अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१८) Saroj Verma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१८)

सतरुपा बार मालिक के सवाल से परेशान हो उठी तभी वहाँ पर प्रकाश मेहरा जी आए,जिनकी पार्टी में सतरुपा देविका बनकर आई थी और वे देविका बनी सतरुपा से बोले....
"क्या हुआ मिसेज सिंघानिया! आप इतनी परेशान सी क्यों दिख रहीं हैं"?
"जी! कुछ नहीं! मैं मिस्टर सिंघानिया का वेट कर रही थी,ना जाने कहाँ रह गए",देविका बनी सतरुपा बोली...
तब बार का मालिक प्रकाश मेहरा जी से बोला...
"क्या ये मिसेज सिंघानिया हैं,मैं तो इन्हें कोई और ही समझ रहा था"
"भाई! जरा लोगों की औकात देखकर बात किया करो,सिंघानिया मिल्कियत की मालकिन हैं ये और बड़े लोगों से बात करते वक्त जरा फासला रखा करो,अभी जाओ यहाँ से और अपने साथ आई लड़कियों से कहो कि तैयार हो जाएँ",प्रकाश मेहरा बार मालिक से बोले....
"जी! साहब! माँफ कीजिएगा,गलतफहमी हो गई थी मुझे",बार मालिक बोला...
"अब जाओ यहाँ से और इन्हें दोबारा परेशान मत करना",प्रकाश मेहरा बोले...
"जी! साहब!"
और इतना कहकर बार मालिक वहाँ से चला गया,तब प्रकाश मेहरा देविका से बोले...
"आप परेशान ना हो मिसेज सिंघानिया! मिस्टर सिंघानिया किचन में कुकिंग कर रहे हैं,वे आते ही होगें,आप जब तक इन्ज्वॉय करें",
और ऐसा कहकर प्रकाश मेहरा जी भी चले गए,उनके जाने के बाद देविका बनी सतरुपा की जान में जान आई,तभी उसके पास करन आकर बोला....
"सतरुपा! तुम्हें सावधान रहने की जरूरत है,ये सिंघानिया मुझे बड़ा ही घाग इन्सान लगता है",
"मैं ने तो आपसे पहले ही कहा था कि मुझे इस चक्कर में मत डालिए,अब ना जाने मेरा क्या होगा,लगता है एक दिन नकली देविका भी असली देविका की तरह टें बोल जाऐगी",सतरुपा बोली...
सतरुपा ऐसा बोली तो करन को उसकी बात पर हँसी आ गई,तब करन उसे तसल्ली देते हुए बोला....
"सतरुपा! मैं तुम्हारे लिए खाना लाया हूँ,ज्यादा मत सोचो,खाना खा लो तुम्हें भूख लगी होगी"
"यहाँ मेरी जान पर बनी है और आप खाना खाने की बात कर रहे हैं",सतरुपा खिसियाकर बोली....
"जीना है तो खाना तो खाना ही पड़ेगा,क्या पता आज रात ही सिंघानिया तुम्हारा काम तमाम कर दे तो कम से कम मुझे इतनी तसल्ली तो रहेगी कि तुम भूखे पेट तो नहीं मरी",करन मुस्कुराते हुए बोला....
"मतलब आप चाहते हैं कि मैं मर जाऊँ",सतरुपा गुस्से से बोली...
"अरे! मैं तो मज़ाक कर रहा था,आज की रात जैसे तैसे काट लो,कल मैं इस सिंघानिया का कुछ ना कुछ करता हूँ",करन बोला...
"आप कहते हैं तो खा लेती हूँ,लेकिन कसम से डर के मारे कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा है",सतरुपा बोली...
"खाना खा लो,मैं अब और ज्यादा देर तुमसे बात नहीं कर सकता,नहीं तो लोगों को शक़ हो जाएगा",
ऐसा कहकर करन वहाँ से चला गया और सतरुपा मजबूरी में खाना खाने लगी,तभी उसके पास सैफ की ड्रेस में सिंघानिया आ पहुँचा और उससे बोला....
"खाना कैंसा लगा डार्लिंग?",
"जी! बहुत ही अच्छा है",देविका बनी सतरुपा बोली...
"ये सब मेरी रेसिपी हैं और ये सब भी मैंने ही बनाया है",सिंघानिया बोला....
"जी! मैं जानती हूँ कि आप बहुत बड़े सैफ हैं",देविका बनी सतरुपा बोली...
"तुमने बिरयानी टेस्ट की",सिंघानिया ने पूछा...
"जी! मैं नॉनवेज नहीं खाती",देविका बनी सतरुपा बोली...
"ये तुम्हें क्या हो गया है देविका डार्लिंग! कभी कहती हो कि तुम आमलेट नहीं खाती,कभी कहती हो कि तुम
नॉनवेज नहीं खाती,पहले तो बहुत खाती थी,जब से तुम गुम हुई हो तो ना जाने तुम्हारी आदतें क्यों बदल गईं हैं",सिंघानिया बोला....
"जी! मैंने कहा ना कि मुझे पुराना ज्यादा कुछ याद नहीं,तो फिर अपने खाने के बारें भी कुछ याद कैंसे होगा", देविका बनी सतरुपा बोली....
"हाँ! ये भी तुम ठीक कह रही हो",सिंघानिया बोला...
"जी! अगर आपका यहाँ काम खतम हो गया हो तो अब घर चलें",देविका बनी सतरूपा ने सिंघानिया से कहा...
"नहीं! देविका! अभी बहुत काम है मुझे,पार्टी खतम होने के बाद ही मैं यहाँ से जा पाऊँगा,मैं ऐसा करता हूँ कि तुम्हारे लिए कैब बुक कर देता हूँ ,जिससे लोकेशन भी शेयर हो जाऐगी और मुझे तुम्हारी चिन्ता भी नहीं रहेगी",दिव्यजीत सिंघानिया ने कहा....
"हाँ! ठीक है!",देविका बनी सतरुपा बोली...
"और कुछ लोगी,जैसे कि कुछ मीठा",सिंघानिया ने देविका बनी सतरुपा से पूछा...
"जी! नहीं! अब मेरा पेट भर चुका है",देविका बनी सतरुपा बोली....
फिर इसके बाद दिव्यजीत सिंघानिया ने एक कैब बुक की,कैब आई और सिंघानिया ने ड्राइवर सरदार जी को लोकेशन शेयर की,इसके बाद देविका उस कैब में बैठकर सिंघानिया के विला की ओर चल पड़ी और सिंघानिया फिर से किचन की ओर चला आया,वो किचन में पहुँचा तो उससे रघुवीर ने पूछा....
"साहब! कुछ पता चला कि यहाँ रैक के पीछे कौन छुपा था"
"कूछ पता नहीं चला,पता नहीं कौन था,बस इतना डर है कि कहीं उसने मेरी और तुम्हारी बातें ना सुन लीं हों", सिंघानिया बोला...
"कहीं आपकी पत्नी देविका तो हम दोनों की बातें नहीं सुन रही थी",रघुवीर ने पूछा....
"अरे! वो बेवकूफ है,उसका इतना दिमाग़ नहीं चलता",सिंघानिया बोला....
"हो सकता है कि कोई बिल्ली वगैरह रही हो,मीट की खुशबू से इधर चली आई हो",रघुवीर बोला....
"हाँ! ऐसा हो सकता है,बिल्ली वगैरह ही रही होगी",सिंघानिया बोला...
और फिर ऐसे ही सिंघानिया और रघुवीर के बीच बातें चलती रहीं,लेकिन इधर कैब में बैठी सतरुपा काफी परेशान नजर आ रही थी,तो कैब के ड्राइवर ने उससे पूछा....
"क्या हुआ मैडम जी! तुस्सी बड़े परेशान दिख रहे हो?"
"कुछ नहीं ऐसे ही",देविका बनी सतरुपा बोली....
"कुछ तो बात जरूर है,तभी आप इतने परेशान दिख रहे हो",
सरदार जी ने फिर से पूछा तो सतरुपा गुस्से से बोली....
"आपको क्या लेना देना है मेरी परेशानी से,आप अपना काम कीजिए ना!",
"काम ही तो कर रहे हैं मैडम जी!"
और ऐसा कहकर ड्राइवर ने एक सुनसान जगह पर कैब रोक दी,अब तो सतरूपा की हालत खराब हो गई और वो उससे बोली...
"तुमने कैब यहाँ क्यों रोकी",
"मेरे साथी को भी साथ में लेना है ना! इसलिए",ड्राइवर बोला....
"मैं कहती हूँ चुपचाप कैब चलाओ,नहीं तो मैं चीखूँगीं...चिल्लाऊँगी",देविका बनी सतरुपा गुस्से से बोली...
"मैडम जी! सुनसान जगह है आपकी आवाज़ सुनकर यहाँ कोई नहीं आने वाला",ड्राइवर बोला...
"मैं कहती हूँ कि चुपचाप यहाँ से चलो",सतरुपा फिर से बोली...
"अब तो ये कैब तभी आगें बढ़ेगी,जब मेरा साथी यहाँ आ जाएगा",सरदार जी बोले....
अब सतरुपा परेशान थी,जैसे तैसे एक मुसीबत से निकलकर वो दूसरी मुसीबत में फँस गई थी, कहावत है ना कि आसमान से गिरे और खजूर पर अटके,उसने चारों ओर नजर दौड़ाई तो उसे कोई भी नज़र नहीं आया और तभी बाइक में दो शख्स सवार होकर उस कार की ओर आऐ,पहला शख्स बाइक से उतरकर सतरुपा के पास आकर बोला....
"सतरुपा! तुम ठीक हो ना!",
उस शख्स की आवाज़ सुनकर सतरूपा की जान में जान आई,क्योंकि वो कोई और नहीं करन थापर था और तब सरदार जी भी अपनी पगड़ी और दाड़ी हटाते हुए बोले....
"सतरुपा! तुम मुझे पहचान ही नहीं पाई"
"ओह...इन्सपेक्टर साहब! आपने तो मेरी जान ही निकाल दी",सतरुपा बोली....
फिर तीनों हँसने लगे तो तभी देविका बनी सतरुपा के फोन पर सिंघानिया का फोन आया और वो उससे बोला....
"देविका! कैब रुकी हुई क्यों है,क्या बात है?"
फिर देविका बनी सतरुपा सिंघानिया के सवाल का जवाब सोचने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...