Adhura Ahsaas - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अधूरा अहसास.. - 1

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नमस्ते ....आंटी जी ..
नमस्ते बेटा कैसे हो।?
मैं ठीक हूं आंटीजी आप कैसे हो.?
मैं भी बढ़िया हूं.!
राधिका कहा है.?
वो अपने कमरे बैठी होगी बेटा...जी
कहकर अनामिका राधिका के कमरे के तरफ निकल पड़ी
नही !..
आज मुझे कॉलेज नही आना है।
मगर क्यों? राधिका.?
उलझन भरे स्वर में अनामिका ने राधिका से ये प्रश्न किया....आज तो हमारा क्लास टेस्ट है.और वंशिका maam ने किसी को भी छुट्टी लेने से मना किया है। पता है न तुम्हे.?
हा....यार पता तो है..मगर मैं क्या करू .??
मेरी तो पढ़ाई भी कुछ भी नही हुई है..मैं क्या लिखूंगी पेपर में ..सोचकर मुझे बड़ी बेचैनी सी हो रही है ..अनामिका।
अरे ये क्लास टेस्ट ही तो है..कौनसे तेरे बोर्ड के एग्जाम है।
चल जल्दी से तयार हो कर चलते है।
सब आता है तुम्हे ...कोई परेशानी की बात नही है।
चेहरे पर मुस्कुरहाट..के साथ साथ वो कुर्सी से उठकर ,
फिर उसने अनामिका के साथ जाने का मन बना लिया।
उसे अपनी बातों से आखिरकार कार अनामिका ने मना ही लिया।
दोनों हॉल में आए ,और राधिका के मा से कुछ बात करके वो
फिर दोनों कोलेज की तरफ निकल पड़े।
शहर का नामांकित कालेज में उन दोनो का दाखिला था।वाणिज्य की शाखाओं में वे पढ़ाई कर रही थी।


तुम्हे मैंने कहा था ना, तुमसे मुझे कुछ नहीं चाहिए।l
तुम्हारा मेरे साथ होना ही मेरे लिए सबकुछ है।
राधिका से राजेश कह रहा था। काफी अंतराल के बाद दोनो मिल रहे थे।गांव में होने के कारण उनका मिलना काफी मुश्किल था।
राजेश अपनी दुकान में व्यस्त रहता था।
जब भी उसके पिता आएंगे तब उसे वह से छूटी मिलती थी।
मगर अब कम ही आते थे,
उन्होंने जिम्मेवारी अब राजेश पर ही सौंप दी थी।
जब कल राधिका ने उसे कॉल किया था ,तो
वो आज कैसे भी करके समय निकालना चाहता था।
वो चाहता था की , आजका यह दिन यादगार रहे।



आज तुम्हारा जन्म दिन है ,और मैं चाहती हूं की,
इसे तुम अपनी कलाई पर पहन के रखों,
जो तुम्हे मेरी यांद दीलाती रहेगी।
उसके हाथ पर घड़ी को बांधते हुए राधिका राजेश से कह रही थी।
जब राधिका ने राजेश को पहली बार अपने घर पर देखा था,
तो उसका मजाकिया अंदाज से वो प्रभावित थी।
जीवन के हर पल को जीने की उसकी कला से वो मंत्रमुग्ध सी हो गई थी।
जब भी वह कालेज को जाति तो ,उसकी दुकान की तरफ इसकी नजरो मानो उसे ही ढूंढती रह रही हो। उसका व्यवहार ही राधिका के मन में नई कोपलो का निर्माण कर रहा था।
मेज पर उनकी पसंदिता ऑर्डर भी आ चुकी थी।
एक दूसरे के आंखो में आंखे डालकर जब वो देखने लगे तब मन ही मन में दोनो ने न जाने कितने सपने सजाए होंगे इसकी कोई भी सीमा नहीं थी।
अपनी जेब से राजेश ने एक छोटा सुंदर सा बक्सा निकाला।लाल रंग के कागज में लिपटी हुई उस चीज को देखकर ,
राधिका की चेहरे पे मुस्कान आ गई।
उसे खोलते हुए राजेश ने राधिका के हाथ पर रखते हुए कहा," बेशक चीज़े सुंदर होती है ,
मगर कुछ व्यक्तियों के कारण ही कुछ वस्तुओ की सुंदरता में निखार आता है"।
उसकी यह बाते सुनकर वो खुश हो रही थी मगर कुछ कहने से बच रही थी।
राजेश ने उसे एक नथनी गिफ्ट की थी।
जो की वो उसे उस रूप में हमेशा देखना चाहता था।
वह तोहफा राधिका को भी काफी पसंद आया था।
.......




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