निजाम हैदराबाद दुनिया के सबसे बड़े अमीर समझे जाते थे, इतने हीरे ज़वारात उनके पास थे, कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती थी, इसलिए उनको तराजू पर तोला जाता था, शेरों से तौल के रखे जाते थे, क्योंकि गोलकोंडा की खदान, जिससे कोहिनूर जैसा हीरा निकला, वह भी कभी निजाम हैदराबाद का ही हीरा था, उस खदान से जितने भी अच्छे हीरे निकलते, पहले निजाम के पास आते फिर बाजार में जाते वह अच्छे अच्छे हीरे खुद चुन लेता, इतने हीरे थे कि उन सारे हीरों को एक साल में निकाला जाता था धूप दिखाने के लिए तो सात छतें उसकी महल की भर जाती थी, अकूत खजाना था, कोई हिसाब नहीं था कि उन हीरों का कितने दाम है, लेकिन निजाम हैदराबाद की हालत तुम समझते हो, ३० साल एक ही टोपी पहने रहा, उससे बदबू आती थी, उसको धुलवाता भी नहीं था, धोने में खराब हो जाएगी, एक ही कोट पहने रहा, लोग कहते भी, कभी जवानी में बना था, अब आप बूढ़े हो गए, शरीर दुबला हो गया, यह बिल्कुल ढीला लगता है, किसी और का लगता है, निजाम हैदराबाद कहता है, क्या फर्क पड़ता है, दुनिया जानती है कि मैं निजाम हूं, हैदराबाद का मैं चाहे चुस्त कोट पहनूं, चाहे ढीला कोट पहनूं, क्या फर्क पड़ता है, मगर फर्क सिर्फ १०० ५० रुपए का वो भी खर्च नहीं कर सकता था, तुम जान के हैरान होओगे कि मेहमानों को सिगरेट पिलाता था तो उसकी छाती जलती थी, मेहमान सिगरेट पीते थे, छाती उसकी जलती थी, और जैसे ही मेहमान जाते थे जो पहला काम वह करता था ऐशट्रे में से उनकी जो अधिजली सिगरेट के टुकड़े थे वह इकट्ठे कर लेता वह खुद पीता था तुमने इससे ज्यादा दरिद्र आदमी दुनिया में देखा? बिकमंगा भी यह ना करें भिक मंगा भी सड़क पर पड़े हुए टुकड़े नहीं उठाए निजाम हैदराबाद जैसा धनपति और सिगरेट के टुकड़े, दूसरों के झूठे टुकड़े उठा के पिए, भयंकर लोभी, उसके पास एक बहुत बड़ा हीरा था, जो वो टेबल पर पेपर वेट की तरह उपयोग करता था, जब मरा तो वो हीरा नहीं मिला एकदम, लोग बड़े हैरान हुए कि मामला कहां है, हीरा गया कहां, क्या ले गया निजाम हैदराबाद अपने साथ, बहुत खोजा वो मिले ही नहीं आखिर में मिला तो कहां मिला? निजाम हैदराबाद ने अपने जूते में छिपा रखा था, मरते वक्त भी फिक्र रही होगी उसको इस हीरे की कि कोई इसको चुरा चुरू ना ले, जूते में कौन खोजेगा? उसने जूते के अंदर उसको छिपा के रख दिया था अपने बिस्तर के नीचे, जूते उसके इतने गंदे थे, उनको सुधरवाता रहता था उसने फेगड़े लगवा लिए थे और ये आदमी दुनिया का सबसे बड़ा धनपति था इधर लोभ और भय का भी कोई अंत नहीं था इतना ही भय भी था लोभी में अक्सर भय भी होता है भय और लोभ एक ही सिक्के के दो पहलू है वो भयभीत इतना था की रात उसे भूतों का बहुत डर लगता था सच तो ये है कि जहां तक मैं जानता हूँ भूत उससे डरते थे, ऐसे आदमी से भूत ना डरे तो क्या हो? समझ लो कि भूत सिगरेट पी रहा हो वो छीन ही ले, मगर वह भूतों से डरता था, किसी उस्ताद ने उसको बता दिया था कि भूतों से बचने का एक ही उपाय है तो वो उपाय करता था, वो उपाय उसको सोने नहीं देता था, वो उपाय अजीब था, इस दुनिया में एक से एक ज्ञानी पड़े है, मूढ़ों का अंत नहीं है, इसलिए ज्ञानियों का अंत नहीं है, मूढ़ों को चाहिए महामूर, तब तो वो उनको गुरु माने, उसने बताया था कि तरकीब एक ही है भूतों से बचने की और वो यह है कि रात जब सो तो एक लोटे में नमक भर के उसमें अपना पैर डाल दो, नमक पास रहे और तुम्हें छूता रहे, भूत पास नहीं आ सकता, नमक से भूत बहुत डरते है, तो बेचारा एक बड़ा लोटा, उसमें नमक और उसमें एक पैर डाल के और उसको पैर से बांध के रात सोता था, अब ऐसे कहीं नींद आएगी? मगर नींद की कौन फिक्र करे? बचना भूतों से है, ऐसा भयभीत ऐसा लोभी और सारा धन उसका, दुनिया का सबसे बड़ा धनी, धन मिल जाए तो भी कुछ मिलता नहीं, और की दौड़ कायम रहती है और एक दिशा में मिलता है, कुछ तो बाकी दिशाओं में खो जाता है, इसलिए बेचैनी, विशाद बना ही रहता है, इस दुनिया में इस सत्य को जो देख लेता है कि तृष्णा दुषपुर है, भरती ही नहीं, भर सकती ही नहीं, वही व्यक्ति भगवत्ता को उपलब्ध हो जाता है।