इन्सपेक्टर धरमवीर के कहने पर हवलदार बंसी यादव देविका को मिस्टर सिंघानिया के घर छोड़ आया, देविका घर पहुँची तो उसे नौकर ने बताया कि मालकिन घर पर नहीं हैं,बड़े साहब भी अभी आँफिस से नहीं लौटे हैं और छोटे साहब अपने कमरे में हैं क्योंकि कुछ देर पहले उन्होंने अपने कमरे में काँफी मँगवाई थी,तब देविका बनी सतरुपा को लगा कि अब रास्ता बिलकुल साफ है वो चैन से अपने कमरे में जाकर आराम कर सकती है,इसलिए वो कपड़े बदलकर बिस्तर पर आराम करने लेट गई और तभी उसके कमरे के दरवाजे पर रोहन आकर बोला....
"क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ?",
अब देविका भला क्या कहती इसलिए उसने रोहन को अपने कमरे में आने की इजाज़त दे दी,फिर रोहन कमरे के अन्दर आकर देविका के बिस्तर पर बैठ गया,तब देविका ने रोहन से पूछा...
"जी! आपको मुझसे कुछ काम था"
"जी! नहीं! मैं तो तुमसे यूँ ही मिलने आ गया था जानेमन!" रोहन देविका से बोला...
"ये क्या तरीका है बात करने का",देविका गुस्से से बोली....
"ओहो...अब मेरा बात करने का तरीका भी गलत लगने लगा तुम्हें"रोहन बोला...
"ये क्या बेहूदगी है,मैं तुम्हारे भइया से शिकायत कर दूँगी",देविका गुस्से से बोली...
"ओय...ये धमकियाँ किसे देती है,अगर मैंने तेरी बातें दिव्यजीत को बता दीं ना तो तू कहीं की नहीं रहेगी, समझी!",रोहन बोला....
"कौन सी बातें",देविका ने पूछा...
"वही जो तेरा चक्कर शिशिर सरकार से चल रहा था और कहाँ थी तू एक साल से,अपने उसी आशिक के साथ थी ना! जब उसका तुझसे जी भर गया तो उसने लात मारकर निकाल दिया होगा तुझे और तू फिर से यहाँ चली आई",रोहन बोला...
"ज्यादा बकवास मत करो",देविका बोली...
"मैं तेरी सारी औकात जानता हूँ,तू एक बिकाऊ औरत है,खूबसूरत मर्द तेरी कमजोरी हैं,इसलिए तू मुझसे बकवास मत कर,समझी! बेगैरत औरत!",रोहन बोला....
"निकलो मेरे कमरे से",देविका बोली....
तब रोहन बोला...
"हाँ...हाँ...जा रहा हूँ,मुझे भी शौक नहीं है तेरी जैसी औरत से बात करने का,बड़ी सती सावित्री बन रही है,तू वही देविका है जिसने दौलत के लिए दिव्यजीत से प्यार का झूठा नाटक रचाया,तू गिरी हुई घटिया औरत है और ये मत समझ कि तू वापस आ गई है तो ये सारी दौलत हथिया लेगी,इस पर मेरा भी हक़ है,मेरे कहने पर ही तूने दिव्यजीत से प्यार का झूठा नाटक करके उससे शादी की थी और जब दौलत बाँटने की बात आई तो तू साफ मुकर गई"
"तुम जाते हो यहाँ से या मैं शोर मचाऊँ",
देविका गुस्से से बोली क्योंकि अब देविका के सबर का बाँध टूट चुका था...
"हाँ..जा रहा हूँ"
और फिर ऐसा कहकर रोहन देविका के कमरे से चला गया,लेकिन सतरुपा अब बहुत डर चुकी थी, क्योंकि अब उसे इस घर में दुश्मन ही दुश्मन नज़र आ रहे थे,कहाँ आकर फँस गई,अच्छी भली बार में नाच कर रही थी,अब उसे इन्सपेक्टर धरमवीर और करन बाबू के इशारों पर नाचना पड़ रहा है,सतरुपा यही सब सोच रही थी कि तभी शैलजा उसके कमरे में आकर बोली...
"आ गई देविका बेटी! क्या पूछा पुलिस वालों ने",
"कुछ नहीं माँजी! वही सब जो मुझे ठीक से याद नहीं है",देविका बनी सतरुपा बोली...
"चाय पिओगी,क्योंकि मैं अपने लिए बनवाने जा रही थी",शैलजा ने पूछा...
"जी! पी लूँगीं",देविका धीरे से बोली...
"क्या बात है बेटी! तेरी तबियत तो ठीक है ना! तेरा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों लग रहा है",शैलजा ने पूछा...
"हाँ! तबियत ठीक है,बस थोड़ा थक गई हूँ",देविका बोली...
"ठीक है तो तुम आराम कर लो में दीनू से चाय तुम्हारे कमरे में ही भिजवा देती हूँ",शैलजा जाते हुए बोली...
"जी!ठीक है!",देविका बोली...
शैलजा के जाते ही देविका अब कश्मकश में उलझी हुई कुछ सोच ही रही थी कि तभी उसका फोन बजा,उसने फोन देखा तो वो दिव्यजीत सिंघानिया का फोन था,देविका ने गैर मन से फोन उठाया और हैलो कहा तब दूसरी ओर से दिव्यजीत बोला....
"देवू डार्लिंग! आज रात मैं घर नहीं आ पाऊँगा,मैं फार्महाउस जा रहा हूँ,वहीं रूकूँगा,तुम डिनर करके सो जाना,मैं ने माँ को भी फोन करके बता दिया है कि आज रात मैं घर नहीं आ पाऊँगा"
"जी! ठीक है",देविका बनी सतरुपा बोली....
"ठीक है तो मैं अब फोन रखता हूँ ,बाय!", इतना कहकर दिव्यजीत ने फोन रख दिया...
दिव्यजीत से बात करने के बाद देविका ने चैन की साँस ली और वो बिस्तर पर फिर से लेट गई,वो आज खुश थी कि रात को सिंघानिया घर नहीं आएगा,लेकिन ये रोहन देविका के बारें में क्या कह रहा था, क्या देविका वैसी ही थी जैसा कि उसके बारें में रोहन कह रहा था और ये शिशिर सरकार कौन है,मुझे ये सब बातें इन्सपेक्टर धरमवीर और करन बाबू को बतानीं होगीं,लेकिन उन्होंने मुझे इस फोन से बात करने से मना किया है,क्योंकि उन्हें शक़ है कि कहीं मेरी बातें सिंंघानिया रिकॉर्ड ना करवा रहा हो,इसलिए मैं उनसे ये बातें नहीं बता सकती,अब उन लोगों से मिलकर ही ये सारी बातें बता पाऊँगी,सतरुपा यही सब सोच रही थी कि कुछ ही देर में दीनू उसके कमरे में चाय लेकर पहुँच गया,दीनू के जाने के बाद उसने कमरे के दरवाजे बंद किए और अपने पर्स में से बड़ापाव निकाला,जिसमें ढ़ेर सारी तली मिर्च पड़ी थी और चाय पीते पीते उसने बड़ापाव का आनन्द उठाया,आज बहुत दिनों के बाद उसने बड़ापाव खाया था,बड़ापाव खाकर वो फिर से बिस्तर पर लेट गई और कुछ ही देर में उसकी आँख लग गई.....
करीब आधी रात के वक्त किसी के चिल्लाने से उसकी आँख खुली,उसने घड़ी देखी तो रात के दो बज रहे थे,उसे बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि वो इतनी देर तक सोती रही,इतनी भी नहीं थकी थी वो कि उसे इतनी गहरी नींद आ जाए और तब उसने अपने कमरे की खिड़की खोलकर बाहर की आवाज़ सुनने की कोशिश की,शैलजा गुस्से में थी और रोहन से कह रही थी....
"तू फिर से उस मारिया से मिलकर आ रहा है ना! तू मेरी बात क्यों नहीं सुनता",
"माँ! तुम मेरी जिन्दगी में दखल मत दो,मुझे पसंद नहीं कि कोई मुझ पर पाबन्दियाँ लगाए",रोहन बोला...
"बेटा! मैं ये तेरी भलाई के लिए ही कह रही हूँ,एक बार ये सारी दौलत तेरे हाथ में आ जाए तो फिर खूब अय्याशी करना मैं कुछ नहीं कहूँगीं",शैलजा बोली...
"धीरे बोलो माँ! कहीं वो देविका और दिव्यजीत ये बात ना सुन ले",रोहन बोला...
"देविका तो अब सुबह तक जागने वाली नहीं,मैंने उसकी चाय में नींद की गोली मिला दी थी,इसलिए वो तो घोड़े बेच कर सो रही होगी और रही दिव्यजीत की बात तो वो तो फार्महाउस गया है",शैलजा बोली...
"माँ! अब तुम कुछ मत कहो,मैं अब सोने जा रहा हूँ,सुबह बात करेगें"
और ऐसा कहकर रोहन चला गया...
क्रमशः...
सरोज वर्मा...