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अंगद - एक योद्धा। - 6

जो-जो मेरे साथ लड़ा,जिस- जिस ने मुझे ललकारा मैं उन सब का सम्मान करता हूं। उनके लिए भी गौरव का विषय है कि वह सब वीरगति को प्राप्त हुए और मैं भी खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे वीर योद्धाओं से लड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मनपाल ने बीच में ही टोक कर कहा,"अंगद तुमने निहत्थे पर वार न किय मैं समझता हूं परन्त कितनी ही वार तुम्हारी तलवार के, तुम्हारे भाले केु तुम्हारे बाणों के ऐसे थे, जो किसी योद्धा की पीठ पर हुए वह भी मैंने देखा है। यह कहां की युद्ध कौशलता है? आखिर किसी की पीठ पर वार करके तुम स्वयं को योद्धा कैसे कह सकते हो? इसमें कैसे कोई यश प्राप्त कर सकता है...", इतना सुनते ही अंगद ने मनपाल की आंखों मे आंखें डाल कर देखा। मनपाल इन आंखों को देखकर मानो वहां से भाग जाना चाहता था परंतु जैसे पांव जमीन में धंस गए थे, एक कदम भी उठाए ना उठता था।
अंगद ने बोलना शुरू किया, उसकी वाणी अब किसी मनुष्य की सी नहीं अपितु किसी सिंह की गर्जन सी प्रतीत होती थी। अंगद बोला - "काका वह सब पीठ जिन पर मैंने वार किया, सब कायरों की पीठ थी। वह सब भगोड़े थे और यदि योद्धा किसी से लड़ते हुए भयभीत हो जाए तो जिस क्षण कायरता उसका हाथ पकड़ ले, उसी क्षण योद्धा की मृत्यु हो जाती है। मेरे सामने जो कायरता दिखाएगा, वह जब तक जीवित रहेगा मेरे हृदय में शूल की भांति छुभता रहेगा। बहुत कायरों को मैंने उनके परिणाम तक पहुंचा दिया परंतु कईं है, जो भागने में सफल हुए वह सब के सब मेरे हृदय को खाए जाते हैं उन्हें याद करता हूं तो हृदय लघु लोहान हो जाता है। लगता है मानो हृदय सारा रक्त नाडियों में नहीं बल्कि मेरे सीने में कहीं उड़ेल रहा हो। मेरे हाथ तलवार पकड़ने को व्याकुल होते हैं, जी चाहता है इस संसार के प्रत्येक कायर के रक्त से अपनी तलवार को नहला दूँ.." इससे आगे वह कुछ बोलना मैनपाल ने कहा -"बस अंगद बस। बस करो, मेरे काम इसके आगे कुछ सुन ना पाएंगे। तुम्हें देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि तुम किसी मनुष्य की हत्या केवल इसलिए कर सकते हो कि वह डर गया। क्या तुम्हारे भीतर कहीं कोई दया भाव नहीं है ? तुम नहीं जानते एक माता को अपने पुत्र से क्या मोह होता है, कितना लगाव, कितना स्नेह, कितनी ममता और कितनी चिंता होती है जब उसका लाल किसी युद्ध पर जाता है। तुम एक मां की आंखों में कभी झांक ना सके अंगद , नहीं तो तुम्हें ज्ञात होता कि हर सिपाही की मां कितनी व्लव्याकु, कितनी व्यथित होकर अपने पुत्र की राह देखती है। एक पुत्र के तनिक घबरा जाने पर तुम उसकी मां की गोद सूनी कर दोगे ? किसी मां से उसका पुत्र इस प्रकार नीति के विरुद्ध जाकर छीनना तुम्हें न्याय संगत लगता है? तो मैं तुम्हें मनुष्यों की श्रेणी में नहीं रखता अंगद, मेरे लिए तुम बस एक नरभक्षी के समान हो। " अंगद की तुलना नरभक्षी से करके मनपाल वहां से चले गए।

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