरी उठा नहीं सकता तो लालच में इतना अनाज बाँधा ही क्यूँ? वह कहता है, लालच नहीं भाई, मेरा सारा परिवार कई दिनों से भूख से तड़प रहा है। महाराजा उनका वार्तालाप सुन लेता है और भेष बदलकर आकर उसकी गठरी अपने कंधों पर उठाकर उसके साथ जाकर घर छोड़ आता है और बिना रुके वापस हो लेता है। भूखा व्यक्ति और उसकी पत्नी उसका धन्यवाद करने के लिए ढूँढते हैं, पर वह कहीं नहीं मिलता। दूसरे दिन महाराजा एक गाड़ी में अनाज भरवाकर उसके घर भिजवाते हैं तो वह गाड़ी वाले से पूछता है कि महाराजा को मेरे घर का पता कैसे लगा तो गाड़ी वाला उसे बताता है कि महाराजा कल तेरे घर आए थे। अब वह सोचता है कि कल तो भंडार से अनाज की गठरी उठाकर लाने वाले के सिवा कोई नहीं आया तो वह यह सोचकर बड़ा शर्मिंदा होता है कि महाराजा खुद उसकी गठरी को उठाकर लाए और वह पहचान भी नहीं पाया तो अचानक उसके मुँह से निकलता है - गरीब परवरदिगार महाराजा रणजीत सिंह की जय। …. यह एकांकी बहुत प्रेरणादायी है सर।’

         ‘अच्छा चुनाव है तुम्हारा। बाक़ी तो स्टेज पर पता चलेगा कि कलाकार विद्यार्थी कितनी अच्छी एक्टिंग करते हैं!’

         ‘सर, हमारे विद्यार्थी जो इसमें भाग ले रहे हैं, बहुत लगन और मेहनत से रिहर्सल कर रहे हैं। वे अपने-अपने रोल को लेकर बहुत उत्साहित हैं। … आपके आशीर्वाद से स्टेज पर भी बढ़िया परफ़ॉर्मेंस देंगे।’

……

        यूथ फ़ेस्टिवल दो दिन चला। तीन ज़िलों के सात कॉलेजों ने अपनी भागीदारी दर्ज की। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रदेश के शिक्षामंत्री थे तो समापन सत्र के मुख्य अतिथि का सम्मान शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी श्री प्रवीर कुमार, यानी शीतल के यूनिवर्सिटी के सहपाठी को दिया गया था। अंतिम सत्र में ही वन एक्ट प्ले स्पर्धा थी। कुल चार वन एक्ट प्ले अभिनीत किए गए। इस सत्र के दौरान भी मंच संचालन का उत्तरदायित्व शीतल ने निभाया। उसने अपनी ओर से ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया, जिससे लगता कि वह मुख्य अतिथि की पूर्व परिचित है। कार्यक्रम के अन्त में अपने उद्बोधन में प्रवीर कुमार ने जहाँ विभिन्न स्पर्धाओं में विजेता रहे प्रतिभागियों को बधाई दी, वहीं कॉलेज के प्रिंसिपल तथा स्टाफ़ को भी सफल आयोजन के लिए बधाई दी। प्रवीर कुमार ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘इस तरह के आयोजन आपके समग्र विकास के लिए अत्यावश्यक हैं। इनमें भाग लेने वाले विद्यार्थी जहाँ अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, वहीं श्रोता और दर्शकों के रूप में बैठे विद्यार्थियों को भी बहुत कुछ सीखने और समझने को मिलता है। सबसे बड़ी उपलब्धि जो मैंने अनुभव की है, वह है पंडाल में बैठे विद्यार्थियों का अनुशासन। नि:संदेह, इसमें प्रिंसिपल साहब और अन्य प्राध्यापकों के उत्तम मार्गदर्शन का बहुत बड़ा योगदान है। मैं आशा करता हूँ कि जो विद्यार्थी इस बार मंच पर नहीं आ पाए, वे भी अपने उन साथियों, जिन्होंने इस बार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, से प्रेरणा ग्रहण करके भविष्य में मंच पर आने का प्रयास करेंगे। 

          ‘एक बात का मैं अवश्य ज़िक्र करना चाहूँगा कि चाहे ‘दयालु राजा’ एकांकी को दूसरा स्थान मिला है, लेकिन इस एकांकी का जो संदेश है, वह हम सबके लिए बहुत ही मायने रखता है। वही राजा-महाराजा इतिहास-पुरुष बनते हैं, जो अपने समय के कुशल प्रशासक होने के साथ जन-हितैषी और मानव-कल्याण के कार्य करते हैं। महाराजा रणजीत सिंह न केवल कुशल प्रशासक थे, जिनके आगे अंग्रेजों को भी हार माननी पड़ी थी, बल्कि वे मानवीय गुणों का सागर थे। जिस तरह की कथा को लेकर एकांकी प्रस्तुत किया गया है, उसी तरह की एक अन्य घटना का ज़िक्र करना चाहूँगा। एक बार महाराजा रणजीत सिंह साधारण वेशभूषा में अपने कुछ सैनिकों के संग अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए कहीं जा रहे थे कि अचानक सामने से एक पत्थर आकर उन्हें लगा। सैनिकों ने देखा कि वहाँ केवल एक गरीब बुढ़िया दिखाई दे रही थी, अन्य कोई न था। उन्होंने उसे हिरासत में ले लिया और महाराजा की चोट का प्राथमिक उपचार कर दिया। राजभवन लौटने पर महाराजा ने उस बुढ़िया को बुलवाया। कर्मचारियों ने उसे राजसभा में पेश कर दिया। महाराजा को देखते ही बुढ़िया डर के मारे थर-थर काँपने लगी। महाराजा कुछ पूछते, उससे पहले ही काँपती आवाज में उसने कहा - सरकार, मेरा बच्चा कल से भूखा था। घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। पेड़ पर पत्थर मार रही थी कि कुछ फल तोड़कर उसे खिला सकूँ। बुढ़ापे के कारण निशाना चूक गया और पत्थर आपको लग गया। मैं बेगुनाह हूँ, मुझे क्षमा कर दें, आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। बुढ़िया की बात सुनकर महाराजा चिंता में पड़ गए। थोड़ी देर बाद वे बोले - इसे एक हजार रुपए देकर सम्मान के साथ छोड़ दिया जाए। कर्मचारियों ने आश्चर्य से कहा - महाराज जी, जिसे दंड मिलना चाहिए था, उसे रुपए देने के लिए कह रहे हैं आप? महाराज बोले - हाँ। यदि वृक्ष पत्थर लगने पर मीठे फल दे सकता है, तब मुझे तो कुछ विशेष करना चाहिए। परमात्मा ने इस राज्य की देखभाल और नागरिकों की जरूरतें पूरी करने का जिम्मा मुझे सौंप रखा है। उसे दंडित करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। इस बूढ़ी माई का बच्चा भूखा है तो इसके परिवार के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी मेरी है। …. साथियो! महापुरुषों के जीवन की घटनाओं से सही सबक़ लेकर हम अपने जीवन में बहुत अच्छे काम कर सकते हैं और देश को प्रगति और विकास की नई ऊँचाइयों की ओर ले जा सकते हैं। …. पुनः आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। जयहिंद, जय भारत माता।’ 

      उद्बोधन की समाप्ति पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। तदुपरान्त शीतल ने प्रिंसिपल साहब को मुख्य अतिथि तथा बाहर से आए मेहमानों का धन्यवाद करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। जब प्रिंसिपल ने सभी का धन्यवाद करने के उपरान्त कहा कि दो दिन के समारोह के सफल आयोजन के बाद कॉलेज में अगले दिन अवकाश रहेगा तो विद्यार्थियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने इस उद्घोषणा का करतल ध्वनि से स्वागत किया। इसके बाद राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का पटाक्षेप हुआ।

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